Sunday, July 25, 2010
इशक की आग में समूचा हिन्दुस्ता झुलस रहा है।पंजाब के कपूरथला और दिल्ली सटे उत्तर परेद्श के जिला बुलंदशहर में एक दिन में इशक के चक्कर में तीन घटनाएं घटी हैं। कोई दिन ऐसा नहीं है जब देश के किसी न किसी हिस्से में दो चार लोग रोजाना इश्क की चक्की में नहीं पिसते हों। कपूरथला के कठुआ में एक पिता ने बेटी को करंट लगा मार डाला। मृतिका का नाम गुरजीत कौर है। पिता ने बेटी के प्रेमी को भी मारने की कोशिश की लेकिन वो बच गया और उसकी सूचना पर पुलिस ने हत्यारे पिता को गिरफ्तार कर लिया।
यूपी के बुलंदशहर में एक युवक की हत्या प्यार करने की वजह से कर दी गई। मृतक जिस लड़की से प्यार करता था वो रिश्ते में उसकी मौसी लगती थी।
यूपी के बुलंदशहर में ही एक ही गोत्र में प्यार करने की सजा दो प्यार करने वालो को मिली। समाज ने उनके प्यार को अस्वीकार कर दिया जसके बाद प्रेमी जोड़े ने जहर खाकर खुदकुशी कर ली।
बुलंदशहर के तनु और गुड़्डू एक दूसरे बेहद प्यार करते थे। दोनों एक ही गोत्र के थे। दोनों ने शुक्रवार को खुदकुशी कर ली। गांव के लोगों के मुताबिक दोनों एक ही कुनबे के थे। जाति और गोत्र भी एक ही था। इसलिए समाज की नजर में वो रिश्ते से भाई बहन थे। कुछ महीने पहले जब घर वालो को दोनों के प्यार का पता चला तो पहरा बिठा दिया गया। घरवाले तो पहले से खिलाफ थे पंचायत भला इस रिश्ते को कैसे मंजूर करती। हारकर दोनों ने मौत को गले लगा लिया ।इस तरह की ज्यादातर घटनाएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश या हरियाणा के कुछ जिलों में ज्यादा घाट रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर , बुलंद शहर , गाजियाबाद , नॉएडा , अलीगढ़ , आगरा आदि में ओनर किलिंग या इशक में निराश होकर आत्महत्या करने के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हरियाणा के झज्जर , रोहतक , फरीदाबाद आदि इलाकों में ऐसी घटनाएं ज्यादा बढ़ रही हैं। सरकार न तो प्यार करने वालों को सुरक्षा उपलब्ध करवा पा रही है और नाही समाज इस तरह के मामलों को स्वीकारने के लिए तैयार है । प्यार के लिए मर मिटने का लड़के -लड़कियों का जूनून कैसे परवान चढ़ा , इसके लिए क्या जिम्मेदार है ? फ़िलहाल यह सवाल करने का वक्त नहीं है। यह समय है इस बीमारी को दूर करने का। मगर इसके लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा । प्यार करने वालों और प्यार की बली वेदी पर चढ़ने वालों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती जा रही है। गाँव और शहरी परिवेश में जमीन आसमान का अंतर होता है। गाँव में अगर किसी की बेटी किसी लड़के के साथ प्यार करती है और उससे शादी कर लेती है तो आसपास के लोग बेटी वाले के परिवार का जीना हराम कर देते हैं। हर पल उसे ताने दिए जाते हैं, उसे नजरों से गिरा दिया जाता है। उन्हीं तानों और बेईज्जती से बचने के लिए बेटी वाले या तो अपनी बेटी को ही मार डालते हैं या फिर बेटी के आशिक को मौत के घात उतार देते हैं। इसका परिणाम ये होता है की लड़का और लडकी वाले दोनों परिवार बर्बाद हो जाते हैं। जबकि अगर समझदारी से काम लिया जाए, या तो उन्हें समझा बुझा दिया जाए या फिर उनकी शादी करवा दी जाए तो सब कुछ ठीक हो सकता है । मगर इसके लिए सरकारी पहल की भी जरूरत है । ऐसे मामले निबटाने के लिए भी एक विशेष आयोग की जरूरत है, जो ऐसा मामला सामने आने पर लड़का और लडकी वालों के बीच पुल का काम कर सके।
Thursday, July 22, 2010
दलित दुलारे , राहुल प्यारे , गए कहाँ रे ...
