Friday, July 9, 2010

धत्त तेरे की , शरद पवार को रोना भी आया तो किस पर

धत्त तेरे की , शरद पवार को रोना भी आया तो किस पर ?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष , अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष , केन्द्रीय कृषि , खाद्य एवं नागरिकआपूर्ति ,पशुपालन, दुग्ध विकास और ग्राहक संरक्षण मंत्री शरद पवार उम्र और अनुभव के आधार पर बहुतसीनियर हैं, राष्ट्रीय राजनीति में वे कई सालों से शिखर पर हैं . इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र के वे एकमात्रताकतवर राष्ट्रीय नेता हैं. उनके प्रति मेरे मन में पूरा आदर -सम्मान है , लेकिन आजकल उनके बयानों और कार्योंकी अगर समीक्षा की जाए तो सर्वथा निंदनीय है . आज देश में आम लोगों का जीना मुहाल हो गया गया है. शरदपवार के गृह राज्य महाराष्ट्र में हजारों किसान आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं . देश में मेंभारी मंहगाई के चलते त्राहि मम मंची हुई है. कितने ही लोग गरीबी , बेरोजगारी , मंहगाई , कर्जबाजारी के कारणअपने बच्चों की ह्त्या करके खुद आत्महत्या कर रहे हैं . लोगों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है . डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस आदि के दाम कई बार बढाने के बाद अब लोग और परेशान हो चुके हैं.जीने के लिएजितनी भी वस्तुएं अति आवश्यक हैं, वे सभी आम इंसान की पहुच से बाहर हो चुकी हैं. ऐसे में शरद पवार ने यहबयान देकर और भी आग में घी डालने का काम किया है कि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के बाद शक्कर के भाव भीसरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिए जाने चाहिए . कृषि मंत्रालय चीनी की कीमतों को बाजार पर छोड़ देने के पक्ष में है। कृषि मंत्री शरद पवार ने इसकी वकालत करते हुए कहा है कि चीनी कीमतों से सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। पवार ने कहा कि मंत्रालय इस बारे में कैबिनेट को प्रस्ताव भेजेगा। यदि पवार की सलाह पर अमल हुआ तो अगस्त तक इस बारे में फैसला आ सकता है।

पवार का कहना है कि जुलाई से अब तक चीनी के दामों में कमी के कारण चीनी कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। जिस तरह तेल की कीमतों को बाजार पर छोड़ दिया गया है। उसी तरह चीनी के दामों से भी सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। उनका तर्क है कि मिल मालिक खुद तय करें कि कितनी चीनी बाजार में आनी चाहिए। यदि पवार की सलाह पर अमल किया जाता है तो तो चीनी के दामों में उछाल आ सकता है।
निश्चित ही इससे एक बार फिर दलालों और जमाखोरों के हौंसले बुलंद होंगे. भाव बढ़ेंगे . और अगर कहीं इसप्रस्ताव को अमल में लाया गया तो शक्कर के भाव भी आसमान पर पहुँच जायेंगे और दलालों को अपनी मनमानीकरने की पूरी छूट मिल जायेगी . मगर इस सबसे को अगर कोई चिंता कोई दुःख , कोई दर्द है तो बस इतना कि वे अपनी पार्टी के संगठन को बढाने के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं. उनकी इच्छा पार्टी संगठन के काम के लिए ज्यादा समय देने की है. उनका कहना है कि ' मुझे गिल्टी फील हो रही है कि लंबे समय से राज्य के कई जिलों में नहीं जा पाने की वजह से नई जनरेशन से मैं जुड नहीं पा रहा हूँ ' . क्या ऐसे लापरवाह और निष्क्रिय मंत्री को एक पल , सिर्फ एक पल के लिए भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार है ? जों व्यक्ति सारे देश का मंत्री होने के बावजूद सिर्फ एक पार्टी के संगठन को प्राथमिकता देता हो, केन्द्रीय मंत्री होने पर भी सिर्फ एक राज्य की परवाह करता हो , वो भी उस राज्य के हितों की परवाह नहीं , सिर्फ पार्टी हित में मिलने की परवाह , ऐसे मंत्री को झेलना देश के दुर्भाग्य के सिवाय और क्या हो सकता है ? मन मोहन सिंह जी, इतनी मजबूरी भी ठीक नहीं है. माना कि सरकार चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों की उल्टी -सीधी बातें मानना जरूरी होता है . मगर जब सरकार देशवासियों के खिलाफ काम कर रही हो तो ऐसी सरकार को विदा करना जरूरी है है. और राजी रिश्ता नहीं ... लात मारकर ....
-मुकेश मासूम

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