Monday, May 31, 2010

निषेध किसका ? तम्बाकू का या लोगों का ?

कल विश्व भर में विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया गया. भारत में भी सरकार ने टीवी में विज्ञापन दिए , अखबारों में स्वास्थ्यमंत्रियों के फोटो छपे, सन्देश छपे, वो भी सरकारी खर्चे पर यानि कि विज्ञापन के मद में . और फी सब कुछ हो गया, ऐसा मानकर सरकार ने भुला दिया. अब अगले साल जब यह दिवस आएगा तो करोड़ों खर्च करके फिर से तम्बाकू के विरोध में विज्ञापन प्रकाशित करवा दिए जायेंगे . इससे और कोई फायदा होता हो या नहीं मगर मंत्रियों को अपने फोटो चमकाने का तो अवसर मिल ही जाता है. इससे ज्यादा उन्हें चाहिए भी क्या ? क्योंकि वे खुद जानते हैं कि जिदको एक बार गुटका, तम्बाकू , सिगरेट आदि की लत लग गयी तो उसे छुडाना बहुत मुश्किल होता है. बिलकुल असंभव जैसा. इस यह लत इतनी जानलेवा होती है कि भारत में प्रति वर्ष १ मिलियन लोग इससे मौत के मुंह में समा जाते हैं. भारत में ही सबसे ज्यादा लोग मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं. यहाँ पर तम्बाकू का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या भी आश्चर्यजनक यानि 5 करोड से ज्यादा है. अनपढ़ , गंवार , गरीब अथवा ग्रामीणों के अलावा शहरों में भी धूम्रपान का खूब चलन है और इसे सामाजिक मान्यता मिली हुई है. बड़े -बड़े शहरों की लड़कियां सिगरेट के धुंए के छल्ले उडाती देखी जा सकती हैं.बच्चे और बड़े गुटका तो ऐसे चबाते हैं जैसे संजीवनी बूटी चबा रहे हों. कुछ देखना भी गवारा नहीं करते . पुडिया का मुंह फाड़ते हैं और सीधे मुंह में डाल लेते हैं. ऐसी दीवानगी का असली जिम्मेदार आखिर कौन है ? को खा रहे हैं, पी रहे हैं, वे और उनके अभिभावक तो है ही , मगर असली खलनायक है सरकार . जब सरकार मंहगा टेक्स लेकर बीडी, सिगरेट , गुटका , तम्बाकू आदि को बनाने और बेचने की अनुमति देती है तो क्या यह नहीं जानती कि इस धूम्रपान की सामग्री का जनता ही इस्तेमाल करेगी , और जब इस्तेमाल करेगी तो उससे रोग भी होंगे ही. अगर सरकार सचमुच लोगों की सेहत के प्रति फिक्रमंद है तो इन सब पर पाबंदी क्यों नहीं लगा दी जाती ? जब पूरी तरह पाबंदी की बात आती है तो कुछ लोग तर्क देते हैं कि इससे राजस्व आता है और राजस्व का आंकडा इतना बड़ा होता है कि सरकार उस घाटे को बर्दाश्त नहीं कर सकती , इसलिए धूम्रपान पर पूर्ण पाबंदी असंभव है . यह तर्क कुछ ऐसा ही लगता है जैसे कोई कहे कि डकैती से भी राजस्व उगाहना शुरू करदो. यानि कि चोरी डकैती के लिए भी सरकार लाइसेंस जारी करने शुरू करदे इससे भी खूब राजस्व आएगा. ना होगा बांस और ना बजेगी बांसुरी . जब तम्बाकू से बनी कोई चीज होगी ही नहीं तो लोग खरीदेंगे कैसे और फिर आखिर में धीरे -धीरे लोग नशे से तौबा कर लेंगे , इसके कई उदाहरण भी सामने हैं. जब से सरकार ने ट्रेन और बस में सिगरेट -बीडी पर रोक लगाई है , तब से जबरदस्त परिवर्तन आया है. अब ट्रेन और बस में बीडी -सिगरेट पीने वाले की संख्या में बहुत कमी आयी है. एक उदाहरण गुजरात का भी दिया जा सकता है . वहां पर शराब पर पूर्ण पाबंदी है . इससे पीने वालों की संख्या में कमी हुई है, जो पुराने पियक्कड हैं , वे गुजरात से दूर पीने जाते हैं मगर पीने में कमी तो आई, और महत्वपूर्ण बात ये है कि कम से कम नए लड़के तो बेवडे नहीं बन रहे , क्यों कि न वो शराब को अपने -इर्द -गिर्द देखते हैं और न ही आदत लगती है. गुजरात को शराब से प्राप्त होने वाला राजस्व न मिल पाने के कारण कोई परेशानी भी नहीं , इसलिए अगर कोई यह दलील देता है है कि शराब या धूम्रपान बंदी से सरकारें कंगाल हो जायेंगी , यह बात सही नहीं है. अगर सरकार वाकी गंभीर है तो उसे सभी तरह के धूम्रपान, तम्बाकू उत्पाद , अल्कोहल आदि पर सख्ती के साथ पाबंदी लगा देनी चाहिए , वरना लोग यही समझेंगे कि धूम्रपान उत्पाद बनाने वाले व्यापारियों को आर्थिक फायदा पहुचाने के लिए ही इस पर पाबंदी नहीं लागाई जाति . सब जानते हैं कि केन्द्र सरकार में केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी बड़े बीडी व्यवसाई हैं, उनकी बहुत बड़ी कंपनियां हैं. ऐसे कई कारण हैं जिनसे लोगों को लगता है कि सरकार धूम्रपान का निषेध नहीं कर रही, बल्कि लोगों का निषेध कर रही है. धूम्रपान के विरोध का तो महज दिखावा किया जा रहा है .













Sunday, May 30, 2010

राग राहुल

राग राहुल
जब -जब मंहगाई का ग्राफ चढता है और जनता खून के आंसू रोने लगती है तब-तब कांग्रेस के चतुर रणनीतिकार राग राहुल छेड़ देते हैं. मीडिया प्रबंधकों की टीम के साथ राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश के दौरे पर भेज दिया जाता है. वहां राहुल गांधी किसी दलित की झोपडी में दिखाई देते है . किसी दलित बच्चे के साथ फोटो खिचवाते हुए नजर आते हैं. सब जानते हैं कि वहां पर कांग्रेस की महा जनसभा की ताकत तो है नहीं , इसलिए मीडिया के माध्यम से वे मुख्यमंत्री मायावती को कोसते नजर आते हैं. इससे कांग्रेस को अंशकालिक तौर पर यह फायदा होता है कि पब्लिक का ध्यान कुछ समय के लिए ही सही मगर मंहगाई और केन्द्र की गलत नीतियों की तरफ से हट जाता है . मगर आज तक यह समझ नहीं आया कि राहुल गांधी को मीडिया आखिर इतनी तवज्जो क्यों देता है ?यह सवाल मुझसे इतने लोगों ने किया कि मै खुद भी अब अपने आप से यह सवाल करने लगा हूँ. कुछ लोग आशंका व्यक्त करते हैं कि मामला 'पैड न्यूज ' वाला तो नहीं है . हो भी सकता है . आखिर राजनीति में सब जायज है. कुछ कहा नहीं जा सकता . क्योंकि राजनीति में सिर्फ और सिर्फ जीत का महत्त्व है, चाहे वो किसी भी तरह से हासिल की जाए. अब किसी भी तरह में सब कुछ आ जाता है . क्यंकि कभी भी कोई राहुल गांधी से यह नहीं पूछता कि भई , आप ज्यादातर दौरे उन्हीं राज्यों में क्यों करते हो जहाँ पर गैर कांग्रेसी सरकार है ? अब कुछ कांग्रेस समर्थक ये कह सकते हैं कि जहाँ-जहाँ कांग्रेस कजोर है, उसे मजबूत करने का काम राहुल गांधी कर रहे हैं. और जाहिर सी बात है कि जहाँ किसी दूसरे दल की सरकार है वहाँ तो कांग्रेस कमजोर होगी ही, इसीलिए राहुल गांधी वहां पार्टी का संगठन मजबूत करने के लिए जाते हैं. खुद राहुल भी इस बात को बार-बार बल्कि हर बार स्वीकार करते हैं कि वे युवाओं को कांग्रेस पार्टी से जोड़ना चाहते हैं, वे कांग्रेस का संगठन इतना मजबूत करना चाहते हैं कि केन्द्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बन सके. जब राहुल गांधी का सपना बस कांग्रेस को मजबूत करना ही है, तो इसमें कौन सी खास बात हो गयी ? अपने -अपने संगठन को तो सब मजबूत करते ही हैं. जो नेता भाजपा में है, वह भाजपा को मजबूत करेगा , जो बसपा में है वह बसपा को और कोई अन्य अपनी पार्टी को . जिस पार्टी की केन्द्र में सरकार होती है , उसके सांसदों का फर्ज होता है पूरे देश के लिए काम करने का. क्या इस फर्ज को राहुल गांधी निभा रहे हैं ? केन्द्र के अलावा देश के कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार है , इसके बावजूद लोगों का बुरा हाल है. करोड़ों पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं करोड़ों अनपढ़ हैं और करोड़ों लोग बेघर हैं. कई करोड लोग घास -फूंस के झौप्दों में रहने के लिए अभिशप्त हैं. इसके बावजूद केन्द्र में बैठी निकम्मी सरकार लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने के बजाय उन पर नमक छिड़क रही है और राहुल गांधी गरीबों के साथ फोटो खिंचवाकर खुश हैं. करने के नाम पर बस वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को कोस लेते हैं उन पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने दलितों के लिए कुछ नहीं किया . कांग्रेस वाले राहुल बाबा को इतना भी नहीं समझाते कि इस देश पर ज्यादातर राहुल के बाप दादा , नाना की सरकार रही हैं. आज भी पी एम् की कुर्सी पर एक ऐसे व्यक्ति को बैठाया गया है जो सिर्फ नाम के लिए पी एम् है बाकी आदेश राहुल गांधी के परिवार का ही चलता है. तब भी दलितों की हालत बदतर क्यों है ? इसके बावजूद भी देश का भला क्यों नहीं हो रहा ? और राहुल गांधी क्यों नहीं कहते कि दलितों के हित में कोई अभियान चलाइए , पिछड़ों के हित में काम कीजिये , अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए कार्य करो. जो बेरोजगार हैं उनके लिए नौकरियों का सर्जन करो या प्रभावी तरीके से उनके लिए ऐसी व्यवस्था करो जिससे कि पढ़े -लिखे बेरोजगार लोग उद्धोग धंधे करके परिवार का पेट पाल सकें. जिनके घर नहीं हैं, उन्हें घर देने की पहल होनी चाहिए . क्या जब भाजपा की सरकार आएगी, राहुल तब उनसे ये मांग करेंगे ?तब इन्हें सब याद आएगा . जिस सरकार ने देश का बेडा गर्क कर दिया , ऐसी सरकार को चलाने वाली मुखिया पार्टी यानि कांग्रेस का संगठन मजबूत करने से फायदा किसको होने वाला है ? सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी को. इस देश के चंद धन्नासेठों को. मुट्ठी भर मिलावट खोरों को . बे ईमानों को , रिश्वतखोरों को ? तो ऐसी पार्टी के संगठन में जुड़ने से क्या युवाओं के पेट की आग बुझ जायेगी ? कब तक राहुल राग छेड़कर देशवासियों को भ्रमित करते रहोगे ? अआखिर कब तक ?
-मुकेश कुमार मासूम








Friday, May 28, 2010

बाल ठाकरे की देशभक्ति

जाति के आधार पर जनगणना का मामला पूरे देश में गूँज रहा है . केन्द्र सरकार भी घाटे -मुनाफे का आंकलन अच्छी तरह से करना चाहती है, इसीलिए अभी तक कोई निर्णय न लेते हुए गेंद मंत्रियों के समूह के पाले में डाल दी है. अब यह समूह ही यह फैसला करेगा कि जनगणना करते समय जाति का विशेष रूप से उल्लेख किया जाए या नहीं . इस पर हर तरफ बहस छिड़ी है. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रया दी है. उनका मानना है कि अगर जाति के आधार पर जनगणना होती है तो इससे देश बिखर जाएगा, टूट जाएगा. यह जनगणना नुकसानदेह साबित होगी और इससे देश में दरार पड़ जायेगी. उनका कहना है कि पहले ही भाषावार प्रांत रचना करके देश को बर्बाद कर दिया है , ऐसे में जाति के आधार पर अगर गिनती की जाती है तो क्या होगा ? वे सवाल करते हैं कि जाति -पाति से इस देश को डुबाने वाले हो क्या ? देश को सडाने वाले हो क्या ? एक महत्वपूर्ण सवाल , जो उन्होंने उठाया . वो ये कि अगर किसीका पति ब्रहामण होगा और दुर्भाग्य से उसकी पत्नी ओबीसी या अन्य जाति की होगी तो उसकी जनगणना कैसे करोगे ? पति की जाति मानोगे या पत्नी की ? जनगणना मतलब स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं कि इसका अर्थ ये है कि देश में रहने वाले नागरिकों की विस्तृत व्याख्या कीजिये , बस. उसमे हिंदू, मुस्लिम ,सिख, ईसाई तक ही ठीक है. यही देश हित में है. बाल ठाकरे के इस बयान से साफ़ है कि भले ही शिवसेना प्रदेश स्तर की पार्टी है , मगर उसके नेता की सोच राष्ट्रीय स्तर की है. जो भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवादी होने का दावा करती है , कम से कम उसकी सोच से तो कहीं बेहतर है . भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गोपीनाथ मुंडे पहले ही जाति के आधार पर जनगणना करने की वकालत कर चुके हैं .बाल ठाकरे के इस बयान का अगर गहराई से अध्ययन किया जाए तो साफ़ स्पष्ट होता है कि वे प्रांतवाद या भाषावाद की राजनीति के भी पक्षधर नहीं हैं.. बल्कि उनके मन में देश के लिए चिंता और प्रेम है,यहाँ तक कि वे साम्प्रदायिक आधार पर भी बिलकुल सहृदयी नजर आते हैं . वे चिंता व्यक्त करते हैं














Thursday, May 27, 2010

चैनल तो टीआरपी के लिए गिरते हैं मगर दर्शक किसलिए हरकत करते हैं ?

