Saturday, August 14, 2010

NOTICE is hereby given that with effect from
15th July 2010 the Registered Office of Marg
Publications Private Limited has been changed
from B / 12, Sardaram Park, 34, Sasoon Road,
Pune – 411 001 to Flat I / 004, Ground Floor,
Sonam Chandra, Phase – 1, Old Golden Nest,
Mira Road East. Thane – 401 105. All communi
cations should henceforth be made at the afor
esaid address.
-For Marg Publications Private Limited
By order of the Board,
Mukesh Kumar Masoom
Director
Dated 13th August 2010

Sunday, July 25, 2010

इशक की आग में झुलसता हिन्दुस्तान

इशक की आग में समूचा हिन्दुस्ता झुलस रहा है।पंजाब के कपूरथला और दिल्ली सटे उत्तर परेद्श के जिला बुलंदशहर में एक दिन में इशक के चक्कर में तीन घटनाएं घटी हैं। कोई दिन ऐसा नहीं है जब देश के किसी न किसी हिस्से में दो चार लोग रोजाना इश्क की चक्की में नहीं पिसते हों। कपूरथला के कठुआ में एक पिता ने बेटी को करंट लगा मार डाला। मृतिका का नाम गुरजीत कौर है। पिता ने बेटी के प्रेमी को भी मारने की कोशिश की लेकिन वो बच गया और उसकी सूचना पर पुलिस ने हत्यारे पिता को गिरफ्तार कर लिया।
यूपी के बुलंदशहर में एक युवक की हत्या प्यार करने की वजह से कर दी गई। मृतक जिस लड़की से प्यार करता था वो रिश्ते में उसकी मौसी लगती थी।
यूपी के बुलंदशहर में ही एक ही गोत्र में प्यार करने की सजा दो प्यार करने वालो को मिली। समाज ने उनके प्यार को अस्वीकार कर दिया जसके बाद प्रेमी जोड़े ने जहर खाकर खुदकुशी कर ली।
बुलंदशहर के तनु और गुड़्डू एक दूसरे बेहद प्यार करते थे। दोनों एक ही गोत्र के थे। दोनों ने शुक्रवार को खुदकुशी कर ली। गांव के लोगों के मुताबिक दोनों एक ही कुनबे के थे। जाति और गोत्र भी एक ही था। इसलिए समाज की नजर में वो रिश्ते से भाई बहन थे। कुछ महीने पहले जब घर वालो को दोनों के प्यार का पता चला तो पहरा बिठा दिया गया। घरवाले तो पहले से खिलाफ थे पंचायत भला इस रिश्ते को कैसे मंजूर करती। हारकर दोनों ने मौत को गले लगा लिया ।इस तरह की ज्यादातर घटनाएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश या हरियाणा के कुछ जिलों में ज्यादा घाट रही हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर , बुलंद शहर , गाजियाबाद , नॉएडा , अलीगढ़ , आगरा आदि में ओनर किलिंग या इशक में निराश होकर आत्महत्या करने के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हरियाणा के झज्जर , रोहतक , फरीदाबाद आदि इलाकों में ऐसी घटनाएं ज्यादा बढ़ रही हैं। सरकार न तो प्यार करने वालों को सुरक्षा उपलब्ध करवा पा रही है और नाही समाज इस तरह के मामलों को स्वीकारने के लिए तैयार है । प्यार के लिए मर मिटने का लड़के -लड़कियों का जूनून कैसे परवान चढ़ा , इसके लिए क्या जिम्मेदार है ? फ़िलहाल यह सवाल करने का वक्त नहीं है। यह समय है इस बीमारी को दूर करने का। मगर इसके लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा । प्यार करने वालों और प्यार की बली वेदी पर चढ़ने वालों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती जा रही है। गाँव और शहरी परिवेश में जमीन आसमान का अंतर होता है। गाँव में अगर किसी की बेटी किसी लड़के के साथ प्यार करती है और उससे शादी कर लेती है तो आसपास के लोग बेटी वाले के परिवार का जीना हराम कर देते हैं। हर पल उसे ताने दिए जाते हैं, उसे नजरों से गिरा दिया जाता है। उन्हीं तानों और बेईज्जती से बचने के लिए बेटी वाले या तो अपनी बेटी को ही मार डालते हैं या फिर बेटी के आशिक को मौत के घात उतार देते हैं। इसका परिणाम ये होता है की लड़का और लडकी वाले दोनों परिवार बर्बाद हो जाते हैं। जबकि अगर समझदारी से काम लिया जाए, या तो उन्हें समझा बुझा दिया जाए या फिर उनकी शादी करवा दी जाए तो सब कुछ ठीक हो सकता है । मगर इसके लिए सरकारी पहल की भी जरूरत है । ऐसे मामले निबटाने के लिए भी एक विशेष आयोग की जरूरत है, जो ऐसा मामला सामने आने पर लड़का और लडकी वालों के बीच पुल का काम कर सके।