वे नेता देश के लिए ककुछ भी करने को तैयार रहते थे, वे हमेशा जन हित की बात करते थे. उनका आचरण भी सादगी भरा और निस्वार्थ
होता था . इसलिए लोग उन्हें अपना आदर्श मानते थे. आज की तारीख में ऐसा कौन सा नेता है जिसे लोग अपना आदर्श अमानते हों. इसलिए
किसी एक की बात हो तो अलग है यहाँ तो सभी राजनीतिक पार्टियां और ज्यादातर नेता ही ऐसे हो गए हैं. याबी कि इलाज की नहीं , आपरेशन
की जरूरत है. इसके लिए सख्त क़ानून की व्यवस्था की जरूरत है ,जों कभी पूरी नहीं होने वाली. क्योंकि वही छिनरा , वही डोली के संग वाली बात आड़े आ जाती है. यानि कि क़ानून बनाने वाले भी तो नेता ही हैं . और वे ऐसा कोई क़ानून क्यों बनाएंगे जिसे आगे चलकर वही तोड़ने वाले हों .इस मुश्किल का कोई हल है क्या ?
Monday, July 19, 2010
Sunday, July 18, 2010
अध्यात्म और अश्लीलता
Friday, July 16, 2010
अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं.
अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं
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अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं.
और केन्द्र सरकार है कि चैन के बंशी बजा रही है ,विपक्ष भी मंहगाई को लेकर उतना गंभीर नहीं है, जितना कि होना चाहिए . सभी विपक्षी पार्टियों ने एक दिन का बंद रखा और फिर भूल गईं, कुछ राज्य स्तर की पार्तितों ने भी एकाध दिन हो हल्ला करके मामले को शांत कर दिया. मगर इससे फायदा क्या हुआ. क्या सरकार पर किसी तरह का वजन पड़ा, क्या सरकार ने किसी भी चीज के थोड़े भी दाम घटाए ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटा अगले ही दिन केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने यह कहकर धमाका कर दिया कि चीनी को भी सरकारी नियंत्रण से बाहर लाया जाएगा. यानि कि सरकार चीनी पर जों सब्सिडी दिया करती थी, उसे बंद किया जाएगा . इससे चाय पीना भी दुर्लभ हो जाएगा . चीनी की कीमते आस्मां छूने लगेंगी .दुसरा धमाका पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवरा ने यह बयान देकर किया है कि ज्यादा पैसे देकर रसोई गैस के उपभोक्ता कभी भी सिलेंडर मगा सकते हैं. इससे गैस एजेंसी के मालिकों को सरेआम भरष्टाचार करने की पूरी छूट मिल जायेगी . एक तो पहले से ही गैस एजेंसी वाले उपभोक्ताओं को खून के आंसू रुलाते थे, ब्लेक में सिलेंडर देते थे, कम गैस देते थे. मनमाने ढंग से डिलीवरी करते थे . अब मुरली देवरा की शह पर वे और भी ज्यादा निरंकुश हो जायेंगे . अब वे मनमाने तरीके से डिलीवरी देंगे और जब उनकी इच्छा होगी , तब देंगी . जानबूझकर लेट करेंगे और मुहमांगी रकम वसूलेंगे . अतिरिक्त रकम के प्रावधान की बात कहकर मुरली देवरा ने गैस एजेंसी के मालिकों को भ्रष्टाचार करने का खुला लाइसेंस दे दिया है . मंहगाई कम करने के बजाय मंहगाई बढाने के इंतजाम किये जा रहे हैं . हालत ये है कि