चैनल तो टीआरपी के लिए गिरते हैं मगर दर्शक किसलिए हरकत करते हैं ?
कल किसी चैनल पर सलमान खान को देखा . वे प्रसिद्द अभिनेता हैं, टीवी पर रोजाना दीखते ही हैं, मैंने उन्हें देखा , यह कोई नई बात नहीं है . नई बात ये थी कि एक चार या पांच साल की लड़की से सलमान खान शादी का प्रस्ताव रख रहे थे. इंकार उस लड़की को भी और सलमान खान को भी कहने के लिए उकसा रहा था. आखिरकार सलमान ने पूछ लिया - विल यूं मैरी मी ? और लड़की झिझकने लगी तो उसे जवाब देने के लिए इंकार उकसाने लगा. हद तो तब हुई जब खुद उस लड़की की माँ ही उसे उकसाने लगी और यह कहकर प्रतिक्रिया व्यक्त की- 'अच्छा होता यह सलमान खान के शादी के प्रस्ताव को मान लेती , इसी बहाने सलमान खान मेरे घर तो आते ' . ज़रा सोचिये ... एक माँ अपनी बच्ची की शादी ४० साल पार कर चुके सलमान खान से करना चाहती थी . उसके मन में क्या था ये तो पटा नहीं , मगर जब बच्चे इस शो को देखेंगे तो उन पर क्या असर पडेगा ? खेलने -कूदने और पढ़ने -लिखने की उम्र में जब वे शादी के बारे में सोचने लगेंगे तो हालत क्या होगी ? क्या सलमान खान को भी इन सब बातों से परहेज नहीं करना चाहिए ? वे अपने ज्यादातर शो में शादी की बात बच्चों के सामने जरूर करते हैं. इसमें चैनल वालों की मजबूरी तो समझे जा सकती है, आखिर टीआरपी का मामला है. वह बढनी जरूरी है. सलमान खान जैसे लोगों को वह फिल्म बेचनी होती है, जिसके प्रमोशन के लिए वे कार्यक्रम में आते हैं. मगर आखिर दर्शकों की क्या मजबूरी हो सकती है ? क्या सचमुच कोई माँ अपनी छोटी सी बच्ची की शादी के बारे में ऐसा बयान दे सकती है ? क्या इस सबसे भारत की संस्कृति , संस्कार और परम्पराओं को नुक्सान नहीं पहुचता ? क्या ऐसी घटनाएं बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा नहीं देतीं ? अखबार में फोटो छपवाने और टीवी चैनल में बाईट देने के शौक़ीन और धर्म के ठेकेदार अब कहीं क्यों नजर नहीं आते ? सलमान खान के साथ-साथ ऐसे दर्शकों का भी विरोध क्यों नहीं किया जाता जो इस तरह की बातें कर सभ्य समाज को दूषित कर रहे हैं. बच्चों के कार्यक्रम में विशेषकर ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि ऐसी बातों का बाल मन पर गलत प्रभाव पड़ता है .
मुझे याद है जब बिग बी अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा था कि वे दादा बन्ने की तमन्ना रखते हैं और चाहते हैं कि जल्द ही उनको एक पाया हो जाए . पाखण्ड रचने वाले प्रचार के भूखे लोगों ने उस वक्त इसका बहुत विरोध किया था , आरोप लगाए गए कि अमिताभ बच्चन का बयान पक्षपात से प्रेरित है और वे पोते के रूप में एक लड़का चाहते हैं. यह विरोध इतना बढ़ा कि खुद अमिताभ बच्चन को कई बार इस बारे में सफाई देनी पडी थी. मगर टीवी पर कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रहे शोज पर कोई हो हल्ला नहीं मच रहा है . यहाँ पर आराम से रिचर्ड गेर शिल्पा शेट्टी को अपनी बांहों में कैद करके दीर्घ चुम्बन लेते हैं. यहाँ पर बिग बॉस के कमाल खान गाली गलौच करते दिखाई जाते हैं, सब कुछ राम भरोसे चल रहा है. कहीं कोई अंकुश नहीं है. कहीं कोई नियंत्रण दिखाई नहीं देता . हर तरह मनमानी चल रही है . जब दो व्यस्क अपनी मर्जी से वेलेंटाइन के दिन घूमने -फिरने जाते हैं, अचानक 'धर्म के रक्षक' प्रकट हो जाते हैं , मगर जिन कारणों से आदर्शों और सही मूल्यों का पतन हो रहा है , उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता . समस्या की जड़ तक जाने की जरूरत है. जड़ से इलाज होगा तभी उसकी टहनियाँ सुरक्षित रहेंगी. सरकार भी इस बारे में ध्यान नहीं देती . इस तरह के दृश्यों पर अंकुश लगाने के लिए जो भी अथोरिटी हैं, वे नाकाफी हैं. भ्रष्टाचार का प्रभाव इतना ज्यादा हो गया है कि हर जगह पैसा फेको , तमाशा देखो . अगर आप कोई सार्थक वीडियो एल्बम भी बनाते हैं, जिसमे सामाजिक सन्देश हो तब भी सेंसर वाले इतना परेशान करते हैं कि निर्माता -निर्देशक पानी मांग जाता है . आखिर में उसे या तो दलाल का सहारा लेना पड़ता है या फिर रिश्वत देनी पड़ती है. जबकि कैसा भी उलटा सीधा वीडियो बनाओ बस साथ में रुपये भी लेते जाओ तो सेंसर से सर्टिफिकेट मिल जाता है . इस सितम को बदलने की जरूरत है . मगर बदलेगा कौन ? क्योंकि यहाँ को देश चलाने वाले भी यही राग अलापते रहते हैं कि 'ये करने की जरूरत है , वो करने की जरूरत है ' मगर यह नहीं बताया जाता कि इसे करेगा कौन?












Wednesday, May 26, 2010

जीवन से हार क्यों ?

आजकल हर शहर , हर गाँव और हर मोहल्ले से आत्महत्या करनी की ख़बरें आ रही हैं. आत्महत्याओं का यह खतरनाक सिलसिला घटने की बजाय बढ़ता हे जा रहा है . कल मुंबई के कान्दिवली, घाटकोपर और दहिसर में दो छात्रों और एक छात्रा ने अपने जीवन लीला समाप्त करली. इनमे से एक को फेल होने की आशंका थी जबकि दो फेल हो गए थे . इसी प्रकार देश के अन्य हिस्सों से में भी छात्र -छात्राएं काल के गाल में समा रहे हैं . इन आत्महत्या करने वाले इन छात्र-छात्रों की उम्र ऐसी भी नहीं कि उन्हें बिलकुल नादाँ समझ लिया जाए . इनमे से कोई १२ वी का छात्र था तो कोई ग्रेजुएशन कर रहा था . यानि कि इन्होने कई वर्षों तक अध्ययन किया था , और इतने सालों के अध्ययन के बाद भी इनको विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का तरीका नहीं सिखाया गया. फेल होना क्या है ? और फेल होते क्यों हैं ? अगर हो गए तो वे पास कैसे हो सकते हैं और तब तक के लिए उन्हें अपने आपको किस तरह से मजबूत बनाए रखना है , इसकी शिक्षा आखिर उन्हें क्यों नहीं दी गयी ? जो बच्चे जीवन की परिक्षा में फेल हो जाते हैं , वे इतने सालों तक पास कैसे होते रहे , इसमें भी संदेह होता है . इससे साफ़ होता है कि अभी हमारे एजूकेशन सिस्टम में बहुत सी खामियां हैं, इन्हें दूर करना होगा . आखिरकार हम क्यों पढते हैं, अपने बच्चों को किसलिए पढ़ाते हैं, यह हमें भी पटा होना चाहिए और हमारे बच्चों को भी . टीचर्स को भी चाहिए कि वे इस महत्वपूर्ण बात को हमेशा याद रखें . और शिक्षा नीति निर्धारित करने वाले लोगों को भी इस सम्बन्ध में सही नीतियां बनानी चाहिए, इसससे सम्बंधित कोर्स होने चाहिए . फेल होने का हौवा ऐसा नहीं होता जिससे जिंदगी को खत्म किया जा सके. जीवन सुन्दर है, महत्वपूर्ण है . उद्देश्यपरक है, इसको और भी हसीं बनाना चाहिए .जीवन क्यों हसीन है, यह खास तौहफा कुदरत ने क्यों हमें दिया है ? और इसकी रक्षा हमें क्यों और कैसे करनी चाहिए , इसकी जानकारी हर विद्यार्थी को होनी चाहिए , अभिभावकों को होनी चाहिए . मगर यहाँ पर होता उलटा ही है . अगर किसी बच्चे के किसी सब्जेक्ट में कम नंबर आ गए या फिर वह किसी विषय में फेल हो गया तो सबसे पहले घरवाले ही उस बच्चे को खलनायक मान लेते हैं. उससे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उसने किसी का क़त्ल दिया हो . बाकायदा बच्चों पर क़त्ल का इल्जाम यह कहकर लगाया जाता है कि - ' तुमने हमारे अरमानों का गला घोंट दिया. हमने तुम्हारे लिए क्या-क्या सपने संजोये थे , मगर तुमने उन सभी ख्वाहिशों का क़त्ल कर दिया. ' बच्चे इस इल्जाम से इतने आहात हो जाते हैं कि अपने आपको सबसे कमतर आंकने लगते हैं. वे सोचते हैं कि वे सबसे बुरे हैं , जो अपने परिवार वालों की हसरत पूरी नहीं कर पाए . वे सोचते हैं कि इस वजह से उनके परिवार की मान मर्यादा कम हो गयी है और वे अब समाज के सामने तुच्छ हो गए हैं, उस स्थिति में वे चाहते हैं कि उनके करीबी लोग जैसे माँ, बाप , बड़े भाई -भाभी आदि उनसे सहानुभूति रखें, उनसे प्यार करें मगर होता इसके उलटा है . उन्हें ताने मिलते हैं. तिरस्कार मिलता है . और यही तिरस्कार बच्चों की रगों में खून बनकर दौड़ने लगता है . वे सोचते हैं कि अगर वे मर जाएँ और अपने परिजनों को एक भावुक सुसाइड नोट छोड़ दें, जब वे पत्र पढेंगे तो उन्हें उनसे सहानुभूति हो जायेगी .और फिर अपनों की सहानुभूति पाने के लिए के लिए वे ईश्वर की सबसे खूबसूरत कृति को समाप्त कर देते हैं. अगर यह सहानुभूति , अपनत्व और प्यार उन्हें जी ते जी मिल जाए तो शायद वे इतना बड़ा कदम न उठायें मन को इतना कच्चा न करें , अपनों का प्यार पाने के लिए उनके हिमालय जैसे हौंसले भी मोम की तरह पिघल जाते हैं. उसी भावुकता में वे आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध कर डालते हैं. अगर किसी विद्यार्थी के कम नंबर आते हैं , या वह फेल हो जाता है या फिर इच्छित सफलता नहीं मिलती तो उसके टीचर , अभिभावक और आसपास के लोगों को खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है. उस विद्यार्थी को सबसे ज्यादा जरूरत सहानुभूति और प्यार की जरूरत होती है , इसके बाद नंबर आता है सलाह का. जब वह बिलकुल नोर्मल हो जाए तब उसे अगली बार अच्छी तैयारी करने कि सही सलाह दी जा सकती है. विद्यार्थियों को चाहिए कि अगर वे फेल होते हैं तो जीवन से निराश न हों, यह एक सामान्य प्रक्रिया है . जीत और हार सिक्के के दो पहलू होते हैं. जैसे धुप -छाँव , खट्टा- मीठा , गर्मी -सर्दी , दुःख और सुख होते हैं , इसी तरह सफलता-असफलता होती हैं, अच्छी तरह से परिक्षा की तैयारी करें और फिर रिजल्ट जैसा भी आये वे स्वीकार करें . एक्जाम के बाद नेगेटिव रिजल्ट भी आ सकता है, उसे झेलनी की मानसिक तैयारी पहले से ही कर लें. अगर घरवाले कुछ कहते हैं तो उन्हें एक मार्मिक पत्र लिखें, उन्हें वे कारण बताएं जो आपकी असफलता के हैं. उनसे वादा करें कि अगली बार वे और बेहतर तैयारी करेंगे . इस तरह सबकी सूझ-बूझ और समझदारी से आत्महत्या के इस सिलसिले को कम किया जा सकता है . आखिर जीवन जीने के लिए दिया गया है . इससे कभी हार नहीं मानने चाहिए , चाहे कारण कितना भी बड़ा क्यों न हो .













