इसी प्रकार मुंबई में रोजाना ह्त्या अथवा डकैती की घटनाएं होती रहती हैं, बलात्कार की वारदातें होती रहती हैं. सरकार के पास इन अपराधों को रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं है . रणनीति तो कोई तब बनाये जब इच्छाशक्ति हो. सरकार तो बस धन्नासेठों को फायदा पहुचाने और गरीबों का खून चूसने में लगी है . यहाँ रहने वाले गरीब, मजदूर और मध्यमवर्गीय लोगों का जीना हराम कर दिया है. यहाँ की सरकार ने अपनी तरफ से ऐसा कुछ नहीं किया जिसे याद किया जा सके. सन २००० या २००२ के बीच तक जिस प्रोपर्टी की कीमत महज ५ लाख थी आज उसकी कीमत ३० लाख से कम नहीं है . यानी की मंह्गाई ६ गुना बढ़ गयी और पगार बढ़ने की बजाय घटती जा रही है . सरकार चाहती तो लोगों के जख्मों पर मरहम लगाया जा सकता था , लेकिन ऐसा नहीं किया गया. आज खुलेआम वैश्या उपलब्ध कराने के विज्ञापन छापते हैं , सरकार को कोई मतलब नहीं है .'अंधा बांटे रेवड़ी , अपनों -अपनों के दे ' वाला हिसाब किताब हो रहा है . सरकार अपने हिसाब से लोगों को मलाई बाँट रही है. आई पी एल से पांच करोड का मनोरंजन टेक्स लिया जा सकता था , मगर सरकार की दरियादिली देखिये कि नहीं लिया. अब ये रकम क्यों नहीं ली गयी ? इस बात का अंदाजा कोई भी बड़ी आसानी से लगा सकता है. इसके बाद जब कुछ लोग इस मैटर को कोर्ट तक ले गए तब जाकर अंधी सरकार की आँखें खुली , गूंगी सरकार की जुबान भी हिली और ऐलान किया गया कि आई पी एल -४ के अगले सत्र से मनोरंजन कर लगाया जाएगा . यानि कि इस बार का अब भी माफ कर दिया गया. मांगने की भी जुर्रत नहीं की गयी . अगर पांच करोड रुपये सरकारी खजाने में जाते तो उनमे से प्रदेश की जनता का भी हिस्सा होता मगर सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया. इस घाटे की भरपाई कौन करेगा ? जनता अपना हिसाब चीख-चीखकर मांग रही है. मगर यह आवाज बाहरी सरकार को सुनाई देगी क्या ?
यहाँ तो फिलहाल वही हाल है- 'अंधेर नगरी , चौपट राजा , टका सेर भाजी , टका सेर खाजा '.
- मुकेश कुमार मासूम
No comments:
Post a Comment