Sunday, May 23, 2010
विमान हादसा , गुनहगार कौन ? सजा किसको ?
दुबई से मेंगलुरु आ रहे एयर इंडिया के जिस विमान का हादसा हुआ , उसमे १५८ बेगुनाह लोग असमय ही काल के गाल में समा गए . ये वो लोग थे जिन्होंने किसीका कुछ बिगाडा नहीं था, किसी नियम -क़ानून का उल्लंघन नहीं किया था , इसके बावजूद भी इनकी मौत हो गयी. इनमे महिलायें भी थीं, बूढ़े भी थे और ऐसे नवजात बच्चे भी जिन्होंने ठीक से अभी दुनिया देखी भी नहीं और दुनिया से चल बसे . कहने का लोग इसे दुर्घटना कह रहे हैं , उस पायलट की भूल मान रहे हैं जिसे एक हजार से ज्यादा घंटे उड़ान भरने का अनुभव था . कुछ लोग किस्मत को दोष दे रहे हैं और कुछ तो ऐसे भी होंगे जो सोचते होंगे कि वे कभी विमान में सफर करेंगे ही नहीं , या फिर जो यात्री मरे हैं अगर वे यात्रा नहीं करते तो अच्छा होता.लेकिन ये संभव नहीं. जब सुविधाएँ हैं और लोग उनका शुल्क वसूलने की क्षमता भी रखते हैं तो वे इसका इस्तेमाल करेंगे ही. इस विमान में सफर करने वालों ने बाकायदा टिकट लेकर यात्रा की थी और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी इससे जुड़े मंत्रालय और केंद्र सरकार की बनती है. गुनहगार केंद्र सरकार है . मेरा ख़याल है कि जिसका गुनाह है , उसे न तो सजा मिली है और ना ही लोग उसे आरोपित कर रहे हैं. जी हाँ, मै नागरिक उड्डयन मंत्रालय और एयर पोर्ट अथोरिटी की ही बात कर रहा हूँ. सिर्फ नैतिकता की दुहाई देकर इस्तीफे का नाटक करने भर से ही १५८ लोग फिर से जी नहीं उठेंगे . खैर जियेंगे तो तब भी नहीं जब सम्बंधित मंत्री का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाएगा . लेकिन अचानक हुई उनकी मौत के दर्द को इस तरह आसानी से भुलाया भी नहीं जा सकता. वो भी उस अवस्था में जब इस रनवे का उदघाटन करने खुद नागरिक उड्डयन मंत्री इस दुर्घटना से कुछ घंटे पहले ही गए हुए थे. जहां पर यह रनवे है , वह पठार क्षेत्र है . सबको मालूम था कि अगर ज़रा भी भूल हई तो हादसा हो सकता है , इसके बावजूद भी वाहन पर इंटर नैशनल उड़ान की अनुमति आखिर किन मजबूरियों के तहत की गयी. अब हादसे की जाच के लिए जिस तरह सरकार तत्परता दिखा रही है , क्या इस बात की भी जांच की जायेगी कि इतनी संवेदनशील जगह पर इतना तंग रनवे बनाने की आखिर मजबूरियां क्या थीं ? जल्दबाजी क्या थी ? वे कौन लोग या अथोरिटी थी जिसने इस पर ध्यान नहीं दिया और उदघाटन करने गए मिनिस्टर को भी इसमें कुछ गलत क्यों नहीं दिखाई दिया ? थोड़ी बहुत मानव भूल स्वाभाविक है , क्या रनवे के निर्माण के समय इसका ध्यान नहीं रखा गया ? इस रनवे के निर्माण का ठेका किस कंपनी को दिया गया था ? क्या उस्ससे भी इस सम्बन्ध में पूछताछ की जायेगी ? क्कुछ सवाल मारे गए पायलट के परिजनों ने भी उठाये हैं . उनका कहना है कि पायलट से रोजाना दस घंटे से ज्यादा काम लिया जा रहा था , जो कि गलत है . पायलट को समुचित आराम मिलना चाहिए वरना वह अपने कर्तव्य को ठीक से अंजाम नहीं दे पायेगा . तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या एयर इंडिया में पायलटों की कमी चल रही है , क्या अन्य पायलटों से भी इस तरह निर्धारित समय से ज्यादा काम लिया जा रहा है . और अगर ऐसा है तो इसकी भी जांच करनी चाहिए . ये इसलिए जरूरी है ताकि भविष्य में इस तरह और लोग मौत के आगोश में जाने से बच सके. बेकसूरों को बेमौत मरने से बचाने के लिए सख्त कदम जरूरी हैं. मगर सख्त कड़क उठाएगा कौन ? बेचारे प्रधानमंत्री मजबूर हैं. गठबंधन सरकार की मजबूरी ने उनके हाथ बाँध रखे हैं. वे चाहकर भी अपनी सरकार की सहयोगी पार्टियों के खिलाफ न तो कोई बयान दे सकते हैं और ना ही कोई एक्शन ले सकते हैं. एक अच्छे बाबू की तरह उन्हें सिर्फ काम करते रहना है. स्टेम्प की तरह लगते रहना है . नागरिक उड्डयन मंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के हैं, क्या मजाल कि कांग्रेस उनके खिलाफ या उनकी मर्जी के बिना इस हादसे के बारे में अपनी मर्जी से सही जांच करवा सके. जानते हैं हैं न सरकार गिर सकती है. सरकार चलाने की ये मजबूरियाँ भी ऐसी अनहोनियों के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. आप क्या सोचते हैं ?
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