Thursday, July 22, 2010

दलित दुलारे , राहुल प्यारे , गए कहाँ रे ...

दलित दुलारे , राहुल प्यारे , गए कहाँ रे ...
पिछले कुछ दिनों से देश के कई राज्यों में कई अनहोनी घटनाएं घटी हैं . सबसे बड़ी दुर्घटना तो केन्द्र में बैठी अंधी , बहरी, लंगडी, लूली और पूरी तरह अपाहिज और अक्षम सरकार द्वारा बार-बार डीजल , पेट्रोल , तेल के दाम बढ़ाना है . मंहगाई से जूझ रहे आम इंसानों को और भी मंगाई की आग में झोंकना है, इसके बाद नक्सलियों द्वारा बेगुनाह सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतारना है. रेल दुर्घटना है . जलता हुआ कश्मीर है . राक्षसी बेरोजगारी और भ्रष्टाचार है . ये सब पहले भी थे मगर कुछ महीने से इनमे बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है , इनसे पीड़ित होकर पूरा देश रो रहा है , चिला रहा है मगर एक व्यक्ति ऐसा है जों खामोश है . उसका नाम है राहुल गांधी . अपने आपको दलित हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाले राहुल गांधी न जाने कहाँ गायब हो गए हैं, वे तब भी प्रकट नहीं हो पाए , जब हरदोई से उनकी ब्रिगेड का एक नेता अचानक गायब हो गया और जख्मी हालत में लखनऊ में मिला. वह तो खैर मिल गया मगर राहुल गांधी अभ तक अज्ञातवास में हैं. लोग गाते फिर रहे हैं -दलित दुलारे , राहुल प्यारे , गए कहाँ रे ...चुनाव के समय वे उत्तर प्रदेश के किसी दलित की झोंपडी में रात बिताते किसी टी.वी. में जरूर दिख जायेंगे. अगले दिन के अखबारों में वे किसी दलित बच्चे को गोद में उठाये हुए नजर आयेंगे. मगर जब दलितों की हालत बाद से बदतर की जाती है और करने वाले उनके पाने होते हैं, तब उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रया नहीं आती. न वे प्रेस कोंफ्रेंस करते नजर आते हैं, और न अखबारों में प्रेस विज्ञप्ती ही भेजती हैं. केन्द्र की सरकार कांग्रेस की अगुवाई वाले यू पी ऐ की सरकार है , जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं. कांग्रेस की अध्यक्ष भी सोनिया गांधी हैं.अक्सर विपक्ष के लोग आरोप लगाते रहे हैं कि प्रधानमंत्री भी रबर स्टेम्प से कम नहीं हैं. यानि कि कुल मिलाकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही इस देश के रहनुमा हैं. वही शासन चला रहे हैं. वही मंहगाई बढ़ा रहे हैं. शोषितों, पीडितो, दलितों, मुफ्लिशों, बेरोजगारों, किसानों, मजदूरों और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों का अगर जीना हराम है , तो उसके पीछे इन्हीं मान बेटों का हाथ है . अगर यही लोग इस सबके लिए जिम्मेदार हैं तो गरीबों का मसीहा बनने का नाटक किसलिए , दलितों का सच्चा हितैषी बनने का ढोंग किसलिए ?आम आदमी के साथ होने का ढिंढोरा क्यों ? और नाटक इन्हें करना है तो करें, इनका साथ किसलिए ?देश में दो वर्गों के बीच बहुत बड़ी खाई पैदा कर दी गयी है. गरीब और मेरे के बीच की खाई . सिर्फ कुछ हजार लोगों का देश के सभी संसाधनों पर कब्जा है. देश की समस्त संपत्ति पर कब्जा है और कई करोड लोग दो जून की रोटी खाने तक के लिए मोहताज हैं. शुद्ध पेयजल की छोडिये , उन्हें नाले का गंदा पानी भी नसीब है. अच्छे और नए कपडे की बात अलग है , फटे और पुराने कपडे भी मयस्सर नहीं हैं . इतना बड़ा फर्क किसके शासन में हुआ ? देश पर सबसे ज्यादा राज किसने किया ? जों देश के लिए अन्न उगाते हैं, यानि देश का अन्नदाता अगर आज तक फटेहाल है, सुख सुविधाओं से मोहताज है तो इसका जिम्मेदार कौन है ? अगर मा-बेटे की यह जोड़ी अब भी नींद में सोई है तो देश के नौजवानों के फर्ज बंटा है कि वे जाग जाएँ और अपने हक के लिए शांतिपूर्वक और संवैधानिक तरीके से संघर्ष करें .











