Wednesday, August 31, 2011

सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या आये ? कांग्रेस की किरकिरी

कांग्रेस ने अब आकर चैन की सांस ली है। कांग्रेस के नेता अब जाकर सुख से सोये होंगे । वरना अन्ना हजारे एंड टीम ने पिछले कुछ दिनों से कांग्रेसियों के दिल का सुकून छीन लिया था । भ्रष्टाचार के दानव ने बहुत खतरनाक रूप धारण कर लिया था। यह हर जगह स्ट्रोंग हो चला है। ऐसा कोई काम नहीं जिसे बिना रिश्वत दिए कराया जा सके। और तो और यह न्यायपालिका में भी खूब फल-फूल रहा है। अगर आप कभी कोर्ट गए हों तो आप जानते ही होंगे की तारीख के बदले पेशकार को रिश्वत देनी ही पड़ती है। यानि की न्याय के देवता की कुर्सी के पास बैठा सरकारी कर्मचारी भी बिना पैसा लिए इच्छित तारीख नहीं देता। सिर्फ पेशकार ही क्यों, ऐसा कोई सरकारी विभाग नहीं है जहाँ पर रिश्वत का शैतान न हो। आम इंसान के लिए जो अरबों -अरबों की योजनाएं बनाई जाती हैं, वे सब की सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाती हैं। मनरेगा इसका सबसे सशक्त उदाहरण है। इस योजना के तहत जो रकम आती है उसमें से ९० परसेंट तक ग्राम प्रधान, प्रधान के चमचों, सेक्रेटरी और खंड विकास अधिकारी की जेब में चली जाती है। उसी व्यक्ति का कार्ड बनाया जाता है जो स्वेच्छापूर्वक रिश्वत दे सके। जो वास्तब में बेरोजगार हैं, जो काम करना चाहते हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें मनरेगा से कोई मदद नहीं मिलती। यहाँ तक की ग्रामीण भागों में वृद्ध पेंशन अथवा विधवा पेंशन के लिए भी सम्बंधित कर्मचारियों और अधिकारों को रिश्वत देनी पड़ती है, जो रिश्वत नहीं दे सकते , उन्हें योजना का लाभ मिल ही नहीं सकता। इसी तरह जो इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत आवास बनाये जाते हैं , उसमे भी लोगों के साथ खूब लूट -खसोट की जाती है। उन्हीं लोगों का नाम आवास के हकदार के लिए नामांकित किया जाता है, जो रिश्वत की रकम पहले चुकाने की क्षमता रखता है। शुरुआत होती है ग्राम प्रधान से , इस्क्जे बाद सेक्रेटरी , खंड विकास अधिकारी , जिला विकास अधिकारी और न जाने कहाँ-कहाँ तक रिश्वत की रकम का बंटवारा होता है।दिक्कत ये है की इन सभी योजनाओं में जो पैसा लगाया जाता है , वह इस देश के लोगों की जेब से जाता है जो सरकार इनकम टेक्स, सेल्स टेक्स, और भी ना जाने कितने तरह के टेक्स के बहाने वसूलती है । फिर सत्ता में बैठे लोग वोटों को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ तैयार करते हैं। मजे की बात तो ये है की सबसे पहले रिश्वत का पैसा सत्ता में बैठे नेताओं के पास ही जाता है। आम आदमी के पास बाद में । हर बड़े सरकारी ठेके की यही कहानी है।, इसे कौन नहीं जानता । सब जानते हैं। कांग्रेस के युवराज भी अच्छी तरह से जानते हैं और संसद में इसे स्वीकार भी करते हैं साथ में ये भी जोड़ते हैं की अकेले लोकपाल से भ्रष्टाचार रुक नहीं पायेगा। जब राहुल जी इतना सब जान ही गए हैं तो आज तक " पिकनिक" क्यों मनाते फिर रहे हैं ? अभी तक कोई प्रभावी क़ानून बनाया क्यों नहीं ? इन्तजार किसका किया जा रहा है ?देश की जनता ने अन्ना हजारे में अपना प्रतिबिम्ब देखा तो उनका साथ दिया। अन्ना के लिए लोग जान न्यौछावर करने लगे। तब जाकर कांग्रेस की कुम्भकर्णी नींद टूटी । अन्ना हजारे की मान स्वीकार की, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है। देश भर के लोगों के मन में काग्रेस के प्रति आक्रोश और नफरत है। लोकपाल समिति से मनीष तिवारी को हटाकर कांग्रेस ने अपना ही भला किया है। अमर सिंह और लालू जैसे भ्रष्ट लोगों की छुट्टी भी करनी होगी वरना ये सन्देश जाएगा की कांग्रेस जन लोकपाल बिल को पारित करने के लिए गंभीर नहीं है। आज कांग्रेस की हालत ऐसी हो गयी है जैसे कोई सब कुछ लुटाकर होश में आता है, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी है। महान वैज्ञानिक न्यूटन के सिद्धांत के मुताबिक़ हम किसी वस्तु को जितनी शक्ति के साथ धकेलते है वह वस्तु भी हमें उतनी ही शक्ति के साथ विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया करती है । अर्थात भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ चुका है है की अब उसके विपरीत भी उसी ताकत के साथ प्रतिक्रया हो रही है. आम जनता के इस आक्रोश को अगर अब भी नजरअंदाज किया गया तो ....