महंगाई से पूरा देश त्राही त्राही कर रहा है। सारी कमाई को महंगाई सुरसा के मुंह की तरह निगल रही है। पिछले हफ्ते खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर में मामूली सी कमी दिखाई गई, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। महंगाई के वजन से मध्य वर्ग की कमर टूट गई है और गरीबों ने खाने में सब्जी का नाम लेना ही बंद कर दिया है।
हालांकि आंकड़ों के लिहाज से खाने पीने की चीजों की मंहगाई दर 12.63 फीसदी हो गई है। इससे पहले ये 12.93 फीसदी थी। लेकिन आंकड़ों की बाजीगरी की हकीकत कुछऔर ही है।
अहमदाबाद में35 रुपए किलो मिलने वाली भिंडी 45 रुपए किलो हो गई है। फूल गोभी 45 रुपए से 60 रुपए किलो हो गई है। करेला 35 रुपए से 40 रुपए किलो होकर स्वाद और कसैला कर रहा है।
लखनऊ में आलू 7 से 8 रुपए किलो मिलता था वो अब 10 से 13 रुपए किलो मिल रहा है। शिमला मिर्च 32 से 36 रुपए किलो मिलती थी वो अब 40 से 48 रुपए किलो मिल रही है। प्याज 8 से 10 रुपए किलो मिलता था अब वो 16 से 20 रुपए किलो होकर लोगों के आंसू निकाल रहा है।लगता है अब इंसान सब्जियां नहीं खाता बल्कि सब्जियां इंसान को खाने लगी हैं.
जाहिर है पूरे देश में खाने-पीने की चीजों के दामों में आग लगी हुई है। और सरकार के तमाम दावे खोखले साबित हुए हैं।इन आंकड़ों ने केन्द्र सरकार के झूठे दावों की पोल खोल डी है , और अब उस क़ानून की मांग जोर पकड़ने लगी है जों सरकार बनने वालों को कभी भी सरकार गिराने का अधिकार देता हो .
Thursday, July 15, 2010
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मुसलामानों से माफी माँगी है, अपना अपराध स्वीकारते हुए उन्होंने कल्याण सिंह के साथ अपनी दोस्ती को गलत माना है । उनका कहना है की अगर उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण सिंह से दोस्ती नहीं की होती तो आज उनकी पार्टी का ये हश्र नहीं होता। मुलायम सिंह ने अपने पत्र में कहा कि बीते लोकसभा चुनाव में साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्तारूढ़ होने से रोकने के लिए कुछ गलत लोगों को साथ रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे सभी धर्म निरपेक्ष शक्तियों खासकर मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची। सिंह ने कहा कि मैं इसे अपनी गलती स्वीकार करता हूं और आश्वस्त करता हूं कि अयोध्या मामले से जुड़े आरोपियों व साम्प्रदायिकता भड़काने वाले लोगों से कभी गठजोड़ नहीं करूंगा।मुलायम ने लिखा कि लोकसभा चुनाव में ऐसे लोगों (कल्याण सिंह) को साथ लेने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं। , उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अयोध्या के छह दिसम्बर 1992 की घटना के आरोपी कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के मुसलमानों से माफी मांगने को हताशा भरा कदम बताते हुए कहा है कि अगर माफी ही मांगनी है तो उन्हें पिछड़ों से मांगनी चाहिए।सिंह ने कहा कि मुलायम सिंह से हाथ मिलाते समय उनके समर्थकों ने उन्हें आगाह किया था कि मुलायम धोखेबाज हैं। फरेब उनकी फितरत है लेकिन अपने सरल स्वभाव के कारण पिछडों की लड़ाई लड़ने के लिए उन्हें समर्थन दे दिया। लोकसभा के पिछले चुनाव में कल्याण सिंह की वजह से ज्यादातर मुसलमानों ने मुलायम सिंह और उनकी समाजवादी पार्टी से कन्नी काट ली थी। इसके कारण उनकी पार्टी अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। यहां तक कि उनकी बहू डिंबल यादव फिरोजाबाद लोकसभा सीट से उपचुनाव हार गई थी। डुमरियागंज विधानसभा सीट के लिए हाल ही में हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी चौथे नंबर पर पहुंच गई थी।
