Thursday, October 13, 2011
Wednesday, September 28, 2011
भोले भारत देश का कर दिया बंटाधार , सर से लेकर पाँव तक भ्रष्ट केन्द्र सरकार
सुषमा स्वराज ने कहा कि यूपीए कार्यकाल के 2 साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए चेयर पर्सन सोनिया गांधी ने कहा था कि वो भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पीएम और सोनिया गांधी को घेरते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फिर पी. चिदंबरम को बचाने की प्रतिबद्धता क्यों दिखा रहे हैं। सुषमा ने कहा कि आरटीआई के माध्यम से जो चिट्ठी सामने आई है। उससे साफ होता है कि 2जी आवंटन में चिदंबरम की पूर्ण सहमति थी। जो काम राजा ने किया वही काम चिदंबरम ने भी किया है।
केंद्र सरकार को घेरते हुए सुषमा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के लोगों पर आरोप लगे तो उसे बचाया जाए और सहयोगी दल के लोग हों तो उन्हें फंसा दिया जाए, ये नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का इशारा समझते हुए सीबीआई भी चिदंबरम का बचाव करने में जुटी है। सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की दलीलें मेरी बातों को सिद्ध करती है।यह आरोप साफ़ करता है की पानी अब सर से ऊपर तक गुजर चूका है।यानी की सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। इतने गंभीर और सटीक आरोपों के बाद भी अगर चिदम्बरम और पी एम् अपने पद पर बने रहते हैं तो यह लोकतंत्र का अपमान ही होगा। यहाँ अलग बात है की जब तक साबित नहीं होता तब तक सभी पाक साफ़ ही होते हैं मगर जन भावनाओं को समझना भी बहुत जरूरी होता है और कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें सुनने मात्र से ही असली और नकली की पहचान हो जाती है। आखिर ये जनभावना ही किसी आम इंसान को विधायक, सांसद, मंत्री या अन्य बड़े पदों पर पहुंचाती हैं। मगर कांग्रेस के लोग इस वास्तविकता को समझ नहीं रहे हैं। इलाज के नाम पर सोनिया गांधी भी खामोश हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों के साथ बैठक करती हैं, सब बातें करती हैं मगर देश की जनता का सामने अपना मत नहीं रखतीं, आज देश की जनता यह जानना चाहती है की भ्रष्टाचार के खिलाफ शांतिपूर्वक धरना दे रही राजबाला को पुलिस ने आखिर इतना क्यों पीता की उसकी मौत तक हो गयी। आखिर बाबा रामदेव का क्या कसूर था कई उनकी जान पर बन आयी ? भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी जंग लड़ने वाले अन्ना हजारे को आखिर पहले क्यों गिरफ्तार किया गया और किसलिए इनकार के बाद उन्हें बाद में आन्दोलन करने की इजाजत दी गयी ? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर देश सोनिया गांधी , राहुल गांधी जैसे नेताओं की राय जानना चाहता है। क्योंकि पूरा देश जानता है की असली रिमोट तो सोनिया गांधी के हाथ में हैं। बाकी सब तो उतने ही चलने वाले खिलौने हैं, जितनी की उनमे चाभी भरी जाती है। क्या ये जनभावना का अनादर नहीं की देश से जुड़े सीधे मुद्दों पर केंद्र पर शासन करने वाले यू पी ए की अध्यक्ष और भावी प्रधानमंत्री प्रचारित किये जाने वाले राहुल गांधी ने अपने होठों को जैसे सिल लिया है। आवाज खामोश हो चुकी है। जनता भी फिलहाल खामोश है। मगर इस खामोशी का आक्रोश आखिर कांग्रेस को ही सहना पड़ेगा। पब्लिक का मूड बदल रहा है जो सत्ता के नशेड़ियों को दिखाई नहीं दे रहा। दलालों की चाटुकारिता में वे सच्चाई से आँखें मूँद रहे हैं। मगर देखना , इस बार चुनाव में कितने ही कांग्रेस के कथित नेताओं की जमानत जब्त होने वाली हैं। आप तैयार हैं न ?