Tuesday, August 23, 2011

महेश भट्ट , अरुंधती राय ; इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा
अन्ना हजारे आज जब आम इंसान की आवाज बन चुके हैं। हर शहर , कस्बा या गाँव के लोग उनमे अपनी छवि देखते हैं, यही कारण है की बहुत बड़ा जन सैलाब उनके समर्थन में उतर आया है और जितने लोग सड़क पर हैं उससे कई गुना ज्यादा लोग ऐसे हैं जो अभी अपने घरों में हैं मगर अन्ना के साथ हैं और किसी न किसी रूप में वे अन्ना को समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस की विडंबना ये है की सबसे ज्यादा उसीने देश पर शासन किया और सबसे ज्यादा मलाई भी कांग्रेसियों ने खाई है। अगर कांग्रेस अन्ना हजारे की बात मानकर जन लोकपाल बिल के लिए राजी हो जाति है तो सबसे ज्यादा तकलीफ कंग्रेस एंड कंपनी को ही होने वाली है। इसलिए वह अन्ना हजारे का विरोध कर रही है। कांग्रेस के चाटुकार मनीष तिवारी , दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और मुखर्जी तथा बड़े चापलूस अमर सिंह, लालू , महेश भट्ट और अरुंधती राय जैसे लोग अन्ना के आंदोलन के खिलाफ जहर उगलने में लगे हैं। मगर अब हालात बदल चुके हैं। पूरे देश में क्रान्ति की लहर चल निकली है। ऐसे समय जो अन्ना का विरोध करेगा लोग खुद ही उसके खिलाफ हो जायेंगे और अन्ना के आंदोलन को भी उतनी ही ज्यादा मजबूती मिलेगी । यह बात कांग्रेस की समझ में आ चुकी है। यही कारण है की कांग्रेस ने अन्ना हजारे पर हमले करने या तो कम कर दिए हैं या लगभग बंद कर दिए हैं। इसकी बजाय कांग्रेस भौं-भौं करने वाली एक जमात को अन्ना आंदोलन को बदनाम करने की सुपारी दे डाली है। सुपारीबाज लोगों में लाऊ प्रसाद यादव , अमर सिंह, महेश भट्ट , बुखारी , अरुंधती राय और तुषार जैसे लोग शामिल हैं.
हाल ही में अरुंधती राय ने एक अखबार में लिखा की बिलकुल अलग वजहों से और बिलकुल अलग तरीके से, माओवादियों और जन लोकपाल बिल में एक बात सामान्य है. वे दोनों ही भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. एक नीचे से ऊपर की ओर काम करते हुए, मुख्यतया सबसे गरीब लोगों से गठित आदिवासी सेना द्वारा छेड़े गए सशस्त्र संघर्ष के जरिए, तो दूसरा ऊपर से नीचे की तरफ काम करते हुए ताजा-ताजा गढ़े गए एक संत के नेतृत्व में। यानी की अरुंधती राय की नजर में अन्ना अभी अभी बनाए गए ताजा संत हैं और उनके आंदोलन की तुलना भी माओवादियों से कर डाली है। जहर उगलते हुए वे आगे लिखती हैं की वह सचमुच कौन हैं, यह नए संत, जनता की यह आवाज़? आश्चर्यजनक रूप से हमने उन्हें जरूरी मुद्दों पर कुछ भी बोलते हुए नहीं सुना है। अपने पड़ोस में किसानों की आत्महत्याओं के मामले पर या थोड़ा दूर आपरेशन ग्रीन हंट पर, सिंगूर, नंदीग्राम, लालगढ़ पर, पास्को, किसानों के आन्दोलन या सेज के अभिशाप पर, इनमें से किसी भी मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। शायद मध्य भारत के वनों में सेना उतारने की सरकार की योजना पर भी वे कोई राय नहीं रखते. वे यही नहीं रुकती अन्ना हजारे और उनकी टीम पर तरह-तरह के आरोप लगाती हैं।