शर्मशार होता लोकतंत्र का मंदिर ,
उद्दंड होते जन प्रतिनिधि
बिहार की विधान सभा में जों कुछ हुआ उसे हिन्दुस्तान सहित सारे संसार ने देखा. आज का युग सूचना क्रान्ति का युग है. पलक झपकते ही कोई भी समाचार समस्त विश्व की वेबसाईट पर दिखने लगता है. टी.वी . चैनल द्वारा सब कुछ बहुत जल्द ही दिखा दिया आजाता है . बिहार विधान सभा में जनता के चुने हुए विधायकों को जिस तरह मारपीट करते, गाली -गलौच करते,विधान सभा अध्यक्ष की तरफ चप्पल फेंकते , महिला विधायकों द्वारा मार्शलों पर गमलों से प्रहार करते हुए देखा, उससे लोकतंत्र का मंदिर शर्मशार हो गया. हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही दो दिन के लिए स्थगित कर दी गई है। विधायनसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने विपक्ष के 67 विधायकों को कार्यवाही बाधित किए जाने और गलत व्यवहार के चलते पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया।अध्‍यक्ष ने विपक्ष के 67 विधायकों को इस सत्र के लिए निलंबित कर दिया है। इनमें राजद के 42, एलजेपी के 11, कांग्रेस के 02, सीपीआई (एमएल) के 04, बीएसपी के 02, सीपीएम के 02, सीपीआई के ०४ निर्दलीय 02 हैंराजद अध्यक्ष अब्दुल बार सिद्दीकी और सदन में राजद के उप नेता शकील अहमद निलंबितों में शामिल हैं। बिहार हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री समेत 11 लोगों के खिलाफ 11 हजार ४ सौ १२ करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी मामले की जांच सीबीआई को सौपी है। इसके बाद से विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। हालत ये है कि धरने पर बैठे विधायकों को बाहर निकालने के लिए मार्शलों का सहारा लेना पड़ा। कांग्रेस की विधायक कुमारी ज्योति ने सदन के बाहर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया। उन्होंने भाजपा नेताओं पर गुस्साते हुए मार्शलों पर गमले उठाकर फेंके और वहीं जमीन पर लेट गई।विधायक कोई आम आदमी नहीं होता, उसे लाखों मतदाता चुनते हैं और उससे उच्च आदर्शों, उचित व्यवहार और सज्जनता की अपेक्षा रखते हैं.और जब वही विधायक सदन में जाकर गलत हरकत करते हैं तो आम इंसान अपने आपको ठगा सा महसूस करता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना अच्छी बात है. अपने किसी और अधिकार को पाने के लिए कोई भी आन्दोलन करना चाहिए , अगर नीतिश कुमार ने या उनके साथियों ने कोई गलत काम किया है . पैसों का गबन किया है तो अवश्य ही उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और अगर नहीं होती तो हर किसको को शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार है , मगर क़ानून हाथ में लेकर सदन का अपमान करना, उद्दंड होकर विधान सभा की छवि धूमल करना किसी भी हालत में उचित नहीं है.विधायकों को यह अधिकार बिलकुल नहीं है कि वे लोकतंत्र की मर्यादा को ही नष्ट करदें. यह पहली बार नहीं हुआ है . इससे पहले विभिन्न प्रदेशों के विधान भवन में माननीयों द्वारा मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं. खूब जूता चप्पल चले हैं, लेकिन यह सिलसिला अब बंद होना चाहिए . सिर्फ कुछ दिनॉ के लिए निलंबन की सजा से कुछ होने वाला नहीं है. आजकल लोग कहते फिरते हैं कि अब पहले जैसे नेता नहीं रहे , जयप्रकाश नारायण जैसे, सरदार पटेल जैसे, महात्मा गांधी जैसे . अब
वे नेता देश के लिए ककुछ भी करने को तैयार रहते थे, वे हमेशा जन हित की बात करते थे. उनका आचरण भी सादगी भरा और निस्वार्थ
होता था . इसलिए लोग उन्हें अपना आदर्श मानते थे. आज की तारीख में ऐसा कौन सा नेता है जिसे लोग अपना आदर्श अमानते हों. इसलिए
किसी एक की बात हो तो अलग है यहाँ तो सभी राजनीतिक पार्टियां और ज्यादातर नेता ही ऐसे हो गए हैं. याबी कि इलाज की नहीं , आपरेशन
की जरूरत है. इसके लिए सख्त क़ानून की व्यवस्था की जरूरत है ,जों कभी पूरी नहीं होने वाली. क्योंकि वही छिनरा , वही डोली के संग वाली बात आड़े आ जाती है. यानि कि क़ानून बनाने वाले भी तो नेता ही हैं . और वे ऐसा कोई क़ानून क्यों बनाएंगे जिसे आगे चलकर वही तोड़ने वाले हों .इस मुश्किल का कोई हल है क्या ?