मेरी इन पंक्तियों पर भी गौर फरमाएं -
भोले भारत देश का , कर दिया बंटाधार ।
सर से लेकर पाँव तक, भ्रष्ट केन्द्र सरकार ।
भ्रष्ट केंद्र सरकार , सभी की आफत आयी ।
आसमान को छू रही , ज़ालिम मंहगाई ।
नेता हैं मदमस्त , निगोड़े मौज उड़ाते ।
सच्चे हैं सब त्रस्त, खून के अश्क बहाते ।
Wednesday, September 21, 2011
नक्कालों का बाजार
Wednesday, September 14, 2011
आज अदालत में इस बात की सुनवाई होनी है की पूर्व सपा नेता अमर सिंह को जमानत दी जाए की नहीं ? " वोट के लिए नोट " मामले में गिरफ्तार अमर सिंह को आज क्या मिलता है यह तो अदालत के आदेश के बाद ही पता चलेगा मगर हिन्दुस्तान के ज्यादातर लोग चाहते हैं की विवादास्पद छवि के अमर सिंह को शेष जीवन जेल में ही गुजारना चाहिए । अमर सिंह भले ही समाजवादी पार्टी में उच्च पद पर रहे, उन्हें राज्य सभा सदस्य तक बनाया गया,( आज भी हैं ) मगर उनकी छवि देश में बडबोले , ब्लेकमेलर और दलाल की बनी हुई है। जब अमर सिंह अपने विरोधियों के विरुद्ध भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो सारी नैतिकता और मर्यादाएं लांघ जाते हैं। सड़क छाप शेर सुनाने और अभद्र भाषा के लिए मशहूर अमर सिंह अक्सर मुलायम सिंह यादव को उनकी पोल खोलने की धमकी देते रहते हैं। इस बार सपा सांसद जयाप्रदा ने भी कुछ इसी तरह की धमकी दी है। उन्होंने तो बिग बी अमिताभ बच्चन तक को हडका दिया । यहाँ तक कह दिया की अगर अम्र सिंह इनके बारे में जुबान खोलेंगे तो तहलका मच जाएगा। आऔर इसके बाद जब एक कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन से इस सम्बन्ध में किसी पत्रकार ने सवाल पुछा तो अमिताभ बच्चन भी चुप लगा गए। आखिर अमर सिंह अमिताभ बच्चन और मुलायम सिंह यादव के ऐसे कौन से राज जानते हैं , जिसके कारण उन्हें दर् लगा रहता है। यह जानने की उत्सुकता सभी को है।सब जानना चाहते हैं उस रहस्य को जिसके कारण अम्र सिंह का हौंसले इतने ज्यादा बुलंद हैं. लुच लोग मानते हैं की जीवन भर चुगली, चमचागीरी , दलाली करते रहने के आदी ( जैसा की आजम खान ने उनके बारे में बतया है , हो सकता है वह सही नहीं भी हो )अमर सिंह अब राजनीति में पूरी तरह से हाशिए पर हैं। किसी तरह चर्चा में बने रहने के के लिए भी वे बे सर पैर के बयान दे सकते हैं, उनके पूर्व के बयानों से ऐसे संकेत भी मिलटे हैं। हो सकता है की मुलायम सिंह यादव और अमिताभ बच्चन के कुछ खास राज अमर सिंह के सीने में दफ़न भी हों। खैर , मामला चाहे जो हो मगर यह सत्य है की आज जब अमर सिंह को उनके कुकर्मों की सजा मिल रही है, उन्हें जेल की हवा और एम्स की दवा कहानी पद रही है तो ऐसे समय उनके साथ कोई नहीं है। लेदेकर बेचारी एक जयाप्रदा हैं, वे
ही उनकी सेवा और बचाव कार्य में लगी हैं, एक कहावत है की अकेला चना क्या भाद फोड़ेगा ? ऐसा ही होता है जब इंसान अपना चरित्र भूल जाता है, अपनी नैतिकता छोड़ देता है और शोर्ट कट अपनाकर सेवा के बजाय सिर्फ " मेवा ' के बल पर राजनीति ऊंचाइयां चढना चाहता है। यूँ कहने को अमर सिंह ने अपना जन मोर्चा बनाकर कुछ सभा-सम्मलेन किये हैं मगर उनकी सोच वही पुराणी वाली ही है। राजनीति में अब उनकी हैसियत बस इतनी ही बची है की कांग्रेस की चमचागीरी करते रहें, उसे फायदा पहुंचाने के षड्यंत्र रचते रहें और उसके बदले अपने अस्तित्व को बचाए रखें। बाकी अरह -सहा आइना तो उन्हें अदालत दिखा ही चुकी है।
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भ्रष्टाचार के खिलाफ भ्रस्टाचार निवारक समिति का राष्ट्रीय महा सम्मेलन
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सभी साथियों को सहर्ष सूचित किया जाता है की आपके शहर जेवर स्थित एस डी एम् सभागार में दिनांक १८ / ०९/ २०११ को सुबह १० बजे से लेकर ३ बजे तक भ्रस्टाचार निवारक समिति का राष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया है । इस सम्मलेन में मुख्य रूप से .............................................................................................