Monday, May 24, 2010

मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं या किसी मठ के पुजारी

यूपी ए सरकार की दूसरी पारी के एक साल का कार्यकाल पूरा हुआ. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस अवसर पर एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया जब उनसे पूछा गया कि वे अपनी सरकार को कितने नंबर देंगे तो उनका जवाब था -पिछले चंद दिनों से टीवी, प्रिंट मीडिया में सरकार की नीतियों पर काफी बहस हुई है और मीडिया ने नंबर भी दिए हैं। यह मेरे लिए उचित नहीं है कि मैं नंबर दूं। उन्होंने कहा कि इसका फैसला भारत की जनता करेगी। मीडिया करेगा। आप लोग करेंगे। अब प्रधानमंत्री जी को कौन समझाए कि भारत की जनता तो बहुत पहले फैसला कर चुकी है मगर उस फैसले को मानेगा कौन ? देश में हाहाकार मचा हुआ है . रोजाना हर चीज के दाम बढ़ा दिए जाते हैं. अब तो दिल्ली में गाड़ियों पर रोड टेक्स भी तिगुना कर दिया गया. डीजल पेट्रोल के दाम दो बार बढाए जाने के बाद भी फिर से एक बार भाव बढाए जाने की तैयारी चल रही है . हर चीज मंहगी हो रही है मगर श्रम का कोई महत्त्व नहीं है, मजदूरी बढाने का कोई नाम नहीं ले रहा है . सब लोग यूपी ए सरकार को कोस रहे हैं. सब लोगों ने इस सरकार को हर मोर्चे पर फिसड्डी पाया है . तो क्या आप इस फैसले को स्वीकार करेंगे मनमोहन सिंह जी. या फिर आपने सोच लिया है कि चदेश की जनता चाहे जो कहे, चाहे जो करे , मगर आपको तो सिर्फ राहुल गांधी और सोनिया गांधी को ही खुश कर देना है . फिर आपकी कुर्सी को कोई हिला नहीं सकता. वैसे भी देश का आम नागरिक आपको प्रधानमंत्री कम और किसी मठ का पुजारी ज्यादा मानता है .क्योंकि जिस तरह कोई पुजारी अपने भगवान का आदेश मानता है , उसकी पूजा करता है यही हाल मनमोहन सिंह जी करते हैं. जो आदेश सोनिया गांधी ने दिया उस पर तुरंत अमल होता है जनता जाए भाद में . जनता के पास सिर्फ वोट देने का अधिकार जो है . वोट देकर चुने हुए प्रतिनिधि को वापस तो बुलाया नहीं जा सकता. मनमोहन सिंह से आतंकवाद , नक्सल समस्या , मंहगाई आदि के बारे में जो भी सवाल पूछे गए , उसका वे गोलमोल जवाब देते गए . दुर्घटनाओं पर भी बोले कहा-देश का प्रधानमंत्री होने के नाते मैं जनता और संसद के प्रति जवाबदेह हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कई मसले ऐसे हैं, जिनसे हमें निपटने की जरूरत है। हमें इन त्रासदियों की तह तक जाना होगा। ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति मानवीय भूलों के कारण न हो, ये सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।
कम से कम ये तो बताएं कि निपटेगा कौन ? आखिर कौन है जो ये सुनिश्चित करेगा कि ऐसी दुर्घटनाओं कि पुनरावृत्ति न हो? क्या किसी दुसरे देश का प्रधानमंत्री यह सब ठीक करने आएगा ? क्या किसी और संसद में इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा ? पड़ोसी देश के साथ संबंधों पर कहा कि -पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते न होने की मुख्य वजह दोनों देशों के बीच 'विश्वास की कमी' है। विश्वास की कमी के चलते इस दिशा में आगे बढ़ने में समस्या खड़ी हो रही है। बेहतर रिश्तों के लिए विश्वास बहाली जरूरी है अरे भई., आप इस देश के प्रधानमंत्री हैं , आप पहले भी इस देश पर पूरे पांच साल राज कर चुके हो , तो आपको विश्वाश बहाल कराने से रोका किसने है ? इस विश्वाश की कमी को आप अब तक पूरा क्यों नहीं कर पाए ? क्या यह काम भी कोई दुसरे देश का प्रधानमंत्री करेगा ? . नक्सलवाद और आतंकवाद पर फरमाया कि -आर्थिक सुधारों का फायदा उठाने के लिए आतंकवाद और नक्सलवाद को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। इनका आर्थिक स्थिति पर खराब असर पड़ता है। आपको याद होगा कि मैं हमेशा से ही कहता रहा हूं कि नक्सल समस्या एक बड़ी चुनौती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हमारी सरकार ने इस समस्या को कमतर आंका। जब आप इन सब बातों को जानते हैं तो कुछ करते क्यों नहीं ? क्या आप इस देश के प्रधानमंत्री इसीलिए बने हैं कि सिर्फ हमें समयाएं गिनाते रहें .जब नक्सल समस्या बड़ी चुनौती बहुत बड़ी समस्या है और इससे आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ता है तो इसका समाधान क्यों नहीं किया ? क्यों हमारे जवान बार -बार शहीद हो रहे हैं ? आखिर वो कौन है जो आपको इन सब समस्याओं को हल करने से रोक रहा है ? या फिर आपने किसी और को ये सब करने का ठेका दे दिया है ? प्रधानमंत्री जी आपको जवाब तो देना ही होगा . देश की जनता को आप इस तरह सवालों की जलती आग में नहीं धकेल सकते . आपको इन प्रशों के जवाब देने होंगे . भले ही इस देश का आम नागरिक इस समय अंधा , बहरा और गूंगा सही , मगर जब उसे हकीकत का एहसास होगा तो बगावात का ऐसा सैलाब आएगा जिसमे आपकी पार्टी तिनके की तरह बह जायेगी.








Sunday, May 23, 2010

विमान हादसा , गुनहगार कौन ? सजा किसको ?

दुबई से मेंगलुरु आ रहे एयर इंडिया के जिस विमान का हादसा हुआ , उसमे १५८ बेगुनाह लोग असमय ही काल के गाल में समा गए . ये वो लोग थे जिन्होंने किसीका कुछ बिगाडा नहीं था, किसी नियम -क़ानून का उल्लंघन नहीं किया था , इसके बावजूद भी इनकी मौत हो गयी. इनमे महिलायें भी थीं, बूढ़े भी थे और ऐसे नवजात बच्चे भी जिन्होंने ठीक से अभी दुनिया देखी भी नहीं और दुनिया से चल बसे . कहने का लोग इसे दुर्घटना कह रहे हैं , उस पायलट की भूल मान रहे हैं जिसे एक हजार से ज्यादा घंटे उड़ान भरने का अनुभव था . कुछ लोग किस्मत को दोष दे रहे हैं और कुछ तो ऐसे भी होंगे जो सोचते होंगे कि वे कभी विमान में सफर करेंगे ही नहीं , या फिर जो यात्री मरे हैं अगर वे यात्रा नहीं करते तो अच्छा होता.लेकिन ये संभव नहीं. जब सुविधाएँ हैं और लोग उनका शुल्क वसूलने की क्षमता भी रखते हैं तो वे इसका इस्तेमाल करेंगे ही. इस विमान में सफर करने वालों ने बाकायदा टिकट लेकर यात्रा की थी और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी इससे जुड़े मंत्रालय और केंद्र सरकार की बनती है. गुनहगार केंद्र सरकार है . मेरा ख़याल है कि जिसका गुनाह है , उसे न तो सजा मिली है और ना ही लोग उसे आरोपित कर रहे हैं. जी हाँ, मै नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर पोर्ट अथोरिटी की ही बात कर रहा हूँ. सिर्फ नैतिकता की दुहाई देकर इस्तीफे का नाटक करने भर से ही १५८ लोग फिर से जी नहीं उठेंगे . खैर जियेंगे तो तब भी नहीं जब सम्बंधित मंत्री का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा . लेकिन अचानक हुई उनकी मौत के दर्द को इस तरह आसानी से भुलाया भी नहीं जा सकता. वो भी उस अवस्था में जब इस रनवे का उदघाटन करने खुद नागरिक उड्डयन मंत्री इस दुर्घटना से कुछ घंटे पहले ही गए हुए थे. जहां पर यह रनवे है , वह पठार क्षेत्र है . सबको मालूम था कि अगर ज़रा भी भूल हई तो हादसा हो सकता है , इसके बावजूद भी वाहन पर इंटर नैशनल उड़ान की अनुमति आखिर किन मजबूरियों के तहत की गयी. अब हादसे की जाच के लिए जिस तरह सरकार तत्परता दिखा रही है , क्या इस बात की भी जांच की जायेगी कि इतनी संवेदनशील जगह पर इतना तंग रनवे बनाने की आखिर मजबूरियां क्या थीं ? जल्दबाजी क्या थी ? वे कौन लोग या अथोरिटी थी जिसने इस पर ध्यान नहीं दिया और उदघाटन करने गए मिनिस्टर को भी इसमें कुछ गलत क्यों नहीं दिखाई दिया ? थोड़ी बहुत मानव भूल स्वाभाविक है , क्या रनवे के निर्माण के समय इसका ध्यान नहीं रखा गया ? इस रनवे के निर्माण का ठेका किस कंपनी को दिया गया था ? क्या उस्ससे भी इस सम्बन्ध में पूछताछ की जायेगी ? क्कुछ सवाल मारे गए पायलट के परिजनों ने भी उठाये हैं . उनका कहना है कि पायलट से रोजाना दस घंटे से ज्यादा काम लिया जा रहा था , जो कि गलत है . पायलट को समुचित आराम मिलना चाहिए वरना वह अपने कर्तव्य को ठीक से अंजाम नहीं दे पायेगा . तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या एयर इंडिया में पायलटों की कमी चल रही है , क्या अन्य पायलटों से भी इस तरह निर्धारित समय से ज्यादा काम लिया जा रहा है . और अगर ऐसा है तो इसकी भी जांच करनी चाहिए . ये इसलिए जरूरी है ताकि भविष्य में इस तरह और लोग मौत के आगोश में जाने से बच सके. बेकसूरों को बेमौत मरने से बचाने के लिए सख्त कदम जरूरी हैं. मगर सख्त कड़क उठाएगा कौन ? बेचारे प्रधानमंत्री मजबूर हैं. गठबंधन सरकार की मजबूरी ने उनके हाथ बाँध रखे हैं. वे चाहकर भी अपनी सरकार की सहयोगी पार्टियों के खिलाफ न तो कोई बयान दे सकते हैं और ना ही कोई एक्शन ले सकते हैं. एक अच्छे बाबू की तरह उन्हें सिर्फ काम करते रहना है. स्टेम्प की तरह लगते रहना है . नागरिक उड्डयन मंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के हैं, क्या मजाल कि कांग्रेस उनके खिलाफ या उनकी मर्जी के बिना इस हादसे के बारे में अपनी मर्जी से सही जांच करवा सके. जानते हैं हैं न सरकार गिर सकती है. सरकार चलाने की ये मजबूरियाँ भी ऐसी अनहोनियों के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. आप क्या सोचते हैं ?













Friday, May 21, 2010

मंहगाई आसमान पर
सरकार जमीन पर
और आम इंसान ?
गैस के बाद अब बिजली के दाम बढाने का भी एलान कर दिया गया. यानि एक तो करेला , ऊपर से नीम चढ़ा . क्या पहले से ही कम दुःख थे , कम मंहगाई थी , जो ये बोझ भी लाद दिए गए .अब ये मंहगाई और भी बढ़कर सातवे आसमान पर पहुच जायेगी . जो कांग्रेस आम आदमी की बात करती थी , 'कांग्रेस का हाथ , आम आदमी के साथ ' का नारा बुलंद किया करती थी, वह अब कहीं नजर नहीं आती . गरीबी मिटाने की बात करते -करते कांग्रेस ने पहले लोगों से वोट हासिल किये और सता मिलते ही उसने गरीबी छोड़, गरीबों को ही मिटाना शुरू कर दिया. आलू , गोभी, टमाटर , हरी मिरच से लेकर आटे-दाल, तेल -तिलहन तक के भाव ने देश वासियों को खूब रुलाया है . घर की कीमतें भी ऐसी हो गयी हैं कि आम आदमी तो फ्लेट की बात सोच भी नहीं सकता. इसके बावजूद केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार मंहगाई रोकने के कोई प्रयास करती दिखाई नहीं देती, उलटे अब सभी चीजों के दाम बढाने शुरू कर दिए हैं. पेट्रोल -डीजल के रेट जब बढाए गए तो पूरे देश में त्राहि मम -त्राहि मम की गूँज सुनाई देने लगी थी, अब शायद चिल्लाने के लिए जान भी शेष नहीं रहे. जो लोग मुंबई में टीम हजार रुपये महीने रुपये की नौकरी कर रहे हैं वे सौ रुपये किलो की हरी मिर्च कैसे खा पायेंगे ? विपक्षी दल अक्सर कांग्रेस पर निशाना साधते हैं, कहते हैं कि कांग्रेस चुनाव लड़ने के लिए बड़े- बड़े व्यवसाइयों और दलालों से चंदा लेती है . जब उसकी सरकार बनती है तो जिनसे चन्दा लिया गया है, उनको फायदा पहुचाने वाली नीतियां बनाई जाती हैं. इसलिए गरीब की बात पीछे छूट जाती है. गरीबों का शोषण बदस्तूर जारी रहता है . कांग्रेस जानती है कि इस देश में बहुत गरीब हैं, भूखे हैं, बेघर और अशिक्षित हैं. उनको चुनाव के समय अगर थोड़े से रुपये बाँट दिए जाएँ तो वे शराब और कबाब के नशे में पिछले पांच सालों के जख्मों को भूल जाते हैं , कांग्रेस के मीठे और लुभावने वादों में वे फिर से अपना उज्जवल भविष्य तलाशने लगते हैं. ये सब मैंने खुद भी अपनी आँखों से देखा है . पिछले विधान सभा का चुनाव मैंने मीरा भाइंदर विधान सभा सेट से बसपा के टिकट पर लड़ा. मैंने पूरी ईमानदारी के साथ चुनाव लड़ा. लोगों को विकास के बारे में समझाया . मगर यहाँ की जनता ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी के संयुक्त उम्मीदवार गिल्बर्ट मेंडोसा को चुना. वही मेंडोसा , जिन पर दर्जनों गंभीर केस दर्ज हैं. दौलत की ताकत ऐसी ही होती है . मगर उस वक्त गरीब मतदाता को ये लोग सोचने समझने लायक ही नहीं छोड़ते . ये पार्टियां पांच साल तक जिनका खून चुस्ती हैं , उन्हें कुछ दिनों के लिए खूब शराब पिलाती हैं, उन्हें मदहोश कर डालती हैं. मैंने देखा कि जो लोग भाजपा की रैली में जाते थे , वे शाम को किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार का प्रचार करते थे. सबका खुला रेट था. बड़ा अजीब मंजर था. सौदागर सौदा कर रहे थे , लोग बिक रहे थे. कुछ मेरे जानने वाले भी 'कार्यकर्ता सप्लाई ' का धंधा कर रहे थे. वे मुझे भी कम कीमत में अपनी सेवायें देना चाहते थे मगर मैंने उनकी सेवायें नहीं ली. मेरे चुनाव कार्यालय में रोजाना सैकड़ों युवक- युवतियां, महिला -पुरुष आते थे जो मेरा प्रचार करना चाहते थे, मुझे वोट क्लारना चाहते थे मगर उसकी कीमत चाहते थे, एक महिला ने तो कमाल ही कर दिया . यह घटना भायंदर वेस्ट के भोलानगर की है. मै घर-घर जाकर वोट मांग रहा था . मेरे साथ सच्चे और अच्छे कार्यकर्ता थे. एक महिला ने मुझे मराठी में बाते कि वह विदर्भ की रहने वाली है और डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर की अनुयाई है. यह जानकार मुझे खुशी हुई. मैंने उनसे बाबा साहेब के विचारों पर चलने वाली पार्टी यानि बसपा के लिए मतदान करने को कहा और वहाँ से चल दिया . तभी उसने आवाज दी और मुझसे रुकने को कहा. उसने मेरे करीब मुझे वोटर लिस्ट की जेरोक्स दिखाते हुए कहा कि उनकी तीन वोट हैं, इनकी पांचसौ रुपये प्रति वोट के हिसाब से १५०० रुपये चुकता कर दीजियें . उसने कहा कि दूसरे उम्मीदवार उन्हें इन तीन वोटों के लिए २००० देने को तैयार है. मै उसकी बात सुनकर सन्न रह गया.आज भी उसकी बातें जेहन में घूमती रहती हैं. क्या यही लोकतंत्र है ? क्या नोटों से खरीदे गए वोटों से चुना गया जन प्रतिनिधि जनता की भलाई के बारे में सोच सकता है ? इस खेल में सभी पार्टियां बराबर की भागीदार हैं .क्या इसका कोई इलाज है ? क्योंकि जो जानलेवा मंहगाई है , इस समस्या का समाधान भी इसी प्रश्न में छिपा है.













