Wednesday, May 26, 2010

जीवन से हार क्यों ?

आजकल हर शहर , हर गाँव और हर मोहल्ले से आत्महत्या करनी की ख़बरें आ रही हैं. आत्महत्याओं का यह खतरनाक सिलसिला घटने की बजाय बढ़ता हे जा रहा है . कल मुंबई के कान्दिवली, घाटकोपर और दहिसर में दो छात्रों और एक छात्रा ने अपने जीवन लीला समाप्त करली. इनमे से एक को फेल होने की आशंका थी जबकि दो फेल हो गए थे . इसी प्रकार देश के अन्य हिस्सों से में भी छात्र -छात्राएं काल के गाल में समा रहे हैं . इन आत्महत्या करने वाले इन छात्र-छात्रों की उम्र ऐसी भी नहीं कि उन्हें बिलकुल नादाँ समझ लिया जाए . इनमे से कोई १२ वी का छात्र था तो कोई ग्रेजुएशन कर रहा था . यानि कि इन्होने कई वर्षों तक अध्ययन किया था , और इतने सालों के अध्ययन के बाद भी इनको विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का तरीका नहीं सिखाया गया. फेल होना क्या है ? और फेल होते क्यों हैं ? अगर हो गए तो वे पास कैसे हो सकते हैं और तब तक के लिए उन्हें अपने आपको किस तरह से मजबूत बनाए रखना है , इसकी शिक्षा आखिर उन्हें क्यों नहीं दी गयी ? जो बच्चे जीवन की परिक्षा में फेल हो जाते हैं , वे इतने सालों तक पास कैसे होते रहे , इसमें भी संदेह होता है . इससे साफ़ होता है कि अभी हमारे एजूकेशन सिस्टम में बहुत सी खामियां हैं, इन्हें दूर करना होगा . आखिरकार हम क्यों पढते हैं, अपने बच्चों को किसलिए पढ़ाते हैं, यह हमें भी पटा होना चाहिए और हमारे बच्चों को भी . टीचर्स को भी चाहिए कि वे इस महत्वपूर्ण बात को हमेशा याद रखें . और शिक्षा नीति निर्धारित करने वाले लोगों को भी इस सम्बन्ध में सही नीतियां बनानी चाहिए, इसससे सम्बंधित कोर्स होने चाहिए . फेल होने का हौवा ऐसा नहीं होता जिससे जिंदगी को खत्म किया जा सके. जीवन सुन्दर है, महत्वपूर्ण है . उद्देश्यपरक है, इसको और भी हसीं बनाना चाहिए .जीवन क्यों हसीन है, यह खास तौहफा कुदरत ने क्यों हमें दिया है ? और इसकी रक्षा हमें क्यों और कैसे करनी चाहिए , इसकी जानकारी हर विद्यार्थी को होनी चाहिए , अभिभावकों को होनी चाहिए . मगर यहाँ पर होता उलटा ही है . अगर किसी बच्चे के किसी सब्जेक्ट में कम नंबर आ गए या फिर वह किसी विषय में फेल हो गया तो सबसे पहले घरवाले ही उस बच्चे को खलनायक मान लेते हैं. उससे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उसने किसी का क़त्ल दिया हो . बाकायदा बच्चों पर क़त्ल का इल्जाम यह कहकर लगाया जाता है कि - ' तुमने हमारे अरमानों का गला घोंट दिया. हमने तुम्हारे लिए क्या-क्या सपने संजोये थे , मगर तुमने उन सभी ख्वाहिशों का क़त्ल कर दिया. ' बच्चे इस इल्जाम से इतने आहात हो जाते हैं कि अपने आपको सबसे कमतर आंकने लगते हैं. वे सोचते हैं कि वे सबसे बुरे हैं , जो अपने परिवार वालों की हसरत पूरी नहीं कर पाए . वे सोचते हैं कि इस वजह से उनके परिवार की मान मर्यादा कम हो गयी है और वे अब समाज के सामने तुच्छ हो गए हैं, उस स्थिति में वे चाहते हैं कि उनके करीबी लोग जैसे माँ, बाप , बड़े भाई -भाभी आदि उनसे सहानुभूति रखें, उनसे प्यार करें मगर होता इसके उलटा है . उन्हें ताने मिलते हैं. तिरस्कार मिलता है . और यही तिरस्कार बच्चों की रगों में खून बनकर दौड़ने लगता है . वे सोचते हैं कि अगर वे मर जाएँ और अपने परिजनों को एक भावुक सुसाइड नोट छोड़ दें, जब वे पत्र पढेंगे तो उन्हें उनसे सहानुभूति हो जायेगी .और फिर अपनों की सहानुभूति पाने के लिए के लिए वे ईश्वर की सबसे खूबसूरत कृति को समाप्त कर देते हैं. अगर यह सहानुभूति , अपनत्व और प्यार उन्हें जी ते जी मिल जाए तो शायद वे इतना बड़ा कदम न उठायें मन को इतना कच्चा न करें , अपनों का प्यार पाने के लिए उनके हिमालय जैसे हौंसले भी मोम की तरह पिघल जाते हैं. उसी भावुकता में वे आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध कर डालते हैं. अगर किसी विद्यार्थी के कम नंबर आते हैं , या वह फेल हो जाता है या फिर इच्छित सफलता नहीं मिलती तो उसके टीचर , अभिभावक और आसपास के लोगों को खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है. उस विद्यार्थी को सबसे ज्यादा जरूरत सहानुभूति और प्यार की जरूरत होती है , इसके बाद नंबर आता है सलाह का. जब वह बिलकुल नोर्मल हो जाए तब उसे अगली बार अच्छी तैयारी करने कि सही सलाह दी जा सकती है. विद्यार्थियों को चाहिए कि अगर वे फेल होते हैं तो जीवन से निराश न हों, यह एक सामान्य प्रक्रिया है . जीत और हार सिक्के के दो पहलू होते हैं. जैसे धुप -छाँव , खट्टा- मीठा , गर्मी -सर्दी , दुःख और सुख होते हैं , इसी तरह सफलता-असफलता होती हैं, अच्छी तरह से परिक्षा की तैयारी करें और फिर रिजल्ट जैसा भी आये वे स्वीकार करें . एक्जाम के बाद नेगेटिव रिजल्ट भी आ सकता है, उसे झेलनी की मानसिक तैयारी पहले से ही कर लें. अगर घरवाले कुछ कहते हैं तो उन्हें एक मार्मिक पत्र लिखें, उन्हें वे कारण बताएं जो आपकी असफलता के हैं. उनसे वादा करें कि अगली बार वे और बेहतर तैयारी करेंगे . इस तरह सबकी सूझ-बूझ और समझदारी से आत्महत्या के इस सिलसिले को कम किया जा सकता है . आखिर जीवन जीने के लिए दिया गया है . इससे कभी हार नहीं मानने चाहिए , चाहे कारण कितना भी बड़ा क्यों न हो .













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