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उपस्थित रहेंगे । भ्रष्टाचार निवारक समिति का मानना है की
भ्रष्टाचार ऐसी महा खतरनाक बीमारी है जिसके कारण रिश्वत लेने और देने वाले दोनों की आत्मा मर जाती है. रोजाना करोड़ों लोगों का हक़ रिश्वतखोर बाबू , अफसर , नेता और मंत्री डकार जाते हैं. भ्रस्टाचार के कारण देश में करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. न रिश्वत दें और न लें, ऐसा करना सभ्य समाज के नाम पर कलंक है.अतः
* इस सम्मलेन में इस बात पर भी विशेष रूप से चर्चा की जायेगी की समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को पारित कराने के लिए सरकार और राजनीतिक पार्टियों पर किस तरह से दवाब बनाया जाए
* जन लोकपाल बिल में अनुसूचित जाति / जन जाति, पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम, बौद्ध, जैन , सिख आदि का विशेष ख़याल कैसे रखा जाए तथा इन समाज के लोगों के लिए विशेष रूप से कितना आरक्षण होना चाहिए , इस पर खास चर्चा।
* न लोकपाल बिल में अनुसूचित जाति / जन जाति, पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम, बौद्ध, जैन , सिख आदि को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए , इसके लिए देश भर में माहोल तैयार करना ।
* समाज सेवी अन्ना हजारे की टीम में भ्रस्टाचार निवारक समिति के किसी सदस्य का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए , इस पर व्यापक चर्चा ।
उम्मीद है आप सभी इस पुनीत अवसर पर अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज करायेंगे ॥
निवेदक --
संपर्क-
Wednesday, September 7, 2011
Wednesday, August 31, 2011
सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या आये ? कांग्रेस की किरकिरी
Tuesday, August 23, 2011
अन्ना हजारे आज जब आम इंसान की आवाज बन चुके हैं। हर शहर , कस्बा या गाँव के लोग उनमे अपनी छवि देखते हैं, यही कारण है की बहुत बड़ा जन सैलाब उनके समर्थन में उतर आया है और जितने लोग सड़क पर हैं उससे कई गुना ज्यादा लोग ऐसे हैं जो अभी अपने घरों में हैं मगर अन्ना के साथ हैं और किसी न किसी रूप में वे अन्ना को समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस की विडंबना ये है की सबसे ज्यादा उसीने देश पर शासन किया और सबसे ज्यादा मलाई भी कांग्रेसियों ने खाई है। अगर कांग्रेस अन्ना हजारे की बात मानकर जन लोकपाल बिल के लिए राजी हो जाति है तो सबसे ज्यादा तकलीफ कंग्रेस एंड कंपनी को ही होने वाली है। इसलिए वह अन्ना हजारे का विरोध कर रही है। कांग्रेस के चाटुकार मनीष तिवारी , दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और मुखर्जी तथा बड़े चापलूस अमर सिंह, लालू , महेश भट्ट और अरुंधती राय जैसे लोग अन्ना के आंदोलन के खिलाफ जहर उगलने में लगे हैं। मगर अब हालात बदल चुके हैं। पूरे देश में क्रान्ति की लहर चल निकली है। ऐसे समय जो अन्ना का विरोध करेगा लोग खुद ही उसके खिलाफ हो जायेंगे और अन्ना के आंदोलन को भी उतनी ही ज्यादा मजबूती मिलेगी । यह बात कांग्रेस की समझ में आ चुकी है। यही कारण है की कांग्रेस ने अन्ना हजारे पर हमले करने या तो कम कर दिए हैं या लगभग बंद कर दिए हैं। इसकी बजाय कांग्रेस भौं-भौं करने वाली एक जमात को अन्ना आंदोलन को बदनाम करने की सुपारी दे डाली है। सुपारीबाज लोगों में लाऊ प्रसाद यादव , अमर सिंह, महेश भट्ट , बुखारी , अरुंधती राय और तुषार जैसे लोग शामिल हैं. हाल ही में अरुंधती राय ने एक अखबार में लिखा की बिलकुल अलग वजहों से और बिलकुल अलग तरीके से, माओवादियों और जन लोकपाल बिल में एक बात सामान्य है. वे दोनों ही भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. एक नीचे से ऊपर की ओर काम करते हुए, मुख्यतया सबसे गरीब लोगों से गठित आदिवासी सेना द्वारा छेड़े गए सशस्त्र संघर्ष के