Monday, July 19, 2010








हादसे पर हादसे , जिम्मेदार कौन ?
टिकट लेकर सफर करने वाले बेकसूरों का क्या दोष ?
फिर एक हादसा हो गया . ट्रेन हादसा . ८० से ज्यादा उन बेकसूरों की मौत हो गयी जों लोग टिकट लेकर सफर कर रहे थे. ममता बनर्जी के १५ महीने के कार्यकाल में यह ११ वां हादसा है. ममता बनर्जी हाकिया हादसे में साजिस की बू तलाश रही हैं तो भाजपा ने उनसे रेल मंत्रालय ही छीन लेने की मांग की है. भले ही यह हादसा मानवीय भूल हो या फिर इसमें किसी तरह की नक्सली साजिस हो ,मगर इसमें नुक्सान सिर्फ उन निर्दोषों का हुआ है जिनकी हिफाजत कंरने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की थी लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी को संभाल नहीं पाई. इसका जिम्मेदार कौन है ? केन्द्र सरकार अगर नक्सली समस्या का समाधान नहीं कर रही है तो इसकी सजा किसको मिलनी चाहिए ? निर्दोष नागरिकों को तो हरगिज नहीं . मगर हो यही रहा है . सब बेगुनाह ही मारे जा रहे हैं. कभी नक्सली घात लगाकर सी आर पी एफ के जवानों को मौत के घाट उतार देते हैं तो कभी किसी नागरिक को . पिछले कुछ समय से ये नक्सली ट्रेन को अपने निशाने पर ले रहे हैं. इसमें भी आम जनता की बलि चढ रही है. सेब चाकू पर गिरे या चाकू सेब पर , इससे नुक्सान तो हमेशा सेब का ही होता है. यही हाल जनता के साथ हो रहा है . हर हाल में शोषण उसकी हो रहा हो. नक्सली सोचते होंगे कि जब वे आम जनता को निशाना बनाएंगे तो केन्द्र सरकार पर दवाब बढ़ेगा , सरकार उनकी मांग मानेगी , मगर सच्चाई इससे दूर है .जितने चाहे जवान /अधिकारी शहीद हों . कितनी ही जनता का खून बहे . केन्द्र की बाहरी सरकार के कान पर जूं रेंगने वाली नहीं है .इसलिए नक्सलियों को अपनी रणनीति बदलनी चाहिए . केन्द्र सरकार को भी नक्सलियों से सख्ती से निपटना चाहिए . और अगर केन्द्र सरकार ऐसा नहीं कर पाति तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है .
वैसे भी यह सरकार हर मोर्चे पर फेल है. केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार मंहगाई बढाते जा आरहे हैं. केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवरा डीजल, पेट्रोल और घरेलू गैस के दाम बढ़ाकर मंगाई बढाने में अपना योगदान दे रहे हैं. मंनरेगा में अरबों का भ्रष्टाचार है . देश का पैसा मनरेगा जैसी भ्रष्ट योजना में लगाकर कुछ लोगों को तो खुश किया जा रहा है, मगर यह पैसा जिनकी मेहनत और गाढ़ी कमाई की बदौलत विभिन्न टैक्स के माध्यम से आता है , उनका जीना हराम किया जा रहा है . विदेश मंत्री कृष्णा जी अभी हाल ही में पाकिस्तान गए तो उनकी वार्ता भी बुरी तरह फेल हो गयी . दूरसंचार मंत्री पर ३ जी व अन्य सेवाओं की नीलामी में रिश्वत लेने की आरोप लगे. देश की सड़कों का बुरा हाल है . महानगरों को अगर छोड़ दिया जाए तो देश भर में बिजली के लिए त्राहि मम मची हुयी है . कुल मिलाकर हर क्षेत्र में कांग्रेस फेल है . कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां, जों कि सरकार में हैं , वे सब बुरी तरह से फेल हैं. लगता है सरकार ऐसे ही रामभरोसे चल रही है .
ऐसी कमजोर सरकार देश का भला नहीं कर सकती, देशवासियों की सुरक्षा भी नहीं कर सकती . इस सरकार का तो बस एक ही इलाज किया जा सकता है . आने वालों चुनावों में इस सरकार में शामिल सभी पार्टियों को विसर्जित कर डालिए . जब तक यह सरकार है तब तक हम ऐसे हादसों और मंहगाई जैसी महामारी को झेलने के लिए अभिशप्त रहेंगे.