राय शायद भूल गयी हैं की अन्ना हजारे जनता के चुने गए प्रतिनिधि , यानी विधायक , सांसद , मंत्री , मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं है। वे एक आम इंसान हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत सालों से संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। उसी सफलता ने आज उन्हें क्रांतिवीर बना दिया है। राय को जो सवाल राहुल गांधी, प्रधानमंत्री , सोनिया गांधी , कपिल सिब्बल, दिग्विजय , चिदम्बरम या मुखर्जी से करने चाहिए और जो उम्मीदें इन लोगों से रखनी चाहिए वे अन्ना हजारे से रख रही हैं। राय की यह खीझ समझ से परे है. वे किसी एजेंट की तरह बात कर रही हैं. अन्ना संत नहीं महा संत है. उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती . कांग्रेस की चमचागीरी कर राज्यसभा पहुँचने की होड ने आम जनता की आवाज समझे जाने वाले महेश भट्ट की की बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है. महेश भट्ट कहते हैं -अन्ना हम फिल्मकारों की तरह जनता को एक छद्म सपने की आस देकर लुभा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अन्ना के आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे संगठन समर्थन दे रहे हैं।उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने वाले युवाओं को इस मुद्दे की ठीक से समझ नहीं है और वे इस पर ठीक ढंग से आत्ममंथन भी नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक की कोई जवाबदेही नहीं होगी अतः यह सही मायनों में एक लोकतांत्रिक समाज के अनुरूप नहीं होगा।अब अक्ल के अन्धों से कोई ये पूछे की समर्थन लेना कौन सी बुरी बात है . अन्ना हजारे भाजपा या आर एस एस को समर्थन दे तो नहीं रहे, ले ही रहे हैं. अब भी सुधरने का वक्त है सुधर जाओ वरना महेश भट्ट , अरुंधती राय ; इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा. कांग्रेस के चमचो ;अब यह तय हो गया है की जो भ्रष्टाचारी होगा, वही अन्ना का विरोधी होगा । यह बात पूरे देश के लोग जान चुके हैं।अन्ना हजारे नाम की जो आंधी उठी थी उसने अब तूफ़ान का रूप धारण कर लिया है. जो चिंगारी थी वह अब तूफ़ान बन चुकी है। इस ज्वालामुखी में भ्रष्टाचार का भस्मासुर तो जलकर राख होगा ही, कांग्रेस के कलंकित चमचे और सुपारीबाज भी अन्ना के तूफ़ान में उड़ जायेंगे । जय हिंद॥ जय अन्ना ॥

