पुणे के किसानों का क्या दोष था की उन्हें गोली से उदा दिया गया ? यही न की वे लोकतांत्रिक तरीके से पवना पाइप लाइन प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे . अपने उस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे जो उन्हें संविधान से मिला है. अगर किसी नागरिक को लगता है की सरकार उन पर जबरदस्ती कोई योजना थोप रही है तो सरकार के उस निर्णय का विरोध किया जा सकता है. मगर भारत में अब इस तरह के निर्णय का सम्मान नहीं किया जाता . अब एक नई परम्परा चल निकली है. अगर सरकार को लगता है की कोई सामाजिक संगठन या कोई व्यक्ति उसके फैसले से नाखुश है तो उसकी तकलीफ समझने के बजाय उसका दमन किया जाता है. उस पर लाठी या गोलियाँ चलाई जाती हैं. सरकार अब तानाशाह की भूमिका में नजर आती हैं, चाहे वह कहीं की भी सरकार क्यों न हो. हाल ही में लखनऊ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाई गईं, वहाँ पर बसपा की सरकार है इसलिए लाठियां खाने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है तो वहाँ पर भाजपा कार्यकर्ताओं को लाठियां खानी पड़ीं, इसके विरोध में भाजपा नेताओं ने संसद तक को ठप्प कर दिया. राज्य सभा स्थगित करनी पडी. मगर महाराष्ट्र के पुणे का मामला सबसे अलग है. वाहन पर किया जाने वाला विरोध राजनीतिक नहीं था . विरोध करने वाले लोग सीधे सादे गरीब किसान थे. वही किसान जो दिन -रात मेहनत करके अन्न उगाता है. जिसके पसीने की बूँद गिरती हैं तो हम जैसे शहरी लोगों का पेट भरता है. जो किसान देश का अन्नदाता है, वही सबसे ज्यादा उपेक्षित है, सबसे ज्यादा कर्जदार है, सबसे ज्यादा परेशान है. उसीके साथ सबसे ज्यादा जुल्म किये जाते हैं. साहूकारों , बैंकों और दलालो से जो किसान बचता है पुलिस की लाठियों या गोलियों का निशाना बनता है।जो आतंकवादी हैं, जो देश को तोड़ने का काम करते हैं , जो शहर में आतंक फैलाते हैं. शांतप्रिय नागरिकों के खून से हाथ रचने वाले अन्दार्वार्ल्ड के लोग हैं, उनके गिरेबान तक सरकार और क़ानून के हाथ नहीं पहुँचते , मगर अपने हक के लिए आंदोलन करने वाले निर्दोष और मेहनतकश किसानो के सीने तक पुलिस की गोलियाँ बड़ी आसान से पहुँच जाती हैं. ज़रा भी निशाना नहीं चूकता . ये कैसी गोलियाँ हैं जो देशभक्त और अन्नदाता किसानों के सीने को तो छलनी करती है मगर देश को तबाह करने की साजिश रचने वाले आतंकवादियों को छूती तक नहीं है ? उलटा उनका संरक्षण करती हैं ?देश पर हमला करने वाला , कई जांबाज पुलिस अधिकारियों की जान लेने वाला कसाव आज तक जेल में ऐश कर रहा है। संसद का हमलावर अफजाल गुरु सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बावजूद चैन की सांस ले रहा है। सैकड़ों हत्याओं के जिम्मेदार दाऊद इब्राहीम, छोटा शकील और राजन जैसे लोग आज तक क़ानून की पकड़ से बाहर हैं। पुलिस और तमाम खुफिया एजेंसियां अभी तक उन तक नहीं पहुँच पाई हैं जबकि गाहे-बगाहे इन गिरोहों से जुड़े लोग अक्सर टी वी पर दिख जाते हैं। लेकिन आम लोग सबका आसान शिकार बनते हैं। कब सुधरेगी ये स्थिति ? और कौन लाएगा ये बदलाव ? कभी थोडा वक्त निकालकर सोचिये तो सही। आप सोचेंगे न ?
- मुकेश कुमार मासूम
९२२२९५९१३०
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