जिनके खातिर हम लहू बहाते हैं .
वो दर्द में भी जख्म दिए जाते हैं.२६ जुलाई २००५ . इस तारीख को भला मैं कैसे भूल सकता हूँ. मेरे जैसे और भी न जाने कितने मुम्बईकर या फिर इस दिन की विभीषिका झेलने के अभिशप्त मुंबई आये लोग भी इस डरावनी तारीख को नहीं भूल सकते. मुझे याद है उस दिन वर्ली जाम्बोरी मैदान में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की सभा भी थी. मैं बसपा का मीडिया प्रभारी था, इस नाते पत्रकार बंधुओं को बुलाना , उनकी 'देख-रेख' करने का दायित्व मेरा था. सतीश चंद्र मिश्रा का भाषण होते-होते सभा के लिए लगाए पंडाल में पानी भर चूका था और जब मायावती जी का भाषण हुआ तब तक बादल अपना रौद्र रूप धारण कर चूका था. काफी 'समझदार' कार्यकर्ता तो मौक़ा देखकर निकल लिए मगर मैं रुका रहा. सभा खत्म होते ही मैं शमशाद भाई और दीपक मित्रा के साथ इनोवा से निकल लिया . हरिनाथ यादव उस समय हिंदमाता में थे. सभा कवर करने वही आये हुए थे. उन्हें अपने ऑफिस जाना था तो वे भी हमारे साथ हो लिए . उनेहं ऑफिस छोड़ते तब तक तो आसमान से प्रलय बरसने लगी थी. सड़कों पर पानी भर चुका था , और जगह-जगह ट्रैफिक जाम होने लगा था. किसी तरह उन्हें सकुशल छोड़ने के बाद जब हम आगे के लिए बढे तो मुश्किल और भी बढ़ने लगीं. शमशाद भाई और दीपक मित्रा को गोकुलधाम आना था जबकि मुझे मीरा रोड आना था. जिधर देखिये सड़क जाम थीं. पानी कहर बनकर टूट रहा था. चारों तरफ अनिश्चितता का माहौल था. कुछ समझ में नहीं आ रहा था की ऐसे वक्त क्या किया जाए. सब दुविधा में थे. मुझे साथी पत्रकारों के फोन आ रहे थे जो सभा में नहीं पहुँच पाए थे. महाराष्ट्र अध्यक्ष का फोन नहीं लग रहा था . बसपा के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी मिल पाई थी की बहन जी सकुशल होटल पहुँच गयी और उत्तर प्रदेश के वर्तमान परिवहन मंत्री राम अचल राजभर की पिस्तौल पानी में ही गिर गयी थी जो बड़ी मशक्कत के बाद मिल पाई , इसके बाद पार्टी के बड़े नेताओं से सम्बन्ध विच्छेद हो गया. इधर नई इनोवा की परिक्षा थी, शुरुआत में तो गाड़ी बड़े धैर्य और जिम्मेदारी का परिचय देती रही मगर बरसात तो तूफ़ान में तब्दील हो चुकी थी और तूफ़ान का मुकाबला कोई भी गाड़ी भला कैसे कर सकती है ? शमशाद भाई ने सूचना दी की नीचे की तरफ से गाड़ी में पानी भरने लगा है. इसके बाद वह सिलसिला चल निकला . पूरी गाड़ी में पानी ही पानी. फिर जब सामने निगाह दौडाई तो कोहराम मचा था. सब लोग गाड़ियों से उतरकर पैदल चल रहे थे. गाड़ियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था. जब जान पर बन आये तो बाकी साभी नीचे गौण हो जाती हैं. हमने गाड़ी परफेक्ट किस जगह पर छोड़ी यह तो याद नहीं मगर हम गर्दन तक पानी में जद्दोजहद करते हुए लगभग एक घंटा में सांताक्रुज के फ्लाईओवर पर पहुंचे . लोगों की चीख पुकार और मरकर बहे पशुओं के साथ हमने यहाँ तक की मंजिल कैसे तय की ये हम ही जानते हैं. इस बीच घर पर फोन कर श्रीमती को बारिस में फंसने की सूचना दी तो उसने मजाक में टाल दिया , उसके बाद फोन लगा ही नहीं. सब कुछ बंद हो चूका था. हम जहाँ पहुंचे वहाँ पर बेस्ट की एक बस खडी थी, उसमे काफी जगह थी. बरसात जोरों पर थी ही, बाहर बच्चे -महिलायें रो रहे थे. उनमे से कुछ ने जब बस में चढना चाहा तो बस वालों ने गाली गलौच कर , लड़ाई झगदा कर सबको नीचे उतार दिया . इसके बाद तो उसने गेट ही बंद कर लिए. वे लोग इयमों का हवाला दे रहे थे . हम भी नीचे उतार दिए गए. अब पूरी रात सामने थी. ऊपर से आसमानी आफत थी तो इधर पेट ने भी बगावत करने शुरू करदी. भरी बरसात में पेट से चिंगारियां निअक्ल रही थी. चारों तरफ पानी ही पानी था और हम लोग प्यासे थे. आस-पास कुछ दुकानें थी . उन्होंने इंसान की मजबूरी का अच्छी तरह ' फायदा' उठाया . बड़ा पाब पचास रुपये तक में बेचा . सुनते हैं की मुसीबत के समय मुंबई एक हो जाती है. मगर उस महा मुसीबत की महाघडी की सच्चाई आप तक पहुंचा रहा हूँ. उस रत हम भूखे ही रहे. हमें कुछ नहीं मिल पाया . दूकान वाले चाहते तो मदद कर सकते थे मगर उन्होंने मदद के बजाय भंवर में फंसे लोगों का उपहास उडाया , उन्हें ब्लैकमेल किया. बस वाला भी अगर चाहता तो ठण्ड से कांपते , बुखार में तपते कुछ अति जरूरत मंद लोगों को उस बस में सहारा दे सकता था, वह खाली बस थी, उसमें कुछ ही लोग बैठे थे. खैर . मैं तू सुबह शमशाद भाई और दीपक मित्र की मदद से गोकुलधाम तक पहुँच गया मगर जिनेहं हम अपना कहते हैं . जिनके लिए 'विशेष ' परिस्थितियों में हम खून तक बहाने के लिए तैयार होते हैं वे मुसीबत के समय इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हैं.
जिनके खातिर हम लहू बहाते हैं .
वो दर्द में भी जख्म दिए जाते हैं.- मुकेश कुमार मासूम
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