Wednesday, August 3, 2011

राज ठाकरे का गुजरात दौरा
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना

मनसे के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे आजकल गुजरात दौरे पर हैं। गुजरात सरकार ने उन्हें सरकारी मेहमान घोषित किया है। गुजरात भी अन्य राज्यों की तरह है तो भारत देश में ही मगर अलग राज्य है। यानी की राज ठाकरे के लिए तो वह परप्रांत ही है। इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से राज ठाकरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे। उनके मन में परप्रांतीयों के लिए उम्दा यह प्यार अचानक नहीं है। यह सब बहुत सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। गुजरात दौरे से जाने से पहले उन्होंने हिन्दी के कुछ अखबारों को हिंदी में इंटरव्यू भी दिए। उसमे उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ की , बिहार के मुख्यमंत्री की तारीफ़ की मगर मायावती पर वे अच्छे कहासे नाराज नजर आये। यहाँ भी वे बड़ी रणनीति के तहत बोलते नजर आये। और तो और अब वे गुजरात में लोगों के साथ हिन्दी भाषा में बात कर रहे हैं। हिन्दी के साथ उम्दा हुआ यह प्यार भी अचानक नहीं है। दरअसल राज ठाकरे की समझ में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी है की सिर्फ महाराष्ट्र का नारा देने और उतर -प्रदेश -बिहार के लोगों को पिटवाने या डरा- धमकाने से कुछ होने वाला नहीं। अगर सत्ता चाहिए तो उसके लिए रणनीति में बदलाव करना ही होगा। अकेले मराठी वोटों के दम पर वे इच्छित राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते , क्योंकि उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी शिवसेना पहले से ही इन वोटों पर अच्छा-खासा वर्चस्व रखती है। इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी बहुत बढ़िया तादाद में मराठी वोट कैश कर लेती है। राज ठाकरे जान गए हैं की वे अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए तो अश्प्रश्य की तरह हैं। खुद उन्होंने अपने इंटरव्यू में इस बात को कबूल भी किया है। थोड़े- बहुत मराठी वोटों के बलबूते वे न तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही बन सकते हैं और न ही केंद्र की राजनीती में धमक ला सकते हैं। इसके लिए उन्हें महाराष्ट्र में ही किसी साथी की जरूरत है। अब उनके साथ यहाँ मित्रता करेगा कौन ?कांग्रेस और राष्ट्रवादी का पहले से ही गठबंधन है। उनके लिए तो मनसे वैसे ही संजीवनी बूटी की तरह है। वे उससे कभी समझौता नहीं करना चाहेंगे । क्योंकि जब मनसे अलग चुनाव लड़कर शिवसेना -भाजपा के वोट काटती है तभी कांग्रेस -राष्ट्रवादी का उम्मीदवार जीतता है। इस वोट कटाई से कांग्रेस को दोगुना फायदा होता है । शिवसेना और भाजपा का पहले से ही गठबंधन है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और केन्द्र में भी कई बार शासन कर चुकी है। शिवसेना के मुकाबले उसका महाराष्ट्र में भले ही कम दबदबा हो मगर है तो पूरे देश में। दूसरी बात भाजपा और शिवसेना की सोच भी लगभग एक जैसी है। कम से कम हिंदुत्व के मामले पर तो वे शत -प्रतिशत एकमत हैं। इसलिए शिवसेना और भाजपा का गठबंधन आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। उसके लिए फील्ड वर्क की जरूरत पड़ेगी, किसी ठोस सहारे की जरूरत पड़ेगी । शायद इसीकी रिहर्सल शुरू हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी भाजपा के बड़े नेता हैं और उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व सौंपने की चर्चा गाहे -बगाहे चलती रहती है। बहुत संभव है की आगे चलकर वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आबं जाएँ। वैसी स्थिति में अगर राज- मोदी की दोस्ती बनी रहती है तो मुंबई में भाजपा के साथ गठबंधन में आसानी आ सकती है। शिवसेना के लिए भाजपा बहुत बड़ी जरूरत हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए यह बहुत बड़ी या सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं है।इसलिए राज ठाकरे एक तीर से कई निशाने करना चाहते हैं । उनके गुजरात दौरे से एक तो गुजराती मतदाताओं का झुकाव उनकी तरफ बढ़ेगा , दूसरी बात उन्हें कुछ नए कार्यकर्ता भी मिल जायेंगे । साथ में भविष्य में एक राजनीतिक साथी की तलाश भी पूरी हो सकती है। शिवसेना के रणनीतिकार पहले से ही जानते हैं की राजनेति में कुछ भी संभव है तभी तो उन्होंने पहले से ही रामदास आठवले के रूप में नए सहयोगी की तलाश पूरी करली है। खैर, जो भी हो । अगर राज ठाकरे अपनी सोच और विचारों के साथ-साथ क्षेत्र का भी विस्तार कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है ?

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