Thursday, October 13, 2011

दलितों को कब तक सताओगे कभी खुद भी खाना खिलाओगे उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में मऊरानीपुर तहसील स्थित मेंडकी गांव में दलित कुंजीलाल आर्य के घर शाम को एक नए भिखारी ने दस्तक दी . भिखारी की सूरत तो जान -पहचान जैसी लगी, मगर उसका पहनावा भिखारियों जैसा बिलकुल नहीं था. हाँ, उसकी हरकतें जरूर भिखारिओं जैसी ही थीं, कुंजीलाल ने ध्यान देकर सुना तो पाया की वह उनसे खाना मांग रहा था. भूख लगी है, खाना मिलेगा ? कुंजीलाल हैरान . मगर गरीबों को भी एक अदा होती है, खुद भूखे रह सकते हैं मगर अपने घर आये किसी भूखे को निराश नहीं लौटा सकते. कुंजीलाल ने ध्यान से देखा तो खाना मांगने वाला देश का युवराज था. यानी की कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी . कुंजीलाल को उस वक्त तो यह एहसास हुआ की वह कितना गलत सोच रहा था , जिसे भिखारी समझा था वह तो टॉप का राजनीतिग्य निकला .मगर सच्चाई ये है की कुंजीलाल पहले सही था. साधारण सा दिखने वाला भिखारी असल में राष्ट्रीय स्टार का भिखारी निकला. दलित प्रेम की आड में राहुल गांधी वोटों की ऐसी भीख मांगने आये थे , जिसके दम पर राजा बना जाता है. अगर डॉक्टर अम्बेडकर दलितों को वोट देने का अधिकार नहीं दिलाते तो कोई राहुल कभी किसी गरीब दलित के घर इस तरह भीख मांगने नहीं जाता . जब-जब देश में भ्रष्टाचार की बात आती है, गरीबी , बेरोजगारी और मंहगाई की बात आती है तब-तब राहुल जी और उनकी माताजी न जाने किस कोने में छिप जाते हैं, जब देश इनकी तरफ आस लगा रहा होता है , जब -जब जनहित के मुद्दों की बात आती है, तब-तब इनकी बोलती बंद हो जाती है. तब ये न तो संसद में नजर आते, न किसी टीवी चैनल पर और न किसी गरीब के घर पर. आम आदमी की नजर में दिल्ली का अहल ये है 'कभी गूंगी ,कभी बहरी ,कभी कुछ होती रहती है . बड़े जनहित के मुद्दों पर ,ये ज़ालिम सोती रहती है. वतन उम्मीद जब करता, कभी मासूम जी इससे , तब यह बेवफा "दिल्ली" , हमेशा रोती रहती है.ये हाल है " दिल्ली " का. और गरीबों के मसीहा बन्ने का नाटक करने वालों का . कभी कोई मीडियाकर्मी , कोई कांग्रेसी या कोई समाजसेवी राहुल गांधी से ये नहीं पूछता की बेचारे दलितों के घर तुम कब तक खाते रहोगे, कब तक सोते रहोगे या फिर कब तक ये पिकनिक मनाते रहोगे ? कभी दलितों को भी तो अपने घर बुलाओ, उन्हें भी खाना खिलाओ, अपने आलीशान महलों में सोने का अवसर दो. क्योंकि किसी के घर खाना बड़ी बात नहीं है. बल्कि उसे अपने घर पर खिलाना बड़ी बात है. जैसे -जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, राजनेता तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, माग्र अब जनता भी सब जान चुकी है. सिर्फ पाखण्ड और दिखावे के चक्कर में कोई आने वाला नहीं है. अगर राहुल सचमुच दलितों के हितैषी हैं तो उनको चाहिए की वे कांग्रेस कार्यकारिणी और सत्ता में भी उन्हें समुचित भागीदारी दें., तभी उन्हें विश्वाश होगा की राहुल की कथनी-करनी में अंतर नहीं है. यू पी में भले ही दलित अपनी चौखट पर आये किसी भिखारी को टुकड़ा दाल सकते हैं मगर ठप्पा तो उनका हाथी पर ही लगने वाला है

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