Sunday, July 4, 2010

भारत बंद की गूँज से केन्द्र की बहरी सरकार के कान खुलेंगे ?
लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद का एलान किया है । ये अलग बात है कि बंद को कानूनी संरक्षण नहीं मिला है , अर्थात अदालत ने बंद पर बंद लगा रखा है । इसके बावजूद पहली बार विपक्षी पार्टियों ने एकता दिखाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े आन्दोलन किया है । कांग्रेस की जन विरोधी नीतियों के कारण सिर्फ अमीरों की चांदी हो रही है। माध्यम वर्ग के लोग गरीब हो रहे हैं और गरीब अब गरीबी की रेखा के नीचे आ गए हैं। और जों गरीबी की रेखा के नीचे बसर कर रहे हैं वे न ज़िंदा हैं , न मुर्दा हैं। बस किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे हैं। वे भूखे हैं, उनके पास रहने के लिए न अच्छे घर हैं, न पहनने के लिए अच्छे वस्त्र । वे बीमार होने पर अपने लिए न तो ठीक से इलाज करवा पा रहे हैं, और न अपने बच्चों को शिक्षित कर पा रहे हैं। इसी कारण उनके बच्चे बचपन में ही श्रम करने के लिए मजबूर हैं। सिर्फ उनकी ही नहीं , बल्कि उनकी आने वाली कई पीढियां गरीबी, भुखमरी , अशिक्षा , अज्ञान और अन्धकार की शिकार हो रही हैं । 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ' का नारा देकर , देश से गरीबी खत्म करने का वादा कर सरकार बनाने वाली यू पी ऐ सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। वह रोजाना नए टेक्स लाद रही है , रोजाना किसी न किसी चीज के भाव बढ़ा रही है। पेट्रोल और डीजल के दाम तो बार -बार और हर बार बढाए जा रहे हैं इससे अती आवश्यक चीजों के भाव भई आसमान छूने लगे हैं । सुई से लेकर जहाज तक के भाव बढ़ चुके हैं। अगर किसीको फायदा हो रहा है तो वो हैं अमीर लोग तथा दलाल । अमीर इस सरकार में और भी अमीर बनते जा रहे हैं। केन्द्र की सरकार सिर्फ अमीरों के हित में क़ानून बना रही है। उसकी नीतियों में अमीरों का हित ही सर्वोपरि है। कोई कांग्रेस से यह पूछने के लिए तैयार नहीं है कि अब कहाँ गए जादुई राहुल गांधी , गरीबों और दलितों के मसीहा बनने का ढोंग रचने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी केन्द्र सरकार के इन जन विरोधी फैसलों का विरोध क्यों नहीं करते । वे सिर्फ दलितों और गरीबों की मजबूरी देखने जाते हैं। सिर सपाटे के लिए शौक़ीन राहुल गांधी को दलितों के आंसू देखना बहुत अच्छा लगता है मगर उनके आंसू पौंछकर उन्हें हंसाने का काम कौन करेगा ? इस भारत देश पर केन्द्र और राज्यों में ज्यादातर सरकारें कांग्रेस की रही हैं। आजादी के ६३ साल बाद भी लोग भूखे, नंगे , कमजोर , बेघर , बेबस, बेकार और गरीब क्यों हैं ? इस सवाल का जवाब कांग्रेस से बेहतर कौन दे पायेगा ? मगर राहुल गांधी कांग्रेस से पूछने के बजाय उन गरीबों और दलितों के जख्मों पर नमक छिडकने जाते हैं जिनको गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की सौगात खुद कांग्रेस ने ही दी है. राष्ट्रपति जी भी खामोश हैं. उनके विषय में क्या कहें , वी आदरणीय हैं, समाननीय हैं. न वे कुछ कह सकतीं और न आम आदमी ही उनके लिए कुछ कह सकता है. क्या यही लोकतंत्र है ? क्या यही है लोगों द्वारा , लोगों के लिए , लोगों का शासन ? कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां देश के साथ बहुत गंदा खेल खेल रही हैं. जब भोपाल गैस त्रासदी में यह सिद्ध हो गया कि लगभग २५ हजार निर्दोषों का हत्यारा एंडरसन तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की सहमति से यहाँ से भागने में कामयाब हो गया था तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देश का ध्यान बांटने के लिए मंहगाई का धमाका कर दिया . पहले रोजाना भोपाल गैस त्रासदी और उसके दोषियों से कांग्रेस के मधुर संबंधों की ख़बरें रोजाना पहले पेज की शोभा बढ़ाया करती थीं अब वे गायब हो गयीं. क्या इस तरह की हरकतों से कांग्रेसियों का पाप कम हो सकता है ? क्या इससे सच्चाई बदल सकती है ?क्या देश कभी ये भूल पायेगा कि जब भोपाल में सोते- सोते कई हजार एक साथ काल के गाल में समा गए तो उस समय मध्य प्रदेश और केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकारें थीं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और केन्द्र में स्वर्गीय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इन्हीं दोनों ने भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी एंडरसन को उसके देश भगाने में मदद की और सी बी आई के सहयोग से इस केस को कमजोर किया ।जिसके कारण एंडरसन तो फरार हो गया और बाकी आरोपियों को मामूली सी सजा हो पाई। इसका जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के दाम बढाने के पीछे कांग्रेस की मंशा यह भी थी कि जनता का ध्यान भोपाल प्रकरण से हट जाएगा। अब विपक्ष ने एकजुट होकर इस जनविरोधी सरकार के खिलाफ एक दिन के भारत बंद का जों एलान किया है , इसकी गूँज से केन्द्र की बहरी सरकार के कान खुल पायें ये मुमकिन नहीं दिखता , इसलिए विपक्ष को जब तक संघर्ष करना होगा तब तक कि इस सरकार का पतन नहीं हो जाता

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