Monday, May 31, 2010
निषेध किसका ? तम्बाकू का या लोगों का ?
Sunday, May 30, 2010
राग राहुल
Friday, May 28, 2010
बाल ठाकरे की देशभक्ति
Thursday, May 27, 2010
चैनल तो टीआरपी के लिए गिरते हैं मगर दर्शक किसलिए हरकत करते हैं ?
Wednesday, May 26, 2010
जीवन से हार क्यों ?
Monday, May 24, 2010
मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं या किसी मठ के पुजारी
Sunday, May 23, 2010
विमान हादसा , गुनहगार कौन ? सजा किसको ?
Friday, May 21, 2010
Thursday, May 20, 2010
भाजपा की जातिवादी सोच
Tuesday, May 18, 2010
ई मेल का खेल
Monday, May 17, 2010
प्यार के व्यापार
Sunday, May 16, 2010
खंड -खंड पाखण्ड
Friday, May 14, 2010
विचार मंच ,रिलायंस को दलाली का लाइसेंस क्यों ?
सब जानते हैं कि कांग्रेस पैसे को कितनी अहमियत देती है , जितनी सच बात ये है कि कांग्रेस पार्टी ने देश पर सबसे ज्यादा शासन किया, उससे ज्यादा ये भी सच है कि इसी पार्टी के नेताओं ने सबसे ज्यादा घोटाले किये , गरीबों का हक मारा और अपने-अपने घर बनाए. अगर कांग्रेस के किसी भी पुराने नेता का रिकार्ड खंगाला जाए तब सच्चाई सामने आएगी. उसके पास अथाह धन दौलत और बेनामी संपत्ति मिल जायेगी. ये कोरा आंकलन नहीं बल्कि सच्चाई है. देश को लूट -लूटकर अपना घर बनाने वाले गरीबों का शोषण करने वाली इस पार्टी की सरकार इस समय केन्द्र के साथ -साथ महाराष्ट्र में भी है, महाराष्ट्र में भी सरकार द्वारा आम आदमी का जबरदस्त शोषण जारी है. सर्वविदित है कि कांग्रेस पार्टी बड़े-बड़े व्यवसाइयों और धन्नासेठों के चंदे के पैसे से चुनाव लड़ती है. यही कारण है कि जब इनकी सत्ता आती है तो ये लोग गरीबों को भूलकर बड़े व्यवसाइयों के हित में नीतियां बनाने लगते हैं. अब व्यवसाई कोई भी हो, जब वह नागरिकों से ज्यादा मुनाफ़ा कमाएगा तभी तो उसे मुनाफ़ा होगा . यानि कि कांग्रेस का जहाँ शासन होगा वहाँ पर चंद लोग तो करोडों -अरबों में खेलेंगे और करोडों आम लोग टुकड़े -टुकड़े के लिए मोहताज रहेंगे .महाराष्ट्र में भी यही तो हो रहा है. यहाँ पर गरीब, मजदूर किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, और रिलायंस , टाटा जैसे व्यवसाई अरबों-खरबों कमा रहे हैं. और तो और सरकार ने रिलायंस एनर्जी को जबरन दलाली का लाइसेंस दे रखा है और आम उपभोक्ता हर महीने अपने ही हाथों अपनी जेब काटने के लिए मजबूर हैं. मुंबई और आसपास के इलाकों में टाटा पावर बिजली की सप्लाई करती है . साथ ही रिलायंस को भी बिजली वितरण का अधिकार दिया गया है. इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि खुद रिलायंस भी टाटा से बिजली खरीदती है और तब जाकर वह उपभोक्ताओं को बेचती है. जाहिर ससे बात है कि यहाँ पर जो लोग रिलायंस से बिजली खरीद रहे हैं उन्हें मंहगे दाम चुकाने पड़ रहे हैं क्योंकि अगर हम डाइरेक्ट दूकान से माँ खरीदेंगे तो सस्ता मिलेगा और बीच के दलाल से खरीदेंगे तो मंहगा . क्योंकि दलाल भी अपना मुनाफ़ा वसूल करेगा . ठीक वैसा ही है जैसे रिलेट से सामान खरीदने पर मंहगा और होलसेल से खरीदने पर सस्ता मिलता है . यहाँ की सरकार ने रिलायंस एनर्जी को दलाली करने और लोगों की जेब काटने का लाइसेंस आखिर किसने दिया ? इस तरह का सवाल सब लोग कर रहे हैं. रिलायंस एनर्जी