Sunday, July 18, 2010

अध्यात्म और अश्लीलता

आजकल देश में बाबागीरी का धंधा खूब जोरों पर चल रहा है . बाबा लोग टी.वी. चैनल में मंहगे-मंहगे विज्ञापन देते हैं, अखबारों में पैड आर्टिकल छपवाते हैं , आलिशान महलों में रहते हैं , मगर नाम आज भी आश्रम का दिया गया है . यानि कि अगर फाइव स्टार महल है तो भी उसका नाम आश्रम ही रहेगा . स्वामी नित्यानंद को पूरे संसार ने एक मोडल के साथ मसाज करवाते हुए , चुम्बन लेते हुए पूरे संसार ने टी.वी . देखा. स्वामी नित्यानंद ने बहुत सफाईयां दीं, यहाँ तक कि खुद को नपुंसक भी बताया , मगर क़ानून के लम्बे हाथों से बच न सके. पुलिस का भी कहना था कि कि अश्लील हरकत करने के लिए सम्पूर्ण मर्द होना जरूरी नहीं होता. उसकी सीडी भी सच निकली . इसलिए जब बाबा का झूठ खुल गया तो उसने बेशर्मी से बयां देने शुरू किये . एक बयान यह भी था कि यू ट्यूब पर उसे सबसे ज्यादा सर्च किया जा रहा है , इस बात पर वे गर्व से फूले नहीं समा रहे थे . उससे पहले आशाराम बापू और उनके बेटे पर भी काला जादू करने , भक्तों पर जानलेवा हमला करवाने , सरकारी जमीन हड़पने और आश्रम में आने वाली महिलाओं के साथ अश्लील हरकत करने तथा उनका शारीरिक शोषण करने के आरोप लगे थे. इस प्रकार सकड़ों कथित बाबाओं पर इस तरह के गंभीर आरोप लग चुके हैं. हाल ही में बाबा ऋषि प्रभाकर पर उनकी पत्नी अरुंधती ने ही गंभीर आरोप लगाकर सबको चौका दिया है. अपने ही पति की पल खोलने वाली अरुंधती अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती है . वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद की रहने वाली है . इस जिले के कलेकटर उसके पिता हैं. बाबा ऋषि प्रभाकर ने इस जिले में सिद्ध समाधि योग आश्रम बनाया था . यहीं पर अरुंधती की मुलाक़ात ऋषि प्रभाकर से हुई . अरुंधती का कहना है कि उसे किस तरह अरुंधती ने अपने जाल में फंसा लिया, इसका उसे पता ही नहीं चला. जब वह कुंवारी थी तो अपने से कई साल बड़े बाबा के चक्कर में फंस गयी . बाबा ने उसका शारीरिक शोषण तो किया ही , साथ ही उसकी एक अश्लील फिल्म भी बना ली , और उसे लगातार ब्लेकमेल करने लगा. अश्लील सी.डी. की बदौलत ऋषि प्रभाकर ने अरुंधती को मनचाहे तरीके से इस्तेमाल किया. आखिरकार एक दिन ऋषि प्रभाकर ने उससे शादी भी करली. उनका एक दस साल का बेटा भी है. मगर शादी के बाद भी बाबा अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. वह और भी कई महिलाओं का शारीरिक शोषण करने लगा . यहाँ कि उनके बेटे ने भी कई बार अपने पिता को दुसरी महिलाओं के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा है . फिलहाल अरुंधती को बाबा ने आश्रम से निकाल दिया है और वह किराए के मकान में रह रही है . अरुंधती ने इस बाबत अदालत में मुकदमा दायर कर रखा है . अगर बाब की बीवी खुद इस रहस्योद्घाटन से पर्दा नहीं उठाती तो शायद बाबा की असलियत कभी भी जनता के सामने नहीं आपाती . ऐसी बढ़ती घटनाओं के बावजूद भी केन्द्र