जरिए, तो दूसरा ऊपर से नीचे की तरफ काम करते हुए ताजा-ताजा गढ़े गए एक संत के नेतृत्व में। यानी की अरुंधती राय की नजर में अन्ना अभी अभी बनाए गए ताजा संत हैं और उनके आंदोलन की तुलना भी माओवादियों से कर डाली है। जहर उगलते हुए वे आगे लिखती हैं की वह सचमुच कौन हैं, यह नए संत, जनता की यह आवाज़? आश्चर्यजनक रूप से हमने उन्हें जरूरी मुद्दों पर कुछ भी बोलते हुए नहीं सुना है। अपने पड़ोस में किसानों की आत्महत्याओं के मामले पर या थोड़ा दूर आपरेशन ग्रीन हंट पर, सिंगूर, नंदीग्राम, लालगढ़ पर, पास्को, किसानों के आन्दोलन या सेज के अभिशाप पर, इनमें से किसी भी मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। शायद मध्य भारत के वनों में सेना उतारने की सरकार की योजना पर भी वे कोई राय नहीं रखते. वे यही नहीं रुकती अन्ना हजारे और उनकी टीम पर तरह-तरह के आरोप लगाती हैं।राय शायद भूल गयी हैं की अन्ना हजारे जनता के चुने गए प्रतिनिधि , यानी विधायक , सांसद , मंत्री , मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं है। वे एक आम इंसान हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत सालों से संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। उसी सफलता ने आज उन्हें क्रांतिवीर बना दिया है। राय को जो सवाल राहुल गांधी, प्रधानमंत्री , सोनिया गांधी , कपिल सिब्बल, दिग्विजय , चिदम्बरम या मुखर्जी से करने चाहिए और जो उम्मीदें इन लोगों से रखनी चाहिए वे अन्ना हजारे से रख रही हैं। राय की यह खीझ समझ से परे है. वे किसी एजेंट की तरह बात कर रही हैं. अन्ना संत नहीं महा संत है. उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती . कांग्रेस की चमचागीरी कर राज्यसभा पहुँचने की होड ने आम जनता की आवाज समझे जाने वाले महेश भट्ट की की बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है. महेश भट्ट कहते हैं -अन्ना हम फिल्मकारों की तरह जनता को एक छद्म सपने की आस देकर लुभा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अन्ना के आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे संगठन समर्थन दे रहे हैं।उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने वाले युवाओं को इस मुद्दे की ठीक से समझ नहीं है और वे इस पर ठीक ढंग से आत्ममंथन भी नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक की कोई जवाबदेही नहीं होगी अतः यह सही मायनों में एक लोकतांत्रिक समाज के अनुरूप नहीं होगा।अब अक्ल के अन्धों से कोई ये पूछे की समर्थन लेना कौन सी बुरी बात है . अन्ना हजारे भाजपा या आर एस एस को समर्थन दे तो नहीं रहे, ले ही रहे हैं. अब भी सुधरने का वक्त है सुधर जाओ वरना महेश भट्ट , अरुंधती राय ; इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा. कांग्रेस के चमचो ;अब यह तय हो गया है की जो भ्रष्टाचारी होगा, वही अन्ना का विरोधी होगा । यह बात पूरे देश के लोग जान चुके हैं।अन्ना हजारे नाम की जो आंधी उठी थी उसने अब तूफ़ान का रूप धारण कर लिया है. जो चिंगारी थी वह अब तूफ़ान बन चुकी है। इस ज्वालामुखी में भ्रष्टाचार का भस्मासुर तो जलकर राख होगा ही, कांग्रेस के कलंकित चमचे और सुपारीबाज भी अन्ना के तूफ़ान में उड़ जायेंगे । जय हिंद॥ जय अन्ना ॥
Wednesday, August 17, 2011
अन्ना तुम हो
अन्ना हम हैं.
जब सब अन्ना हैं,
तो हमको हराएगा कौन ?
दिन रात श्रम हम करें
खून-पसीना हम बहाएं
और दलाल लोग अरबों रुपये
विदेशों में जमा कराएं .
एक आदमी भूख से बेहाल है
दूसरा भ्रष्ट बिना करे भी मालामाल है
ये कब तक चलेगा ?
सोई हुई संवेदनाओं को जगाइए
अन्ना का समर्थन कर
दलालों की सरकार हटाइये .
आज अगर हम नहीं जागे
तो हमें कभी नहीं जागने दिया जाएगा
क्योंकि अन्ना जैसे क्रान्ति पुरुष
युगों के बाद जनमते हैं
Wednesday, August 10, 2011
ये कैसी गोलियाँ हैं ?
