- मुकेश कुमार मासूम
Wednesday, May 12, 2010
म्हाडा का महा घोटाला
म्हाडा के महा घोटाले की पोल अब खुल चुकी है, देर से ही सही , मगर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कुम्भकर्णी नींद से जागकर इस घोटाले की जांच के आदेश दे चुके हैं. अब म्हाडा के अफसर ही इसकी जांच करेंगे . सुना आपने, कितना आचा आदेश है ? वही छिनरा , वो ही डोली के संग . यानि जिन अफसरों की छत्रछाया में यह घोटाला पनपा , वही अफसर अब क्या ख़ाक जांच करेंगे . अब सवाल ये उठता है कि ये अफसर जाँच के लिए नियुक्त किये गए हैं , या फिर मामले की लीपापोती के लिए ? अशोक चव्हाण को इसका जवाब देना देना चाहिए.म्हाडा के इस महा घोटाले से यह साफ़ हो गया है कि महाराष्ट्र में जो कांग्रेस की सरकार चल रही है , उसका एक सूत्रीय कार्यक्रम सिर्फ अपनी -अपनी तिजोरी भरना है , जनता के हितों से उसका कोई लेना -देना नहीं है. इस भ्रष्ट सरकार को जब सबक सिखाने का समय आता है , प्रदेश की भोली जनता , प्रादेशिक , जातिवादी और साम्प्रदायिक बातों में फंस जाते हैं, कुछ लोग अपने कीमतों मतों को बेच डालते हैं. अब भुगतो. यहाँ की सरकार ने अभी तक आम जनता के हित में कोई काम नहीं किया है , उलटे जन विरोधी काम रोजाना हो रहे हैं. यहाँ पर विपक्ष भी इतना मजबूत दिखाईनहीं देता कि जनहित के सही मुद्दों को सहे तरीके से उठा सके और सरकार की जन विरोधी नीतियों का सख्ती के साथ विरोध कर सके. म्हाडा के महा घोताले से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह सरकार किस हद तक भ्रष्टाचार के दल-दल में फंस चुकी है . घोटाले की गंगा में हाथ धोने वाले कोई आम इंसान नहीं बड़े राजनेता हैं. इनमे संसदीय कार्यमंत्री हर्षवर्धन पाटिल ‘राजयोग’ सोसायटी के मुख्य प्रवर्तक हैं। इस सोसायटी में करीब डेढ़ करोड़ का फ्लैट सिर्फ 42 लाख 26 हजार रुपये में जिन लोगों को मिलने वाला था। उसमें कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे (पूर्व गृहराज्यमंत्री), गृह मंत्री आर.आर. पाटिल, आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपुते, राज्य नियोजन आयोग के कार्याध्यक्ष बाबासाहेब कुपेकर, स्वास्थ्य मंत्री फौजिया खान, पशुसंवर्धन मंत्री नितिन राऊत, श्रम मंत्री हसन मुश्रीफ, गृह राज्यमंत्री रमेश बागवे, राज्यमंत्री भास्कर जाधव, पद्याकर वलवी, विधायक चरणसिंह सप्रा, राजन तेली और भाई जगताप तक का नाम शामिल था। मगर जब यह खबर अखबारों में लीक हो गयी तो सरकार ने आनन् -फानन में चाबी बांटने का कार्यक्रम रद्द कर दिया. सब नियम क़ानून को टाक पर रखकर उपरोक्त नेताओं को फ्लेट आबंटित कर दिए गए थे. मुंबई में वर्सोवा पोश इलाका है , इस इलाके में म्हाडा की राजयोग नामक सोसाइटी बन रही थी. इसमें २२५ बेघरों को घर दिए जाने थे. एक फ्लेट की कीमत महज ४२ लाख २६ हजार रुपये थी , जबकि इस इलाके में इसकी आम कीमत २ करोड से कम नहीं है. इसिलए इन फ्लेटों को पाने की होड नेताओं में लगी थी. नियमतः इन फ्लेटों के लिए वही आवेदन कर सकता है, जिसके पास फ्लेट मौजूद ना हो . मगर जिन नेताओं को फ्लेट आबंटित किये गए उनमे से नेताओं के पास कई -कई घर पहले से ही मौजूद हैं, झूठे हलफनामे देकर ये फ्लेट हथियाए गए. हैरत की बात तो ये है कि गृह निर्माण और नगरविकास मंत्रालय इस वक्त मुख्यमंत्री के ही पास है. इससे दामन पर दाग लगना स्वभाविक है. अगर इस दाग को धोना है तो किसी निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए और जांच इस बात की भी हो कि इसके लाटरी सिस्टम में भी तो खामियां नहीं थीं.
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