Wednesday, August 17, 2011

क्रांतिवीर अन्ना की जीत होगी ,तानाशाह सरकार हारेगी
अन्ना हजारे सच्चे क्रांतिवीर हैं. देश के करोड़ों लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा है. इसी गुस्से का प्रतिनिधित्व अन्ना हजारे कर रहे हैं. यह भ्रस्टाचार ही देश का सबसे बड़ा दुश्मन है. यह विकास के रास्तों को रोकता है, असमानता फैलाता है. और नक्सलवाद जैसी समस्याओं के मूल में भी भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ है. यहाँ दो तरह का भारत बनता दिख रहा है. एक गरीबों का भारत और एक अमीरों का भारत. जो अमीर है वो बहुत बड़ा अमीर है, वह और भी ज्यादा अमीर होता जा रहा है और जो गरीब है वह इतना ज्यादा गरीब होता जा रहा है की दिन रात खून जलाने के बाद भी वह भरपेट भोजन नहीं खा सकता. अपने परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. दूसरी तस्बीर जो ज्यादा अमीर की उभरती है उनमे ज्यादा लोग ऐसे हैं जो सत्ता का सुख भोग चुके हैं या फिर भोग रहे हैं . उनमे वे नौकरशाह भी हैं जिन्होंने कभी कोई जायज काम भी बिना रिश्वत के नहीं किया. उस तरह के लोगों ने इस देश से गद्दारी करके तमाम दौलत विदेशों के बैंकों में जमा करवा रखी है. जिससे वे छोटे-छोटे देशों की अर्थव्यवस्था भी मजूत है और वे धन्ना सेठ बने हुए हैं, जबकि हम यहाँ भूखे हैं, नंगे हैं, बीमार हैं और यहाँ ताकि कर्जदार है. जब एक आदमी देखता है की भ्रष्ट आदमी बिना मेहनत किये भी करोड़ों -अरबों में खेल रहा है और सज्जन श्रमशील लोग टुकड़े-टुकड़े को मोहताज हैं तो उसके मन में विद्रोह की भावना ढउभरने लगती है. उसका व्यवस्था से भरोसा उठ जाता है . और अंततः वह असमानता की दीवार किसी गलत रास्ते पर चल निकलती है. आज देश के हालात ऐसे हैं की आप किसी भी राज्य के सरकारी दफ्तर में चले जाइए , वहाँ पर आपका जायज काम भी बिना रिश्वत दिए नहीं हो सकता . यह गारंटी है. इस सबकी जिम्मेदाआर कांग्रेस पार्टी है, इस देश पर सबसे ज्यादा शासन इसी पार्टी ने किया है और इसीके कार्यकाल में भ्रष्टाचार को जन्मसिद्ध अधिकार बना दिया गया. उसके बाद आयी किसी भी सरकार ने भ्रष्टाचार को कभी गंभीरता से नहीं लिया. चोर-चोर मौसेरे भाई . कौन मुफ्त की कमाई से मुंह मोड. जिस आआम इंसान ने और जब भी इस रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाई उसे तरह- तरह से प्रताडित किया जाता है. उस पर झूठे मुक़दमे चलाये जाते हैं. उसे अपराधियों द्वारा निपटा दिया जाता है. कुल मिलाकर हालात ऐसे हो जाते हैं की आम इंसान को अपने कानूनी काम करवाने के लिए भी रिश्वत देनी ही पड़ती है. तो ये जो दर्द है यह एक दिन का नहीं है. आम इंसान के इस दर्द ने अब ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया है. अन्नाहजारे जैसे क्रांतिवीर इस आंदोलन का सही नेतृत्व कर रहे हैं. इसलिए सभी पार्टीगत बातों को भुलाकर अन्ना हजारे का साथ देना चाहिए. क्योंकि अंततः जीत अन्ना हजारे की ही होगी और तानाशाह सरकार को झुकना ही होगा. क्योंकि अन्ना हजारे अब सिर्फ नाम नहीं बल्कि मिशन का रूप द्धारण कर चुका है . वैसे भी,
अन्ना कौन है ?

अन्ना तुम हो

अन्ना हम हैं.

जब सब अन्ना हैं,

तो हमको हराएगा कौन ?

दिन रात श्रम हम करें

खून-पसीना हम बहाएं

और दलाल लोग अरबों रुपये

विदेशों में जमा कराएं .

एक आदमी भूख से बेहाल है

दूसरा भ्रष्ट बिना करे भी मालामाल है

ये कब तक चलेगा ?

सोई हुई संवेदनाओं को जगाइए

अन्ना का समर्थन कर

दलालों की सरकार हटाइये .
आज अगर हम नहीं जागे
तो हमें कभी नहीं जागने दिया जाएगा
क्योंकि अन्ना जैसे क्रान्ति पुरुष

युगों के बाद जनमते हैं

Wednesday, August 10, 2011

ये कैसी गोलियाँ हैं ?

