
गरीबों से जीने का हक भी छीन लो
इतनी सी मेहरबानी कर दो
भारत के करोड़ों लोगों पर शासन करने वाले अर्थात अपने आपको जन सेवक कहलाने वाली कौम करोड़ों अरबों में खेलती है , और इन्हें हुक्मरान बनाने वाले करोड़ों लोग दाने -दाने के लिए मोहताज हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से एक दिल दहलाने वाली खबर आयी .खबर के मुताबिक़ वहाँ के लोग भूखों मरने के लिए मजबूर हैं. उन्हें भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता . महीने में सिर्फ १५ दिन चूल्हा जलता है और वो भी महज एक समय . यानी तब भी सुबह शाम खाना नहीं मिल पाता . सूखे से जूझते चित्रकूट का यह चेहरा तो उदाहरण भर है , इसको महाराष्ट्र के किसानों से जोड़कर भी देखा जा सकता है महाराष्ट्र में गरीबी और फाकाकसी से तंग होकर हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं. यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है. देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की खबरे देखी सुनी जा सकती हैं. ये जितने भी भूखे, बेबस परेशान और हताश लोग हैं ये निकम्मे नहीं हैं. ऐसा नहीं हैं की ये काम नहीं करना चाहते बल्कि ये वो मेहनतकश किसान और मजदूर हैं जिनके पसीने से हमारे जिस्म में लहू दौडता . ये लोग देश के अन्नदाता हैं मगर केन्द्र और राज्य सरकार की गलत नीतियों के चलते और सूखा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते ये अपना और अपने परिवार का पेट नहीं पाल सकते . मजबूरन इन्हें कर्ज लेना पड़ता है और जब ये कर्ज को चूका नहीं पाते तो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. ये लोग करोडों की संख्या में हैं इनकी मुसीबतें भी इससे कम नहीं. ये लोग अपने बच्चों की ना तो सहे परवरिश कर पाते हैं और ना ही उन्हें अच्छी शिक्षा दे पाते हैं, इस कारण मुफ्लिशी ही इनका मुकद्दर बन जाती है. इन्हीं में से कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपराध का रास्ता चुन लेते हैं. उनके अंदर सिस्टम के खिलाफ आक्रोश पैदा हो जाता है . वे इंतकाम की आग में सुलगने लगते हैं और देश बांटने वाली ताकतों के हाथ में पड़ जाते हैं. अगर
ठीक तरह से स्वतंत्र जांच कराई जाए तो ये तथ्य सामने निकलकर आयेंगे की नक्सलवादियों में से कितने ही लोग ऐसी ही हालात के शिकार मिलेंगे . उनके दिमाग में यह बात घूमती रहती है की दिन रात मेहनत करके भी वे दो जून की रोटी हासिल नहीं कर सकते , जबकि कुछ भ्रष्टाचारी नेता आराम से एसी कमरों में बैठकर भी करोड़ों रुपये कमा लेते हैं. वे ऐसे वर्ग से नफरत करने लगते हैं जो लोग कम मेहनत करके भी सर्व सुविधा संपन्न हैं. फिर ऐसे भूखे पेट लोग जब देश बांटने वाली ताकतों के हाथ लगते हैं तो वे उनकी सुलगती भावनाओं को और भी हवा दे देते हैं नतीजा ये की वह हरा हुआ इंसान हाथ में बन्दूक उठा लेता है. हमारे देश में समस्या के जद से खत्म नहीं किया जाता , सिर्फ ऊपर-ऊपर समाधान करने का दिखावा किया जाया जाता है. यही कारन है की हमारे देश के कुछ नौजवान पडौसी मिल्क के बहकावे में आकार अपने ही भाइयों का खून बहा रहे हैं देश में आतंकवाद फैला रहे हैं. निसंदेह इस काम को ठीक नहीं ठहराया जा सकता है , मगर इस हद तक आर्थिक असमानता भी की सभ्य देश के लिए बिलकुल ठीक नहीं . अगर नक्सलवाद को रोकना है, आतंकवाद को रोकना है तो पहले आर्थिक समानता की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे , जो लोग भूख सर तरस रहे हैं उन्हें खाना मुहैया करना होगा .जो अशिक्षित हैं उन्हें शिक्षा मुहैया करानी होगी , वो भी सामान शिक्षा . जो बेरोजगार हैं उनके लिए रोजगार देने होंगे , अगर समय रहते ऐसा नहीं किया किया गया तो इस चिंगारी को ज्वालामुखी बन्ने से कोई नहीं रोक सकता . और जब ज्वालामुखी फटता है तो अंजाम सब जानते ही हैं .
- मुकेश कुमार मासूम
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