Thursday, May 20, 2010

भाजपा की जातिवादी सोच

यूं होने को तो भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी होने का गौरव हासिल है, कहा जाता है कि इस पार्टी में पढ़े -लिखे विद्वान लोगों बहुतायत में हैं . भाजपा अपने आपको राष्ट्रवादी होने का डंका भी पीटती आई है , मगर प्रत्यक्ष में अक्सर देखने को मिलता है कि भाजपा की कथनी और करनी में भारी अंतर है. अक्सर देखने में आया है कि भाजपा राष्ट्रवादी कम और जातिवादी ज्यादा है . भाजपा के दो नेताओं वरुण गांधी और विनय कटियार के हाले के बयानों से भी यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाती है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही के प्रदेश अध्यक्ष बन्ने के बाद पहली बार लखनऊ पहुचने पर उनका एक स्वागत समारोह आयोजित किया गया था.इसी अवसर पर भाजपा सांसद और युवा नेता वरुण गाँधी ने एक खतरनाक एलान किया . उन्होंने कहा कि अगर २०१२ के विधान सभा चुनाव में भाजपा की सरकार बनती तो मायावती की मूर्तियां हटवाएंगे और राम चन्द्र की मूर्तियां लगवाएंगे . इसके बाद जब विनय कटियार बोले तो सारी मर्यादाएं लांघ गए, राजनीतिक मर्यादा , मानवता की मर्यादा , सबको तार -तार कर दिया . विनय कटियार ने कहा कि अगर भाजपा की सरकार आती है तो मायावती की जगह पर भगवां राम की मूर्तियां इसलिए नहीं लगवाई जा सकतीं क्योंकि वह स्थान अब अपवित्र हो चूका है. विनय कटियार का यह बयां निंदनीय तो है ही , साथ में दंडनीय भी है . एक दलित महिला , जो कि देश के बड़े राज्य की मुख्यमंत्री भी हैं, उनके खिलाफ यह टिप्पणी जातिवादी , मनुवादी मानसिकता की परिचायक है. विनय कटियार की यह टिप्पणी उस देश की महिला के लिए है , जिस देश में कहा गया है कि-' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता . अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है , वहाँ देवता वास करते हैं. लेकिन लगता है अब भाजपा का चेहरा -मोहरा बदल रहा है , अब विद्वानों कि जगह ऐसे गंवारों और नादानो ने ले ली है जो देश की संस्कृति और सभ्यता को बढ़ावा देने के बजाय उसका दोहन कर रहे हैं, गलत छवि पेश कर रहे हैं. जब तक इस देश से जातिवाद की जड़ों को समूल रूप से नष्ट नहीं किया जाता तब तक आमेरिका, चाइना से मुकाबला करने का ख़्वाब भी छोड़ दीजिए . बाहर के मिलकों में सभी जाति, धर्म और प्रान्त के लोगों को सामान रूप से तरक्की करने अवसर दिया जाता है. मगर हमारे देश में उन लोगों को सदियों से प्रताडित किया गया है , जो बहुतायत संख्या में हैं, भारतीय जनता पार्टी आज भी इस प्रताडना और कुप्रथा को हमेशा के लिए बनाए रखने कि ख्वाहिशमंद है . तभी एक दलित और महिला मुख्यमंत्री के खिलाफ इस तरह की अमानवीय टिप्पणी की जा रही हैं. इस घृणित बयानबाजी ने उस घटना को ताजा कर दिया है जो देश के पूर्व उप प्रधान मन्त्री बाबू जगजीवन के साथ घटी थी. दलित नेता बाबू जगजीवन को किसी स्थान पर एक महापुरुष की मूर्ती के अनावरण के लिए बुलाया गया था . बाबूजी आये और अनावरण कर दिया . लेकिन उनके जाने के बाद कुछ मनुवादियों को ये बात हजम नहीं हुई , उन्होंने उस मूर्ती का ' शुद्धीकरण ' किया ताकि उसे पवित्र किया जा सके . ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मनुवादियों की निगाह में बाबूजी उप प्रधान मंत्री बाद में और दलित पहले थे , और वे ऐसा कैसे बर्दाश्त कर सकते थे कि को अछूत उनकी किसी मूर्ती को भी टच कर सके. उस दौर में और आज के दौर में कुछ फर्क नहीं है आज भी मानसिकता में ज्यादा बदलाव नहीं आया है . उस जातिवादी मानसिकता को बल देने के लिए आज भी वरुण गांधी और और विनय कटियार जैसे लोग मौजूद हैं. वरुण गांधी राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिएछटपटा रहे हैं. उनका चचेरा भारी राहुल गांधी जिस तरह मीडिया का तारा बने हुए हैं, वरुण भी ऐसी चाहत रखते हैं मगर आसान से यह संभव नहीं , इसलिए समाज को तोड़ने वाले बयान दे रहे हैं. भाजपा नेतृत्व चुप है . भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद पिछले दिनों लालू प्रसाद यादव और मूल्यम सिंह यादव को कुत्ता कहकर अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दे चुके हैं. लोग कह रहे हैं कि जब सरदार ही ऐसा हो तो उसके गिरोह के लोग कैसे होंगे ? एक बार तो वरुण गांधी को अपनी नानी याद आ चुकी है , अब अगर अनुसूचित जाति , जन जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत वरुण गांधी और विनय कटियार खिलाफ केस दर्ज होता है तो नेतागीरी खूंटी पर टंग जायेगी .











Tuesday, May 18, 2010

ई मेल का खेल

समस्त भारत में आजकल ई मेल का एक ऐसा खेल चल रहा है , जिसने लोगों का जीना हराम कर दिया है . मकान -दुकान बेचने तक के लिए मजबूर कर दिया है. लोगों को कंगाल बनाने वाले ये ई मेल आखिर आते कहाँ से हैं, इन्हें भेजता कौन है और इनके झांसे में कौन आता है ? मैंने बहुत दिनों तक इसकी जांच पड़ताल की , तब जाकर एक यह बात भी निकलकर सामने आई कि मुंबई के लोगों को आर्थिक रूप से बर्बाद करने वाले ज्यादातर ठग नाइजीरियन होते हैं , ये लोग मुंबई और आसपास के इलाकों में बैठकर इस तरह के ई मेल भेजते हैं, और इनके शिकार पढ़े -लिखे लोग ही बनते हैं. इनके ई मेल में मजमून ऐसा होता है कि सामने वाला इनके जाल में फंसने से बच नहीं पाता . मुझे पिछले कई सालों से इस तरह के मेल आ रहे हैं . मेल भेजने वाले अल्लग -अलग स्टायल में उल्लू बनाते हैं. कभी आपको मेल भेजा जाता है कि आपकी लोटरी लग गयी गई. मेल पढ़ने वाले की खुशी का ठिकाना नहीं रहता . वह खुद को सौभाग्यशाली समझता है. यह भूलकर कि जिस दुनिया में एक -एक रुपये पर लोग अपना ईमान डिगाते हैं, उस दुनिया में ऐसे भले मानस कहाँ से आ गए जो बिना कोई लोटरी खरीदे ही आपको लाखों, करोडों रुपये देने की बात कर रहे हैं, आपने कोई लोटरी खरीदे ही नहीं , फिर भी यह जानकार खुश हैं कि आपकी किस्मत खुल चुकी है , आपको कई करोड का इनाम मिलने वाला है , लेकिन ? आगे का यह लेकिन ही खतरनाक होता है . मेल करने वाला बड़ी चालाकी से आपका पता , फोन नंबर , पेशा इत्यादि जानकारी हासिल कर लेता है. कभी -कभी तो लूटने वाले इतने पर ही बेडा पार कर देते हैं. जब मेल करने वाला बेंक का नाम , नंबर , क्रेडिट कार्ड नंबर सी वी सी नंबर पूछते हैं. अति उत्साही लोग तुरंत कालम भर देते हैं . कुछ ही मिनिट बाद उनको पता चलता है जितना बैलेंस उनके बेंक में था , सब खत्म हो गया.एक मिनिट में ही वे लोग सारा बैलेंस साफ़ कर देते हैं. अगर इसमें कोई बच भी गया तो ठगों के पास हथियारों की कमी नहीं , वे अपने शिकार से किसी न किसी बहाने रुपये हड़प ही लेते हैं. वे कहते हैं कि -' आप अपना करोड़ों का इनाम ले सकते हो मगर इतने रुपये भारत स्थित आपके बेंक में डालने के लिए कुछ शुरुआती खर्च आ रहा है , जिसे आपको वाहन करना होगा . ' लालच बुरी बला है इसीमे में पढ़ा लिखा होशियार व्यक्ति फंस जाता है और फिर अच्छी तरह से लुट -पिट जाता है. मेल करने वाले कभी इस बहाने मेल करते हैं कि वो किसी देश की महारानी है , उसके पति सड़क दुर्घटना में मर चुके हैं , घर के अन्य सदस्य उसकी जान के पीछे पड़े हैं , उसके पास अरबों रुपये की अथाह दौलत है और इस सारी दौलत को भारत में इन्वेस्ट कर , वह भारत में ही सैटल होना चाहती है. मेल पघने वाले के मन में लड्डू फूटने लगते हैं , आगे वह पढता है कि वह अपनी सारी दौलत को उसके पास रखना चाहती है क्योंकि उसने जानकारी निकाली है कि वह बेहद ईमानदार है . उसके मन में दूसरा लड्डू फूटने लगता है . मगर अंत में मेल में वही रटी-रटाई कहानी कि पहले थोड़े से रुपये खर्च करने होंगे . पढ़ने वाला सोचता है कि अगर लाख -दो लाख में करोड़ों का मुनाफ़ा होता है तो रिस्क लेने में बुराई क्या है . आर या पार ? मगर यहीं वह मर खा जा जाता है . वह नाइजीरियन ठगों के चंगुल में बुरी तरह फंस चूका होता है.इसी तरह के लाखों मेल रोजाना लोगों को भेजे जा रहे हैं. मेल भेजने वाले नाइजीरियन हैं, जो मीरा रोड , भायंदर या अन्य स्थानो पर बहुतायत रहते हैं और साइबर कैफे का इस्तेमाल कर लोगों को ठग रहे हैं . ये लोग इतने ढीठ और शातिर होते हैं कि पुलिस इन तक पहुच ही नहीं पाते. ये झगडा करने में भी बड़े माहिर होते हैं. एक बार तो जब एक नाइजीरियन को पकड़ने पुलिस उसके घर पहुँची तो उसने यह कहकर पुलिस को धमकाया था कि उसे एड्स की बीमारी है, अगर पुलिस ने उसे अरेस्ट किया तो वह पुलिस वाले को काट खायेगा और उसे भी बीमार कर देगा ये अलग बात है कि पुलिस वालों ने उसे पकड़ हे लिया था. इन शातिर ठगों को पकड़ने का तरीका मुश्किल नहीं है. अगर सम्बंधित अधिकारी इस कॉलम को पढ़ रहे हैं तो यह उनके काम का नुस्खा है . पहले सरकार यह सर्वे कराये कि मुंबई तथा आसपास के उपनगरों में कितने नाइजीरियन , कहा -कहाँ रहते हैं. , जो लोग ऐसे लोगों को घर या होटल किराए पर देते हैं, उनके लिए सर्वे करने वाले विभाग को जानकारी देना अनिवार्य कर दिया जाए, साइबर कैफे वालों को सख्त हिदायत देकर इन शातिर ठगों का पूरा रिकार्ड चेक किया जाए , जैसे कि इसने किस-किसको मेल भेजे और उनका मजमून क्या था ? सबूत हाथ में आते ही गिरफ्तार कर लिया जाए . ऐसे ठगी के मामले रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए . सख्त क़ानून बनाया जाना चाहिए .

