चंडीगढ़ में गडकरी के इस बयान से राजनीतिक भूकंप आ गया -'लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह कांग्रेस और यूपीए के विरोध की बात करते हैं वो भी जाकर सीबीआई के सामने झुक गए। उनकी इनक्वायरी में कई वकील बदले, कई एफिडेविट दाखिल हुए। वे शेर की तरह दहाड़ते थे लेकिन कुत्ते बनकर सोनिया जी और कांग्रेस के तलवे चाटने लगे।'इस बयान के बाद गडकरी ने अपने शब्द वापस लेते हुए माफी भी मांग ली मगर लालू और मुलायम के तेवर इतने कड़े हुए कि वे अब गडकरी को सबक सिखाने पर आमादा हैं. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गडकरी के पुतले फूंकने की और पुलिवालों ने लाठी चार्ज किया .लोग आश्चर्य चकित थे . समझ नहीं पा रहे थे कि उत्तर प्रदेश ने आखिर मुलायम सिंह यादव का क्या बिगाडा है ? अगर उन्हें प्रदर्शन करना ही था तो गडकरी के घर पर करते , उनके कार्यालय पर करते या फिर भाजपा के कर्यालर पर करते , यूपी विधान सभा के सामने करने से क्या फायदा ? समाजवादी कार्यकर्ता भी खूब संस्कारी और विवेकशील हैं. संस्कारी इसलिए कि सपा के प्रवक्ता -नेता दलित नेता मायावती को न जाने किन -किन अशोभनीय शब्दों से संबोधित करते थे . उस समय सपा के लोगों को संस्कार और सभ्यता की याद नहीं आई थी, आज जब उनके नेता को कुता कहा गया , भरी सभा में उन्हें तलुए चाटने वाला बताया गया तब जाकर उन्हें यह ज्ञान हुआ , वह भी इन शब्दों में -'आडवाणी ने मनमोहन को कमजोर पीएम कहा था जिसका खामियाजा बीजेपी अब भुगत रही है। गडकरी के बयान से पता चलता है कि उनमें संस्कारों की कमी है। बड़ी पार्टी में इतनी छोटी मानसिकता का आदमी इतने बड़े पद पर पहुंच गया इसे देखकर आश्चर्य होता है। मोहन सिंह ने कहा कि गडकरी से मैं पूछना चाहता हूं कि वो कौन कुत्ता है जो झारखंड में साथ दे रहा है। शिबू सोरेन अब तक मंत्री क्यों बने हुए हैं।'यह बयान सपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता का है.इसमें भी कुत्ता वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है. दोनों के बयान ऐसे हैं , जैसे चोर-चोए मौसेरे भाइयों के. खैर, अब गडकरी की बात करते हैं . जब उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो देश में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. क्योंकि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी और देश पर तीन बार शासन शासन करने वाली पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय स्तर पर फेमस भले ही न हो मगर उससे राष्ट्रीय समझ की अपेक्षा की जाती है. भाजपा की तरफ से अटल बिहारी वाजपेयी ने १६ मई १९९६ , १९ मार्च १९९८ और १३ अक्टूबर १९९९ को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. अटल जी की खासियत यही रही कि विपक्षी भी उनका दिल से सम्मान करते थे. वे सभ्य , संस्कारित और म्रदुभाषी हैं. अटल जी की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लोग कुछ तो अपेक्षा रखेंगे ही .नितिन गडकरी को जब प्रेसीडेंट बनाया गया तो आर एस एस के रणनीतिकारों के जेहन में एक बहुत बड़ा गणित अटका हुआ था . उन्होंने सोचा कि अगर पिछड़ी जाति के नितिन गडकरी को लाया जाता है तो उससे देश भर में पिछड़ी जाति के लोग भाजपा से जुड जायेंगे और इससे भाजपा केन्द्र पर कब्जा करने में फिर से कामयाब हो जायेगी, क्योंकि किसी और राष्ट्रीय पार्टी में पिछड़े वर्ग का कोई नेता इतने बड़े पद पर नहीं है.आर एस एस को सबसे ज्यादा मलाल ये था कि दो बड़े हिन्दी प्रदेशों , बिहार और उत्तर प्रदेश में दो बड़े पिछड़े नेताओं की तूती बोलती है. मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की. जब तक इनके वोट कुछ वोट भाजपा की तरफ ट्रांसफर नहीं हो जाते तब तक केन्द्र में फिर से सता हासिल करने का सपना पूरा नहीं होगा . इसीलिए सोची -समझी प्लानिंग के तहत नितिन गडकरी ने मुलायाम-लालू पर हमला बोला. उन्होंने सोचा होगा कि वे इन दोनों को गालिया बकेंगे तो पिछडा वोट बेंक उनकी झोली से निकलकर भाजपा की तरफ आ जाएगा, दोनों यादव नेता भी इस चाल को भांप गए और इसे पिछडा समाज के मान-सम्मान और स्वाभिमान का मामला बना डाला . राष्ट्रीय राजनीति के नौसिखिए नितिन गडकरी चारों खाने चित्त गिर पड़े. अब माफी मांग रहे हैं , सफाई दे रहे हैं, मगर मामला बिगड चूका है. नितिन गडकरी का दाव अब इन्हीं पर उलटा पड़ गया है.अब उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के लोग मुलायम सिंह के साथ और बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ गोलबंद होने लगे हैं. इससे भाजपा को आने वाले चुनावों में दोनों ही प्रदेशों में जबर्दश्त नुक्सान होगा. आखिर भाजपा को भी उसकी करनी का फल तो भुगतना ही पडेगा , पिछडों की नजर में भाजपा अब खतरनाक खलनायक बन चुकी है. नितिन गडकरी की हिन्दी पर कम पकड़ होने के कारण भी यह कुता कांड हुआ . अभी फिल्म चालू है , देखने की बाद ही पता चलेगा कि इन तीनों में असली कुत्ता कौन है ?
- मुकेश कुमार मासूम
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