इन सब बातों का ख़याल अब जाकर मुलायम सिंह यादव को आया है । इससे पहले जब उन्होंने सपा के संस्थापक सदस्य मोहम्मद आजम खान को पार्टी से बेआबरू होकर निकाला तब उन्हें ध्यान क्यों नहीं आया था ? आजम खान चिल्ला-चिलाकर कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद के ढहने का गुनाहगार बता रहे थे , उन्हें मुस्लिमों का हत्यारा बता रहे थे , उस वक्त मुलायम सिंह यादव कल्याण सिंह के गले में बाहें डालकर घूम रहे थे । दावे के साथ कह रहे थे की उनकी दोस्ती हमेशा अमर रहेगी। अमर सिंह जैसे बडबोले इंसान के चक्कर में आकर जब मुलायम सिंह यादव मायावती द्वारा बनाये गए डॉक्टर आंबेडकर स्मारकों , पार्कों को अय्याशी का अड्डा बता रहे थे , अपनी सरकार आने पर दलितों , पिछड़ों के महापुरुषों की मूर्तोयों को तोड़ने की बात कर रहे थे , उस समय आपकी बुद्धि कहाँ गयी थी ? और इसके लिए दलितों से आप कब माफी मांगेंगे ?वक्त बड़ा बलवान होता है । अब पछताए क्या हॉट है , जब चिड़िया चुग गयी खेत ? मुसलमान भाई इतने नादाँ नहीं है की जब चाहे घडियाली आंसू बहाकर कोई भी नेता उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेगा। अब मुलायम सिंह यादव को अपनी नीयत और नीतियों में सच्चाई और पारदर्शिता लानी होगी , तब कुछ बदलाव हो पायेगा ? और हाँ, यह सारी कवायद कहीं आजम खान को मनाने के लिए तो नहीं है ?
Wednesday, July 14, 2010
Monday, July 12, 2010
Sunday, July 11, 2010
Friday, July 9, 2010
धत्त तेरे की , शरद पवार को रोना भी आया तो किस पर
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष , अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष , केन्द्रीय कृषि , खाद्य एवं नागरिकआपूर्ति ,पशुपालन, दुग्ध विकास और ग्राहक संरक्षण मंत्री शरद पवार उम्र और अनुभव के आधार पर बहुतसीनियर हैं, राष्ट्रीय राजनीति में वे कई सालों से शिखर पर हैं . इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र के वे एकमात्रताकतवर राष्ट्रीय नेता हैं. उनके प्रति मेरे मन में पूरा आदर -सम्मान है , लेकिन आजकल उनके बयानों और कार्योंकी अगर समीक्षा की जाए तो सर्वथा निंदनीय है . आज देश में आम लोगों का जीना मुहाल हो गया गया है. शरदपवार के गृह राज्य महाराष्ट्र में हजारों किसान आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं . देश में मेंभारी मंहगाई के चलते त्राहि मम मंची हुई है. कितने ही लोग गरीबी , बेरोजगारी , मंहगाई , कर्जबाजारी के कारणअपने बच्चों की ह्त्या करके खुद आत्महत्या कर रहे हैं . लोगों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है . डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस आदि के दाम कई बार बढाने के बाद अब लोग और परेशान हो चुके हैं.