- मुकेश कुमार मासूम













Monday, May 17, 2010

प्यार के व्यापार

प्यार , इस लफ्ज में सबसे ज्यादा महक है , सबसे ज्यादा पाकीजगी है . लेकिन आज के दौर में दोस्ती और प्यार को महज एक व्यापार की शक्ल दे दी गईं है. कुछ शातिर दिमाग लोगों ने मोहब्बत की आड़ में झूठ और फरेब के धंधे शुरू कर दिए हैं. टीवी और अखबारों में बाकायदा दोस्ती , मनोरंजन, मोहब्बत आदि के इश्तिहार दिए जाते हैं. इनके झांसे में आकर लोग प्रेम तलाशने लगते हैं . उन्हें प्रेमिका तो नहीं मिलती , हाँ झांसा जरूर मिल जाता है . इस झांसे में आकर लोग रोजाना लाखों रुपये बर्बाद कर रहे हैं. फ्रेंडशिप क्लब के नाम पर दगाबाजी की जो दुकानें चल रही हैं, उनका सालाना मुनाफ़ा करोड़ों में होता है . इस रैकेट में बहुत शातिर लोग शामिल होते हैं . इनका फनासे का तरीका बेहद चालाकी भरा होता है . यही वजह है कि बहुत से युवा इनके शिकार हो जाते हैं और फिर झिझक की वजह से ये लोग अपनी व्यथा किसी से कह भी नहीं पाते, जो लोग शिकायत करने का साहस जुटाते हैं , उनका दर्द पुलिसवाले सुनने को तैयार नहीं होते , जिस कारण फर्जी प्यार की दूकान चलाने वालों का धंधा बदस्तूर चलता रहता है. ये पप्यार के व्यापारी उत्तर प्रदेश, बिहार , छत्तीसगढ़ , आदि दूर दराज के क्षेत्र में बैठे होते हैं. ये नॉएडा , दिल्ली, पुणे आदि में बैठकर भी अपना धंधा ओपरेट करते हैं. इनकी कार्यप्रणाली ऐसी होती है कि पकडे जाने की गुंजाइश बहुत कम होती हैं. पहले ये किसी सुरक्षित स्थान को चुनकर अपना कार्यालय बनाते हैं, फिर किसी बड़े क्र्पोरेट बेंक जैसे आई सी आई सी आई , एच डी एफ सी आदि बेंक में किसी फर्जी नाम से खाता खुलवा लेते हैं. इसके बाद ये देश भर के अखबारों में आकर्षक विज्ञापन देते हैं. इसमें प्यार करनी की गारंटी दी जाती है.प्रेम के साथ -साथ दौलत कमाने का लालच भी दिया जाता है. लोग इनके झांसे में आकर इन्हें फोन करते हैं , तो ये उनसे अपने बेंक में रुपये जमा कराने को कहते हैं . रुपये जमा करने के बाद प्रेम का व्यापार करने वाले अपनी चालाकी दिखानी शुरू कर देते हैं. न खुदा ही मिलता और ना विसाले सनम. यानि कि फिर उन्हें न तो प्रेम मिलता है और ना ही पैसे. प्यार के व्यापारी इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर अपने सुरक्षित स्थान से आसानी से रुपये ट्रांसफर कर लेते हैं और अगर किसी ने खुदा ना खास्ता शिकायत दज करवा भी दी और उस पर अमल भी हो गया तो क्या फर्क पड़ता है ? इनका बेंक अकाउंट भी फर्जी नाम से होता है . प्यार बेचने वाले ये लोग बहुत सेफ धंधा करते हैं. ये लोगों की नब्ज पकड़ गए हैं , इन्हें मालूम है कि भारत में ऐसे लोग बहुत कम मिलेंगे जो सेक्स के साथ दौलत का ऑफर ठुकरा सकें , तभी तो विज्ञापन में कहा जाता है कि विदेशी महिलाओं से दोस्ती करिये , उनकी बॉडी मसाज करिये और प्रति रात हजारों कमाइए . यानि कि मौज मस्ती के साथ-साथ दौलत कमाने का भी मौक़ा अपने हाथ से कौन गंवाना चाहता है ?हुस्न और दौलत पाने का लालच उन्हें कंगाल बना देता है. इसलिए ऐसे फ्रेंडशिप क्लब या मनोरंजन या मसाज के चक्कर में आने की जरूरत नहीं है. बल्कि मेहनत कर बड़ा आदमी बनने के बारे में सोचें, प्यार कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे बाजार से खरीदा जा सके. जो लोग प्यार बेचने का दावा कर दौलत कम रहे हैं, वे जानते हैं कि यहाँ पर चाँद बेचने का दवा भी किया जाए तो ऐसे मूर्खों की भी कमी नहीं जो खरीदने के लिए आगे आ जायेंगे , और अगर उसे फ्री में बेचने का विज्ञापन अगर कोई दे तो खरीदारो की लाइन लग जायेंगे , ये अलग बात है कि भले ही उन्हें बाद में लाखों का चूना लगा दिया जाए.कहने का अर्थ ये कि प्यार के नाम पर लूटने वाले जितने गुनहगार हैं, प्यार और सेक्स के लालच में आकार लुटने वाले भी कम जिम्मेदार नहीं है. ,मन के अंदर से वासना को निकाला फेंकना जरूरी है, लालच को निकाल फेंकना जरूरी है . वरना मोहब्बत के नाम पर इसी तरह लूट चलती रहेगी.

- मुकेश कुमार मासूम










प्यार , इस लफ्ज में सबसे ज्यादा महक है , सबसे ज्यादा पाकीजगी है . लेकिन आज के दौर में दोस्ती और प्यार को महज एक व्यापार की शक्ल दे दी गईं है. कुछ शातिर दिमाग लोगों ने मोहब्बत की आड़ में झूठ और फरेब के धंधे शुरू कर दिए हैं. टीवी और अखबारों में बाकायदा दोस्ती , मनोरंजन, मोहब्बत आदि के इश्तिहार दिए जाते हैं. इनके झांसे में आकर लोग प्रेम तलाशने लगते हैं . उन्हें प्रेमिका तो नहीं मिलती , हाँ झांसा जरूर मिल जाता है . इस झांसे में आकर लोग रोजाना लाखों रुपये बर्बाद कर रहे हैं. फ्रेंडशिप क्लब के नाम पर दगाबाजी की जो दुकानें चल रही हैं, उनका सालाना मुनाफ़ा करोड़ों में होता है . इस रैकेट में बहुत शातिर लोग शामिल होते हैं . इनका फनासे का तरीका बेहद चालाकी भरा होता है . यही वजह है कि बहुत से युवा इनके शिकार हो जाते हैं और फिर झिझक की वजह से ये लोग अपनी व्यथा किसी से कह भी नहीं पाते, जो लोग शिकायत करने का साहस जुटाते हैं , उनका दर्द पुलिसवाले सुनने को तैयार नहीं होते , जिस कारण फर्जी प्यार की दूकान चलाने वालों का धंधा बदस्तूर चलता रहता है. ये पप्यार के व्यापारी उत्तर प्रदेश, बिहार , छत्तीसगढ़ , आदि दूर दराज के क्षेत्र में बैठे होते हैं. ये नॉएडा , दिल्ली, पुणे आदि में बैठकर भी अपना धंधा ओपरेट करते हैं. इनकी कार्यप्रणाली ऐसी होती है कि पकडे जाने की गुंजाइश बहुत कम होती हैं. पहले ये किसी सुरक्षित स्थान को चुनकर अपना कार्यालय बनाते हैं, फिर किसी बड़े क्र्पोरेट बेंक जैसे आई सी आई सी आई , एच डी एफ सी आदि बेंक में किसी फर्जी नाम से खाता खुलवा लेते हैं. इसके बाद ये देश भर के अखबारों में आकर्षक विज्ञापन देते हैं. इसमें प्यार करनी की गारंटी दी जाती है.प्रेम के साथ -साथ दौलत कमाने का लालच भी दिया जाता है. लोग इनके झांसे में आकर इन्हें फोन करते हैं , तो ये उनसे अपने बेंक में रुपये जमा कराने को कहते हैं . रुपये जमा करने के बाद प्रेम का व्यापार करने वाले अपनी चालाकी दिखानी शुरू कर देते हैं. न खुदा ही मिलता और ना विसाले सनम. यानि कि फिर उन्हें न तो प्रेम मिलता है और ना ही पैसे. प्यार के व्यापारी इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर अपने सुरक्षित स्थान से आसानी से रुपये ट्रांसफर कर लेते हैं और अगर किसी ने खुदा ना खास्ता शिकायत दज करवा भी दी और उस पर अमल भी हो गया तो क्या फर्क पड़ता है ? इनका बेंक अकाउंट भी फर्जी नाम से होता है . प्यार बेचने वाले ये लोग बहुत सेफ धंधा करते हैं. ये लोगों की नब्ज पकड़ गए हैं , इन्हें मालूम है कि भारत में ऐसे लोग बहुत कम मिलेंगे जो सेक्स के साथ दौलत का ऑफर ठुकरा सकें , तभी तो विज्ञापन में कहा जाता है कि विदेशी महिलाओं से दोस्ती करिये , उनकी बॉडी मसाज करिये और प्रति रात हजारों कमाइए . यानि कि मौज मस्ती के साथ-साथ













Sunday, May 16, 2010

खंड -खंड पाखण्ड

'एक घंटे में तकदीर बदल दूँगा ' , ;खुला चैलेन्ज ' , 'दुआ भी तकदीर बदल सकती है ' , 'ए टू जेड समस्या का समाधान ', ' मौत को छोड़कर सभी कठिन से कठिन समस्याओं का गारंटी से समाधान ', आदि शीर्षक वाले विज्ञापन आपने अवश्य किसी न किसी अखबार में पढ़े होंगे या फिर किसी ट्रेन या शौचालय में चिपके हुए देखे होंगे . इन्हें पढकर जब कोई व्यक्ति इन ढोंगी बाबाओं के पास जाता है तो वहीं से उसकी उल्टी गिनती शुरू हो जाती है . ये विज्ञापन देने वाले ज्यादातर पाखंडी पता है कौन हैं ? एक नंबर के अनपढ़ , गंवार और आपराधिक प्रष्ठभूमि के लोग . इनमे से ज्यादातर 'बाबा ' मेरठ या आसपास के क्षेत्रों के रहने वाले हैं. इनका मकसद सामने वाले की मजबूरी का फायदा उठाना होता है. ये कथित बाबा शराब, शबाब और कबाब के शौक़ीन होते हैं. मुंबई में इनमे से कई पाखंडियों की लाखों , करोड़ों की प्रोपर्टी है , जो सीधे सादे लोगों को ठगकर बनाई गयी है. अगर इनका रिकार्ड खंगाला जाए तो पता चलेगा कि ये बहुत मामूली पढ़-लिखे या बिलकुल नहीं पढ़े होते हैं. छोटे- मोटी जादू ( साइंस फिक्सन जैसे पानी मारकर आग जला देना इत्यादि ) सीखकर ये अपना ऑफिस डाल देते हैं, अखबार और टीवी में विज्ञापन देकर ये परेशान लोगों को और भी परेशान करने की दूकान खोल लेते हैं. इनकी अकड और आपराधिक इतिहास की वजह से कोई इनकी शिकायत भी नहीं कर पाता , और जब कोई ज्यादा परेशान व्यक्ति पुलिस थाणे में शिकायत कर भी दे तो ले देकर ये मामला सुलझा लेते हैं , लेकिन बात जब हद से गुजर जाए और कोई अच्छा पुलिस अधिकारी या शिकायतकर्ता इनसे भीड़ जाए तो इनकी नानी भी याद आ जाति है. मुंबई और आसपास के इलाकों में अब तक कई पाखंडियों को धोखाधड़ी से लेकर बलात्कार और क़त्ल के आरोप में कई बार पकड़ा गया है . पता चला है कि कुछ इलाकों में ये ढोंगी बाकायदा पुलिस को हफ्ता पहुचाते हैं, जिस कारण इनकी शिकायतें बहुत कम दर्ज हो पाती हैं.बुलंद हौसलों के साथ ये अपनी धोखाधड़ी की दूकान चलाते रहते हैं.इनके पास आने वालों में महिलाओं का प्रतिशत ज्यादा होता है , ज्यादातर महिलाओं अपनी सास , सौतन या पति से परेशान होती हैं वे इन लोगों को अपने वश में करने के लिए ' बाबा ' की दुकानों के चक्कर काटती हैं, 'बाबा' इनसे अच्छी खासी रकम वसूलकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, जब महिला काम न होने का ताना देती हैं , अपने पैसे वापस मांगती हैं तो ये उन्हें उलटे ब्लेकमेल करने लगते हैं, उसके परिवार को राज का पर्दाफ़ाश करने की धमकियाँ देते हैं, इस कारण वे चुप होने में ही अपनी भलाई समझती हैं. कुछ 'बाबा' ऐसी मजबूर औरतों का शारीरिक शोषण भी करते हैं. जो लोग अपनी प्रेमिकाओं को वश में कराने आते हैं वे भी इसी समस्या का शिकार बनते हैं, काम न होने पर जब वे अपनी दी हुई रकम वापस मांगते हैं तो उन्हें भी बदले में धमकियाँ ही मिलती हैं. कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे ये पाखंडी बाबा ऊँट की बलि या गैंडे की बलि देने की बात करते हैं. उलझन में फंसने की बजाय वे रकम बाबाओं को दे देते हैं और आराम से गाँव घोमोमने चले जाते हैं . अपने शिकार से ये उलटा आने -जाने का भाडा भी वसूल लेते हैं , गाँव से वापस आकार ये बता देते हैं कि वह बलि देकर आ गया है . अब काम हो या न हो , इनके पास जवाब होता है- ' पैसे हमने तो नहीं लिए थे, वो तो बलि दी गयी थी, अब क्या करें , चलो फिर एक अनुष्ठान करते हैं ) इस तरह मुंबई जैसे शहर में भी इनका लूट खसोट का काम बिना किसी रोकटोक चल रहा है . एक बार तो पुलिस सख्ती में आई थी, सब बाबाओं के ऑफिस हटवा दिए थे मगर हफ्ता देकर अब यह काम फिर शुरू हो रहा है . इस पाखण्ड को लहंद -खंड करनी की जरूरत है. इस अन्धविश्वाश की आड़ में कितने ही लोगों के घर लुट रहे हैं, इज्जत लुट रही हैं. आखिर लोग ये क्यों नहीं समझ पाते कि भगवान के घर किसी दलाल की नहीं चलती . वहाँ पर डायरेक्ट निवेदन दिए जाते हैं. अगर तुम्हें कोई दिक्कत है तो सीधे अपने मालिक से प्रार्थना करो, मगर शर्त ये है कि ये प्रार्थना सच्चे दिल से होनी चाहिए . फिर देखिये , तुम्हारा काम कैसे नहीं होता ? अगर छलनी में दूध काढोगे, और भगवान को याद करोगे तो कुछ फायदा होने वाला नहीं है, दूध को तो बाहर निकलना ही है . यह जान लीजिए कि हर काम होने के लिए होता है. पूरी इमानदारी से सच्चा और अच्छा प्प्रयास करिये सफलता आपके कदम चूमेगी. पाखंडी बाबाओं , ज्योतिषों के चक्कर में पड़कर धन और समय को बर्बाद न करें. सरकार को चाहिए कि तुरंत इस तरह के धोखाधड़ी केन्द्रों को बंद कराये .