सरकार अन्धविश्वाश और पाखण्ड फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध सख्त क़ानून नहीं बनाती . भारत में सबसे ज्यादा ढोंगी मुफ्त की रोटियां चर रहे हैं. उनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला कोई नहीं है. आध्यात्म के नाम पर अश्लीलता और वासना का गंदा खेल खेला जा रहा है. लोगों को भाग्य भरोसे पर रहने की सीख देकर देश को कमजोर करने , प्रतिभाहीन करने की कोशिशें की जा रही हैं, स्त५हिति विस्फोटक हो चुकी है , इसके बावजूद कथित धर्म का यह धंधा खूब फल फूल रहा है . समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो मामला और भी बिगड सकता है . आधार ने साधुओं और वैश्याओं की समस्या के समाधान का एक खास नुस्खा निकाला है . राठोड कैसेट कंपनी के गायक और लेखक कहते हैं कि इन दोनों की आपस में शादी कर देनी चाहिए , देश से एक साथ दो समस्याओं का समाधान हो जाएगा

Friday, July 16, 2010

अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं.

अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं

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अब इंसान सब्जियां नहीं खाता , सब्जियां इंसान को खा रही हैं.

और केन्द्र सरकार है कि चैन के बंशी बजा रही है ,विपक्ष भी मंहगाई को लेकर उतना गंभीर नहीं है, जितना कि होना चाहिए . सभी विपक्षी पार्टियों ने एक दिन का बंद रखा और फिर भूल गईं, कुछ राज्य स्तर की पार्तितों ने भी एकाध दिन हो हल्ला करके मामले को शांत कर दिया. मगर इससे फायदा क्या हुआ. क्या सरकार पर किसी तरह का वजन पड़ा, क्या सरकार ने किसी भी चीज के थोड़े भी दाम घटाए ? नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटा अगले ही दिन केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने यह कहकर धमाका कर दिया कि चीनी को भी सरकारी नियंत्रण से बाहर लाया जाएगा. यानि कि सरकार चीनी पर जों सब्सिडी दिया करती थी, उसे बंद किया जाएगा . इससे चाय पीना भी दुर्लभ हो जाएगा . चीनी की कीमते आस्मां छूने लगेंगी .दुसरा धमाका पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवरा ने यह बयान देकर किया है कि ज्यादा पैसे देकर रसोई गैस के उपभोक्ता कभी भी सिलेंडर मगा सकते हैं. इससे गैस एजेंसी के मालिकों को सरेआम भरष्टाचार करने की पूरी छूट मिल जायेगी . एक तो पहले से ही गैस एजेंसी वाले उपभोक्ताओं को खून के आंसू रुलाते थे, ब्लेक में सिलेंडर देते थे, कम गैस देते थे. मनमाने ढंग से डिलीवरी करते थे . अब मुरली देवरा की शह पर वे और भी ज्यादा निरंकुश हो जायेंगे . अब वे मनमाने तरीके से डिलीवरी देंगे और जब उनकी इच्छा होगी , तब देंगी . जानबूझकर लेट करेंगे और मुहमांगी रकम वसूलेंगे . अतिरिक्त रकम के प्रावधान की बात कहकर मुरली देवरा ने गैस एजेंसी के मालिकों को भ्रष्टाचार करने का खुला लाइसेंस दे दिया है . मंहगाई कम करने के बजाय मंहगाई बढाने के इंतजाम किये जा रहे हैं . हालत ये है कि