लोगों को मंहगी बिजली बेच रहा है . बेहद जद्दोजहद के बाद अब यह फैसला आया है कि जो लोग टाटा से बिजली लेना चाहें वे टाटा से ले सकते हैं और रिलायंस से लेने वाले रिलायंस से. मगर यह विकल्प भी लोगों को कई सालों बाद दिया गया है. अगर पहले से यह सुविधा होती तो रिलायंस एनर्जी की दादागीरी और दलाल्गीरी से लोगों का पीछा छोट जाता. यानि , अगर हिसाब देखा जाए तो अब तक रिलायंस ने लोगों से जो ज्यादा कीमत वसूली है, उसकी जिम्मेदार महाराष्ट्र की भ्रष्ट और निकम्मी सरकार है.जनता भी खूब भोली है, कांग्रेसी नेता उसे आईपीएल , उतार भारतीय विरोध आदि मुद्दों में आसानी से उलझा लेते हैं. अगर कांग्रेस सीधे -सीधे नहीं जीतती तो भी उसके पास इसका इलाज मौजूद है. उत्तर भारत बनाम मराठी का हौव्वा खड़ा कर राज ठाकरे को नेता बना देना और फिर अपनी चिर प्रतिद्वंदी पार्टी शिवसेना के खिलाफ राज ठाकरे को खडा कर अपनी विपक्षी पार्टी की शक्ति को बाँट देना और आसानी से जीत हासिल कर लेना . अर्थात भले ही जनता उसे जिताना नहीं चाहती मगर फूट डालो , राज करो की नीति से कांग्रेस जीत ही जाति है . सब जानते हैं कि मनसे ने शिवसेना के वोट काट दिए और मनसे कांग्रेस के कई उम्मेदवार इसी कारण जीत गए. अगर सब ऐसा हे चलता रहा तो यहाँ दलालों और चोरों को इसी तरह लाइसेंस मिलते रहेंगे , इसी तरह आम आदमी का शोषण होता रहेगा. अब जरूरत है एक नई क्रान्ति की,बस शुरुआत करने की जरूरत है. तो कब कर रहे हो शुरुआत ?
Thursday, May 13, 2010
विचार मंच ,लालू , मुलायम और गडकरी ...असली कुत्ता कौन ?
चंडीगढ़ में गडकरी के इस बयान से राजनीतिक भूकंप आ गया -'लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह कांग्रेस और यूपीए के विरोध की बात करते हैं वो भी जाकर सीबीआई के सामने झुक गए। उनकी इनक्वायरी में कई वकील बदले, कई एफिडेविट दाखिल हुए। वे शेर की तरह दहाड़ते थे लेकिन कुत्ते बनकर सोनिया जी और कांग्रेस के तलवे चाटने लगे।'इस बयान के बाद गडकरी ने अपने शब्द वापस लेते हुए माफी भी मांग ली मगर लालू और मुलायम के तेवर इतने कड़े हुए कि वे अब गडकरी को सबक सिखाने पर आमादा हैं. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गडकरी के पुतले फूंकने की और पुलिवालों ने लाठी चार्ज किया .लोग आश्चर्य चकित थे . समझ नहीं पा रहे थे कि उत्तर प्रदेश ने आखिर मुलायम सिंह यादव का क्या बिगाडा है ? अगर उन्हें प्रदर्शन करना ही था तो गडकरी के घर पर करते , उनके कार्यालय पर करते या फिर भाजपा के कर्यालर पर करते , यूपी विधान सभा के सामने करने से क्या फायदा ? समाजवादी कार्यकर्ता भी खूब संस्कारी और विवेकशील हैं. संस्कारी इसलिए कि सपा के प्रवक्ता -नेता दलित नेता मायावती को न जाने किन -किन अशोभनीय शब्दों से संबोधित करते थे . उस समय सपा के लोगों को संस्कार और सभ्यता की याद नहीं आई थी, आज जब उनके नेता को कुता कहा गया , भरी सभा में उन्हें तलुए चाटने वाला बताया गया तब जाकर उन्हें यह ज्ञान हुआ , वह भी इन शब्दों में -'आडवाणी ने मनमोहन को कमजोर पीएम कहा था जिसका खामियाजा बीजेपी अब भुगत रही है। गडकरी के बयान से पता चलता है कि उनमें संस्कारों की कमी है। बड़ी पार्टी में इतनी छोटी मानसिकता का आदमी इतने बड़े पद पर पहुंच गया इसे देखकर आश्चर्य होता है। मोहन सिंह ने कहा कि गडकरी से मैं पूछना चाहता हूं कि वो कौन कुत्ता है जो झारखंड में साथ दे रहा है। शिबू सोरेन अब तक मंत्री क्यों बने हुए हैं।'