- मुकेश कुमार मासूम
९२२२९५९१३०
Wednesday, August 3, 2011
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना
मनसे के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे आजकल गुजरात दौरे पर हैं। गुजरात सरकार ने उन्हें सरकारी मेहमान घोषित किया है। गुजरात भी अन्य राज्यों की तरह है तो भारत देश में ही मगर अलग राज्य है। यानी की राज ठाकरे के लिए तो वह परप्रांत ही है। इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से राज ठाकरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे। उनके मन में परप्रांतीयों के लिए उम्दा यह प्यार अचानक नहीं है। यह सब बहुत सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। गुजरात दौरे से जाने से पहले उन्होंने हिन्दी के कुछ अखबारों को हिंदी में इंटरव्यू भी दिए। उसमे उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ की , बिहार के मुख्यमंत्री की तारीफ़ की मगर मायावती पर वे अच्छे कहासे नाराज नजर आये। यहाँ भी वे बड़ी रणनीति के तहत बोलते नजर आये। और तो और अब वे गुजरात में लोगों के साथ हिन्दी भाषा में बात कर रहे हैं। हिन्दी के साथ उम्दा हुआ यह प्यार भी अचानक नहीं है। दरअसल राज ठाकरे की समझ में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी है की सिर्फ महाराष्ट्र का नारा देने और उतर -प्रदेश -बिहार के लोगों को पिटवाने या डरा- धमकाने से कुछ होने वाला नहीं। अगर सत्ता चाहिए तो उसके लिए रणनीति में बदलाव करना ही होगा। अकेले मराठी वोटों के दम पर वे इच्छित राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते , क्योंकि उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी शिवसेना पहले से ही इन वोटों पर अच्छा-खासा वर्चस्व रखती है। इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी बहुत बढ़िया तादाद में मराठी वोट कैश कर लेती है। राज ठाकरे जान गए हैं की वे अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए तो अश्प्रश्य की तरह हैं। खुद उन्होंने अपने इंटरव्यू में इस बात को कबूल भी किया है। थोड़े- बहुत मराठी वोटों के बलबूते वे न तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही बन सकते हैं और न ही केंद्र की राजनीती में धमक ला सकते हैं। इसके लिए उन्हें महाराष्ट्र में ही किसी साथी की जरूरत है। अब उनके साथ यहाँ मित्रता करेगा कौन ?कांग्रेस और राष्ट्रवादी का पहले से ही गठबंधन है। उनके लिए तो मनसे वैसे ही संजीवनी बूटी की तरह है। वे उससे कभी समझौता नहीं करना चाहेंगे । क्योंकि जब मनसे अलग चुनाव लड़कर शिवसेना -भाजपा के वोट काटती है तभी कांग्रेस -राष्ट्रवादी का उम्मीदवार जीतता है। इस वोट कटाई से कांग्रेस को दोगुना फायदा होता है । शिवसेना और भाजपा का पहले से ही गठबंधन है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और केन्द्र में भी कई बार शासन कर चुकी है। शिवसेना के मुकाबले उसका महाराष्ट्र में भले ही कम दबदबा हो मगर है तो पूरे देश में। दूसरी बात भाजपा और शिवसेना की सोच भी लगभग एक जैसी है। कम से कम हिंदुत्व के मामले पर तो वे शत -प्रतिशत एकमत हैं। इसलिए शिवसेना और भाजपा का गठबंधन आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। उसके लिए फील्ड वर्क की जरूरत पड़ेगी, किसी ठोस सहारे की जरूरत पड़ेगी । शायद इसीकी रिहर्सल शुरू हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी भाजपा के बड़े नेता हैं और उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व सौंपने की चर्चा गाहे -बगाहे चलती रहती है। बहुत संभव है की आगे चलकर वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आबं जाएँ। वैसी स्थिति में अगर राज- मोदी की दोस्ती बनी रहती है तो मुंबई में भाजपा के साथ गठबंधन में आसानी आ सकती है। शिवसेना के लिए भाजपा बहुत बड़ी जरूरत हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए यह बहुत बड़ी या सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं है।इसलिए राज ठाकरे एक तीर से कई निशाने करना चाहते हैं । उनके गुजरात दौरे से एक तो गुजराती मतदाताओं का झुकाव उनकी तरफ बढ़ेगा , दूसरी बात उन्हें कुछ नए कार्यकर्ता भी मिल जायेंगे । साथ में भविष्य में एक राजनीतिक साथी की तलाश भी पूरी हो सकती है। शिवसेना के रणनीतिकार पहले से ही जानते हैं की राजनेति में कुछ भी संभव है तभी तो उन्होंने पहले से ही रामदास आठवले के रूप में नए सहयोगी की तलाश पूरी करली है। खैर, जो भी हो । अगर राज ठाकरे अपनी सोच और विचारों के साथ-साथ क्षेत्र का भी विस्तार कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है ?