सरकार जमीन पर
और आम इंसान ?
गैस के बाद अब बिजली के दाम बढाने का भी एलान कर दिया गया. यानि एक तो करेला , ऊपर से नीम चढ़ा . क्या पहले से ही कम दुःख थे , कम मंहगाई थी , जो ये बोझ भी लाद दिए गए .अब ये मंहगाई और भी बढ़कर सातवे आसमान पर पहुच जायेगी . जो कांग्रेस आम आदमी की बात करती थी , 'कांग्रेस का हाथ , आम आदमी के साथ ' का नारा बुलंद किया करती थी, वह अब कहीं नजर नहीं आती . गरीबी मिटाने की बात करते -करते कांग्रेस ने पहले लोगों से वोट हासिल किये और सता मिलते ही उसने गरीबी छोड़, गरीबों को ही मिटाना शुरू कर दिया. आलू , गोभी, टमाटर , हरी मिरच से लेकर आटे-दाल, तेल -तिलहन तक के भाव ने देश वासियों को खूब रुलाया है . घर की कीमतें भी ऐसी हो गयी हैं कि आम आदमी तो फ्लेट की बात सोच भी नहीं सकता. इसके बावजूद केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार मंहगाई रोकने के कोई प्रयास करती दिखाई नहीं देती, उलटे अब सभी चीजों के दाम बढाने शुरू कर दिए हैं. पेट्रोल -डीजल के रेट जब बढाए गए तो पूरे देश में त्राहि मम -त्राहि मम की गूँज सुनाई देने लगी थी, अब शायद चिल्लाने के लिए जान भी शेष नहीं रहे. जो लोग मुंबई में टीम हजार रुपये महीने रुपये की नौकरी कर रहे हैं वे सौ रुपये किलो की हरी मिर्च कैसे खा पायेंगे ? विपक्षी दल अक्सर कांग्रेस पर निशाना साधते हैं, कहते हैं कि कांग्रेस चुनाव लड़ने के लिए बड़े- बड़े व्यवसाइयों और दलालों से चंदा लेती है . जब उसकी सरकार बनती है तो जिनसे चन्दा लिया गया है, उनको फायदा पहुचाने वाली नीतियां बनाई जाती हैं. इसलिए गरीब की बात पीछे छूट जाती है. गरीबों का शोषण बदस्तूर जारी रहता है . कांग्रेस जानती है कि इस देश में बहुत गरीब हैं, भूखे हैं, बेघर और अशिक्षित हैं. उनको चुनाव के समय अगर थोड़े से रुपये बाँट दिए जाएँ तो वे शराब और कबाब के नशे में पिछले पांच सालों के जख्मों को भूल जाते हैं , कांग्रेस के मीठे और लुभावने वादों में वे फिर से अपना उज्जवल भविष्य तलाशने लगते हैं. ये सब मैंने खुद भी अपनी आँखों से देखा है . पिछले विधान सभा का चुनाव मैंने मीरा भाइंदर विधान सभा सेट से बसपा के टिकट पर लड़ा. मैंने पूरी ईमानदारी के साथ चुनाव लड़ा. लोगों को विकास के बारे में समझाया . मगर यहाँ की जनता ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी के संयुक्त उम्मीदवार गिल्बर्ट मेंडोसा को चुना. वही मेंडोसा , जिन पर दर्जनों गंभीर केस दर्ज हैं. दौलत की ताकत ऐसी ही होती है . मगर उस वक्त गरीब मतदाता को ये लोग सोचने समझने लायक ही नहीं छोड़ते . ये पार्टियां पांच साल तक जिनका खून चुस्ती हैं , उन्हें कुछ दिनों के लिए खूब शराब पिलाती हैं, उन्हें मदहोश कर डालती हैं. मैंने देखा कि जो लोग भाजपा की रैली में जाते थे , वे शाम को किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार का प्रचार करते थे. सबका खुला रेट था. बड़ा अजीब मंजर था. सौदागर सौदा कर रहे थे , लोग बिक रहे थे. कुछ मेरे जानने वाले भी 'कार्यकर्ता सप्लाई ' का धंधा कर रहे थे. वे मुझे भी कम कीमत में अपनी सेवायें देना चाहते थे मगर मैंने उनकी सेवायें नहीं ली. मेरे चुनाव कार्यालय में रोजाना सैकड़ों युवक- युवतियां, महिला -पुरुष आते थे जो मेरा प्रचार करना चाहते थे, मुझे वोट क्लारना चाहते थे मगर उसकी कीमत चाहते थे, एक महिला ने तो कमाल ही कर दिया . यह घटना भायंदर वेस्ट के भोलानगर की है. मै घर-घर जाकर वोट मांग रहा था . मेरे साथ सच्चे और अच्छे कार्यकर्ता थे. एक महिला ने मुझे मराठी में बाते कि वह विदर्भ की रहने वाली है और डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर की अनुयाई है. यह जानकार मुझे खुशी हुई. मैंने उनसे बाबा साहेब के विचारों पर चलने वाली पार्टी यानि बसपा के लिए मतदान करने को कहा और वहाँ से चल दिया . तभी उसने आवाज दी और मुझसे रुकने को कहा. उसने मेरे करीब मुझे वोटर लिस्ट की जेरोक्स दिखाते हुए कहा कि उनकी तीन वोट हैं, इनकी पांचसौ रुपये प्रति वोट के हिसाब से १५०० रुपये चुकता कर दीजियें . उसने कहा कि दूसरे उम्मीदवार उन्हें इन तीन वोटों के लिए २००० देने को तैयार है. मै उसकी बात सुनकर सन्न रह गया.आज भी उसकी बातें जेहन में घूमती रहती हैं. क्या यही लोकतंत्र है ? क्या नोटों से खरीदे गए वोटों से चुना गया जन प्रतिनिधि जनता की भलाई के बारे में सोच सकता है ? इस खेल में सभी पार्टियां बराबर की भागीदार हैं .क्या इसका कोई इलाज है ? क्योंकि जो जानलेवा मंहगाई है , इस समस्या का समाधान भी इसी प्रश्न में छिपा है.
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