जीने के लिएजितनी भी वस्तुएं अति आवश्यक हैं, वे सभी आम इंसान की पहुच से बाहर हो चुकी हैं. ऐसे में शरद पवार ने यहबयान देकर और भी आग में घी डालने का काम किया है कि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के बाद शक्कर के भाव भीसरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिए जाने चाहिए . कृषि मंत्रालय चीनी की कीमतों को बाजार पर छोड़ देने के पक्ष में है। कृषि मंत्री शरद पवार ने इसकी वकालत करते हुए कहा है कि चीनी कीमतों से सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। पवार ने कहा कि मंत्रालय इस बारे में कैबिनेट को प्रस्ताव भेजेगा। यदि पवार की सलाह पर अमल हुआ तो अगस्त तक इस बारे में फैसला आ सकता है।
पवार का कहना है कि जुलाई से अब तक चीनी के दामों में कमी के कारण चीनी कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। जिस तरह तेल की कीमतों को बाजार पर छोड़ दिया गया है। उसी तरह चीनी के दामों से भी सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। उनका तर्क है कि मिल मालिक खुद तय करें कि कितनी चीनी बाजार में आनी चाहिए। यदि पवार की सलाह पर अमल किया जाता है तो तो चीनी के दामों में उछाल आ सकता है।
निश्चित ही इससे एक बार फिर दलालों और जमाखोरों के हौंसले बुलंद होंगे. भाव बढ़ेंगे . और अगर कहीं इसप्रस्ताव को अमल में लाया गया तो शक्कर के भाव भी आसमान पर पहुँच जायेंगे और दलालों को अपनी मनमानीकरने की पूरी छूट मिल जायेगी . मगर इस सबसे को अगर कोई चिंता कोई दुःख , कोई दर्द है तो बस इतना कि वे अपनी पार्टी के संगठन को बढाने के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं. उनकी इच्छा पार्टी संगठन के काम के लिए ज्यादा समय देने की है. उनका कहना है कि ' मुझे गिल्टी फील हो रही है कि लंबे समय से राज्य के कई जिलों में नहीं जा पाने की वजह से नई जनरेशन से मैं जुड नहीं पा रहा हूँ ' . क्या ऐसे लापरवाह और निष्क्रिय मंत्री को एक पल , सिर्फ एक पल के लिए भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार है ? जों व्यक्ति सारे देश का मंत्री होने के बावजूद सिर्फ एक पार्टी के संगठन को प्राथमिकता देता हो, केन्द्रीय मंत्री होने पर भी सिर्फ एक राज्य की परवाह करता हो , वो भी उस राज्य के हितों की परवाह नहीं , सिर्फ पार्टी हित में मिलने की परवाह , ऐसे मंत्री को झेलना देश के दुर्भाग्य के सिवाय और क्या हो सकता है ? मन मोहन सिंह जी, इतनी मजबूरी भी ठीक नहीं है. माना कि सरकार चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों की उल्टी -सीधी बातें मानना जरूरी होता है . मगर जब सरकार देशवासियों के खिलाफ काम कर रही हो तो ऐसी सरकार को विदा करना जरूरी है है. और राजी रिश्ता नहीं ... लात मारकर ....
-मुकेश मासूम
Thursday, July 8, 2010
क्या दलित इंसान नहीं हैं
क्या दलित इंसान नहीं हैं ?
