Thursday, October 13, 2011

पिटाई प्रशांत की
भूमिका मीडिया की
अन्ना हजारे टीम के एक अहम सदस्य प्रशांत भूषन को कल श्रीराम सेना के सदस्यों ने जिस तरह से पीटा , उससे एक बात तो तय हो गयी है कि देश में एक खतरनाक प्रवृति पनपने लगी है। अगर इस प्रवृति को ज़रा भी हवा दी गयी तो ये बहुत संभव है कि यह आगे चलकर एक डेंजर संस्कृति बन जायेगी । अपना देश आज़ाद है और सभी को अपनी बात शान्ति पूर्ण तरीके से रखने का अधिकार है. ये अलग बात है कि हम उससे कितना इत्तेफाक रखते हैं. अगर हमें किसीकी बात पसंद नहीं आती तो हम शांतिपूर्वक तरीके से उसका विरोध कर सकते हैं . लेकिन मारपीट करना ठीक नहीं है. जब से मीडिया का हस्तक्षेप, लोकप्रियता या असर जो भी कहें, ये ज्यादा बढ़ा है तब से हाल ये हो गया है कि हल्का प्रचार पाने के शौक़ीन लोग कुछ भी तिकडम करके ख़बरों में आ जाना चाहते हैं. यह लिखने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि मीडिया के कारण ही सब कुछ उलटा सीधा हो रहा है, बल्कि इसको ऐसा समझा जा सकता है कि ये मीडिया के साइड इफेक्ट हैं. पप्रशांत भूषन की पिटाई के मामले में भी ऐसा ही नजर आ रहा है. अति उत्साही लोग शोर्ट कट रास्ता अपनाकर बस ये चाहते हैं कि किसी तरह से वे टीवी के परदे पर छा जाए. उनकी सोच ये रहती है कि भले ही नेगेटिव पब्लिसिटी हो , मगर होनी चाहिए .वे इस स्दिद्धांत पर काम करते हैं कि बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा. प्रशांत पर हुआ हमला इसीकी परिणीति है. श्रीराम सेना के लोग इससे पहले भी इसी तरह की हरकत कर चुके हैं. जिन लोगों के पास अपनी सोच नहीं होती , अपने सिद्धांत नहीं होते वही लोग इस तरह की हरकत करते रहते हैं. जब अन्ना हजारे ने जब देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन का बिगुल बजाया तब उनके साथ गिने-चुने ही लोग थे. लेकिन अरविन्द केजरीवाल जैसे कुशल मीडिया प्रबंधक उनसे मिले तो यह आंदोलन देश-विदेश में भी चर्चित हो गया, इस भारी सफलता के पीछे मीडिया की भी अहम भूम८इक थी. यही कारण है कि श्रीराम सेना ने भी उसी मीडिया का सहारा लेकर यह हमला किया. मेरे कहने का अर्थ ये बिलकुल नहीं है कि प्रशांत ने कश्मीर को लेकर जो बयान दिया था , वह उचित था या नहीं. मगर मै प्रशांत पर हुए इस तरह के हमले की निंदा करता हूँ और हर शांतिप्रिय नागरिक को करनी चाहिए . अब समय आ गया है जब मीडिया को भी अपनी अहमियत और जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए
दलितों को कब तक सताओगे कभी खुद भी खाना खिलाओगे उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में मऊरानीपुर तहसील स्थित मेंडकी गांव में दलित कुंजीलाल आर्य के घर शाम को एक नए भिखारी ने दस्तक दी . भिखारी की सूरत तो जान -पहचान जैसी लगी, मगर उसका पहनावा भिखारियों जैसा बिलकुल नहीं था. हाँ, उसकी हरकतें जरूर भिखारिओं जैसी ही थीं, कुंजीलाल ने ध्यान देकर सुना तो पाया की वह उनसे खाना मांग रहा था. भूख लगी है, खाना मिलेगा ? कुंजीलाल हैरान . मगर गरीबों को भी एक अदा होती है, खुद भूखे रह सकते हैं मगर अपने घर आये किसी भूखे को निराश नहीं लौटा सकते. कुंजीलाल ने ध्यान से देखा तो खाना मांगने वाला देश का युवराज था. यानी की कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी . कुंजीलाल को उस वक्त तो यह एहसास हुआ की वह कितना गलत सोच रहा था , जिसे भिखारी समझा था वह तो टॉप का राजनीतिग्य निकला .मगर सच्चाई ये है की कुंजीलाल पहले सही था. साधारण सा दिखने वाला भिखारी असल में राष्ट्रीय स्टार का भिखारी निकला. दलित प्रेम की आड में राहुल गांधी वोटों की ऐसी भीख मांगने आये थे , जिसके दम पर राजा बना जाता है. अगर डॉक्टर अम्बेडकर दलितों को वोट देने का अधिकार नहीं दिलाते तो कोई राहुल कभी किसी गरीब दलित के घर इस तरह भीख मांगने नहीं जाता . जब-जब देश में भ्रष्टाचार की बात आती है, गरीबी , बेरोजगारी और मंहगाई की बात आती है तब-तब राहुल जी और उनकी माताजी न जाने किस कोने में छिप जाते हैं, जब देश इनकी तरफ आस लगा रहा होता है , जब -जब जनहित के मुद्दों की बात आती है, तब-तब इनकी बोलती बंद हो जाती है. तब ये न तो संसद में नजर आते, न किसी टीवी चैनल पर और न किसी गरीब के घर पर. आम आदमी की नजर में दिल्ली का अहल ये है 'कभी गूंगी ,कभी बहरी ,कभी कुछ होती रहती है . बड़े जनहित के मुद्दों पर ,ये ज़ालिम सोती रहती है. वतन उम्मीद जब करता, कभी मासूम जी इससे , तब यह बेवफा "दिल्ली" , हमेशा रोती रहती है.ये हाल है " दिल्ली " का. और गरीबों के मसीहा बन्ने का नाटक करने वालों का . कभी कोई मीडियाकर्मी , कोई कांग्रेसी या कोई समाजसेवी राहुल गांधी से ये नहीं पूछता की बेचारे दलितों के घर तुम कब तक खाते रहोगे, कब तक सोते रहोगे या फिर कब तक ये पिकनिक मनाते रहोगे ? कभी दलितों को भी तो अपने घर बुलाओ, उन्हें भी खाना खिलाओ, अपने आलीशान महलों में सोने का अवसर दो. क्योंकि किसी के घर खाना बड़ी बात नहीं है. बल्कि उसे अपने घर पर खिलाना बड़ी बात है. जैसे -जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, राजनेता तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, माग्र अब जनता भी सब जान चुकी है. सिर्फ पाखण्ड और दिखावे के चक्कर में कोई आने वाला नहीं है. अगर राहुल सचमुच दलितों के हितैषी हैं तो उनको चाहिए की वे कांग्रेस कार्यकारिणी और सत्ता में भी उन्हें समुचित भागीदारी दें., तभी उन्हें विश्वाश होगा की राहुल की कथनी-करनी में अंतर नहीं है. यू पी में भले ही दलित अपनी चौखट पर आये किसी भिखारी को टुकड़ा दाल सकते हैं मगर ठप्पा तो उनका हाथी पर ही लगने वाला है

Wednesday, September 28, 2011

भोले भारत देश का कर दिया बंटाधार , सर से लेकर पाँव तक भ्रष्ट केन्द्र सरकार

इसे केन्द्र सरकार का अब तक का सबसे मुश्किल दौर कहा जा सकता है। ये पहला अवसर है जब भ्रष्टाचार के पाप के धब्बे सीधे-सीधे प्रधानमंत्री के दामन पर लगे महसूस होते हैं। भाजपा साफ़ कह चुकी है की जो कुछ हुआ उसमे प्रधानमंत्री की जिमीदारी और नजरंदाजी को कम नहीं आंका जा सकता । बीजेपी नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री के बयान पर हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चिदंबरम का बचाव कर रहे हैं।

सुषमा स्वराज ने कहा कि यूपीए कार्यकाल के 2 साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए चेयर पर्सन सोनिया गांधी ने कहा था कि वो भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पीएम और सोनिया गांधी को घेरते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फिर पी. चिदंबरम को बचाने की प्रतिबद्धता क्यों दिखा रहे हैं। सुषमा ने कहा कि आरटीआई के माध्यम से जो चिट्ठी सामने आई है। उससे साफ होता है कि 2जी आवंटन में चिदंबरम की पूर्ण सहमति थी। जो काम राजा ने किया वही काम चिदंबरम ने भी किया है।