पुणे के किसानों का क्या दोष था की उन्हें गोली से उदा दिया गया ? यही न की वे लोकतांत्रिक तरीके से पवना पाइप लाइन प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे . अपने उस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे जो उन्हें संविधान से मिला है. अगर किसी नागरिक को लगता है की सरकार उन पर जबरदस्ती कोई योजना थोप रही है तो सरकार के उस निर्णय का विरोध किया जा सकता है. मगर भारत में अब इस तरह के निर्णय का सम्मान नहीं किया जाता . अब एक नई परम्परा चल निकली है. अगर सरकार को लगता है की कोई सामाजिक संगठन या कोई व्यक्ति उसके फैसले से नाखुश है तो उसकी तकलीफ समझने के बजाय उसका दमन किया जाता है. उस पर लाठी या गोलियाँ चलाई जाती हैं. सरकार अब तानाशाह की भूमिका में नजर आती हैं, चाहे वह कहीं की भी सरकार क्यों न हो. हाल ही में लखनऊ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाई गईं, वहाँ पर बसपा की सरकार है इसलिए लाठियां खाने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है तो वहाँ पर भाजपा कार्यकर्ताओं को लाठियां खानी पड़ीं, इसके विरोध में भाजपा नेताओं ने संसद तक को ठप्प कर दिया. राज्य सभा स्थगित करनी पडी. मगर महाराष्ट्र के पुणे का मामला सबसे अलग है. वाहन पर किया जाने वाला विरोध राजनीतिक नहीं था . विरोध करने वाले लोग सीधे सादे गरीब किसान थे. वही किसान जो दिन -रात मेहनत करके अन्न उगाता है. जिसके पसीने की बूँद गिरती हैं तो हम जैसे शहरी लोगों का पेट भरता है. जो किसान देश का अन्नदाता है, वही सबसे ज्यादा उपेक्षित है, सबसे ज्यादा कर्जदार है, सबसे ज्यादा परेशान है. उसीके साथ सबसे ज्यादा जुल्म किये जाते हैं. साहूकारों , बैंकों और दलालो से जो किसान बचता है पुलिस की लाठियों या गोलियों का निशाना बनता है।जो आतंकवादी हैं, जो देश को तोड़ने का काम करते हैं , जो शहर में आतंक फैलाते हैं. शांतप्रिय नागरिकों के खून से हाथ रचने वाले अन्दार्वार्ल्ड के लोग हैं, उनके गिरेबान तक सरकार और क़ानून के हाथ नहीं पहुँचते , मगर अपने हक के लिए आंदोलन करने वाले निर्दोष और मेहनतकश किसानो के सीने तक पुलिस की गोलियाँ बड़ी आसान से पहुँच जाती हैं. ज़रा भी निशाना नहीं चूकता . ये कैसी गोलियाँ हैं जो देशभक्त और अन्नदाता किसानों के सीने को तो छलनी करती है मगर देश को तबाह करने की साजिश रचने वाले आतंकवादियों को छूती तक नहीं है ? उलटा उनका संरक्षण करती हैं ?देश पर हमला करने वाला , कई जांबाज पुलिस अधिकारियों की जान लेने वाला कसाव आज तक जेल में ऐश कर रहा है। संसद का हमलावर अफजाल गुरु सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बावजूद चैन की सांस ले रहा है। सैकड़ों हत्याओं के जिम्मेदार दाऊद इब्राहीम, छोटा शकील और राजन जैसे लोग आज तक क़ानून की पकड़ से बाहर हैं। पुलिस और तमाम खुफिया एजेंसियां अभी तक उन तक नहीं पहुँच पाई हैं जबकि गाहे-बगाहे इन गिरोहों से जुड़े लोग अक्सर टी वी पर दिख जाते हैं। लेकिन आम लोग सबका आसान शिकार बनते हैं। कब सुधरेगी ये स्थिति ? और कौन लाएगा ये बदलाव ? कभी थोडा वक्त निकालकर सोचिये तो सही। आप सोचेंगे न ?
- मुकेश कुमार मासूम
९२२२९५९१३०

