उद्दंड होते जन प्रतिनिधि
बिहार की विधान सभा में जों कुछ हुआ उसे हिन्दुस्तान सहित सारे संसार ने देखा. आज का युग सूचना क्रान्ति का युग है. पलक झपकते ही कोई भी समाचार समस्त विश्व की वेबसाईट पर दिखने लगता है. टी.वी . चैनल द्वारा सब कुछ बहुत जल्द ही दिखा दिया आजाता है . बिहार विधान सभा में जनता के चुने हुए विधायकों को जिस तरह मारपीट करते, गाली -गलौच करते,विधान सभा अध्यक्ष की तरफ चप्पल फेंकते , महिला विधायकों द्वारा मार्शलों पर गमलों से प्रहार करते हुए देखा, उससे लोकतंत्र का मंदिर शर्मशार हो गया. हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही दो दिन के लिए स्थगित कर दी गई है। विधायनसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने विपक्ष के 67 विधायकों को कार्यवाही बाधित किए जाने और गलत व्यवहार के चलते पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया।अध्यक्ष ने विपक्ष के 67 विधायकों को इस सत्र के लिए निलंबित कर दिया है। इनमें राजद के 42, एलजेपी के 11, कांग्रेस के 02, सीपीआई (एमएल) के 04, बीएसपी के 02, सीपीएम के 02, सीपीआई के ०४ निर्दलीय 02 हैं।राजद अध्यक्ष अब्दुल बार सिद्दीकी और सदन में राजद के उप नेता शकील अहमद निलंबितों में शामिल हैं। बिहार हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री समेत 11 लोगों के खिलाफ 11 हजार ४ सौ १२ करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी मामले की जांच सीबीआई को सौपी है। इसके बाद से विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। हालत ये है कि धरने पर बैठे विधायकों को बाहर निकालने के लिए मार्शलों का सहारा लेना पड़ा। कांग्रेस की विधायक कुमारी ज्योति ने सदन के बाहर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया। उन्होंने भाजपा नेताओं पर गुस्साते हुए मार्शलों पर गमले उठाकर फेंके और वहीं जमीन पर लेट गई।विधायक कोई आम आदमी नहीं होता, उसे लाखों मतदाता चुनते हैं और उससे उच्च आदर्शों, उचित व्यवहार और सज्जनता की अपेक्षा रखते हैं.और जब वही विधायक सदन में जाकर गलत हरकत करते हैं तो आम इंसान अपने आपको ठगा सा महसूस करता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना अच्छी बात है. अपने किसी और अधिकार को पाने के लिए कोई भी आन्दोलन करना चाहिए , अगर नीतिश कुमार ने या उनके साथियों ने कोई गलत काम किया है . पैसों का गबन किया है तो अवश्य ही उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और अगर नहीं होती तो हर किसको को शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार है , मगर क़ानून हाथ में लेकर सदन का अपमान करना, उद्दंड होकर विधान सभा की छवि धूमल करना किसी भी हालत में उचित नहीं है.विधायकों को यह अधिकार बिलकुल नहीं है कि वे लोकतंत्र की मर्यादा को ही नष्ट करदें. यह पहली बार नहीं हुआ है . इससे पहले विभिन्न प्रदेशों के विधान भवन में माननीयों द्वारा मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं. खूब जूता चप्पल चले हैं, लेकिन यह सिलसिला अब बंद होना चाहिए . सिर्फ कुछ दिनॉ के लिए निलंबन की सजा से कुछ होने वाला नहीं है. आजकल लोग कहते फिरते हैं कि अब पहले जैसे नेता नहीं रहे , जयप्रकाश नारायण जैसे, सरदार पटेल जैसे, महात्मा गांधी जैसे . अब
वे नेता देश के लिए ककुछ भी करने को तैयार रहते थे, वे हमेशा जन हित की बात करते थे. उनका आचरण भी सादगी भरा और निस्वार्थ
होता था . इसलिए लोग उन्हें अपना आदर्श मानते थे. आज की तारीख में ऐसा कौन सा नेता है जिसे लोग अपना आदर्श अमानते हों. इसलिए
किसी एक की बात हो तो अलग है यहाँ तो सभी राजनीतिक पार्टियां और ज्यादातर नेता ही ऐसे हो गए हैं. याबी कि इलाज की नहीं , आपरेशन
की जरूरत है. इसके लिए सख्त क़ानून की व्यवस्था की जरूरत है ,जों कभी पूरी नहीं होने वाली. क्योंकि वही छिनरा , वही डोली के संग वाली बात आड़े आ जाती है. यानि कि क़ानून बनाने वाले भी तो नेता ही हैं . और वे ऐसा कोई क़ानून क्यों बनाएंगे जिसे आगे चलकर वही तोड़ने वाले हों .इस मुश्किल का कोई हल है क्या ?
वे नेता देश के लिए ककुछ भी करने को तैयार रहते थे, वे हमेशा जन हित की बात करते थे. उनका आचरण भी सादगी भरा और निस्वार्थ
होता था . इसलिए लोग उन्हें अपना आदर्श मानते थे. आज की तारीख में ऐसा कौन सा नेता है जिसे लोग अपना आदर्श अमानते हों. इसलिए
किसी एक की बात हो तो अलग है यहाँ तो सभी राजनीतिक पार्टियां और ज्यादातर नेता ही ऐसे हो गए हैं. याबी कि इलाज की नहीं , आपरेशन
की जरूरत है. इसके लिए सख्त क़ानून की व्यवस्था की जरूरत है ,जों कभी पूरी नहीं होने वाली. क्योंकि वही छिनरा , वही डोली के संग वाली बात आड़े आ जाती है. यानि कि क़ानून बनाने वाले भी तो नेता ही हैं . और वे ऐसा कोई क़ानून क्यों बनाएंगे जिसे आगे चलकर वही तोड़ने वाले हों .इस मुश्किल का कोई हल है क्या ?
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