कल किसी चैनल पर सलमान खान को देखा . वे प्रसिद्द अभिनेता हैं, टीवी पर रोजाना दीखते ही हैं, मैंने उन्हें देखा , यह कोई नई बात नहीं है . नई बात ये थी कि एक चार या पांच साल की लड़की से सलमान खान शादी का प्रस्ताव रख रहे थे. इंकार उस लड़की को भी और सलमान खान को भी कहने के लिए उकसा रहा था. आखिरकार सलमान ने पूछ लिया - विल यूं मैरी मी ? और लड़की झिझकने लगी तो उसे जवाब देने के लिए इंकार उकसाने लगा. हद तो तब हुई जब खुद उस लड़की की माँ ही उसे उकसाने लगी और यह कहकर प्रतिक्रिया व्यक्त की- 'अच्छा होता यह सलमान खान के शादी के प्रस्ताव को मान लेती , इसी बहाने सलमान खान मेरे घर तो आते ' . ज़रा सोचिये ... एक माँ अपनी बच्ची की शादी ४० साल पार कर चुके सलमान खान से करना चाहती थी . उसके मन में क्या था ये तो पटा नहीं , मगर जब बच्चे इस शो को देखेंगे तो उन पर क्या असर पडेगा ? खेलने -कूदने और पढ़ने -लिखने की उम्र में जब वे शादी के बारे में सोचने लगेंगे तो हालत क्या होगी ? क्या सलमान खान को भी इन सब बातों से परहेज नहीं करना चाहिए ? वे अपने ज्यादातर शो में शादी की बात बच्चों के सामने जरूर करते हैं. इसमें चैनल वालों की मजबूरी तो समझे जा सकती है, आखिर टीआरपी का मामला है. वह बढनी जरूरी है. सलमान खान जैसे लोगों को वह फिल्म बेचनी होती है, जिसके प्रमोशन के लिए वे कार्यक्रम में आते हैं. मगर आखिर दर्शकों की क्या मजबूरी हो सकती है ? क्या सचमुच कोई माँ अपनी छोटी सी बच्ची की शादी के बारे में ऐसा बयान दे सकती है ? क्या इस सबसे भारत की संस्कृति , संस्कार और परम्पराओं को नुक्सान नहीं पहुचता ? क्या ऐसी घटनाएं बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा नहीं देतीं ? अखबार में फोटो छपवाने और टीवी चैनल में बाईट देने के शौक़ीन और धर्म के ठेकेदार अब कहीं क्यों नजर नहीं आते ? सलमान खान के साथ-साथ ऐसे दर्शकों का भी विरोध क्यों नहीं किया जाता जो इस तरह की बातें कर सभ्य समाज को दूषित कर रहे हैं. बच्चों के कार्यक्रम में विशेषकर ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि ऐसी बातों का बाल मन पर गलत प्रभाव पड़ता है .
मुझे याद है जब बिग बी अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा था कि वे दादा बन्ने की तमन्ना रखते हैं और चाहते हैं कि जल्द ही उनको एक पाया हो जाए . पाखण्ड रचने वाले प्रचार के भूखे लोगों ने उस वक्त इसका बहुत विरोध किया था , आरोप लगाए गए कि अमिताभ बच्चन का बयान पक्षपात से प्रेरित है और वे पोते के रूप में एक लड़का चाहते हैं. यह विरोध इतना बढ़ा कि खुद अमिताभ बच्चन को कई बार इस बारे में सफाई देनी पडी थी. मगर टीवी पर कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रहे शोज पर कोई हो हल्ला नहीं मच रहा है . यहाँ पर आराम से रिचर्ड गेर शिल्पा शेट्टी को अपनी बांहों में कैद करके दीर्घ चुम्बन लेते हैं. यहाँ पर बिग बॉस के कमाल खान गाली गलौच करते दिखाई जाते हैं, सब कुछ राम भरोसे चल रहा है. कहीं कोई अंकुश नहीं है. कहीं कोई नियंत्रण दिखाई नहीं देता . हर तरह मनमानी चल रही है . जब दो व्यस्क अपनी मर्जी से वेलेंटाइन के दिन घूमने -फिरने जाते हैं, अचानक 'धर्म के रक्षक' प्रकट हो जाते हैं , मगर जिन कारणों से आदर्शों और सही मूल्यों का पतन हो रहा है , उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता . समस्या की जड़ तक जाने की जरूरत है. जड़ से इलाज होगा तभी उसकी टहनियाँ सुरक्षित रहेंगी. सरकार भी इस बारे में ध्यान नहीं देती . इस तरह के दृश्यों पर अंकुश लगाने के लिए जो भी अथोरिटी हैं, वे नाकाफी हैं. भ्रष्टाचार का प्रभाव इतना ज्यादा हो गया है कि हर जगह पैसा फेको , तमाशा देखो . अगर आप कोई सार्थक वीडियो एल्बम भी बनाते हैं, जिसमे सामाजिक सन्देश हो तब भी सेंसर वाले इतना परेशान करते हैं कि निर्माता -निर्देशक पानी मांग जाता है . आखिर में उसे या तो दलाल का सहारा लेना पड़ता है या फिर रिश्वत देनी पड़ती है. जबकि कैसा भी उलटा सीधा वीडियो बनाओ बस साथ में रुपये भी लेते जाओ तो सेंसर से सर्टिफिकेट मिल जाता है . इस सितम को बदलने की जरूरत है . मगर बदलेगा कौन ? क्योंकि यहाँ को देश चलाने वाले भी यही राग अलापते रहते हैं कि 'ये करने की जरूरत है , वो करने की जरूरत है ' मगर यह नहीं बताया जाता कि इसे करेगा कौन?
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