यूनिसेफ के सहयोग से दलित आर्थिक आदोलन और नेशनल कैंपेन आन दलित ह्यूमन राइट्स ने मिलकर एक अध्ययन किया है। यह अध्ययन स्कूलों में दलित बच्चों की स्थिति का जायजा लेने के मकसद से किया गया। इसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं।
इस रपट से एक बात तो बिल्कुल साफ हो जाती है कि अभी भी भारत का समाज दलितों के प्रति घृणा का भाव ही रखता है। इस रपट में जिन-जिन राच्यों का अध्ययन किया गया, उन सब राच्यों के स्कूली बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव बस इसलिए किया गया, क्योंकि वे दलित थे। इस रपट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भेदभाव की वजह से बड़ी संख्या में दलित बच्चे अपने आगे की पढ़ाई बरकरार नहीं रख पाते।इस रपट को चार राच्यों के 94 स्कूलों की हालत का अध्ययन करके तैयार किया गया है। दलित बच्चों के साथ हुए भेदभाव के उदाहरणों से यह रपट भरी पड़ी है। उन उदाहरणों के जरिए एक खास तरह की मानसिकता में जकड़े समाज को समझा जा सकता है। इस रपट को तैयार करने वाले राजस्थान के एक स्कूल में गए। वहा जाकर उन्होंने पूछा कि किस बच्चे को यहा के शिक्षक अक्सर पीटते हैं और क्यों पीटते हैं? इस सवाल का जवाब तुरंत वहा मौजूद बच्चों ने दिया। यह जवाब ऐसा है, जो खुद को सभ्य कहने वाले समाज का असली चेहरा दिखाता है। बच्चों ने इस सवाल के जवाब में तुरंत एक ऐसे बच्चे की ओर इशारा किया, जो दलित था। उन बच्चों ने यह भी कहा कि दलित होने के नाते वह निशाने पर रहता है।
यह मामला केवल राजस्थान का नहीं है। दूसरे राच्यों में भी इसी तरह की स्थिति है। बिहार का उदाहरण लिया जा सकता है।
बिहार की ही एक दलित छात्रा ने बताया कि शिक्षक हम लोगों यानी दलित बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं देते। हमें जमीन पर बैठाया जाता है।
हालात की बदहाली का आलम यह है कि मिड-डे मील में मिलने वाले भोजन में भी दलित छात्रों के साथ भेदभाव बरता जा रहा है। उन्हें जो खाना मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता सही नहीं होती है। इसके अलावा दलित बच्चों को भरपेट भोजन भी मिड-डे मील योजना के तहत नहीं मिल रहा है। इस तरह की शिकायत कई बच्चों ने की।
बिहार के दलित बच्चों ने यह भी शिकायत की कि उन्हें कक्षा में सबसे पीछे बैठने को कहा जाता है। इसके अलावा शिक्षक उनका होमवर्क भी नहीं जाचते हैं। इस रपट में यह भी बताया गया है कि ज्यादातर स्कूल वैसी जगहों पर हैं, जो उच्च जाति के लोगों के दबदबे वाला क्षेत्र है। बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में खास तौर पर ऐसी स्थिति है।दलितों की बारात में व्यवधान पैदा करना , दुल्हे को घोड़े पर नहीं बैठने देना ,दलितों को सार्वजनिक रूप से चारपाई पर नहीं बैठने देना आदि पुराने मसले हैं. ताजा मामला उतार प्रदेश का है. यहाँ के रमाबाई नगर स्थित संदलपुर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय जसापुर के सवर्ण बच्चों ने गांव की दलित महिला के हाथ का बना मिड-डे-मील लेने से इंकार कर दिया। लगातार दूसरे दिन खाने से साफ़ इनकार कर दिया गया. इस मामले की जांच अपर जिलाधिकारी (एडीएम) से कराने को कहा है। शिक्षा विभाग की ओर से बीएसए जांच करेंगे। प्राथमिक विद्यालय जसापुर में 135 बच्चे पंजीकृत हैं। इनमें 31 बच्चे दलित, 19 पिछड़े व 85 सामान्य वर्ग के हैं। बताया गया है कि पिछले सत्र में यहां मिड-डे-मील बनाने के लिये दो सवर्ण महिलाओं मीरा व सुमन की तैनाती थी। हाल ही में यहां पर दलित वर्ग की महारानी व शांती को भी खाना बनाने के लिये ग्राम पंचायत द्वारा अधिकृत किया गया। उक्त दलित महिलाओं द्वारा खाना बनाने से यहां के 85 सवर्ण बच्चों ने मंगलवार से मिड-डे-मील लेने से इंकार कर दिया। यह घटना दर्शाती है कि आज भी किस तरह दलित विरोधी मानसिकता फल फूल रही है. इस नफरत का आखिर आधार क्या है ? अगर मामला दो महिलाओं को रोजगार मिलने का होता तो इस स्कूल में पहले से ही दो सवर्ण महिलाएं भोजन बनाने के काम में नियुक्त हैं. लेकिन यह ,मामला छुआछात का है . यह कैसी विडंबना है कि लोग कुत्ते-बिल्लियों को पाल सकते हैं, उनसे प्यार कर सकते हैं , मगर जों लोग सेवा करते हैं, वफादारी करते हैं. श्रम करते हैं उनके स्पर्श से भी कतराते हैं. क्या दलित इंसान नहीं हैं ? इस तरह की घटनाएं सभ्य और स्वस्थ समाज के लिए कलंक हैं. सभी लोगों को मिलकर भारत से इस कलंक को मिटाना होगा . उत्तर प्रदेश की मुख्मंत्री मायावती भी दलित समाज से ताल्लुक रखती हैं , वे इस असमानता के दर्द से भलीभांति परिचित हैं, उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार है. अगर वे अब भी इस जख्म का इलाज नहीं तलाश पाईं तो फिर कभी नहीं तलाश पाएंगी .
