आमिर खान, ये कैसा न्याय है ?
आमिर खान की आने वाली फिल्म पीपली लाइव एक बार फिर से चर्चा में है . आमिर खान की हर फिल्म रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो जाती है इसलिए 'एक बार
फिर चर्चा में है ' का जिक्र इया गया है . इससे पहले उनकी थ्री ईडियट फिल्म आयी थी जों चेतन भगत के उपन्यास 'थ्री मिस्टेक्स इन माई लाइफ ' पर आधारित थी
. कहानी के मूल लेखक चेतन भगत ने कई गंभीर आरोप लगाकर फिल्म को खूब पब्लिसिटी दिलाई थी .इस बार कुछ कारण दूसरे हैं. मध्य प्रदेश के एक लोक गायक
गया प्रसाद प्रजापति का लिखा गीत -'सखी सिया तो खूब ही कमात हैं, मंहगाई डायन खाए जात है. ' का इस्तेमाल इस फिल्म में किया गया है . इसमें गयाप्रसाद के १०
अन्य साथियों ने भी आवाज दी है . गया प्रसाद ने आरोप लगाया था कि आमिर खान प्रोडक्शन के लोगों ने सिर्फ ११०० रुपये देकर एक कोरे कागज़ पर उनसे हस्ताक्षर
करवा लिए . जबकि यह गाना फिल्म की रिलीज से पहले ही हिट हो गया. तब मीडिया को उसके लेखक की सुध आयी , और जब गया प्रसाद ने अपने और अपनी टीम
के साथ हुयी धोखाधड़ी का बखान किया तब आमिर खान का एक ऐसा चेहरा उजागर हुआ जिसे लोग नहीं जानते , क्योंकि जब-तब (खासकर तब , जब उनकी फिल्म
रिलीज के कगार पर होते हैं) वे प्रेस के सामने समाज हित और देश हित की मीठी -मीठी बातें करते हैं . मगर असलियत ये कि उनके प्रोडक्शन ने गरीब कलाकारों का
आर्थिक शोषण किया. आमिर खान फिल्म जगत के लिए नए तो हैं नहीं जों यह कहकर बच जायेंगे कि उन्हें ज्ञान नहीं है कि गीतकारों को मुंबई में कितना पारिश्रमिक दिया
जाता है . इसके बावजूद महज ग्यारह सौ रुपये में ११ लोगों से काम करवाना धोखाधड़ी के अलावा और क्या हो सकता है ? यह तो सरासर अन्याय है . फिल्म जगत में
कलाकारों के शोषण की बात कोई नई नहीं है. शारीरिक , आर्थिक मानसिक हर तरह का शोषण यहाँ पर किया जाता है. मगर संघर्ष कर रहे गरीब कलाकारों की आवाज
नक्कारखाने में तूती की तरह कैद होकर रह जाती है . चूंकि यह मामला एक हिट गीत से जुड गया इसलिए गयाप्रसाद को आमिर खान ने मुंबई बुलाकर उन्हें डेढ़ लाख का
पारिश्रमिक दिया और उनकी शेष टीम को ५--५० हजार रुपये दिए. 'मंहगाई डायन ' समय की नब्ज को पकड़कर लिखा गया है. विपक्षी पार्टियों ने भी इस पर हो हल्ला मचा
दिया , इसलिए यह लोगों की नजर में जल्दी से आ गया. कुछ लोग तो यह भी मंशा जाहिर कर रहे हैं कि आमिर खान जानबूझकर इस तरह के विवाद खड़े करते हैं , उन्होंने
मीडिया की वह नब्ज पकडली है , जिसे टटोलकर अपनी मनचाही बात कभी भी कहलवाई जा सकती है . दरअसल फिल्म बनाने के बाद उसके प्रचार का मामला बेहद पेचीदा
होता है . टी.वी. विज्ञापन,अखबारों में वियापन, होर्डिंग्स आदि में करोड़ों का खर्च आता है . फिर भी पब्लिसिटी ठीक तरह से नहीं हो पाती , लेकिन अगर किसी फिल्म को
रिलीज से पहले ही विवादित बना दिया जाए तो मामला आसान हो जाता है . फिल्म के शौक़ीन लोग यह जानने के लिए उत्सुक होते हैं कि आखिर विबाद क्यों हुआ ?
फिल्म बनाने वाले लोग इसीकाफायदा उठाकर प्रचार के लिए इस तरह केहथकंडे अपनाते हैं. कहीं आमिर खान भी तो इसी प्रचलन का शिकार तो नहीं हो रहे हैं ? वरना
अकेले गयाप्रसाद की नहीं यह उन हजारों लोगों की बात है , जिन्हें उनका वाजिब हक नहीं दिया जाता है. आमिर खान, ये कैसा न्याय है ? जब मामला तूल पकड़ा तब
आपने गरीब और होनहार कलाकार को पारिश्रमिक दिया, क्या आपकी प्रोडक्शन के लोगों ने आपको बिनाबताये ये सब कर दिया ? क्या आपको नहीं मालूम था कि गया प्रसाद का
गीत आपकी फिल्म के लिए लिया गया है ? सिर्फ आदर्शवादी बातें कहने भर से कुछ होने वाला नहीं है .उसके लिए उच्च आदर्श भी प्रस्तुत करना पड़ता है .
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