- मुकेश कुमार मासूम










Friday, May 14, 2010

विचार मंच ,रिलायंस को दलाली का लाइसेंस क्यों ?

रिलायंस को दलाली का लाइसेंस क्यों ?

सब जानते हैं कि कांग्रेस पैसे को कितनी अहमियत देती है , जितनी सच बात ये है कि कांग्रेस पार्टी ने देश पर सबसे ज्यादा शासन किया, उससे ज्यादा ये भी सच है कि इसी पार्टी के नेताओं ने सबसे ज्यादा घोटाले किये , गरीबों का हक मारा और अपने-अपने घर बनाए. अगर कांग्रेस के किसी भी पुराने नेता का रिकार्ड खंगाला जाए तब सच्चाई सामने आएगी. उसके पास अथाह धन दौलत और बेनामी संपत्ति मिल जायेगी. ये कोरा आंकलन नहीं बल्कि सच्चाई है. देश को लूट -लूटकर अपना घर बनाने वाले गरीबों का शोषण करने वाली इस पार्टी की सरकार इस समय केन्द्र के साथ -साथ महाराष्ट्र में भी है, महाराष्ट्र में भी सरकार द्वारा आम आदमी का जबरदस्त शोषण जारी है. सर्वविदित है कि कांग्रेस पार्टी बड़े-बड़े व्यवसाइयों और धन्नासेठों के चंदे के पैसे से चुनाव लड़ती है. यही कारण है कि जब इनकी सत्ता आती है तो ये लोग गरीबों को भूलकर बड़े व्यवसाइयों के हित में नीतियां बनाने लगते हैं. अब व्यवसाई कोई भी हो, जब वह नागरिकों से ज्यादा मुनाफ़ा कमाएगा तभी तो उसे मुनाफ़ा होगा . यानि कि कांग्रेस का जहाँ शासन होगा वहाँ पर चंद लोग तो करोडों -अरबों में खेलेंगे और करोडों आम लोग टुकड़े -टुकड़े के लिए मोहताज रहेंगे .महाराष्ट्र में भी यही तो हो रहा है. यहाँ पर गरीब, मजदूर किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, और रिलायंस , टाटा जैसे व्यवसाई अरबों-खरबों कमा रहे हैं. और तो और सरकार ने रिलायंस एनर्जी को जबरन दलाली का लाइसेंस दे रखा है और आम उपभोक्ता हर महीने अपने ही हाथों अपनी जेब काटने के लिए मजबूर हैं. मुंबई और आसपास के इलाकों में टाटा पावर बिजली की सप्लाई करती है . साथ ही रिलायंस को भी बिजली वितरण का अधिकार दिया गया है. इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि खुद रिलायंस भी टाटा से बिजली खरीदती है और तब जाकर वह उपभोक्ताओं को बेचती है. जाहिर ससे बात है कि यहाँ पर जो लोग रिलायंस से बिजली खरीद रहे हैं उन्हें मंहगे दाम चुकाने पड़ रहे हैं क्योंकि अगर हम डाइरेक्ट दूकान से माँ खरीदेंगे तो सस्ता मिलेगा और बीच के दलाल से खरीदेंगे तो मंहगा . क्योंकि दलाल भी अपना मुनाफ़ा वसूल करेगा . ठीक वैसा ही है जैसे रिलेट से सामान खरीदने पर मंहगा और होलसेल से खरीदने पर सस्ता मिलता है . यहाँ की सरकार ने रिलायंस एनर्जी को दलाली करने और लोगों की जेब काटने का लाइसेंस आखिर किसने दिया ? इस तरह का सवाल सब लोग कर रहे हैं. रिलायंस एनर्जी लोगों को मंहगी बिजली बेच रहा है . बेहद जद्दोजहद के बाद अब यह फैसला आया है कि जो लोग टाटा से बिजली लेना चाहें वे टाटा से ले सकते हैं और रिलायंस से लेने वाले रिलायंस से. मगर यह विकल्प भी लोगों को कई सालों बाद दिया गया है. अगर पहले से यह सुविधा होती तो रिलायंस एनर्जी की दादागीरी और दलाल्गीरी से लोगों का पीछा छोट जाता. यानि , अगर हिसाब देखा जाए तो अब तक रिलायंस ने लोगों से जो ज्यादा कीमत वसूली है, उसकी जिम्मेदार महाराष्ट्र की भ्रष्ट और निकम्मी सरकार है.जनता भी खूब भोली है, कांग्रेसी नेता उसे आईपीएल , उतार भारतीय विरोध आदि मुद्दों में आसानी से उलझा लेते हैं. अगर कांग्रेस सीधे -सीधे नहीं जीतती तो भी उसके पास इसका इलाज मौजूद है. उत्तर भारत बनाम मराठी का हौव्वा खड़ा कर राज ठाकरे को नेता बना देना और फिर अपनी चिर प्रतिद्वंदी पार्टी शिवसेना के खिलाफ राज ठाकरे को खडा कर अपनी विपक्षी पार्टी की शक्ति को बाँट देना और आसानी से जीत हासिल कर लेना . अर्थात भले ही जनता उसे जिताना नहीं चाहती मगर फूट डालो , राज करो की नीति से कांग्रेस जीत ही जाति है . सब जानते हैं कि मनसे ने शिवसेना के वोट काट दिए और मनसे कांग्रेस के कई उम्मेदवार इसी कारण जीत गए. अगर सब ऐसा हे चलता रहा तो यहाँ दलालों और चोरों को इसी तरह लाइसेंस मिलते रहेंगे , इसी तरह आम आदमी का शोषण होता रहेगा. अब जरूरत है एक नई क्रान्ति की,बस शुरुआत करने की जरूरत है. तो कब कर रहे हो शुरुआत ?

- मुकेश कुमार मासूम










Thursday, May 13, 2010

विचार मंच ,लालू , मुलायम और गडकरी ...असली कुत्ता कौन ?

विचार मंच ,लालू , मुलायम और गडकरी ...असली कुत्ता कौन ?

चंडीगढ़ में गडकरी के इस बयान से राजनीतिक भूकंप आ गया -'लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह कांग्रेस और यूपीए के विरोध की बात करते हैं वो भी जाकर सीबीआई के सामने झुक गए। उनकी इनक्वायरी में कई वकील बदले, कई एफिडेविट दाखिल हुए। वे शेर की तरह दहाड़ते थे लेकिन कुत्ते बनकर सोनिया जी और कांग्रेस के तलवे चाटने लगे।'इस बयान के बाद गडकरी ने अपने शब्द वापस लेते हुए माफी भी मांग ली मगर लालू और मुलायम के तेवर इतने कड़े हुए कि वे अब गडकरी को सबक सिखाने पर आमादा हैं. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गडकरी के पुतले फूंकने की और पुलिवालों ने लाठी चार्ज किया .लोग आश्चर्य चकित थे . समझ नहीं पा रहे थे कि उत्तर प्रदेश ने आखिर मुलायम सिंह यादव का क्या बिगाडा है ? अगर उन्हें प्रदर्शन करना ही था तो गडकरी के घर पर करते , उनके कार्यालय पर करते या फिर भाजपा के कर्यालर पर करते , यूपी विधान सभा के सामने करने से क्या फायदा ? समाजवादी कार्यकर्ता भी खूब संस्कारी और विवेकशील हैं. संस्कारी इसलिए कि सपा के प्रवक्ता -नेता दलित नेता मायावती को न जाने किन -किन अशोभनीय शब्दों से संबोधित करते थे . उस समय सपा के लोगों को संस्कार और सभ्यता की याद नहीं आई थी, आज जब उनके नेता को कुता कहा गया , भरी सभा में उन्हें तलुए चाटने वाला बताया गया तब जाकर उन्हें यह ज्ञान हुआ , वह भी इन शब्दों में -'आडवाणी ने मनमोहन को कमजोर पीएम कहा था जिसका खामियाजा बीजेपी अब भुगत रही है। गडकरी के बयान से पता चलता है कि उनमें संस्कारों की कमी है। बड़ी पार्टी में इतनी छोटी मानसिकता का आदमी इतने बड़े पद पर पहुंच गया इसे देखकर आश्चर्य होता है। मोहन सिंह ने कहा कि गडकरी से मैं पूछना चाहता हूं कि वो कौन कुत्ता है जो झारखंड में साथ दे रहा है। शिबू सोरेन अब तक मंत्री क्यों बने हुए हैं।'यह बयान सपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता का है.इसमें भी कुत्ता वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है. दोनों के बयान ऐसे हैं , जैसे चोर-चोए मौसेरे भाइयों के. खैर, अब गडकरी की बात करते हैं . जब उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो देश में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. क्योंकि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी और देश पर तीन बार शासन शासन करने वाली पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय स्तर पर फेमस भले ही न हो मगर उससे राष्ट्रीय समझ की अपेक्षा की जाती है. भाजपा की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी ने १६ मई १९९६ , १९ मार्च १९९८ और १३ अक्टूबर १९९९ को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. अटल जी की खासियत यही रही कि विपक्षी भी उनका दिल से सम्मान करते थे. वे सभ्य , संस्कारित और म्रदुभाषी हैं. अटल जी की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लोग कुछ तो अपेक्षा रखेंगे ही .नितिन गडकरी को जब प्रेसीडेंट बनाया गया तो आर एस एस के रणनीतिकारों के जेहन में एक बहुत बड़ा गणित अटका हुआ था . उन्होंने सोचा कि अगर पिछड़ी जाति के नितिन गडकरी को लाया जाता है तो उससे देश भर में पिछड़ी जाति के लोग भाजपा से जुड जायेंगे और इससे भाजपा केन्द्र पर कब्जा करने में फिर से कामयाब हो जायेगी, क्योंकि किसी और राष्ट्रीय पार्टी में पिछड़े वर्ग का कोई नेता इतने बड़े पद पर नहीं है.आर एस एस को सबसे ज्यादा मलाल ये था कि दो बड़े हिन्दी प्रदेशों , बिहार और उत्तर प्रदेश में दो बड़े पिछड़े नेताओं की तूती बोलती है. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की. जब तक इनके वोट कुछ वोट भाजपा की तरफ ट्रांसफर नहीं हो जाते तब तक केन्द्र में फिर से सता हासिल करने का सपना पूरा नहीं होगा . इसीलिए सोची -समझी प्लानिंग के तहत नितिन गडकरी ने मुलायाम-लालू पर हमला बोला. उन्होंने सोचा होगा कि वे इन दोनों को गालिया बकेंगे तो पिछडा वोट बेंक उनकी झोली से निकलकर भाजपा की तरफ आ जाएगा, दोनों यादव नेता भी इस चाल को भांप गए और इसे पिछडा समाज के मान-सम्मान और स्वाभिमान का मामला बना डाला . राष्ट्रीय राजनीति के नौसिखिए नितिन गडकरी चारों खाने चित्त गिर पड़े. अब माफी मांग रहे हैं , सफाई दे रहे हैं, मगर मामला बिगड चूका है. नितिन गडकरी का दाव अब इन्हीं पर उलटा पड़ गया है.अब उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के लोग मुलायम सिंह के साथ और बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ गोलबंद होने लगे हैं. इससे भाजपा को आने वाले चुनावों में दोनों ही प्रदेशों में जबर्दश्त नुक्सान होगा. आखिर भाजपा को भी उसकी करनी का फल तो भुगतना ही पडेगा , पिछडों की नजर में भाजपा अब खतरनाक खलनायक बन चुकी है. नितिन गडकरी की हिन्दी पर कम पकड़ होने के कारण भी यह कुता कांड हुआ . अभी फिल्म चालू है , देखने की बाद ही पता चलेगा कि इन तीनों में असली कुत्ता कौन है ?

- मुकेश कुमार मासूम

Wednesday, May 12, 2010

म्हाडा का महा घोटाला

म्हाडा के महा घोटाले की पोल अब खुल चुकी है, देर से ही सही , मगर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कुम्भकर्णी नींद से जागकर इस घोटाले की जांच के आदेश दे चुके हैं. अब म्हाडा के अफसर ही इसकी जांच करेंगे . सुना आपने, कितना आचा आदेश है ? वही छिनरा , वो ही डोली के संग . यानि जिन अफसरों की छत्रछाया में यह घोटाला पनपा , वही अफसर अब क्या ख़ाक जांच करेंगे . अब सवाल ये उठता है कि ये अफसर जाँच के लिए नियुक्त किये गए हैं , या फिर मामले की लीपापोती के लिए ? अशोक चव्हाण को इसका जवाब देना देना चाहिए.म्हाडा के इस महा घोटाले से यह साफ़ हो गया है कि महाराष्ट्र में जो कांग्रेस की सरकार चल रही है , उसका एक सूत्रीय कार्यक्रम सिर्फ अपनी -अपनी तिजोरी भरना है , जनता के हितों से उसका कोई लेना -देना नहीं है. इस भ्रष्ट सरकार को जब सबक सिखाने का समय आता है , प्रदेश की भोली जनता , प्रादेशिक , जातिवादी और साम्प्रदायिक बातों में फंस जाते हैं, कुछ लोग अपने कीमतों मतों को बेच डालते हैं. अब भुगतो. यहाँ की सरकार ने अभी तक आम जनता के हित में कोई काम नहीं किया है , उलटे जन विरोधी काम रोजाना हो रहे हैं. यहाँ पर विपक्ष भी इतना मजबूत दिखाईनहीं देता कि जनहित के सही मुद्दों को सहे तरीके से उठा सके और सरकार की जन विरोधी नीतियों का सख्ती के साथ विरोध कर सके. म्हाडा के महा घोताले से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह सरकार किस हद तक भ्रष्टाचार के दल-दल में फंस चुकी है . घोटाले की गंगा में हाथ धोने वाले कोई आम इंसान नहीं बड़े राजनेता हैं. इनमे संसदीय कार्यमंत्री हर्षवर्धन पाटिल ‘राजयोग’ सोसायटी के मुख्य प्रवर्तक हैं। इस सोसायटी में करीब डेढ़ करोड़ का फ्लैट सिर्फ 42 लाख 26 हजार रुपये में जिन लोगों को मिलने वाला था। उसमें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे (पूर्व गृहराज्यमंत्री), गृह मंत्री आर.आर. पाटिल, आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपुते, राज्य नियोजन आयोग के कार्याध्यक्ष बाबासाहेब कुपेकर, स्वास्थ्य मंत्री फौजिया खान, पशुसंवर्धन मंत्री नितिन राऊत, श्रम मंत्री हसन मुश्रीफ, गृह राज्यमंत्री रमेश बागवे, राज्यमंत्री भास्कर जाधव, पद्याकर वलवी, विधायक चरणसिंह सप्रा, राजन तेली और भाई जगताप तक का नाम शामिल था। मगर जब यह खबर अखबारों में लीक हो गयी तो सरकार ने आनन् -फानन में चाबी बांटने का कार्यक्रम रद्द कर दिया. सब नियम क़ानून को टाक पर रखकर उपरोक्त नेताओं को फ्लेट आबंटित कर दिए गए थे. मुंबई में वर्सोवा पोश इलाका है , इस इलाके में म्हाडा की राजयोग नामक सोसाइटी बन रही थी. इसमें २२५ बेघरों को घर दिए जाने थे. एक फ्लेट की कीमत महज ४२ लाख २६ हजार रुपये थी , जबकि इस इलाके में इसकी आम कीमत २ करोड से कम नहीं है. इसिलए इन फ्लेटों को पाने की होड नेताओं में लगी थी. नियमतः इन फ्लेटों के लिए वही आवेदन कर सकता है, जिसके पास फ्लेट मौजूद ना हो . मगर जिन नेताओं को फ्लेट आबंटित किये गए उनमे से नेताओं के पास कई -कई घर पहले से ही मौजूद हैं, झूठे हलफनामे देकर ये फ्लेट हथियाए गए. हैरत की बात तो ये है कि गृह निर्माण और नगरविकास मंत्रालय इस वक्त मुख्यमंत्री के ही पास है. इससे दामन पर दाग लगना स्वभाविक है. अगर इस दाग को धोना है तो किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए और जांच इस बात की भी हो कि इसके लाटरी सिस्टम में भी तो खामियां नहीं थीं.


- मुकेश कुमार मासूम

Monday, May 10, 2010

मोहब्बत और संविधान के कातिल

हरियाणा और राजस्थान और आसपास के राज्यों में आजकल खाप पंचायतों का कहर स्सत्वे आसमान पर है . अब कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल भी पंचायतों के पक्ष में उतर आये हैं. खाप पंचायतों के फरमान समूची मानवता को दहला देने वाले होते हैं. जब हम तालिबानी जुल्म की बात करते हैं , तो उन्हें जी भर कोसते हैं, सोचते हैं कि ऐसे क्रूर कृत्य सिर्फ वहीं हो सकते हैं. लेकिन खाप पंचायतें जिस तरह से मोहब्बत और संविधान का क़त्ल कर रही हैं, वे तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक नजर आती हैं. इस तरह की पंचायतें अब तक कितने ही प्यार करने वालों को 'देस निकाला ' दे चुकी हैं, कितनों को ही मारने का हुक्म सुना चुकी हैं. अभी हाल ही यानि ३० मार्च २०१० को हरियाणा की करनाल अदालत ने खाप पंचायतों पर नकेल कसने के लिए एक एतिहासिक फैसला सुनाया था.प्रकरण ये था कि मनोज और बबली ने 18 मई 2007 को प्रेम विवाह किया था लेकिन जैसे ही इस शादी की खबर पंचायत को लगी तो पूरे गांव में भूचाल आ गया। पंचायत ने मनोज के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। मनोज और बबली एक ही गोत्र के थे औरपंचायत का कहना था कि ये भाई-बहन हैं, और इनकी शादी को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

तालिबानी पंचायत में फैसला सुनाया गया कि मनोज के परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया जाए और पंचायत के फैसले के खिलाफ जाने वालों से 25 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाए। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद बुना गया एक साजिश का ताना-बाना। 15 जून को मनोज और बबली का सरेआम अपहरण कर लिया गया और मोहब्बत के दुश्मनों ने दोनों की हत्या करके लाश एक नहर में फेंक दी। पुलिस ने 24 जून को दोनों की लाश बरामद की। लेकिन उन्हें लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया गया। एक जुलाई को मनोज के परिवारवालों ने उनके सामान से उनकी शिनाख्त की। मनोज के परिवारवाले चीख चीख कर कहते रहे कि इस हत्या के पीछे बबली के घरवालों का हाथ है हर छोटे बड़े अधिकारी से रहम की भीख मांगी। यहां तक की सूबे के मुख्यमंत्री तक भी शिकायत पहुंचाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार अब तीन साल बाद 41 गवाहों व 50 पेशियों के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया . अदालत ने बबली के भाई सतीश और सुरेश, चचेरे भाई गुरुदेव, मामा बारूराम और चाचा राजेंद्र को फांसी की सजा सुनाई है। लड़की के दादा और पंचायत के सदस्य गंगाराज को उम्रकैद की सजा दी गई है। जबकि हत्या की साजिश में शामिल चालक मंदीप को अदालत ने 7 साल की कैद की सजा दी है। इसके अलावा अदालत ने पीड़ित पक्ष को 1 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। हैरत और खौफनाक बात ये है कि इसके बाद भी ऐसी पंचायतों के हौंसले बुलंद हैं. हमारे जन प्रतिनिधि वोट के लालच में ऐसी पंचायत के लोगों का समर्थन करते हैं. कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल ने जो पत्र लिखा है उसके मुताबिक़ सांसद नवीन जिंदल ने पत्र में कहा कि वह निजी कार्यो में व्यस्तता के चलते पिछले सप्ताह आयोजित महापंचायत में शामिल नहीं हो सके। इसके लिए उन्होंने क्षमा याचना की।सांसद ने कहा कि उन्होंने तथा उनके परिवार ने हमेशा ही समाज की परंपराओं, मान्यताओं, सभ्यता व संस्कृति का आदर किया है तथा भविष्य में भी करते रहेंगे। पत्र के माध्यम से सांसद ने कहा कि खाप पंचायतों ने समाज को सदैव नई दिशा दी है. जिंदल की इस जिंदादिली से ये तो तय हो गया है कि अब तक पंचायतों ने जिन प्रेमी -प्रेमिकाओं को सजा सुनाई थी, उस सबमे नवीन जिंदल भी शामिल थे. जिंदल से कोई पूछे कि दो प्यार करनी वालों की ह्त्या करवाना कौन सी परम्परा , कौन सी सभ्यता , कौन सी संस्कृति है ? संसार का कोई भी क़ानून , कोई भी धर्म इस तरह निरपराध लोगों की ह्त्या की इजाजत नहीं देती. सच्ची मोहब्बत को भगवान का रूप माना गया है. अगर लड़का -लड़की बालिग़ हैं और अपनी इच्छा से शादी करना चाहते हैं तो कौन सा गुनाह है ? और अगर कोई गलत बात या गलत काम है तो उसके लिए देश में अदालतें मौजूद हैं. यह सिर्फ मोहब्बत का ही क़त्ल नहीं बल्कि संविधान का भी क़त्ल है. एक ही गोत्र का होने कारण बहन -भाई का रिश्ता बताने वाले मूर्ख कब जानेंगे कि दुनिया का हर इंसान आपस में भाई ही होता है, हर लड़का लड़की बहन भाई ही होते हैं. सर्वविदित है कि सबसे पहले दुनिया में आदम और हव्वा को भेजा गया. सारा जहां उन्हीकी संतान है. अब हिसाब लगाएं सब लोगो का आपस में क्या रिश्ता है ? यहाँ अनैतिक रिश्तों में शादी करनी की वकालत नहीं की जा रही , बल्कि नैतिकता की आड़ में मानवता को खत्म न किया जाए , इसकी सिफारिश की जा रही है.


- मुकेश कुमार मासूम


Saturday, May 8, 2010

अंधेर नगरी , चौपट राजा , ४

महाराष्ट्र में सब कुछ राम भरोसे चल रहा है.. हजारों किसानों की आत्महत्याओं और कई सौ करोड के बोझ तले दबे महाराष्ट्र की सुख सम्रद्धि की चिंता किसे है ? यहाँ लोगों को मुंबई की चमक -दमक तो दिखाई देती है मगर महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों पिछडापन किसीको दिखाई नहीं देता , वहाँ की बदहाली से किसीका वास्ता नहीं है. सरकार नाम की चीज अखबारों में नजर आती है मगर जमीनी हकीकत में कुछ खास वजूद नजर नहीं आता. बात कहाँ से शुरू की जाए ? अपराध से या भ्रष्टाचार से ? हाल ही में भायंदर के वरिष्ठ नगरसेवक की दिन दहाड़े ह्त्या कर दी गयी. प्रफुल्ल पाटिल नाम के ये नगरसेवक कांग्रेस पार्टी के ही थे , यहाँ तक की पहले वे नगराध्यक्ष भी रह चुके थे. कांग्रेस के शासन में कांग्रेसी नेता की ह्त्या होती है और पुलिस कहती है की हत्यारों को पकड़ने की कोशिशें की जा रही हैं. सब जानते हैं की इस क्षेत्र यानी मीरा- मीरा भायंदर में सैकड़ों बार हैं, जुए के अड्डे हैं, मसाज पार्लर हैं. लोज हैं. इनमे इतने अनैतिक धंधे होते हैं की पुलिस को इन गैर कानूनी धंधों को संरक्षण देने से ही फुर्सत नहीं है. अगर थोडा बहुत समय बचा भी तो हफ्ता वसूलने में निकल जाता है , ऐसे में ये अपराधियों को पकड़ेंगे , ऐसी उम्मीद इनसे कौन करे ? सबसे खतरनाक बात ये की पुलिस को किसीका डर नहीं है. जब सरकार का कंट्रोल ठीक से नहीं होता तब ऐसे हालात पैदा होते हैं, वसई क्षेत्र में दो शरबत विक्रेताओं ने एक सिपाही को ही चाक़ू घोंप दिया. यहाँ पुलिस को ऐसे गाजर मूली समझा जाता है , सच भी है , भ्रष्ट कर्मचारी -अधिकारियों की कद्र कहीं नहीं होती.
इसी प्रकार मुंबई में रोजाना ह्त्या अथवा डकैती की घटनाएं होती रहती हैं, बलात्कार की वारदातें होती रहती हैं. सरकार के पास इन अपराधों को रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं है . रणनीति तो कोई तब बनाये जब इच्छाशक्ति हो. सरकार तो बस धन्नासेठों को फायदा पहुचाने और गरीबों का खून चूसने में लगी है . यहाँ रहने वाले गरीब, मजदूर और मध्यमवर्गीय लोगों का जीना हराम कर दिया है. यहाँ की सरकार ने अपनी तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया जिसे याद किया जा सके. सन २००० या २००२ के बीच तक जिस प्रोपर्टी की कीमत महज ५ लाख थी आज उसकी कीमत ३० लाख से कम नहीं है . यानी की मंह्गाई ६ गुना बढ़ गयी और पगार बढ़ने की बजाय घटती जा रही है . सरकार चाहती तो लोगों के जख्मों पर मरहम लगाया जा सकता था , लेकिन ऐसा नहीं किया गया. आज खुलेआम वैश्या उपलब्ध कराने के विज्ञापन छापते हैं , सरकार को कोई मतलब नहीं है .'अंधा बांटे रेवड़ी , अपनों -अपनों के दे ' वाला हिसाब किताब हो रहा है . सरकार अपने हिसाब से लोगों को मलाई बाँट रही है. आई पी एल से पांच करोड का मनोरंजन टेक्स लिया जा सकता था , मगर सरकार की दरियादिली देखिये कि नहीं लिया. अब ये रकम क्यों नहीं ली गयी ? इस बात का अंदाजा कोई भी बड़ी आसानी से लगा सकता है. इसके बाद जब कुछ लोग इस मैटर को कोर्ट तक ले गए तब जाकर अंधी सरकार की आँखें खुली , गूंगी सरकार की जुबान भी हिली और ऐलान किया गया कि आई पी एल -४ के अगले सत्र से मनोरंजन कर लगाया जाएगा . यानि कि इस बार का अब भी माफ कर दिया गया. मांगने की भी जुर्रत नहीं की गयी . अगर पांच करोड रुपये सरकारी खजाने में जाते तो उनमे से प्रदेश की जनता का भी हिस्सा होता मगर सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया. इस घाटे की भरपाई कौन करेगा ? जनता अपना हिसाब चीख-चीखकर मांग रही है. मगर यह आवाज बाहरी सरकार को सुनाई देगी क्या ?
यहाँ तो फिलहाल वही हाल है- 'अंधेर नगरी , चौपट राजा , टका सेर भाजी , टका सेर खाजा '.

- मुकेश कुमार मासूम










Friday, May 7, 2010

विचार मंच , ३, जाति आधारित जनगणना का अर्थ

आखिर केन्द्र सरकार अब जाति आधारित जनगणना कराने के लिए राजी हो गयी है.इससे पहले इस मुद्दे पर लोकसभा में खूब हो हंगामा हुआ. राजद नेता लालू प्रसाद को भारतीय जनता पार्टी के नेता अनंत कुमार देश द्रोही तक कह डाला था. बहरहाल अब जाति के आंच पर राजनीतिक रोटियां सकने वाले खूब खुश हुए होंगे. जो लोग जाति की बैसाखियों के सहारे सत्ता की ऊंचाइयां तय करते हैं उनके लिए यह सुनहरा मौक़ा है. जाति के आधार पर यह गणना ऐसे समय की जायेगी , जब देश में हर कोने से जाई तोडो, समाज जोड़ो की मांग की जा रही है. एक तरफ तो जाति के आधार पर राजनीति करने वाले जातीय भेदभाव को सभ्य समाज पर कलंक बताते हैं . समता के नारे बुलंद करते हैं और दूसरी तरफ वे जाति को सहेजना भी चाहते हैं. लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव और कुछ अन्य नेता हमेशा से जातिवाद के हितैषी रहे हैं. अगर कहीं बुराई का अस्तित्व रहेगा तो वह कहीं न कहीं , किसी न किसी मोड पर खड़ीहुई , बहुत संभव है मुस्कराती हुई मिलेगी . और अगर बुराई मौजूद ही नहीं है . तो उसके दिखने का सवाल ही पैदा नहीं होता. ये मामला ठीक वैसा ही है जैसे शराब के उत्पादन पर रोक लगाने के बजाय उसकी बिक्री पर रोक लगा दी जाए. जाति व्यवस्था एक श्राप की तरह है, अभिशाप की तरह है. यह एक ऐसा रोग है जो एड्स से भी भयंकर है. एड्स के रोग का भले ही सफल इलाज न हो मगर उसकी देख -रेख करने की दवाएं तो माजूद हैं. मगर जातिवाद ऐसा खतरनाक रोग है की इसकी देखभाल वाली दवाएं भी मौजूद नहीं हैं. कुछ वर्ष पहले बहुजन समाज पार्टी के कान्शीराम ने जाति तोडो , समाज जोड़ो आंदोलन शुरू किया था . इसके अंतर्गत बसपा के कार्यकर्ता गाँव -गाँव , गली- गली जाकर जातिवाद के दुष्परिणामों को सभा आदि की माध्यम से उजागर करते थे. उस समय जो कांशीराम की कल्पना थी , वह ये थी की तीन श्रेष्ठ सवर्ण जातियों को छोड़कर सभी जातियां दलित , पीड़ित हैं अर्थात बहुजन समाज के अंतर्गत आती हैं. इस आंदोलन में उन्हें कुछ हद तक ही सही मगर सफलता भी मिली. पिछड़ी जातियां राजनीतिक द्रष्टिकोण से एकजुट हो गयीं लेकिन गौर करने वाली बात ये है की आज भी ये जातियां एक दूसरी जाती से सामाजिक और पारिवारिक रूप में नहीं जुड पाई हैं, यानी की अब भी इनमें रोटी-बेटी बांटनी की प्रथा का प्रचलन नहीं हो पाया है. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती इससे कुछ कदम आगे बड़ी, साहस का परिचय देते हुए उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की मूल अवधारणा ' बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय ' को ही बदलकर रख दिया . नया नारा दिया- ' सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय ' . इसी नारे का करिश्मा था की बसपा ने उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई. लेकिन यह बात भी उतनी ही सत्य है की मायावती की यह अवधारणा अभी तक सिर्फ राजनीति तक ही सीमित है . सामाजिक द्रष्टिकोण से आज भी सब कुछ अलग है. आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार में दलितों को चारपाई पर नहीं बिठाया जाता. आज भी उन्हें अछूत समझा जाता है, उनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता है . ऐसे वक्त में बसपा की राजनीतिक क्रांति को जमीनी क्रान्ति यानी सामाजिक क्रांति में बदलने की जरूरत है और ऐसे वक्त में जातिगत आधार पर जनगणना कराये जाने की बात की जा रही है. लालू प्रसाद यादव के पास बिहार और दिल्ली में अब बचा ही क्या है ? ना बिहार में सरकार है और ना दिल्ली में सरकार में हैं . किसी राजनीतिक शाश्त्री ने कहा भी है की -' जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले बहुत जल्द सुर्ख़ियों में आते हैं मगर उनका पतन भी उतनी ही जल्दी होता है ' . मुलायम सिंह यादव और लालूप्रसाद यादव आदि के इस नए जाल में शायद कुछ मछलियाँ और फंस जाएँ.

- मुकेश कुमार मासूम

Thursday, May 6, 2010

विचार मंच २ गरीबों से जीने का हक भी छीन लो इतनी सी मेहरबानी कर दो


गरीबों से जीने का हक भी छीन लो
इतनी सी मेहरबानी कर दो

भारत के करोड़ों लोगों पर शासन करने वाले अर्थात अपने आपको जन सेवक कहलाने वाली कौम करोड़ों अरबों में खेलती है , और इन्हें हुक्मरान बनाने वाले करोड़ों लोग दाने -दाने के लिए मोहताज हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से एक दिल दहलाने वाली खबर आयी .खबर के मुताबिक़ वहाँ के लोग भूखों मरने के लिए मजबूर हैं. उन्हें भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता . महीने में सिर्फ १५ दिन चूल्हा जलता है और वो भी महज एक समय . यानी तब भी सुबह शाम खाना नहीं मिल पाता . सूखे से जूझते चित्रकूट का यह चेहरा तो उदाहरण भर है , इसको महाराष्ट्र के किसानों से जोड़कर भी देखा जा सकता है महाराष्ट्र में गरीबी और फाकाकसी से तंग होकर हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं. यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की खबरे देखी सुनी जा सकती हैं. ये जितने भी भूखे, बेबस परेशान और हताश लोग हैं ये निकम्मे नहीं हैं. ऐसा नहीं हैं की ये काम नहीं करना चाहते बल्कि ये वो मेहनतकश किसान और मजदूर हैं जिनके पसीने से हमारे जिस्म में लहू दौडता . ये लोग देश के अन्नदाता हैं मगर केन्द्र और राज्य सरकार की गलत नीतियों के चलते और सूखा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते ये अपना और अपने परिवार का पेट नहीं पाल सकते . मजबूरन इन्हें कर्ज लेना पड़ता है और जब ये कर्ज को चूका नहीं पाते तो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. ये लोग करोडों की संख्या में हैं इनकी मुसीबतें भी इससे कम नहीं. ये लोग अपने बच्चों की ना तो सहे परवरिश कर पाते हैं और ना ही उन्हें अच्छी शिक्षा दे पाते हैं, इस कारण मुफ्लिशी ही इनका मुकद्दर बन जाती है. इन्हीं में से कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपराध का रास्ता चुन लेते हैं. उनके अंदर सिस्टम के खिलाफ आक्रोश पैदा हो जाता है . वे इंतकाम की आग में सुलगने लगते हैं और देश बांटने वाली ताकतों के हाथ में पड़ जाते हैं. अगर
ठीक तरह से स्वतंत्र जांच कराई जाए तो ये तथ्य सामने निकलकर आयेंगे की नक्सलवादियों में से कितने ही लोग ऐसी ही हालात के शिकार मिलेंगे . उनके दिमाग में यह बात घूमती रहती है की दिन रात मेहनत करके भी वे दो जून की रोटी हासिल नहीं कर सकते , जबकि कुछ भ्रष्टाचारी नेता आराम से एसी कमरों में बैठकर भी करोड़ों रुपये कमा लेते हैं. वे ऐसे वर्ग से नफरत करने लगते हैं जो लोग कम मेहनत करके भी सर्व सुविधा संपन्न हैं. फिर ऐसे भूखे पेट लोग जब देश बांटने वाली ताकतों के हाथ लगते हैं तो वे उनकी सुलगती भावनाओं को और भी हवा दे देते हैं नतीजा ये की वह हरा हुआ इंसान हाथ में बन्दूक उठा लेता है. हमारे देश में समस्या के जद से खत्म नहीं किया जाता , सिर्फ ऊपर-ऊपर समाधान करने का दिखावा किया जाया जाता है. यही कारन है की हमारे देश के कुछ नौजवान पडौसी मिल्क के बहकावे में आकार अपने ही भाइयों का खून बहा रहे हैं देश में आतंकवाद फैला रहे हैं. निसंदेह इस काम को ठीक नहीं ठहराया जा सकता है , मगर इस हद तक आर्थिक असमानता भी की सभ्य देश के लिए बिलकुल ठीक नहीं . अगर नक्सलवाद को रोकना है, आतंकवाद को रोकना है तो पहले आर्थिक समानता की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे , जो लोग भूख सर तरस रहे हैं उन्हें खाना मुहैया करना होगा .जो अशिक्षित हैं उन्हें शिक्षा मुहैया करानी होगी , वो भी सामान शिक्षा . जो बेरोजगार हैं उनके लिए रोजगार देने होंगे , अगर समय रहते ऐसा नहीं किया किया गया तो इस चिंगारी को ज्वालामुखी बन्ने से कोई नहीं रोक सकता . और जब ज्वालामुखी फटता है तो अंजाम सब जानते ही हैं .


- मुकेश कुमार मासूम







विचार मंच


कसाव को फंसी होने दीजिए
बचाने के लिए कांग्रेस है न
-मुकेश कुमार मासूम
देश में आतंकवाद के जड़ें दिनों दिन मजबूत होते जा रही हैं। सरकार करने के लिए बस इतना ही करती है कि जहां कहीं बम कांड की घटना होती है वहाँ पर जांच पड़ताल का कार्य तेज कर दिया जाता है, कुछ नियम बदल दिए जाते हैं। बहुत हुआ तो एकाध अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है, बम विस्फोट में मरे लोगों के आश्रितों को कुछ मुआवजा दी दिया जाता है, कुछ मंत्री दौरा करते हैं, पुलिस अधिकारी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। जांच कमेटी गठित होती है , और और सब लोग अगले बम कांड होने का इन्तजार करने लगते हैं। १३ फरवरी को पुणे में बम विस्फोट हुआ , उसमे ५ विदेशी सहित १७ लोग से ज्यादा मारे गए । कई घायल हुए। गृह मंत्री आर आर पाटिल ने खुद सदन को बताया कि आरोपियों की शिनाख्त कर ली गयी है। मगर क्या हुआ । आज इतने महीनों के बाद भी कुछ नहीं हुआ । सरकार कहती रही कि इस बम कांड में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ है लेकिन सिर्फ कहने भर से क्या हुआ ? पुलिस सिर्फ यही कहती रही कि 'जांच सही दिशा में चल रही है ' । २६ नवंबर २००८ को क्या हुआ ? महज दस लोगों की फ़ौज ने मुंबई पर हमला कर दिया। यानी कि देश पर हमला कर दिया। सारा ख़ुफ़िया तंत्र , सारी पुलिस, नेवी अधिकारी सब देखते रह गए और दस लोग मुंबई को तहस -नहस कर गए। उनमे से ९ आतंकवादी मारे गए और अब दसवा जीवित बचा है - कसाव। आमिर अजमल कसाव की सुरक्षा पर ट्रायल के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने ३१ करोड रुपये खर्च किये । भारत जैसे गरीब देश के लिए खर्च की रकम का यह आंकडा मामूली नहीं हो सकता। आज उसी कसाव को विशेष अदालत सजा सुनाएगी , बहुत संभव है उसे फांसी की सजा ही दी जाए , और यह सब पुलिस अधिकारियों के अथक परिश्रम , सबूत , गवाह आदि के बल पर और सरकारी वकील के तर्कों की बदौलत संभव हो सकेगा। मगर सजा सुनाये जाने के बाद भी क्या किलिंग मशीन कसाव को फांसी पर इतनी आसानी से चढाया जा सकता है ? इसे लेकर देश में संशय का माहौल है । सब जानते हैं कि अभी तक ५० ऐसे खतरनाक अपराधी हैं, जिन्हें वर्षों पहले फांसी की सजा तो सुनाई जा चुकी है मगर अभी तक फांसी का फंदा उसनके गले से बहुत दूर है। क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति के पास दया याचिका कर रखी है। अब तर्क की बात ये है कि जब पहले से ही खूंखार अपराधी सजा भुगतने के लिए वोटिंग लिस्ट में हैं तो इस नए मामले का क्या होगा ? संसद अर्थात देश के सबसे बड़ी पंचायत पर हमला हुआ।उस आरोप में अफजल गुरु नामक अपराधी को गिरफ्तार किया गया। सर्वोच्च अदालत ने उसको फांसी की सजा सुनाई , लेकिन आज भी वह ज़िंदा है। उसने मर्सी पिटीशन जो डाल रखी है, जिसका क्रमांक २८ है । जाहिर सी बात है कि जब तक पहले ५० अपराधियों को फांसी नहीं दी जाती , अथवा उनका कोई फैसला नहीं होता तब तक कसाव भी सरकारी मेहमान नवाजी का लुत्फ़ उठा सकता है और ईद के दिन तो नॉन वेज भी खा सकता है। भारत सरकार पहले भी मौलाना मसूद अजहर , उम्र शेख और मुस्ताक जरगर जैसे खतरनाक अपराधियों को छोड़ चुकी है । अब तो आम आदमी को यह पक्का भरोसा हो गया है कि कोई भी दुश्मन हमारे यहाँ आकर तबाही मचा सकता है, हमारे जवानों पर गोलियाँ बरसाकर उन्हें शहीद कर सकता है मगर सजा उसे कुछ नहीं मिलेगी । अगर सजा का ऐलान हो भी गया तो कांग्रेस है न। बचा लेगी ।आखिर 'धर्मनिरपेक्षता ' का सवाल जो है । और बिना ऐसे सवालों के वोट नहीं मिला करते । सत्ता चाहिए तो वोट भी चाहिए ही। और वोट के लिए दया का दिखावा भी जरूरी है।



- मुकेश कुमार मासूम