यह बयान सपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता का है.इसमें भी कुत्ता वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है. दोनों के बयान ऐसे हैं , जैसे चोर-चोए मौसेरे भाइयों के. खैर, अब गडकरी की बात करते हैं . जब उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो देश में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. क्योंकि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी और देश पर तीन बार शासन शासन करने वाली पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय स्तर पर फेमस भले ही न हो मगर उससे राष्ट्रीय समझ की अपेक्षा की जाती है. भाजपा की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी ने १६ मई १९९६ , १९ मार्च १९९८ और १३ अक्टूबर १९९९ को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. अटल जी की खासियत यही रही कि विपक्षी भी उनका दिल से सम्मान करते थे. वे सभ्य , संस्कारित और म्रदुभाषी हैं. अटल जी की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लोग कुछ तो अपेक्षा रखेंगे ही .नितिन गडकरी को जब प्रेसीडेंट बनाया गया तो आर एस एस के रणनीतिकारों के जेहन में एक बहुत बड़ा गणित अटका हुआ था . उन्होंने सोचा कि अगर पिछड़ी जाति के नितिन गडकरी को लाया जाता है तो उससे देश भर में पिछड़ी जाति के लोग भाजपा से जुड जायेंगे और इससे भाजपा केन्द्र पर कब्जा करने में फिर से कामयाब हो जायेगी, क्योंकि किसी और राष्ट्रीय पार्टी में पिछड़े वर्ग का कोई नेता इतने बड़े पद पर नहीं है.आर एस एस को सबसे ज्यादा मलाल ये था कि दो बड़े हिन्दी प्रदेशों , बिहार और उत्तर प्रदेश में दो बड़े पिछड़े नेताओं की तूती बोलती है. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की. जब तक इनके वोट कुछ वोट भाजपा की तरफ ट्रांसफर नहीं हो जाते तब तक केन्द्र में फिर से सता हासिल करने का सपना पूरा नहीं होगा . इसीलिए सोची -समझी प्लानिंग के तहत नितिन गडकरी ने मुलायाम-लालू पर हमला बोला. उन्होंने सोचा होगा कि वे इन दोनों को गालिया बकेंगे तो पिछडा वोट बेंक उनकी झोली से निकलकर भाजपा की तरफ आ जाएगा, दोनों यादव नेता भी इस चाल को भांप गए और इसे पिछडा समाज के मान-सम्मान और स्वाभिमान का मामला बना डाला . राष्ट्रीय राजनीति के नौसिखिए नितिन गडकरी चारों खाने चित्त गिर पड़े. अब माफी मांग रहे हैं , सफाई दे रहे हैं, मगर मामला बिगड चूका है. नितिन गडकरी का दाव अब इन्हीं पर उलटा पड़ गया है.अब उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के लोग मुलायम सिंह के साथ और बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ गोलबंद होने लगे हैं. इससे भाजपा को आने वाले चुनावों में दोनों ही प्रदेशों में जबर्दश्त नुक्सान होगा. आखिर भाजपा को भी उसकी करनी का फल तो भुगतना ही पडेगा , पिछडों की नजर में भाजपा अब खतरनाक खलनायक बन चुकी है. नितिन गडकरी की हिन्दी पर कम पकड़ होने के कारण भी यह कुता कांड हुआ . अभी फिल्म चालू है , देखने की बाद ही पता चलेगा कि इन तीनों में असली कुत्ता कौन है ?
Wednesday, May 12, 2010
म्हाडा का महा घोटाला
Monday, May 10, 2010
मोहब्बत और संविधान के कातिल
तालिबानी पंचायत में फैसला सुनाया गया कि मनोज के परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया जाए और पंचायत के फैसले के खिलाफ जाने वालों से 25 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाए। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद बुना गया एक साजिश का ताना-बाना। 15 जून को मनोज और बबली का सरेआम अपहरण कर लिया गया और मोहब्बत के दुश्मनों ने दोनों की हत्या करके लाश एक नहर में फेंक दी। पुलिस ने 24 जून को दोनों की लाश बरामद की। लेकिन उन्हें लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया गया। एक जुलाई को मनोज के परिवारवालों ने उनके सामान से उनकी शिनाख्त की। मनोज के परिवारवाले चीख चीख कर कहते रहे कि इस हत्या के पीछे बबली के घरवालों का हाथ है हर छोटे बड़े अधिकारी से रहम की भीख मांगी। यहां तक की सूबे के मुख्यमंत्री तक भी शिकायत पहुंचाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार अब तीन साल बाद 41 गवाहों व 50 पेशियों के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया . अदालत ने बबली के भाई सतीश और सुरेश, चचेरे भाई गुरुदेव, मामा बारूराम और चाचा राजेंद्र को फांसी की सजा सुनाई है। लड़की के दादा और पंचायत के सदस्य गंगाराज को उम्रकैद की सजा दी गई है। जबकि हत्या की साजिश में शामिल चालक मंदीप को अदालत ने 7 साल की कैद की सजा दी है। इसके अलावा अदालत ने पीड़ित पक्ष को 1 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। हैरत और खौफनाक बात ये है कि इसके बाद भी ऐसी पंचायतों के हौंसले बुलंद हैं. हमारे जन प्रतिनिधि वोट के लालच में ऐसी पंचायत के लोगों का समर्थन करते हैं. कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल ने जो पत्र लिखा है उसके मुताबिक़ सांसद नवीन जिंदल ने पत्र में कहा कि वह निजी कार्यो में व्यस्तता के चलते पिछले सप्ताह आयोजित महापंचायत में शामिल नहीं हो सके। इसके लिए उन्होंने क्षमा याचना की।सांसद ने कहा कि उन्होंने तथा उनके परिवार ने हमेशा ही समाज की परंपराओं, मान्यताओं, सभ्यता व संस्कृति का आदर किया है तथा भविष्य में भी करते रहेंगे। पत्र के माध्यम से सांसद ने कहा कि खाप पंचायतों ने समाज को सदैव नई दिशा दी है. जिंदल की इस जिंदादिली से ये तो तय हो गया है कि अब तक पंचायतों ने जिन प्रेमी -प्रेमिकाओं को सजा सुनाई थी, उस सबमे नवीन जिंदल भी शामिल थे. जिंदल से कोई पूछे कि दो प्यार करनी वालों की ह्त्या करवाना कौन सी परम्परा , कौन सी सभ्यता , कौन सी संस्कृति है ? संसार का कोई भी क़ानून , कोई भी धर्म इस तरह निरपराध लोगों की ह्त्या की इजाजत नहीं देती. सच्ची मोहब्बत को भगवान का रूप माना गया है. अगर लड़का -लड़की बालिग़ हैं और अपनी इच्छा से शादी करना चाहते हैं तो कौन सा गुनाह है ? और अगर कोई गलत बात या गलत काम है तो उसके लिए देश में अदालतें मौजूद हैं. यह सिर्फ मोहब्बत का ही क़त्ल नहीं बल्कि संविधान का भी क़त्ल है. एक ही गोत्र का होने कारण बहन -भाई का रिश्ता बताने वाले मूर्ख कब जानेंगे कि दुनिया का हर इंसान आपस में भाई ही होता है, हर लड़का लड़की बहन भाई ही होते हैं. सर्वविदित है कि सबसे पहले दुनिया में आदम और हव्वा को भेजा गया. सारा जहां उन्हीकी संतान है. अब हिसाब लगाएं सब लोगो का आपस में क्या रिश्ता है ? यहाँ अनैतिक रिश्तों में शादी करनी की वकालत नहीं की जा रही , बल्कि नैतिकता की आड़ में मानवता को खत्म न किया जाए , इसकी सिफारिश की जा रही है.
