कम से कम ये तो बताएं कि निपटेगा कौन ? आखिर कौन है जो ये सुनिश्चित करेगा कि ऐसी दुर्घटनाओं कि पुनरावृत्ति न हो? क्या किसी दुसरे देश का प्रधानमंत्री यह सब ठीक करने आएगा ? क्या किसी और संसद में इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा ? पड़ोसी देश के साथ संबंधों पर कहा कि -पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते न होने की मुख्य वजह दोनों देशों के बीच 'विश्वास की कमी' है। विश्वास की कमी के चलते इस दिशा में आगे बढ़ने में समस्या खड़ी हो रही है। बेहतर रिश्तों के लिए विश्वास बहाली जरूरी है अरे भई., आप इस देश के प्रधानमंत्री हैं , आप पहले भी इस देश पर पूरे पांच साल राज कर चुके हो , तो आपको विश्वाश बहाल कराने से रोका किसने है ? इस विश्वाश की कमी को आप अब तक पूरा क्यों नहीं कर पाए ? क्या यह काम भी कोई दुसरे देश का प्रधानमंत्री करेगा ? . नक्सलवाद और आतंकवाद पर फरमाया कि -आर्थिक सुधारों का फायदा उठाने के लिए आतंकवाद और नक्सलवाद को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। इनका आर्थिक स्थिति पर खराब असर पड़ता है। आपको याद होगा कि मैं हमेशा से ही कहता रहा हूं कि नक्सल समस्या एक बड़ी चुनौती है। इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हमारी सरकार ने इस समस्या को कमतर आंका। जब आप इन सब बातों को जानते हैं तो कुछ करते क्यों नहीं ? क्या आप इस देश के प्रधानमंत्री इसीलिए बने हैं कि सिर्फ हमें समयाएं गिनाते रहें .जब नक्सल समस्या बड़ी चुनौती बहुत बड़ी समस्या है और इससे आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ता है तो इसका समाधान क्यों नहीं किया ? क्यों हमारे जवान बार -बार शहीद हो रहे हैं ? आखिर वो कौन है जो आपको इन सब समस्याओं को हल करने से रोक रहा है ? या फिर आपने किसी और को ये सब करने का ठेका दे दिया है ? प्रधानमंत्री जी आपको जवाब तो देना ही होगा . देश की जनता को आप इस तरह सवालों की जलती आग में नहीं धकेल सकते . आपको इन प्रशों के जवाब देने होंगे . भले ही इस देश का आम नागरिक इस समय अंधा , बहरा और गूंगा सही , मगर जब उसे हकीकत का एहसास होगा तो बगावात का ऐसा सैलाब आएगा जिसमे आपकी पार्टी तिनके की तरह बह जायेगी.
Monday, May 24, 2010
मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं या किसी मठ के पुजारी
यूपी ए सरकार की दूसरी पारी के एक साल का कार्यकाल पूरा हुआ. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस अवसर पर एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया जब उनसे पूछा गया कि वे अपनी सरकार को कितने नंबर देंगे तो उनका जवाब था -पिछले चंद दिनों से टीवी, प्रिंट मीडिया में सरकार की नीतियों पर काफी बहस हुई है और मीडिया ने नंबर भी दिए हैं। यह मेरे लिए उचित नहीं है कि मैं नंबर दूं। उन्होंने कहा कि इसका फैसला भारत की जनता करेगी। मीडिया करेगा। आप लोग करेंगे। अब प्रधानमंत्री जी को कौन समझाए कि भारत की जनता तो बहुत पहले फैसला कर चुकी है मगर उस फैसले को मानेगा कौन ? देश में हाहाकार मचा हुआ है . रोजाना हर चीज के दाम बढ़ा दिए जाते हैं. अब तो दिल्ली में गाड़ियों पर रोड टेक्स भी तिगुना कर दिया गया. डीजल पेट्रोल के दाम दो बार बढाए जाने के बाद भी फिर से एक बार भाव बढाए जाने की तैयारी चल रही है . हर चीज मंहगी हो रही है मगर श्रम का कोई महत्त्व नहीं है, मजदूरी बढाने का कोई नाम नहीं ले रहा है . सब लोग यूपी ए सरकार को कोस रहे हैं. सब लोगों ने इस सरकार को हर मोर्चे पर फिसड्डी पाया है . तो क्या आप इस फैसले को स्वीकार करेंगे मनमोहन सिंह जी. या फिर आपने सोच लिया है कि चदेश की जनता चाहे जो कहे, चाहे जो करे , मगर आपको तो सिर्फ राहुल गांधी और सोनिया गांधी को ही खुश कर देना है . फिर आपकी कुर्सी को कोई हिला नहीं सकता. वैसे भी देश का आम नागरिक आपको प्रधानमंत्री कम और किसी मठ का पुजारी ज्यादा मानता है .क्योंकि जिस तरह कोई पुजारी अपने भगवान का आदेश मानता है , उसकी पूजा करता है यही हाल मनमोहन सिंह जी करते हैं. जो आदेश सोनिया गांधी ने दिया उस पर तुरंत अमल होता है जनता जाए भाद में . जनता के पास सिर्फ वोट देने का अधिकार जो है . वोट देकर चुने हुए प्रतिनिधि को वापस तो बुलाया नहीं जा सकता. मनमोहन सिंह से आतंकवाद , नक्सल समस्या , मंहगाई आदि के बारे में जो भी सवाल पूछे गए , उसका वे गोलमोल जवाब देते गए . दुर्घटनाओं पर भी बोले कहा-देश का प्रधानमंत्री होने के नाते मैं जनता और संसद के प्रति जवाबदेह हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कई मसले ऐसे हैं, जिनसे हमें निपटने की जरूरत है। हमें इन त्रासदियों की तह तक जाना होगा। ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति मानवीय भूलों के कारण न हो, ये सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।
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