केंद्र सरकार को घेरते हुए सुषमा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के लोगों पर आरोप लगे तो उसे बचाया जाए और सहयोगी दल के लोग हों तो उन्हें फंसा दिया जाए, ये नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का इशारा समझते हुए सीबीआई भी चिदंबरम का बचाव करने में जुटी है। सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई की दलीलें मेरी बातों को सिद्ध करती है।यह आरोप साफ़ करता है की पानी अब सर से ऊपर तक गुजर चूका है।यानी की सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। इतने गंभीर और सटीक आरोपों के बाद भी अगर चिदम्बरम और पी एम् अपने पद पर बने रहते हैं तो यह लोकतंत्र का अपमान ही होगा। यहाँ अलग बात है की जब तक साबित नहीं होता तब तक सभी पाक साफ़ ही होते हैं मगर जन भावनाओं को समझना भी बहुत जरूरी होता है और कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें सुनने मात्र से ही असली और नकली की पहचान हो जाती है। आखिर ये जनभावना ही किसी आम इंसान को विधायक, सांसद, मंत्री या अन्य बड़े पदों पर पहुंचाती हैं। मगर कांग्रेस के लोग इस वास्तविकता को समझ नहीं रहे हैं। इलाज के नाम पर सोनिया गांधी भी खामोश हैं। वे अपनी पार्टी के लोगों के साथ बैठक करती हैं, सब बातें करती हैं मगर देश की जनता का सामने अपना मत नहीं रखतीं, आज देश की जनता यह जानना चाहती है की भ्रष्टाचार के खिलाफ शांतिपूर्वक धरना दे रही राजबाला को पुलिस ने आखिर इतना क्यों पीता की उसकी मौत तक हो गयी। आखिर बाबा रामदेव का क्या कसूर था कई उनकी जान पर बन आयी ? भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी जंग लड़ने वाले अन्ना हजारे को आखिर पहले क्यों गिरफ्तार किया गया और किसलिए इनकार के बाद उन्हें बाद में आन्दोलन करने की इजाजत दी गयी ? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर देश सोनिया गांधी , राहुल गांधी जैसे नेताओं की राय जानना चाहता है। क्योंकि पूरा देश जानता है की असली रिमोट तो सोनिया गांधी के हाथ में हैं। बाकी सब तो उतने ही चलने वाले खिलौने हैं, जितनी की उनमे चाभी भरी जाती है। क्या ये जनभावना का अनादर नहीं की देश से जुड़े सीधे मुद्दों पर केंद्र पर शासन करने वाले यू पी ए की अध्यक्ष और भावी प्रधानमंत्री प्रचारित किये जाने वाले राहुल गांधी ने अपने होठों को जैसे सिल लिया है। आवाज खामोश हो चुकी है। जनता भी फिलहाल खामोश है। मगर इस खामोशी का आक्रोश आखिर कांग्रेस को ही सहना पड़ेगा। पब्लिक का मूड बदल रहा है जो सत्ता के नशेड़ियों को दिखाई नहीं दे रहा। दलालों की चाटुकारिता में वे सच्चाई से आँखें मूँद रहे हैं। मगर देखना , इस बार चुनाव में कितने ही कांग्रेस के कथित नेताओं की जमानत जब्त होने वाली हैं। आप तैयार हैं न ?

मेरी इन पंक्तियों पर भी गौर फरमाएं -

भोले भारत देश का , कर दिया बंटाधार ।
सर से लेकर पाँव तक, भ्रष्ट केन्द्र सरकार ।
भ्रष्ट केंद्र सरकार , सभी की आफत आयी ।
आसमान को छू रही , ज़ालिम मंहगाई ।
नेता हैं मदमस्त , निगोड़े मौज उड़ाते ।
सच्चे हैं सब त्रस्त, खून के अश्क बहाते ।

Wednesday, September 21, 2011

सो रही सरकार
नक्कालों का बाजार

आजकल बाजार में चले जाइए , हर चीज मंहगी तो है ही , नकली भी मिल रही है . कोई ऐसी चीज नहीं जिस पर भरोसा किया जा सके .
दूध खरीदते हैं तो उसमे यूरिया खाद, वाशिंग पावडर की मिलावट होती है , दूधिया पहले से ही नंबर बढाने के चक्कर में उसमे कीचड मिलाकर लाते हैं.
मसालों में विभिन्न प्रकार की गंदगियां जैसे घोड़े की लीद ,पिसी हुई ईंट आदि की मिलावट होती है , घी में मृत जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है .
दाल में कंकड -पत्थर के टुकड़े मिलाए जाते हैं. सब्जियों में भी तरह-तरह की मिलावट की जाती है . कुछ दिन पहले मैं भायंदर पश्चिम की सब्जी मार्केट में
, मेरी इच्छा वटाना (हरी मटर ) खरीदने की थी , मैं एक ऐसे दुकानदार के पास गया , जिसके पास हरी मटर रखी थी , मगर उसके छिलके सादे जैसे लग रहे थे
उसको भी वह ३५ रुपये पाँव दे रहा था . वहीं पर उसने मटर के दाने रखे हुए थे , मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो उसने बताया कि असली हरी मटर के दाने
हैं, मैंने एक पाँव खरीद लिए , उनमे से एक दाना तोड़कर भी खाया . घर आने पर , मैंने मटर के उन दानों को पानी में रखने को बोल दिया. सुबह जब मेरी
उस मटर पर नजर पडी तो हैरान रहा गया. मटर से छिलके उअतर रहे थे और पानी पूरा हरा- हरा हो गया था.मैं समझ गया कि दाल में क्कुछ काला जरूर है
, जब ध्यान से देखा तो पता चला कि वह हरी मटर नहीं थी. उसमे कुछ दाने हरी मटर के तो बाकी सूखी मटर को फुलाकर रख दिया गया था, इसके बाद
उसे रंगकर १०० रुपये किलो के भाव से बेचा जा रहा था. यह जिक्र इसलिए किया जब स्टार न्यूज पर देखा कि अलीगढ़ में सब्जियों को रंगकर बेचा जा रहा था
, जब सम्बंधित विभाग के अधिकारियों ने छापा मारा तब इस गोरख्धंधे का भंडाफोड हुआ. हाल ही पता चला कि लौकी को जल्दी बढाने के लिए टोक्सिन का इन्जेक्शन
लगाया जाता है . दिल्ली के एक वैज्ञानिक की कुछ महीनों पहले लौकी का जूस पीने से मौत हो गयी थी. उसमे भी यह बात बहुत उछली थी कि उनकी मौत लौकी में टोक्सिन
की मात्रा ज्यादा होने से हुई होगी. वैसे लौकी न तो जहरीली होती है और न ही कड़वी . मगर उस दिन उन्होंने लौकी का स्वाद कड़वा पाया था . हो सकता है कि
लौकी में मिलावट के कारण ही उनकी जान गयी हो . जयपुर और उत्तर प्रदेश में भी मिलावटी सॉस बनाने के कारखाने पकडे गए. बनारस के पान दरीबा इलाके से एक
ऐसी फैक्ट्री पकड़ी गयी जों प्लास्टर ऑफ पेरिस से कत्था बना रही थी. जयपुर में सडे हुए कद्दू और जहरीले रंगों से टमाटर सॉस बनाया जा रहा था. यानि कि अब कोई ऐसी
चीज नहीं बची है जिसे खाया जा सके. यहाँ तक कि हवा तक जहरीली हो चुकी है . हर चीज में जहरीली मिलावट है , और हर शहर , हर गाँव हर गली मोहल्ले में
इस तरह की जानलेवा मिलावट की जा रही है. हर इंसान इसका शिकार हो रहा है. फल , सब्जी, दूध , दही, मक्खन , श्रीखंड, घी , यहाँ तक कि सौंदर्य प्रसाधन में भी
जहरीली मिलावट की जा रही है . ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए देश की निर्दोष जनता के साथ विश्वाश्घात किया जा रहा है . आज जब हम कुछ खाते -पीते हैं, या फिर
कुछ खरीदते हैं तो अपनी मेहनत की कमाई के साथ -साथ अपना अपना स्वास्थ्य भी लुटा बैठते हैं. हमें पता ही नहीं होता कि जानलेवा मंहगाई के बावजूद भी हम
किसी तरह कोई चीज खरीद रहे हैं , तो उसमे भी मिलावट मिलती है. देखा जाए तो मिलावट करने वाले लोग आतंकवादियों या नक्सलवादियों से भी ज्यादा खरतनाक
हैं , क्योंकि उनसे तो हम लोहा ले सकते हैं, क्योंकि हमें पता होता है कि हमारा दुश्मन कौन है. उसके लिए हमारे पास कई तरह की सेनाएं हैं. लड़ाके हैं. आधुनिक हथियार हैं.
पुलिस है . सब कुछ है . मगर मिलावट करके करोड़ों लोगों की जान से खिलवाड करने वालों से लड़ने के लिए हमारे पास क्या है ? कुछ भी नहीं. यहाँ तक कि एक सख्त
कानून भी नहीं . भाजपा और कांग्रेस की केन्द्र में ज्यादा सरकारें रही हैं , आज भी कांग्रेस की सरकार है मगर क़त्ल से भी खतरनाक इन मिलावटखोरों के खिलाफ कोई ऐसा
कडा कानून नहीं बनाया जा रहा, जिससे इस पर रोक लग सके. आज समय की जरूरत है कि खाद्य विभाग को सक्रिय करना चाहिए , इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करना
चाहिए और कोई ऐसा क़ानून बनाना चाहिए जिसमे मिलावाटखोरों को फांसी से कम का प्रावधान नहीं हो . जुर्माना भी ज्यादा हो और एक बार मिलावट करते अगर कोई
पकड़ा गया तो उसकी कंपनी बंद करने , एकाउंट सील करने , जमीन और सभी सामान जब्त करने का प्रावधान हो . तभी देश को बीमार करने वाले कसाइयों (मिलावटखोरों )
की नाक में नकेल पड सकती है .आज आलम ये है की बाजार पूरी तरह से मिलावट करने वाले नक्कालों की गिरफ्त में आ चुका है और सरकार खामश है। लोगों का तो यहाँ तक कहना है की सरकारी विभागों में बैठे भ्रष्ट अधिकारी सत्ता में बैठे कुछ सफ़ेद पोश भेडिये ही मिलावटखोरों का साथ देते अहिं। अगर सरकार सख्त हो जाए और ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करे तो आम आदमी को फायदा हो सकता है। लेकिन दिक्कत ये है की यह सरकार सिर्फ आम आदमी के साथ होने का दिकहवा या दावा भर करती है । अगर सरकार जनता के बारे में नहीं सोच सकती तोजनता को उसके बारे में सोचना चाहिए और मतदान के समय ऐसे लोगों को उनकी औकात दिखा देनी चाहिए ।