- मुकेश कुमार मासूम
Saturday, May 8, 2010
अंधेर नगरी , चौपट राजा , ४
Friday, May 7, 2010
विचार मंच , ३, जाति आधारित जनगणना का अर्थ
Thursday, May 6, 2010
विचार मंच २ गरीबों से जीने का हक भी छीन लो इतनी सी मेहरबानी कर दो

गरीबों से जीने का हक भी छीन लो
विचार मंच

कसाव को फंसी होने दीजिए
बचाने के लिए कांग्रेस है न
-मुकेश कुमार मासूम
देश में आतंकवाद के जड़ें दिनों दिन मजबूत होते जा रही हैं। सरकार करने के लिए बस इतना ही करती है कि जहां कहीं बम कांड की घटना होती है वहाँ पर जांच पड़ताल का कार्य तेज कर दिया जाता है, कुछ नियम बदल दिए जाते हैं। बहुत हुआ तो एकाध अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है, बम विस्फोट में मरे लोगों के आश्रितों को कुछ मुआवजा दी दिया जाता है, कुछ मंत्री दौरा करते हैं, पुलिस अधिकारी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। जांच कमेटी गठित होती है , और और सब लोग अगले बम कांड होने का इन्तजार करने लगते हैं। १३ फरवरी को पुणे में बम विस्फोट हुआ , उसमे ५ विदेशी सहित १७ लोग से ज्यादा मारे गए । कई घायल हुए। गृह मंत्री आर आर पाटिल ने खुद सदन को बताया कि आरोपियों की शिनाख्त कर ली गयी है। मगर क्या हुआ । आज इतने महीनों के बाद भी कुछ नहीं हुआ । सरकार कहती रही कि इस बम कांड में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है लेकिन सिर्फ कहने भर से क्या हुआ ? पुलिस सिर्फ यही कहती रही कि 'जांच सही दिशा में चल रही है ' । २६ नवंबर २००८ को क्या हुआ ? महज दस लोगों की फ़ौज ने मुंबई पर हमला कर दिया। यानी कि देश पर हमला कर दिया। सारा ख़ुफ़िया तंत्र , सारी पुलिस, नेवी अधिकारी सब देखते रह गए और दस लोग मुंबई को तहस -नहस कर गए। उनमे से ९ आतंकवादी मारे गए और अब दसवा जीवित बचा है - कसाव। आमिर अजमल कसाव की सुरक्षा पर ट्रायल के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने ३१ करोड रुपये खर्च किये । भारत जैसे गरीब देश के लिए खर्च की रकम का यह आंकडा मामूली नहीं हो सकता। आज उसी कसाव को विशेष अदालत सजा सुनाएगी , बहुत संभव है उसे फांसी की सजा ही दी जाए , और यह सब पुलिस अधिकारियों के अथक परिश्रम , सबूत , गवाह आदि के बल पर और सरकारी वकील के तर्कों की बदौलत संभव हो सकेगा। मगर सजा सुनाये जाने के बाद भी क्या किलिंग मशीन कसाव को फांसी पर इतनी आसानी से चढाया जा सकता है ? इसे लेकर देश में संशय का माहौल है । सब जानते हैं कि अभी तक ५० ऐसे खतरनाक अपराधी हैं, जिन्हें वर्षों पहले फांसी की सजा तो सुनाई जा चुकी है मगर अभी तक फांसी का फंदा उसनके गले से बहुत दूर है। क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति के पास दया याचिका कर रखी है। अब तर्क की बात ये है कि जब पहले से ही खूंखार अपराधी सजा भुगतने के लिए वोटिंग लिस्ट में हैं तो इस नए मामले का क्या होगा ? संसद अर्थात देश के सबसे बड़ी पंचायत पर हमला हुआ।उस आरोप में अफजल गुरु नामक अपराधी को गिरफ्तार किया गया। सर्वोच्च अदालत ने उसको फांसी की सजा सुनाई , लेकिन आज भी वह ज़िंदा है। उसने मर्सी पिटीशन जो डाल रखी है, जिसका क्रमांक २८ है । जाहिर सी बात है कि जब तक पहले ५० अपराधियों को फांसी नहीं दी जाती , अथवा उनका कोई फैसला नहीं होता तब तक कसाव भी सरकारी मेहमान नवाजी का लुत्फ़ उठा सकता है और ईद के दिन तो नॉन वेज भी खा सकता है। भारत सरकार पहले भी मौलाना मसूद अजहर , उम्र शेख और मुस्ताक जरगर जैसे खतरनाक अपराधियों को छोड़ चुकी है । अब तो आम आदमी को यह पक्का भरोसा हो गया है कि कोई भी दुश्मन हमारे यहाँ आकर तबाही मचा सकता है, हमारे जवानों पर गोलियाँ बरसाकर उन्हें शहीद कर सकता है मगर सजा उसे कुछ नहीं मिलेगी । अगर सजा का ऐलान हो भी गया तो कांग्रेस है न। बचा लेगी ।आखिर 'धर्मनिरपेक्षता ' का सवाल जो है । और बिना ऐसे सवालों के वोट नहीं मिला करते । सत्ता चाहिए तो वोट भी चाहिए ही। और वोट के लिए दया का दिखावा भी जरूरी है।
- मुकेश कुमार मासूम