Wednesday, August 3, 2011

राज ठाकरे का गुजरात दौरा
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना

मनसे के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे आजकल गुजरात दौरे पर हैं। गुजरात सरकार ने उन्हें सरकारी मेहमान घोषित किया है। गुजरात भी अन्य राज्यों की तरह है तो भारत देश में ही मगर अलग राज्य है। यानी की राज ठाकरे के लिए तो वह परप्रांत ही है। इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से राज ठाकरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे। उनके मन में परप्रांतीयों के लिए उम्दा यह प्यार अचानक नहीं है। यह सब बहुत सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। गुजरात दौरे से जाने से पहले उन्होंने हिन्दी के कुछ अखबारों को हिंदी में इंटरव्यू भी दिए। उसमे उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ की , बिहार के मुख्यमंत्री की तारीफ़ की मगर मायावती पर वे अच्छे कहासे नाराज नजर आये। यहाँ भी वे बड़ी रणनीति के तहत बोलते नजर आये। और तो और अब वे गुजरात में लोगों के साथ हिन्दी भाषा में बात कर रहे हैं। हिन्दी के साथ उम्दा हुआ यह प्यार भी अचानक नहीं है। दरअसल राज ठाकरे की समझ में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी है की सिर्फ महाराष्ट्र का नारा देने और उतर -प्रदेश -बिहार के लोगों को पिटवाने या डरा- धमकाने से कुछ होने वाला नहीं। अगर सत्ता चाहिए तो उसके लिए रणनीति में बदलाव करना ही होगा। अकेले मराठी वोटों के दम पर वे इच्छित राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते , क्योंकि उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी शिवसेना पहले से ही इन वोटों पर अच्छा-खासा वर्चस्व रखती है। इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी बहुत बढ़िया तादाद में मराठी वोट कैश कर लेती है। राज ठाकरे जान गए हैं की वे अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए तो अश्प्रश्य की तरह हैं। खुद उन्होंने अपने इंटरव्यू में इस बात को कबूल भी किया है। थोड़े- बहुत मराठी वोटों के बलबूते वे न तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही बन सकते हैं और न ही केंद्र की राजनीती में धमक ला सकते हैं। इसके लिए उन्हें महाराष्ट्र में ही किसी साथी की जरूरत है। अब उनके साथ यहाँ मित्रता करेगा कौन ?कांग्रेस और राष्ट्रवादी का पहले से ही गठबंधन है। उनके लिए तो मनसे वैसे ही संजीवनी बूटी की तरह है। वे उससे कभी समझौता नहीं करना चाहेंगे । क्योंकि जब मनसे अलग चुनाव लड़कर शिवसेना -भाजपा के वोट काटती है तभी कांग्रेस -राष्ट्रवादी का उम्मीदवार जीतता है। इस वोट कटाई से कांग्रेस को दोगुना फायदा होता है । शिवसेना और भाजपा का पहले से ही गठबंधन है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और केन्द्र में भी कई बार शासन कर चुकी है। शिवसेना के मुकाबले उसका महाराष्ट्र में भले ही कम दबदबा हो मगर है तो पूरे देश में। दूसरी बात भाजपा और शिवसेना की सोच भी लगभग एक जैसी है। कम से कम हिंदुत्व के मामले पर तो वे शत -प्रतिशत एकमत हैं। इसलिए शिवसेना और भाजपा का गठबंधन आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। उसके लिए फील्ड वर्क की जरूरत पड़ेगी, किसी ठोस सहारे की जरूरत पड़ेगी । शायद इसीकी रिहर्सल शुरू हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी भाजपा के बड़े नेता हैं और उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व सौंपने की चर्चा गाहे -बगाहे चलती रहती है। बहुत संभव है की आगे चलकर वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आबं जाएँ। वैसी स्थिति में अगर राज- मोदी की दोस्ती बनी रहती है तो मुंबई में भाजपा के साथ गठबंधन में आसानी आ सकती है। शिवसेना के लिए भाजपा बहुत बड़ी जरूरत हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए यह बहुत बड़ी या सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं है।इसलिए राज ठाकरे एक तीर से कई निशाने करना चाहते हैं । उनके गुजरात दौरे से एक तो गुजराती मतदाताओं का झुकाव उनकी तरफ बढ़ेगा , दूसरी बात उन्हें कुछ नए कार्यकर्ता भी मिल जायेंगे । साथ में भविष्य में एक राजनीतिक साथी की तलाश भी पूरी हो सकती है। शिवसेना के रणनीतिकार पहले से ही जानते हैं की राजनेति में कुछ भी संभव है तभी तो उन्होंने पहले से ही रामदास आठवले के रूप में नए सहयोगी की तलाश पूरी करली है। खैर, जो भी हो । अगर राज ठाकरे अपनी सोच और विचारों के साथ-साथ क्षेत्र का भी विस्तार कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है ?