Wednesday, September 7, 2011


दिल्ली में बम विस्फोट
हिन्दुस्तान को चुनौती

कल सुबह फिर से हिन्दुस्तान क+ए दिल , देश की राजधानी दिल्ली में बम विस्फोट हुआ . इसमें एक दर्जन से ज्यादा
लोग काल के गाल में समा गए और ५० से अधिक लोग जख्मी हो गए. इस बम कांड में जितने भी लोग मृत या घायल हुए हैं वे सब के सब
बेकसूर थे. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. बल्कि अक्सर होता रहता है. कभी मुंबई में तो कभी पुणे में और कभी किसी और शहर में. यहाँ तक की
संसद तक में बम विस्फोट किये जा चुके हैं. इस सबके बावजूद भी कभी न तो गुनाहगारों को सजा ही मिल पाई है और न न ही बेगुनाहों को
न्याय मिल पाया है. और न अभी तक बम विस्फोटों का सिलसिला ही रुका है. यह बदस्तूर जारी है. न जाने कौन सी शक्तियां हैं जो हर बार
इतने बड़े मुल्क को चुनैती देती हैं और हैरत की बात तो ये की चुनौती के बावजूद भी हमारी सुरक्षा एजेंसियां कुछ नहीं कर पाती . ये तो शुक्र
है की दिल्ली राज्य और केन्द्र में कांग्रेस का ही शासन है वरना अब तक तो केन्द्र और दिल्ली के बीच जिम्मेदारी को लेकर तलवारें खिंच चुकी होती
. अब भी चिदम्बरम पहले ही अपना दामन साफ़ कराने के इरादे से साफ़ कर चुके हैं की दिल्ली सरकार को केन्द्र की सुरक्षा एजेंसियों को पहले ही एलर्ट
कर दिया था. दिल्ली के मुख्य मंत्री अगर कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित के अलावा कोई दूसरा होता तो आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला अब तक शुरू हो
चुका होता. में आज तक यह नहीं समझ पाया की केन्द्र की खुफिया या सुरक्षा एजेंसियों का काम क्या सिर्फ एलर्ट करना ही रह गया है ? अगर उनकी
सिर्फ इतनी सी जिम्मेदारी है की राज्य सरकार को सूचित करने के बाद वे चैन की बंशी बजाएं तो मेरे ख़याल से यह बिलकुल गलत है. अगर केन्द्र
की किसी भी एजेंसी को यह खबर मिलती है की फलां राज्य में बम विस्फोट हो सकता है तो सिर्फ राज्य सरकार के भरोसे छोड़ने के , केन्द्र को भी
ऐसे पुख्ता इंतजाम करने चाहिए जिससे की वह घटना न हो सके. अगर देश के गृह मंत्री यह कहते हैं की खुफिया एजेंसियों को इस बम किआंद की पह्के
से ही खबर थी और यह खबर दिल्ली सरकार को शेयर कर दी गयी थी तो इस सफाए से कुछ होने वाला नहीं है. उलटा इससे केन्द्र सरकार का ढीलापन
नजर आता है. हम इतनी बड़ी घटना को रोकने के लिए सिर्फ एलर्ट करने भर जैसा छोटा कदम कैसे उठा सकते हैं. इसका मतलब हमने आतंकवाद और
बम कांड जैसी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया है. सब जानते हैं की अमेरिका में जब अलकायदा ने हमला किया तो उसके बाद अमेरिका अल कायदा के
चीफ ओसामा बिन लादेन को तहस-नहस करने के पीछे पड गया . और उसने तभी दम लिया जब ओसामा लादेन का खात्मा कर दिया . वह भी ऐसे वैसे
नहीं बल्कि पूरी दादागीरी के साथ. अमेरिका ने पाकिस्तान के अंदर छिपे बैठे ओसामा का खात्मा कर दिया. मगर हम ऐसे कठोर निर्णय लेने के बजाय
उलटे आतंकवादियों की तरफदारी करने में लगे रहते हैं. हमारे देश के प्रधानमंत्री और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तक कह चुके हैं की देश में आतंवादी घटनाएं
रोकना संभव नहीं है. इस तरह के बयानों से साफ़ सन्देश जाता है की कोई भी ऐरा -गिरा , नत्थू -खैरा हमें आँख दिखा सकता है. संसद का हमलावर अफजाल गुरु
अभी तक ऐश कर रहा है. मुंबई हमलों का गुनाहगार अजमल कसाव जेल में बिरयानी का मजा चख रहा है,. हमारे नेता भी गाहे -बगाहे वोट बैंक की खातिर
ऐसे आतंकियों का बचाव करते रहते हैं. अगर सख्त कदम उठाये जाते तो आज किसी हूजी या अन्य आतंकी संगठन में इतनी हिम्मत नहीं होती जो वह
इतने बड़े हिन्दुस्तान को चैलेन्ज कर पाता ./ यह बम विस्फोट मात्र ऐसा नहीं है की दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर पांच पर हमला हो गया, बल्कि यह बम विस्फोट हिन्दुस्तान पर
हमला है. और अगर केन्द्र की सुरक्षा एजेंसियां या केन्द्र सरकार हिन्दुस्तान पर होने वाले हमलों को नहीं रोक सकतीं, बेकसूरों को न्याय नहीं दिलाया जा सकता
तो ऐसी कम्जोर, निष्क्रिय और निकम्मी सरकार को १३० करोड लोगों पर राज करने का कोई अधिकार नहीं है.
-मुकेश कुमार मासूम

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