Wednesday, July 7, 2010
Sunday, July 4, 2010
लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद का एलान किया है । ये अलग बात है कि बंद को कानूनी संरक्षण नहीं मिला है , अर्थात अदालत ने बंद पर बंद लगा रखा है । इसके बावजूद पहली बार विपक्षी पार्टियों ने एकता दिखाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े आन्दोलन किया है । कांग्रेस की जन विरोधी नीतियों के कारण सिर्फ अमीरों की चांदी हो रही है। माध्यम वर्ग के लोग गरीब हो रहे हैं और गरीब अब गरीबी की रेखा के नीचे आ गए हैं। और जों गरीबी की रेखा के नीचे बसर कर रहे हैं वे न ज़िंदा हैं , न मुर्दा हैं। बस किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे हैं। वे भूखे हैं, उनके पास रहने के लिए न अच्छे घर हैं, न पहनने के लिए अच्छे वस्त्र । वे बीमार होने पर अपने लिए न तो ठीक से इलाज करवा पा रहे हैं, और न अपने बच्चों को शिक्षित कर पा रहे हैं। इसी कारण उनके बच्चे बचपन में ही श्रम करने के लिए मजबूर हैं। सिर्फ उनकी ही नहीं , बल्कि उनकी आने वाली कई पीढियां गरीबी, भुखमरी , अशिक्षा , अज्ञान और अन्धकार की शिकार हो रही हैं । 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ' का नारा देकर , देश से गरीबी खत्म करने का वादा कर सरकार बनाने वाली यू पी ऐ सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। वह रोजाना नए टेक्स लाद रही है , रोजाना किसी न किसी चीज के भाव बढ़ा रही है। पेट्रोल और डीजल के दाम तो बार -बार और हर बार बढाए जा रहे हैं इससे अती आवश्यक चीजों के भाव भई आसमान छूने लगे हैं । सुई से लेकर जहाज तक के भाव बढ़ चुके हैं। अगर किसीको फायदा हो रहा है तो वो हैं अमीर लोग तथा दलाल । अमीर इस सरकार में और भी अमीर बनते जा रहे हैं। केन्द्र की सरकार सिर्फ अमीरों के हित में क़ानून बना रही है। उसकी नीतियों में अमीरों का हित ही सर्वोपरि है। कोई कांग्रेस से यह पूछने के लिए तैयार नहीं है कि अब कहाँ गए जादुई राहुल गांधी , गरीबों और दलितों के मसीहा बनने का ढोंग रचने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी केन्द्र सरकार के इन जन विरोधी फैसलों का विरोध क्यों नहीं करते । वे सिर्फ दलितों और गरीबों की मजबूरी देखने जाते हैं। सिर सपाटे के लिए शौक़ीन राहुल गांधी को दलितों के आंसू देखना बहुत अच्छा लगता है मगर उनके आंसू पौंछकर उन्हें हंसाने का काम कौन करेगा ? इस भारत देश पर केन्द्र और राज्यों में ज्यादातर सरकारें कांग्रेस की रही हैं। आजादी के ६३ साल बाद भी लोग भूखे, नंगे , कमजोर , बेघर , बेबस, बेकार और गरीब क्यों हैं ? इस सवाल का जवाब कांग्रेस से बेहतर कौन दे पायेगा ? मगर राहुल गांधी कांग्रेस से पूछने के बजाय उन गरीबों और दलितों के जख्मों पर नमक छिडकने जाते हैं जिनको गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की सौगात खुद कांग्रेस ने ही दी है. राष्ट्रपति जी भी खामोश हैं. उनके विषय में क्या कहें , वी आदरणीय हैं, समाननीय हैं. न वे कुछ कह सकतीं और न आम आदमी ही उनके लिए कुछ कह सकता है. क्या यही लोकतंत्र है ? क्या यही है लोगों