अगर अब नहीं बोले तो कभी नहीं बोल पायेंगे
देश की जनता हाहाकार कर रही है. भूख , गरीबी, बेरोजगारी और मंहगाई ने सच्चे और मेहनतकश लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. तंग आकर कुछ लोग चोरी, डकैती और नक्सलवाद का रास्ता पकड़ रहे हैं तो कम दिलवाले लोग मौत को गले लगा रहे हैं. जो बचे हैं वे कर्ज लेकर या कम खा-पीकर , कम खर्चे कर अपनी गुजर -बसर कर रहे हैं. हाँ, दलालों की मौज है . जो भ्रष्टाचारी हैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं है. उलटे सरकार का वरदहस्त हासिल कर ऐसे लोग अपने देश का धन दुसरे देशों में भेज रहे हैं.हर घड़ी भ्रस्टाचार हो रहा है, हर जगह भ्रष्टाचार है. हालात ऐसे हैं कि अगर कुछ चुनिन्दा लोग अपना ईमान बरकरार रखना भी चाहें तो नहीं रख पा रहे हैं. अगर कोई अपना काम करवाने के लिए सरकारी ऑफिस जाता है तो आम आदमी के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है. अगर कोई क़ानून की दुहाई दे तो उसे ऐसे देखा जाता है जैसे उसने कितनी बड़ी नादानी अथवा कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो. अगर वह अपने अधिकारों की बात करता है तो उसे दुत्कार दिया जाता है. उसके काम में हजारों दोष निकाल दिए जाते हैं, अगर वह अपना सम्मान बचाने के लिए प्रयासरत दिखा तो सरकारी काम में अड़चन डालने वाली धरा लगवाकर , जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाकर उसे निपटा दिया जाता है. पुलिसवाले सब जानते हैं फिर भी आम आदमी की नहीं बल्कि भ्रस्टाचार करने वालों की बात ही मानते हैं. ये महज सरकारी गतिविधियां नहीं बल्कि सिस्टम की हकीकत बन चुका है. अब इससे होता ये है कि सरकार भले ही किसीकी क्यों न बन जाए मगर भ्रष्टाचार की यह दास्ताँ ऐसे ही दोहराई जाती है. हर तरह की चक्की को पीसने वाला और उस चक्की में पीसने वाला व्यक्ति आम व्यक्ति ही होता है. और अब तो हद हो चुकी है. जुल्मो सितम की इन्तिहाँ हो चुकी है. और जैसे कि कहा गया है. जब -जब ऐसे हालात होते हैं . पानी सिर से ऊपर उतरता है तो कोई न कोई जन्म लेता है, आगे बढ़ता है उसमे सुधार लाने के लिए . आज अन्ना हजारे एंड टीम के आंदोलन को उसी नजरिये से देखना चाहिए .अन्ना हजारे की टीम के आगे आज देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस भी नतमस्तक की मुद्रा में है तो इसका सबसे बड़ा कारण आम आदमी की ताकत है. अगर हर कोई अपनी ताकत को पहचानकर कार्य करे तो बड़े से बड़ा असम्भव काम भी संभव हो सकता है. अन्ना हजारे एंड टीम आज सरकार बदलने के लिए नहीं बल्कि सिस्टम बदलने के लिए काम कर रही है. वे एक सशक्त लोकपाल चाहते हैं ताकि आं आदमी के हितों की रक्षा हो सके, सरकार भले ही जिसकी आये मगर आम आदमी के अधिकार सुरक्षित रहें. अगर अन्ना हजारे सच कह रहे हैं तो उनके इस पुनीत कार्य में हर देश प्रेमी को सहयोग करना चाहिए , भले ही वो किसी भी पार्टी या संगठन से क्यों न जुडा हो. देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी ईमानदार व्यक्ति बताया जाता है. अगर ये भी सच है तो उनको अपना मौन तोडना चाहिए .अगर अब भी वे खामोश रहे तो फिर कभी नहीं बोल पायेंगे . क्योंकि अगली बार अगर चांस मिला भी तो उनके लिए कोई चांस नहीं है. (राजनीतिक चाटुकार पहले से ही भावी प्रधानमंत्री तय कर चुके हैं )इसलिए प्रधानमंत्री को अपने होने का एहसास दिलाना चाहिए . सिर्फ कह देने भर से काम नहीं चलता , उन्हें प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने की पहल करनी चाहिए . अपनी और अपनी सहयोगी पार्टियों को भी इसके लिए तैयार करना चाहिए . आखिर यह पद किसी एक व्यक्ति या पार्टी की बपौती तो है नहीं. आज कोई और है कल कोई और आएगा .
- मुकेश कुमार मासूम
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