Wednesday, September 14, 2011

बडबोले अमर को आइना

आज अदालत में इस बात की सुनवाई होनी है की पूर्व सपा नेता अमर सिंह को जमानत दी जाए की नहीं ? " वोट के लिए नोट " मामले में गिरफ्तार अमर सिंह को आज क्या मिलता है यह तो अदालत के आदेश के बाद ही पता चलेगा मगर हिन्दुस्तान के ज्यादातर लोग चाहते हैं की विवादास्पद छवि के अमर सिंह को शेष जीवन जेल में ही गुजारना चाहिए । अमर सिंह भले ही समाजवादी पार्टी में उच्च पद पर रहे, उन्हें राज्य सभा सदस्य तक बनाया गया,( आज भी हैं ) मगर उनकी छवि देश में बडबोले , ब्लेकमेलर और दलाल की बनी हुई है। जब अमर सिंह अपने विरोधियों के विरुद्ध भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो सारी नैतिकता और मर्यादाएं लांघ जाते हैं। सड़क छाप शेर सुनाने और अभद्र भाषा के लिए मशहूर अमर सिंह अक्सर मुलायम सिंह यादव को उनकी पोल खोलने की धमकी देते रहते हैं। इस बार सपा सांसद जयाप्रदा ने भी कुछ इसी तरह की धमकी दी है। उन्होंने तो बिग बी अमिताभ बच्चन तक को हडका दिया । यहाँ तक कह दिया की अगर अम्र सिंह इनके बारे में जुबान खोलेंगे तो तहलका मच जाएगा। आऔर इसके बाद जब एक कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन से इस सम्बन्ध में किसी पत्रकार ने सवाल पुछा तो अमिताभ बच्चन भी चुप लगा गए। आखिर अमर सिंह अमिताभ बच्चन और मुलायम सिंह यादव के ऐसे कौन से राज जानते हैं , जिसके कारण उन्हें दर् लगा रहता है। यह जानने की उत्सुकता सभी को है।सब जानना चाहते हैं उस रहस्य को जिसके कारण अम्र सिंह का हौंसले इतने ज्यादा बुलंद हैं. लुच लोग मानते हैं की जीवन भर चुगली, चमचागीरी , दलाली करते रहने के आदी ( जैसा की आजम खान ने उनके बारे में बतया है , हो सकता है वह सही नहीं भी हो )अमर सिंह अब राजनीति में पूरी तरह से हाशिए पर हैं। किसी तरह चर्चा में बने रहने के के लिए भी वे बे सर पैर के बयान दे सकते हैं, उनके पूर्व के बयानों से ऐसे संकेत भी मिलटे हैं। हो सकता है की मुलायम सिंह यादव और अमिताभ बच्चन के कुछ खास राज अमर सिंह के सीने में दफ़न भी हों। खैर , मामला चाहे जो हो मगर यह सत्य है की आज जब अमर सिंह को उनके कुकर्मों की सजा मिल रही है, उन्हें जेल की हवा और एम्स की दवा कहानी पद रही है तो ऐसे समय उनके साथ कोई नहीं है। लेदेकर बेचारी एक जयाप्रदा हैं, वे
ही उनकी सेवा और बचाव कार्य में लगी हैं, एक कहावत है की अकेला चना क्या भाद फोड़ेगा ? ऐसा ही होता है जब इंसान अपना चरित्र भूल जाता है, अपनी नैतिकता छोड़ देता है और शोर्ट कट अपनाकर सेवा के बजाय सिर्फ " मेवा ' के बल पर राजनीति ऊंचाइयां चढना चाहता है। यूँ कहने को अमर सिंह ने अपना जन मोर्चा बनाकर कुछ सभा-सम्मलेन किये हैं मगर उनकी सोच वही पुराणी वाली ही है। राजनीति में अब उनकी हैसियत बस इतनी ही बची है की कांग्रेस की चमचागीरी करते रहें, उसे फायदा पहुंचाने के षड्यंत्र रचते रहें और उसके बदले अपने अस्तित्व को बचाए रखें। बाकी अरह -सहा आइना तो उन्हें अदालत दिखा ही चुकी है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ महा जंग , भ्रष्टाचार निवारक समिति के संग
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भ्रष्टाचार के खिलाफ भ्रस्टाचार निवारक समिति का राष्ट्रीय महा सम्मेलन
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सभी साथियों को सहर्ष सूचित किया जाता है की आपके शहर जेवर स्थित एस डी एम् सभागार में दिनांक १८ / ०९/ २०११ को सुबह १० बजे से लेकर ३ बजे तक भ्रस्टाचार निवारक समिति का राष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया है । इस सम्मलेन में मुख्य रूप से .............................................................................................
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उपस्थित रहेंगे । भ्रष्टाचार निवारक समिति का मानना है की
भ्रष्टाचार ऐसी महा खतरनाक बीमारी है जिसके कारण रिश्वत लेने और देने वाले दोनों की आत्मा मर जाती है. रोजाना करोड़ों लोगों का हक़ रिश्वतखोर बाबू , अफसर , नेता और मंत्री डकार जाते हैं. भ्रस्टाचार के कारण देश में करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. न रिश्वत दें और न लें, ऐसा करना सभ्य समाज के नाम पर कलंक है.अतः

आइये, हम सब मिलकर रिश्वत रूपी कलंक को मिटाने का प्रयास करें. जो चंद भ्रष्ट लोग करोड़ों लोगों के हक़ पर डाका डाल रहे हैं , उन्हें सबक सिखाएं । इस सम्मलेन में हजारों की संख्या में शामिल होकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में भ्रष्टाचार निवारक समिति का सहयोग करें।
* इस सम्मलेन में इस बात पर भी विशेष रूप से चर्चा की जायेगी की समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल को पारित कराने के लिए सरकार और राजनीतिक पार्टियों पर किस तरह से दवाब बनाया जाए
* जन लोकपाल बिल में अनुसूचित जाति / जन जाति, पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम, बौद्ध, जैन , सिख आदि का विशेष ख़याल कैसे रखा जाए तथा इन समाज के लोगों के लिए विशेष रूप से कितना आरक्षण होना चाहिए , इस पर खास चर्चा।
*
न लोकपाल बिल में अनुसूचित जाति / जन जाति, पिछड़े वर्गों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम, बौद्ध, जैन , सिख आदि को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए , इसके लिए देश भर में माहोल तैयार करना ।
* समाज सेवी अन्ना हजारे की टीम में भ्रस्टाचार निवारक समिति के किसी सदस्य का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए , इस पर व्यापक चर्चा ।

उम्मीद है आप सभी इस पुनीत अवसर पर अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज करायेंगे ॥

निवेदक --
संपर्क-

Wednesday, September 7, 2011


दिल्ली में बम विस्फोट
हिन्दुस्तान को चुनौती

कल सुबह फिर से हिन्दुस्तान क+ए दिल , देश की राजधानी दिल्ली में बम विस्फोट हुआ . इसमें एक दर्जन से ज्यादा
लोग काल के गाल में समा गए और ५० से अधिक लोग जख्मी हो गए. इस बम कांड में जितने भी लोग मृत या घायल हुए हैं वे सब के सब
बेकसूर थे. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. बल्कि अक्सर होता रहता है. कभी मुंबई में तो कभी पुणे में और कभी किसी और शहर में. यहाँ तक की
संसद तक में बम विस्फोट किये जा चुके हैं. इस सबके बावजूद भी कभी न तो गुनाहगारों को सजा ही मिल पाई है और न न ही बेगुनाहों को
न्याय मिल पाया है. और न अभी तक बम विस्फोटों का सिलसिला ही रुका है. यह बदस्तूर जारी है. न जाने कौन सी शक्तियां हैं जो हर बार
इतने बड़े मुल्क को चुनैती देती हैं और हैरत की बात तो ये की चुनौती के बावजूद भी हमारी सुरक्षा एजेंसियां कुछ नहीं कर पाती . ये तो शुक्र
है की दिल्ली राज्य और केन्द्र में कांग्रेस का ही शासन है वरना अब तक तो केन्द्र और दिल्ली के बीच जिम्मेदारी को लेकर तलवारें खिंच चुकी होती
. अब भी चिदम्बरम पहले ही अपना दामन साफ़ कराने के इरादे से साफ़ कर चुके हैं की दिल्ली सरकार को केन्द्र की सुरक्षा एजेंसियों को पहले ही एलर्ट
कर दिया था. दिल्ली के मुख्य मंत्री अगर कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित के अलावा कोई दूसरा होता तो आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला अब तक शुरू हो
चुका होता. में आज तक यह नहीं समझ पाया की केन्द्र की खुफिया या सुरक्षा एजेंसियों का काम क्या सिर्फ एलर्ट करना ही रह गया है ? अगर उनकी
सिर्फ इतनी सी जिम्मेदारी है की राज्य सरकार को सूचित करने के बाद वे चैन की बंशी बजाएं तो मेरे ख़याल से यह बिलकुल गलत है. अगर केन्द्र
की किसी भी एजेंसी को यह खबर मिलती है की फलां राज्य में बम विस्फोट हो सकता है तो सिर्फ राज्य सरकार के भरोसे छोड़ने के , केन्द्र को भी
ऐसे पुख्ता इंतजाम करने चाहिए जिससे की वह घटना न हो सके. अगर देश के गृह मंत्री यह कहते हैं की खुफिया एजेंसियों को इस बम किआंद की पह्के
से ही खबर थी और यह खबर दिल्ली सरकार को शेयर कर दी गयी थी तो इस सफाए से कुछ होने वाला नहीं है. उलटा इससे केन्द्र सरकार का ढीलापन
नजर आता है. हम इतनी बड़ी घटना को रोकने के लिए सिर्फ एलर्ट करने भर जैसा छोटा कदम कैसे उठा सकते हैं. इसका मतलब हमने आतंकवाद और
बम कांड जैसी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया है. सब जानते हैं की अमेरिका में जब अलकायदा ने हमला किया तो उसके बाद अमेरिका अल कायदा के
चीफ ओसामा बिन लादेन को तहस-नहस करने के पीछे पड गया . और उसने तभी दम लिया जब ओसामा लादेन का खात्मा कर दिया . वह भी ऐसे वैसे
नहीं बल्कि पूरी दादागीरी के साथ. अमेरिका ने पाकिस्तान के अंदर छिपे बैठे ओसामा का खात्मा कर दिया. मगर हम ऐसे कठोर निर्णय लेने के बजाय
उलटे आतंकवादियों की तरफदारी करने में लगे रहते हैं. हमारे देश के प्रधानमंत्री और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तक कह चुके हैं की देश में आतंवादी घटनाएं
रोकना संभव नहीं है. इस तरह के बयानों से साफ़ सन्देश जाता है की कोई भी ऐरा -गिरा , नत्थू -खैरा हमें आँख दिखा सकता है. संसद का हमलावर अफजाल गुरु
अभी तक ऐश कर रहा है. मुंबई हमलों का गुनाहगार अजमल कसाव जेल में बिरयानी का मजा चख रहा है,. हमारे नेता भी गाहे -बगाहे वोट बैंक की खातिर
ऐसे आतंकियों का बचाव करते रहते हैं. अगर सख्त कदम उठाये जाते तो आज किसी हूजी या अन्य आतंकी संगठन में इतनी हिम्मत नहीं होती जो वह
इतने बड़े हिन्दुस्तान को चैलेन्ज कर पाता ./ यह बम विस्फोट मात्र ऐसा नहीं है की दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर पांच पर हमला हो गया, बल्कि यह बम विस्फोट हिन्दुस्तान पर
हमला है. और अगर केन्द्र की सुरक्षा एजेंसियां या केन्द्र सरकार हिन्दुस्तान पर होने वाले हमलों को नहीं रोक सकतीं, बेकसूरों को न्याय नहीं दिलाया जा सकता
तो ऐसी कम्जोर, निष्क्रिय और निकम्मी सरकार को १३० करोड लोगों पर राज करने का कोई अधिकार नहीं है.
-मुकेश कुमार मासूम

Wednesday, August 31, 2011

सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या आये ? कांग्रेस की किरकिरी

कांग्रेस ने अब आकर चैन की सांस ली है। कांग्रेस के नेता अब जाकर सुख से सोये होंगे । वरना अन्ना हजारे एंड टीम ने पिछले कुछ दिनों से कांग्रेसियों के दिल का सुकून छीन लिया था । भ्रष्टाचार के दानव ने बहुत खतरनाक रूप धारण कर लिया था। यह हर जगह स्ट्रोंग हो चला है। ऐसा कोई काम नहीं जिसे बिना रिश्वत दिए कराया जा सके। और तो और यह न्यायपालिका में भी खूब फल-फूल रहा है। अगर आप कभी कोर्ट गए हों तो आप जानते ही होंगे की तारीख के बदले पेशकार को रिश्वत देनी ही पड़ती है। यानि की न्याय के देवता की कुर्सी के पास बैठा सरकारी कर्मचारी भी बिना पैसा लिए इच्छित तारीख नहीं देता। सिर्फ पेशकार ही क्यों, ऐसा कोई सरकारी विभाग नहीं है जहाँ पर रिश्वत का शैतान न हो। आम इंसान के लिए जो अरबों -अरबों की योजनाएं बनाई जाती हैं, वे सब की सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाती हैं। मनरेगा इसका सबसे सशक्त उदाहरण है। इस योजना के तहत जो रकम आती है उसमें से ९० परसेंट तक ग्राम प्रधान, प्रधान के चमचों, सेक्रेटरी और खंड विकास अधिकारी की जेब में चली जाती है। उसी व्यक्ति का कार्ड बनाया जाता है जो स्वेच्छापूर्वक रिश्वत दे सके। जो वास्तब में बेरोजगार हैं, जो काम करना चाहते हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें मनरेगा से कोई मदद नहीं मिलती। यहाँ तक की ग्रामीण भागों में वृद्ध पेंशन अथवा विधवा पेंशन के लिए भी सम्बंधित कर्मचारियों और अधिकारों को रिश्वत देनी पड़ती है, जो रिश्वत नहीं दे सकते , उन्हें योजना का लाभ मिल ही नहीं सकता। इसी तरह जो इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत आवास बनाये जाते हैं , उसमे भी लोगों के साथ खूब लूट -खसोट की जाती है। उन्हीं लोगों का नाम आवास के हकदार के लिए नामांकित किया जाता है, जो रिश्वत की रकम पहले चुकाने की क्षमता रखता है। शुरुआत होती है ग्राम प्रधान से , इस्क्जे बाद सेक्रेटरी , खंड विकास अधिकारी , जिला विकास अधिकारी और न जाने कहाँ-कहाँ तक रिश्वत की रकम का बंटवारा होता है।दिक्कत ये है की इन सभी योजनाओं में जो पैसा लगाया जाता है , वह इस देश के लोगों की जेब से जाता है जो सरकार इनकम टेक्स, सेल्स टेक्स, और भी ना जाने कितने तरह के टेक्स के बहाने वसूलती है । फिर सत्ता में बैठे लोग वोटों को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ तैयार करते हैं। मजे की बात तो ये है की सबसे पहले रिश्वत का पैसा सत्ता में बैठे नेताओं के पास ही जाता है। आम आदमी के पास बाद में । हर बड़े सरकारी ठेके की यही कहानी है।, इसे कौन नहीं जानता । सब जानते हैं। कांग्रेस के युवराज भी अच्छी तरह से जानते हैं और संसद में इसे स्वीकार भी करते हैं साथ में ये भी जोड़ते हैं की अकेले लोकपाल से भ्रष्टाचार रुक नहीं पायेगा। जब राहुल जी इतना सब जान ही गए हैं तो आज तक " पिकनिक" क्यों मनाते फिर रहे हैं ? अभी तक कोई प्रभावी क़ानून बनाया क्यों नहीं ? इन्तजार किसका किया जा रहा है ?देश की जनता ने अन्ना हजारे में अपना प्रतिबिम्ब देखा तो उनका साथ दिया। अन्ना के लिए लोग जान न्यौछावर करने लगे। तब जाकर कांग्रेस की कुम्भकर्णी नींद टूटी । अन्ना हजारे की मान स्वीकार की, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है। देश भर के लोगों के मन में काग्रेस के प्रति आक्रोश और नफरत है। लोकपाल समिति से मनीष तिवारी को हटाकर कांग्रेस ने अपना ही भला किया है। अमर सिंह और लालू जैसे भ्रष्ट लोगों की छुट्टी भी करनी होगी वरना ये सन्देश जाएगा की कांग्रेस जन लोकपाल बिल को पारित करने के लिए गंभीर नहीं है। आज कांग्रेस की हालत ऐसी हो गयी है जैसे कोई सब कुछ लुटाकर होश में आता है, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी है। महान वैज्ञानिक न्यूटन के सिद्धांत के मुताबिक़ हम किसी वस्तु को जितनी शक्ति के साथ धकेलते है वह वस्तु भी हमें उतनी ही शक्ति के साथ विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया करती है । अर्थात भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ चुका है है की अब उसके विपरीत भी उसी ताकत के साथ प्रतिक्रया हो रही है. आम जनता के इस आक्रोश को अगर अब भी नजरअंदाज किया गया तो ....

Tuesday, August 23, 2011

महेश भट्ट , अरुंधती राय ; इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा
अन्ना हजारे आज जब आम इंसान की आवाज बन चुके हैं। हर शहर , कस्बा या गाँव के लोग उनमे अपनी छवि देखते हैं, यही कारण है की बहुत बड़ा जन सैलाब उनके समर्थन में उतर आया है और जितने लोग सड़क पर हैं उससे कई गुना ज्यादा लोग ऐसे हैं जो अभी अपने घरों में हैं मगर अन्ना के साथ हैं और किसी न किसी रूप में वे अन्ना को समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस की विडंबना ये है की सबसे ज्यादा उसीने देश पर शासन किया और सबसे ज्यादा मलाई भी कांग्रेसियों ने खाई है। अगर कांग्रेस अन्ना हजारे की बात मानकर जन लोकपाल बिल के लिए राजी हो जाति है तो सबसे ज्यादा तकलीफ कंग्रेस एंड कंपनी को ही होने वाली है। इसलिए वह अन्ना हजारे का विरोध कर रही है। कांग्रेस के चाटुकार मनीष तिवारी , दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और मुखर्जी तथा बड़े चापलूस अमर सिंह, लालू , महेश भट्ट और अरुंधती राय जैसे लोग अन्ना के आंदोलन के खिलाफ जहर उगलने में लगे हैं। मगर अब हालात बदल चुके हैं। पूरे देश में क्रान्ति की लहर चल निकली है। ऐसे समय जो अन्ना का विरोध करेगा लोग खुद ही उसके खिलाफ हो जायेंगे और अन्ना के आंदोलन को भी उतनी ही ज्यादा मजबूती मिलेगी । यह बात कांग्रेस की समझ में आ चुकी है। यही कारण है की कांग्रेस ने अन्ना हजारे पर हमले करने या तो कम कर दिए हैं या लगभग बंद कर दिए हैं। इसकी बजाय कांग्रेस भौं-भौं करने वाली एक जमात को अन्ना आंदोलन को बदनाम करने की सुपारी दे डाली है। सुपारीबाज लोगों में लाऊ प्रसाद यादव , अमर सिंह, महेश भट्ट , बुखारी , अरुंधती राय और तुषार जैसे लोग शामिल हैं.
हाल ही में अरुंधती राय ने एक अखबार में लिखा की बिलकुल अलग वजहों से और बिलकुल अलग तरीके से, माओवादियों और जन लोकपाल बिल में एक बात सामान्य है. वे दोनों ही भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. एक नीचे से ऊपर की ओर काम करते हुए, मुख्यतया सबसे गरीब लोगों से गठित आदिवासी सेना द्वारा छेड़े गए सशस्त्र संघर्ष के जरिए, तो दूसरा ऊपर से नीचे की तरफ काम करते हुए ताजा-ताजा गढ़े गए एक संत के नेतृत्व में। यानी की अरुंधती राय की नजर में अन्ना अभी अभी बनाए गए ताजा संत हैं और उनके आंदोलन की तुलना भी माओवादियों से कर डाली है। जहर उगलते हुए वे आगे लिखती हैं की वह सचमुच कौन हैं, यह नए संत, जनता की यह आवाज़? आश्चर्यजनक रूप से हमने उन्हें जरूरी मुद्दों पर कुछ भी बोलते हुए नहीं सुना है। अपने पड़ोस में किसानों की आत्महत्याओं के मामले पर या थोड़ा दूर आपरेशन ग्रीन हंट पर, सिंगूर, नंदीग्राम, लालगढ़ पर, पास्को, किसानों के आन्दोलन या सेज के अभिशाप पर, इनमें से किसी भी मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। शायद मध्य भारत के वनों में सेना उतारने की सरकार की योजना पर भी वे कोई राय नहीं रखते. वे यही नहीं रुकती अन्ना हजारे और उनकी टीम पर तरह-तरह के आरोप लगाती हैं।राय शायद भूल गयी हैं की अन्ना हजारे जनता के चुने गए प्रतिनिधि , यानी विधायक , सांसद , मंत्री , मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं है। वे एक आम इंसान हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत सालों से संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। उसी सफलता ने आज उन्हें क्रांतिवीर बना दिया है। राय को जो सवाल राहुल गांधी, प्रधानमंत्री , सोनिया गांधी , कपिल सिब्बल, दिग्विजय , चिदम्बरम या मुखर्जी से करने चाहिए और जो उम्मीदें इन लोगों से रखनी चाहिए वे अन्ना हजारे से रख रही हैं। राय की यह खीझ समझ से परे है. वे किसी एजेंट की तरह बात कर रही हैं. अन्ना संत नहीं महा संत है. उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती . कांग्रेस की चमचागीरी कर राज्यसभा पहुँचने की होड ने आम जनता की आवाज समझे जाने वाले महेश भट्ट की की बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है. महेश भट्ट कहते हैं -अन्ना हम फिल्मकारों की तरह जनता को एक छद्म सपने की आस देकर लुभा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अन्ना के आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे संगठन समर्थन दे रहे हैं।उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने वाले युवाओं को इस मुद्दे की ठीक से समझ नहीं है और वे इस पर ठीक ढंग से आत्ममंथन भी नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि टीम अन्ना द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक की कोई जवाबदेही नहीं होगी अतः यह सही मायनों में एक लोकतांत्रिक समाज के अनुरूप नहीं होगा।अब अक्ल के अन्धों से कोई ये पूछे की समर्थन लेना कौन सी बुरी बात है . अन्ना हजारे भाजपा या आर एस एस को समर्थन दे तो नहीं रहे, ले ही रहे हैं. अब भी सुधरने का वक्त है सुधर जाओ वरना महेश भट्ट , अरुंधती राय ; इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा. कांग्रेस के चमचो ;अब यह तय हो गया है की जो भ्रष्टाचारी होगा, वही अन्ना का विरोधी होगा । यह बात पूरे देश के लोग जान चुके हैं।अन्ना हजारे नाम की जो आंधी उठी थी उसने अब तूफ़ान का रूप धारण कर लिया है. जो चिंगारी थी वह अब तूफ़ान बन चुकी है। इस ज्वालामुखी में भ्रष्टाचार का भस्मासुर तो जलकर राख होगा ही, कांग्रेस के कलंकित चमचे और सुपारीबाज भी अन्ना के तूफ़ान में उड़ जायेंगे । जय हिंद॥ जय अन्ना ॥

Wednesday, August 17, 2011

क्रांतिवीर अन्ना की जीत होगी ,तानाशाह सरकार हारेगी
अन्ना हजारे सच्चे क्रांतिवीर हैं. देश के करोड़ों लोगों में भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्सा है. इसी गुस्से का प्रतिनिधित्व अन्ना हजारे कर रहे हैं. यह भ्रस्टाचार ही देश का सबसे बड़ा दुश्मन है. यह विकास के रास्तों को रोकता है, असमानता फैलाता है. और नक्सलवाद जैसी समस्याओं के मूल में भी भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ है. यहाँ दो तरह का भारत बनता दिख रहा है. एक गरीबों का भारत और एक अमीरों का भारत. जो अमीर है वो बहुत बड़ा अमीर है, वह और भी ज्यादा अमीर होता जा रहा है और जो गरीब है वह इतना ज्यादा गरीब होता जा रहा है की दिन रात खून जलाने के बाद भी वह भरपेट भोजन नहीं खा सकता. अपने परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता. दूसरी तस्बीर जो ज्यादा अमीर की उभरती है उनमे ज्यादा लोग ऐसे हैं जो सत्ता का सुख भोग चुके हैं या फिर भोग रहे हैं . उनमे वे नौकरशाह भी हैं जिन्होंने कभी कोई जायज काम भी बिना रिश्वत के नहीं किया. उस तरह के लोगों ने इस देश से गद्दारी करके तमाम दौलत विदेशों के बैंकों में जमा करवा रखी है. जिससे वे छोटे-छोटे देशों की अर्थव्यवस्था भी मजूत है और वे धन्ना सेठ बने हुए हैं, जबकि हम यहाँ भूखे हैं, नंगे हैं, बीमार हैं और यहाँ ताकि कर्जदार है. जब एक आदमी देखता है की भ्रष्ट आदमी बिना मेहनत किये भी करोड़ों -अरबों में खेल रहा है और सज्जन श्रमशील लोग टुकड़े-टुकड़े को मोहताज हैं तो उसके मन में विद्रोह की भावना ढउभरने लगती है. उसका व्यवस्था से भरोसा उठ जाता है . और अंततः वह असमानता की दीवार किसी गलत रास्ते पर चल निकलती है. आज देश के हालात ऐसे हैं की आप किसी भी राज्य के सरकारी दफ्तर में चले जाइए , वहाँ पर आपका जायज काम भी बिना रिश्वत दिए नहीं हो सकता . यह गारंटी है. इस सबकी जिम्मेदाआर कांग्रेस पार्टी है, इस देश पर सबसे ज्यादा शासन इसी पार्टी ने किया है और इसीके कार्यकाल में भ्रष्टाचार को जन्मसिद्ध अधिकार बना दिया गया. उसके बाद आयी किसी भी सरकार ने भ्रष्टाचार को कभी गंभीरता से नहीं लिया. चोर-चोर मौसेरे भाई . कौन मुफ्त की कमाई से मुंह मोड. जिस आआम इंसान ने और जब भी इस रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाई उसे तरह- तरह से प्रताडित किया जाता है. उस पर झूठे मुक़दमे चलाये जाते हैं. उसे अपराधियों द्वारा निपटा दिया जाता है. कुल मिलाकर हालात ऐसे हो जाते हैं की आम इंसान को अपने कानूनी काम करवाने के लिए भी रिश्वत देनी ही पड़ती है. तो ये जो दर्द है यह एक दिन का नहीं है. आम इंसान के इस दर्द ने अब ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया है. अन्नाहजारे जैसे क्रांतिवीर इस आंदोलन का सही नेतृत्व कर रहे हैं. इसलिए सभी पार्टीगत बातों को भुलाकर अन्ना हजारे का साथ देना चाहिए. क्योंकि अंततः जीत अन्ना हजारे की ही होगी और तानाशाह सरकार को झुकना ही होगा. क्योंकि अन्ना हजारे अब सिर्फ नाम नहीं बल्कि मिशन का रूप द्धारण कर चुका है . वैसे भी,
अन्ना कौन है ?

अन्ना तुम हो

अन्ना हम हैं.

जब सब अन्ना हैं,

तो हमको हराएगा कौन ?

दिन रात श्रम हम करें

खून-पसीना हम बहाएं

और दलाल लोग अरबों रुपये

विदेशों में जमा कराएं .

एक आदमी भूख से बेहाल है

दूसरा भ्रष्ट बिना करे भी मालामाल है

ये कब तक चलेगा ?

सोई हुई संवेदनाओं को जगाइए

अन्ना का समर्थन कर

दलालों की सरकार हटाइये .
आज अगर हम नहीं जागे
तो हमें कभी नहीं जागने दिया जाएगा
क्योंकि अन्ना जैसे क्रान्ति पुरुष

युगों के बाद जनमते हैं

Wednesday, August 10, 2011

ये कैसी गोलियाँ हैं ?

पुणे के किसानों का क्या दोष था की उन्हें गोली से उदा दिया गया ? यही न की वे लोकतांत्रिक तरीके से पवना पाइप लाइन प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे . अपने उस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे जो उन्हें संविधान से मिला है. अगर किसी नागरिक को लगता है की सरकार उन पर जबरदस्ती कोई योजना थोप रही है तो सरकार के उस निर्णय का विरोध किया जा सकता है. मगर भारत में अब इस तरह के निर्णय का सम्मान नहीं किया जाता . अब एक नई परम्परा चल निकली है. अगर सरकार को लगता है की कोई सामाजिक संगठन या कोई व्यक्ति उसके फैसले से नाखुश है तो उसकी तकलीफ समझने के बजाय उसका दमन किया जाता है. उस पर लाठी या गोलियाँ चलाई जाती हैं. सरकार अब तानाशाह की भूमिका में नजर आती हैं, चाहे वह कहीं की भी सरकार क्यों न हो. हाल ही में लखनऊ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लाठियां बरसाई गईं, वहाँ पर बसपा की सरकार है इसलिए लाठियां खाने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है तो वहाँ पर भाजपा कार्यकर्ताओं को लाठियां खानी पड़ीं, इसके विरोध में भाजपा नेताओं ने संसद तक को ठप्प कर दिया. राज्य सभा स्थगित करनी पडी. मगर महाराष्ट्र के पुणे का मामला सबसे अलग है. वाहन पर किया जाने वाला विरोध राजनीतिक नहीं था . विरोध करने वाले लोग सीधे सादे गरीब किसान थे. वही किसान जो दिन -रात मेहनत करके अन्न उगाता है. जिसके पसीने की बूँद गिरती हैं तो हम जैसे शहरी लोगों का पेट भरता है. जो किसान देश का अन्नदाता है, वही सबसे ज्यादा उपेक्षित है, सबसे ज्यादा कर्जदार है, सबसे ज्यादा परेशान है. उसीके साथ सबसे ज्यादा जुल्म किये जाते हैं. साहूकारों , बैंकों और दलालो से जो किसान बचता है पुलिस की लाठियों या गोलियों का निशाना बनता है।जो आतंकवादी हैं, जो देश को तोड़ने का काम करते हैं , जो शहर में आतंक फैलाते हैं. शांतप्रिय नागरिकों के खून से हाथ रचने वाले अन्दार्वार्ल्ड के लोग हैं, उनके गिरेबान तक सरकार और क़ानून के हाथ नहीं पहुँचते , मगर अपने हक के लिए आंदोलन करने वाले निर्दोष और मेहनतकश किसानो के सीने तक पुलिस की गोलियाँ बड़ी आसान से पहुँच जाती हैं. ज़रा भी निशाना नहीं चूकता . ये कैसी गोलियाँ हैं जो देशभक्त और अन्नदाता किसानों के सीने को तो छलनी करती है मगर देश को तबाह करने की साजिश रचने वाले आतंकवादियों को छूती तक नहीं है ? उलटा उनका संरक्षण करती हैं ?देश पर हमला करने वाला , कई जांबाज पुलिस अधिकारियों की जान लेने वाला कसाव आज तक जेल में ऐश कर रहा है। संसद का हमलावर अफजाल गुरु सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बावजूद चैन की सांस ले रहा है। सैकड़ों हत्याओं के जिम्मेदार दाऊद इब्राहीम, छोटा शकील और राजन जैसे लोग आज तक क़ानून की पकड़ से बाहर हैं। पुलिस और तमाम खुफिया एजेंसियां अभी तक उन तक नहीं पहुँच पाई हैं जबकि गाहे-बगाहे इन गिरोहों से जुड़े लोग अक्सर टी वी पर दिख जाते हैं। लेकिन आम लोग सबका आसान शिकार बनते हैं। कब सुधरेगी ये स्थिति ? और कौन लाएगा ये बदलाव ? कभी थोडा वक्त निकालकर सोचिये तो सही। आप सोचेंगे न ?
- मुकेश कुमार मासूम
९२२२९५९१३०

Wednesday, August 3, 2011

राज ठाकरे का गुजरात दौरा
कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना

मनसे के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे आजकल गुजरात दौरे पर हैं। गुजरात सरकार ने उन्हें सरकारी मेहमान घोषित किया है। गुजरात भी अन्य राज्यों की तरह है तो भारत देश में ही मगर अलग राज्य है। यानी की राज ठाकरे के लिए तो वह परप्रांत ही है। इसके बावजूद पिछले कुछ दिनों से राज ठाकरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे। उनके मन में परप्रांतीयों के लिए उम्दा यह प्यार अचानक नहीं है। यह सब बहुत सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है। गुजरात दौरे से जाने से पहले उन्होंने हिन्दी के कुछ अखबारों को हिंदी में इंटरव्यू भी दिए। उसमे उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ की , बिहार के मुख्यमंत्री की तारीफ़ की मगर मायावती पर वे अच्छे कहासे नाराज नजर आये। यहाँ भी वे बड़ी रणनीति के तहत बोलते नजर आये। और तो और अब वे गुजरात में लोगों के साथ हिन्दी भाषा में बात कर रहे हैं। हिन्दी के साथ उम्दा हुआ यह प्यार भी अचानक नहीं है। दरअसल राज ठाकरे की समझ में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी है की सिर्फ महाराष्ट्र का नारा देने और उतर -प्रदेश -बिहार के लोगों को पिटवाने या डरा- धमकाने से कुछ होने वाला नहीं। अगर सत्ता चाहिए तो उसके लिए रणनीति में बदलाव करना ही होगा। अकेले मराठी वोटों के दम पर वे इच्छित राजनीतिक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते , क्योंकि उनकी कट्टर प्रतिद्वंदी शिवसेना पहले से ही इन वोटों पर अच्छा-खासा वर्चस्व रखती है। इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस पार्टी बहुत बढ़िया तादाद में मराठी वोट कैश कर लेती है। राज ठाकरे जान गए हैं की वे अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए तो अश्प्रश्य की तरह हैं। खुद उन्होंने अपने इंटरव्यू में इस बात को कबूल भी किया है। थोड़े- बहुत मराठी वोटों के बलबूते वे न तो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही बन सकते हैं और न ही केंद्र की राजनीती में धमक ला सकते हैं। इसके लिए उन्हें महाराष्ट्र में ही किसी साथी की जरूरत है। अब उनके साथ यहाँ मित्रता करेगा कौन ?कांग्रेस और राष्ट्रवादी का पहले से ही गठबंधन है। उनके लिए तो मनसे वैसे ही संजीवनी बूटी की तरह है। वे उससे कभी समझौता नहीं करना चाहेंगे । क्योंकि जब मनसे अलग चुनाव लड़कर शिवसेना -भाजपा के वोट काटती है तभी कांग्रेस -राष्ट्रवादी का उम्मीदवार जीतता है। इस वोट कटाई से कांग्रेस को दोगुना फायदा होता है । शिवसेना और भाजपा का पहले से ही गठबंधन है। भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है और केन्द्र में भी कई बार शासन कर चुकी है। शिवसेना के मुकाबले उसका महाराष्ट्र में भले ही कम दबदबा हो मगर है तो पूरे देश में। दूसरी बात भाजपा और शिवसेना की सोच भी लगभग एक जैसी है। कम से कम हिंदुत्व के मामले पर तो वे शत -प्रतिशत एकमत हैं। इसलिए शिवसेना और भाजपा का गठबंधन आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। उसके लिए फील्ड वर्क की जरूरत पड़ेगी, किसी ठोस सहारे की जरूरत पड़ेगी । शायद इसीकी रिहर्सल शुरू हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी भाजपा के बड़े नेता हैं और उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व सौंपने की चर्चा गाहे -बगाहे चलती रहती है। बहुत संभव है की आगे चलकर वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी आबं जाएँ। वैसी स्थिति में अगर राज- मोदी की दोस्ती बनी रहती है तो मुंबई में भाजपा के साथ गठबंधन में आसानी आ सकती है। शिवसेना के लिए भाजपा बहुत बड़ी जरूरत हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए यह बहुत बड़ी या सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं है।इसलिए राज ठाकरे एक तीर से कई निशाने करना चाहते हैं । उनके गुजरात दौरे से एक तो गुजराती मतदाताओं का झुकाव उनकी तरफ बढ़ेगा , दूसरी बात उन्हें कुछ नए कार्यकर्ता भी मिल जायेंगे । साथ में भविष्य में एक राजनीतिक साथी की तलाश भी पूरी हो सकती है। शिवसेना के रणनीतिकार पहले से ही जानते हैं की राजनेति में कुछ भी संभव है तभी तो उन्होंने पहले से ही रामदास आठवले के रूप में नए सहयोगी की तलाश पूरी करली है। खैर, जो भी हो । अगर राज ठाकरे अपनी सोच और विचारों के साथ-साथ क्षेत्र का भी विस्तार कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है ?

Wednesday, July 27, 2011

जिनके खातिर हम लहू बहाते हैं . वो दर्द में भी जख्म दिए जाते हैं.

जिनके खातिर हम लहू बहाते हैं .
वो दर्द में भी जख्म दिए जाते हैं.

२६ जुलाई २००५ . इस तारीख को भला मैं कैसे भूल सकता हूँ. मेरे जैसे और भी न जाने कितने मुम्बईकर या फिर इस दिन की विभीषिका झेलने के अभिशप्त मुंबई आये लोग भी इस डरावनी तारीख को नहीं भूल सकते. मुझे याद है उस दिन वर्ली जाम्बोरी मैदान में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की सभा भी थी. मैं बसपा का मीडिया प्रभारी था, इस नाते पत्रकार बंधुओं को बुलाना , उनकी 'देख-रेख' करने का दायित्व मेरा था. सतीश चंद्र मिश्रा का भाषण होते-होते सभा के लिए लगाए पंडाल में पानी भर चूका था और जब मायावती जी का भाषण हुआ तब तक बादल अपना रौद्र रूप धारण कर चूका था. काफी 'समझदार' कार्यकर्ता तो मौक़ा देखकर निकल लिए मगर मैं रुका रहा. सभा खत्म होते ही मैं शमशाद भाई और दीपक मित्रा के साथ इनोवा से निकल लिया . हरिनाथ यादव उस समय हिंदमाता में थे. सभा कवर करने वही आये हुए थे. उन्हें अपने ऑफिस जाना था तो वे भी हमारे साथ हो लिए . उनेहं ऑफिस छोड़ते तब तक तो आसमान से प्रलय बरसने लगी थी. सड़कों पर पानी भर चुका था , और जगह-जगह ट्रैफिक जाम होने लगा था. किसी तरह उन्हें सकुशल छोड़ने के बाद जब हम आगे के लिए बढे तो मुश्किल और भी बढ़ने लगीं. शमशाद भाई और दीपक मित्रा को गोकुलधाम आना था जबकि मुझे मीरा रोड आना था. जिधर देखिये सड़क जाम थीं. पानी कहर बनकर टूट रहा था. चारों तरफ अनिश्चितता का माहौल था. कुछ समझ में नहीं आ रहा था की ऐसे वक्त क्या किया जाए. सब दुविधा में थे. मुझे साथी पत्रकारों के फोन आ रहे थे जो सभा में नहीं पहुँच पाए थे. महाराष्ट्र अध्यक्ष का फोन नहीं लग रहा था . बसपा के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी मिल पाई थी की बहन जी सकुशल होटल पहुँच गयी और उत्तर प्रदेश के वर्तमान परिवहन मंत्री राम अचल राजभर की पिस्तौल पानी में ही गिर गयी थी जो बड़ी मशक्कत के बाद मिल पाई , इसके बाद पार्टी के बड़े नेताओं से सम्बन्ध विच्छेद हो गया. इधर नई इनोवा की परिक्षा थी, शुरुआत में तो गाड़ी बड़े धैर्य और जिम्मेदारी का परिचय देती रही मगर बरसात तो तूफ़ान में तब्दील हो चुकी थी और तूफ़ान का मुकाबला कोई भी गाड़ी भला कैसे कर सकती है ? शमशाद भाई ने सूचना दी की नीचे की तरफ से गाड़ी में पानी भरने लगा है. इसके बाद वह सिलसिला चल निकला . पूरी गाड़ी में पानी ही पानी. फिर जब सामने निगाह दौडाई तो कोहराम मचा था. सब लोग गाड़ियों से उतरकर पैदल चल रहे थे. गाड़ियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था. जब जान पर बन आये तो बाकी साभी नीचे गौण हो जाती हैं. हमने गाड़ी परफेक्ट किस जगह पर छोड़ी यह तो याद नहीं मगर हम गर्दन तक पानी में जद्दोजहद करते हुए लगभग एक घंटा में सांताक्रुज के फ्लाईओवर पर पहुंचे . लोगों की चीख पुकार और मरकर बहे पशुओं के साथ हमने यहाँ तक की मंजिल कैसे तय की ये हम ही जानते हैं. इस बीच घर पर फोन कर श्रीमती को बारिस में फंसने की सूचना दी तो उसने मजाक में टाल दिया , उसके बाद फोन लगा ही नहीं. सब कुछ बंद हो चूका था. हम जहाँ पहुंचे वहाँ पर बेस्ट की एक बस खडी थी, उसमे काफी जगह थी. बरसात जोरों पर थी ही, बाहर बच्चे -महिलायें रो रहे थे. उनमे से कुछ ने जब बस में चढना चाहा तो बस वालों ने गाली गलौच कर , लड़ाई झगदा कर सबको नीचे उतार दिया . इसके बाद तो उसने गेट ही बंद कर लिए. वे लोग इयमों का हवाला दे रहे थे . हम भी नीचे उतार दिए गए. अब पूरी रात सामने थी. ऊपर से आसमानी आफत थी तो इधर पेट ने भी बगावत करने शुरू करदी. भरी बरसात में पेट से चिंगारियां निअक्ल रही थी. चारों तरफ पानी ही पानी था और हम लोग प्यासे थे. आस-पास कुछ दुकानें थी . उन्होंने इंसान की मजबूरी का अच्छी तरह ' फायदा' उठाया . बड़ा पाब पचास रुपये तक में बेचा . सुनते हैं की मुसीबत के समय मुंबई एक हो जाती है. मगर उस महा मुसीबत की महाघडी की सच्चाई आप तक पहुंचा रहा हूँ. उस रत हम भूखे ही रहे. हमें कुछ नहीं मिल पाया . दूकान वाले चाहते तो मदद कर सकते थे मगर उन्होंने मदद के बजाय भंवर में फंसे लोगों का उपहास उडाया , उन्हें ब्लैकमेल किया. बस वाला भी अगर चाहता तो ठण्ड से कांपते , बुखार में तपते कुछ अति जरूरत मंद लोगों को उस बस में सहारा दे सकता था, वह खाली बस थी, उसमें कुछ ही लोग बैठे थे. खैर . मैं तू सुबह शमशाद भाई और दीपक मित्र की मदद से गोकुलधाम तक पहुँच गया मगर जिनेहं हम अपना कहते हैं . जिनके लिए 'विशेष ' परिस्थितियों में हम खून तक बहाने के लिए तैयार होते हैं वे मुसीबत के समय इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हैं.
जिनके खातिर हम लहू बहाते हैं .
वो दर्द में भी जख्म दिए जाते हैं.
- मुकेश कुमार मासूम

Friday, July 1, 2011

मौन व्रत तोडिये मनमोहन जी ,
अगर अब नहीं बोले तो कभी नहीं बोल पायेंगे

देश की जनता हाहाकार कर रही है. भूख , गरीबी, बेरोजगारी और मंहगाई ने सच्चे और मेहनतकश लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. तंग आकर कुछ लोग चोरी, डकैती और नक्सलवाद का रास्ता पकड़ रहे हैं तो कम दिलवाले लोग मौत को गले लगा रहे हैं. जो बचे हैं वे कर्ज लेकर या कम खा-पीकर , कम खर्चे कर अपनी गुजर -बसर कर रहे हैं. हाँ, दलालों की मौज है . जो भ्रष्टाचारी हैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं है. उलटे सरकार का वरदहस्त हासिल कर ऐसे लोग अपने देश का धन दुसरे देशों में भेज रहे हैं.हर घड़ी भ्रस्टाचार हो रहा है, हर जगह भ्रष्टाचार है. हालात ऐसे हैं कि अगर कुछ चुनिन्दा लोग अपना ईमान बरकरार रखना भी चाहें तो नहीं रख पा रहे हैं. अगर कोई अपना काम करवाने के लिए सरकारी ऑफिस जाता है तो आम आदमी के साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता है. अगर कोई क़ानून की दुहाई दे तो उसे ऐसे देखा जाता है जैसे उसने कितनी बड़ी नादानी अथवा कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो. अगर वह अपने अधिकारों की बात करता है तो उसे दुत्कार दिया जाता है. उसके काम में हजारों दोष निकाल दिए जाते हैं, अगर वह अपना सम्मान बचाने के लिए प्रयासरत दिखा तो सरकारी काम में अड़चन डालने वाली धरा लगवाकर , जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाकर उसे निपटा दिया जाता है. पुलिसवाले सब जानते हैं फिर भी आम आदमी की नहीं बल्कि भ्रस्टाचार करने वालों की बात ही मानते हैं. ये महज सरकारी गतिविधियां नहीं बल्कि सिस्टम की हकीकत बन चुका है. अब इससे होता ये है कि सरकार भले ही किसीकी क्यों न बन जाए मगर भ्रष्टाचार की यह दास्ताँ ऐसे ही दोहराई जाती है. हर तरह की चक्की को पीसने वाला और उस चक्की में पीसने वाला व्यक्ति आम व्यक्ति ही होता है. और अब तो हद हो चुकी है. जुल्मो सितम की इन्तिहाँ हो चुकी है. और जैसे कि कहा गया है. जब -जब ऐसे हालात होते हैं . पानी सिर से ऊपर उतरता है तो कोई न कोई जन्म लेता है, आगे बढ़ता है उसमे सुधार लाने के लिए . आज अन्ना हजारे एंड टीम के आंदोलन को उसी नजरिये से देखना चाहिए .अन्ना हजारे की टीम के आगे आज देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस भी नतमस्तक की मुद्रा में है तो इसका सबसे बड़ा कारण आम आदमी की ताकत है. अगर हर कोई अपनी ताकत को पहचानकर कार्य करे तो बड़े से बड़ा असम्भव काम भी संभव हो सकता है. अन्ना हजारे एंड टीम आज सरकार बदलने के लिए नहीं बल्कि सिस्टम बदलने के लिए काम कर रही है. वे एक सशक्त लोकपाल चाहते हैं ताकि आं आदमी के हितों की रक्षा हो सके, सरकार भले ही जिसकी आये मगर आम आदमी के अधिकार सुरक्षित रहें. अगर अन्ना हजारे सच कह रहे हैं तो उनके इस पुनीत कार्य में हर देश प्रेमी को सहयोग करना चाहिए , भले ही वो किसी भी पार्टी या संगठन से क्यों न जुडा हो. देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी ईमानदार व्यक्ति बताया जाता है. अगर ये भी सच है तो उनको अपना मौन तोडना चाहिए .अगर अब भी वे खामोश रहे तो फिर कभी नहीं बोल पायेंगे . क्योंकि अगली बार अगर चांस मिला भी तो उनके लिए कोई चांस नहीं है. (राजनीतिक चाटुकार पहले से ही भावी प्रधानमंत्री तय कर चुके हैं )इसलिए प्रधानमंत्री को अपने होने का एहसास दिलाना चाहिए . सिर्फ कह देने भर से काम नहीं चलता , उन्हें प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने की पहल करनी चाहिए . अपनी और अपनी सहयोगी पार्टियों को भी इसके लिए तैयार करना चाहिए . आखिर यह पद किसी एक व्यक्ति या पार्टी की बपौती तो है नहीं. आज कोई और है कल कोई और आएगा .
- मुकेश कुमार मासूम