द्वारा , लोगों के लिए , लोगों का शासन ? कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां देश के साथ बहुत गंदा खेल खेल रही हैं. जब भोपाल गैस त्रासदी में यह सिद्ध हो गया कि लगभग २५ हजार निर्दोषों का हत्यारा एंडरसन तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की सहमति से यहाँ से भागने में कामयाब हो गया था तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देश का ध्यान बांटने के लिए मंहगाई का धमाका कर दिया . पहले रोजाना भोपाल गैस त्रासदी और उसके दोषियों से कांग्रेस के मधुर संबंधों की ख़बरें रोजाना पहले पेज की शोभा बढ़ाया करती थीं अब वे गायब हो गयीं. क्या इस तरह की हरकतों से कांग्रेसियों का पाप कम हो सकता है ? क्या इससे सच्चाई बदल सकती है ?क्या देश कभी ये भूल पायेगा कि जब भोपाल में सोते- सोते कई हजार एक साथ काल के गाल में समा गए तो उस समय मध्य प्रदेश और केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकारें थीं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और केन्द्र में स्वर्गीय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इन्हीं दोनों ने भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी एंडरसन को उसके देश भगाने में मदद की और सी बी आई के सहयोग से इस केस को कमजोर किया ।जिसके कारण एंडरसन तो फरार हो गया और बाकी आरोपियों को मामूली सी सजा हो पाई। इसका जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के दाम बढाने के पीछे कांग्रेस की मंशा यह भी थी कि जनता का ध्यान भोपाल प्रकरण से हट जाएगा। अब विपक्ष ने एकजुट होकर इस जनविरोधी सरकार के खिलाफ एक दिन के भारत बंद का जों एलान किया है , इसकी गूँज से केन्द्र की बहरी सरकार के कान खुल पायें ये मुमकिन नहीं दिखता , इसलिए विपक्ष को जब तक संघर्ष करना होगा तब तक कि इस सरकार का पतन नहीं हो जाता
Saturday, July 3, 2010
Friday, July 2, 2010
छत्रपति शाहूजी महाराज नगर , कांग्रेस के पेट में दर्द क्यों ?
Thursday, July 1, 2010
जनविरोधी सरकार का सन्देश , आंकड़े खाएं, आंकडें पियें ....
समीक्षा अवधि में दालों, फलों एवं दूध जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी बनी रहीं. विश्लेषकों का कहना है कि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट से सरकार को कुछ राहत मिलेगी. हालांकि यह राहत कुछ ही समय के लिए होगी क्योंकि हाल ही में डीजल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी का असर आगामी सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर देखने को मिलेगा.
योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणब सेन ने कहा, ‘खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में तेज गिरावट की मुख्य वजह बीते साल की इसी अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति का आधार उंचा होना है अन्यथा ज्यादातर खाद्य वस्तुएं महंगी बनी हुई हैं.’ सालाना आधार पर आलू करीब 40 प्रतिशत सस्ता हुआ, जबकि प्याज की कीमतों में सात प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई.