केन्द्र की जनविरोधी सरकार लगातार , बार- बार जनहित के बजाय जन विरोधी फैसले लेती जा रही है , जिससे आम लोगों का जीना दूभर हो रहा है . रही -सही कसर उलटे-सीधे आंकड़े पेश कर निकाली जा रही है . भ्रमित करने के लिए झूठे आंकड़े बताए जा रहे हैं . टी.वी चैनलों से 'मिलकर' उन्हें ब्रेकिंग न्यूज बताकर टेलीकास्ट करवाया जा रहा है. कल टी.वी . की ऐसी ही ब्रेकिंग न्यूज देखकर माता ठनका . लगभग सभी खबरिया चैनल दहाड़-दहाड़कर बता रहे थे कि मोटे अनाज और सब्जियों की कीमतों में हल्की कमी के साथ-साथ पिछले साल के तुलनात्मक आंकड़ों के प्रभाव से 19 जून को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान खाद्य वस्तुओं पर आधारित मुद्रास्फीति 3.98 प्रतिशत घटकर 12.92 प्रतिशत पर आ गई जो इससे पूर्व सप्ताह 16.90 प्रतिशत पर थी.
समीक्षा अवधि में दालों, फलों एवं दूध जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी बनी रहीं. विश्लेषकों का कहना है कि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट से सरकार को कुछ राहत मिलेगी. हालांकि यह राहत कुछ ही समय के लिए होगी क्योंकि हाल ही में डीजल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी का असर आगामी सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर देखने को मिलेगा.
योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणब सेन ने कहा, ‘खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में तेज गिरावट की मुख्य वजह बीते साल की इसी अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति का आधार उंचा होना है अन्यथा ज्यादातर खाद्य वस्तुएं महंगी बनी हुई हैं.’ सालाना आधार पर आलू करीब 40 प्रतिशत सस्ता हुआ, जबकि प्याज की कीमतों में सात प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई.
साप्ताहिक आधार पर दालों की कीमतों में 0.47 प्रतिशत की नरमी आई. हालांकि सालाना आधार पर दालें 31.57 प्रतिशत महंगी हैं. खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते मई में संपूर्ण मुद्रास्फीति 10.16 प्रतिशत रही. साल के ज्यादातर समय खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 16 प्रतिशत के स्तर से उपर रही. कार्यालय में भी जिसने यह खबर देखी , सूनी वह हैरान था. जिस मंहगाई में लोगों के होठों की हंसी तक छीन ली है, दुधमुंहे बच्चों से दूध छीन लिया , गरीबों के बच्चों से खिलौने छीन लिए , बीमारों से दवा तक छीन लीं, दो जून का पेट भर खाना छीन लिया , उन लोगों को बताया जा रहा है कि मंहगाई कम हो गयी है. यह देश के साथ कितना बड़ा क्रूर मजाक है और टी.वी . चैनल वाले आँख और बुद्धि दोनों पर पट्टी बंधे यह 'खुशखबरी ' सुनाने में मस्त और व्यस्त थे. ताकि उनकी टी.आर.पी. बढ़ सके . प्रधानमंत्री के झूठे वादे ( जल्द ही मंहगाई पर नियंत्रण पा लिया जाएगा ) को सच होने के इन्तजार में की आश में जब लोगों को यह पता चलेगा कि वह काम हो गया , यानि कि मंहगाई कम हो चुकी है तो जाहिर है वे टी.वी. पर आँखें गड़ाएंगे ही. इसी नब्ज को पकड़ कर यह ब्रेकिंग न्यूज दिखाई जा रही थी या फिर लिफ़ाफ़े का कमाल था , कुछ पता नहीं . मगर यह तय है कि कई गुना बढ़ चुकी मंहगाई को कम होते बताता यह समाचार निहायत झूठा, निराधार , तथ्यहीन और अस्तित्वहीन था.लगता है योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणव सेन को सिर्फ इसी बात के लिए तनख्वाह दी जाती है कि किसी भी तरह से बड़ी हुई मंहगाई को कम करके बताओ. चाहे इसके लिए अती आवश्यक सैकड़ों में चीजों से किसी एक या दो चीजों में थोड़ा सा भाव पहले से कम क्यों न कर दिया जाए. इस तरह की मक्कारी और बाजीगरी से आखिर क्या होने वाला है. जब बाजार में पहुचते हैं तो वहाँ सरकार की सारी पोल पट्टी खुल जाती है. क्या अब जन विरोधी सरकार यह सन्देश देना चाहती है कि जनता अब आंकड़े खाए, आंकड़े पिए , आंकड़े ओढ़े और आंकड़े बिछाये ?कांग्रेस के नेता तो करोड़ों अरबों में खेलते हैं. कांग्रेस का कोई भी छोटे से छोटा नेता ऐसा नहीं होगा जिसके पास धन की कमी हो . उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता , अगर डीजल सौ रुपये लीटर और पेट्रोल दो सौ रुपये लीटर भी कर दोगी तो कांग्रेस नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ता , मगर जों इंसान अथक मेहनत करने पर भी महीने में सिर्फ हजार -दो हजार ही कमा पाते हैं,या जों बेरोजगार हैं. या फिर वे विधवाएं , जिनका कोई संभालने वाला नहीं है. वे अनपढ़ जों महनत मजदूरी कर किसी तरह से महीने में सिर्फ दस दिन काम पाते हैं , वे अपने परिवार का पेट कैसे भरें ? सिर्फ पेट भरने भर से भी तो जिंदगी नहीं चलती . और भी बहुत से खर्चे हैं. बीमारी है, सामाजिक रीती -रिवाज हैं. बच्चों की पढाई है, शादी -ब्याह , मौत आदि है . ये सब भी करने पड़ते हैं . तो ऐसे सच्चे ,अच्छे और मेहनती लोग क्या सिर्फ आंकड़ों के बल पर ही जियें ?
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