महंगाई से पूरा देश त्राही त्राही कर रहा है। सारी कमाई को महंगाई सुरसा के मुंह की तरह निगल रही है। पिछले हफ्ते खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर में मामूली सी कमी दिखाई गई, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है। महंगाई के वजन से मध्य वर्ग की कमर टूट गई है और गरीबों ने खाने में सब्जी का नाम लेना ही बंद कर दिया है।

हालांकि आंकड़ों के लिहाज से खाने पीने की चीजों की मंहगाई दर 12.63 फीसदी हो गई है। इससे पहले ये 12.93 फीसदी थी। लेकिन आंकड़ों की बाजीगरी की हकीकत कुछऔर ही है।

मुंबई में 40 रुपए किलो बिकने वाले टमाटर की कीमत 60 रुपए किलो पर पहुंच गई है। भिंडी भी 40 रुपए से 60 रुपए किलो हो गई है। 100 रुपए किलो मिलने वाला मटर पूरे 150 रुपए किलो हो गया है। बैंगन के दाम 30 रुपए से 40 रुपए किलो पर जा पहुंचे हैं।

अहमदाबाद में35 रुपए किलो मिलने वाली भिंडी 45 रुपए किलो हो गई है। फूल गोभी 45 रुपए से 60 रुपए किलो हो गई है। करेला 35 रुपए से 40 रुपए किलो होकर स्वाद और कसैला कर रहा है।

लखनऊ में आलू 7 से 8 रुपए किलो मिलता था वो अब 10 से 13 रुपए किलो मिल रहा है। शिमला मिर्च 32 से 36 रुपए किलो मिलती थी वो अब 40 से 48 रुपए किलो मिल रही है। प्याज 8 से 10 रुपए किलो मिलता था अब वो 16 से 20 रुपए किलो होकर लोगों के आंसू निकाल रहा है।लगता है अब इंसान सब्जियां नहीं खाता बल्कि सब्जियां इंसान को खाने लगी हैं.

जाहिर है पूरे देश में खाने-पीने की चीजों के दामों में आग लगी हुई है। और सरकार के तमाम दावे खोखले साबित हुए हैं।इन आंकड़ों ने केन्द्र सरकार के झूठे दावों की पोल खोल डी है , और अब उस क़ानून की मांग जोर पकड़ने लगी है जों सरकार बनने वालों को कभी भी सरकार गिराने का अधिकार देता हो .


Thursday, July 15, 2010

किस-किस से माफी मांगोगे मुलायम जी ?
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने मुसलामानों से माफी माँगी है, अपना अपराध स्वीकारते हुए उन्होंने कल्याण सिंह के साथ अपनी दोस्ती को गलत माना है । उनका कहना है की अगर उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण सिंह से दोस्ती नहीं की होती तो आज उनकी पार्टी का ये हश्र नहीं होता। मुलायम सिंह ने अपने पत्र में कहा कि बीते लोकसभा चुनाव में साम्प्रदायिक शक्तियों को सत्तारूढ़ होने से रोकने के लिए कुछ गलत लोगों को साथ रखने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे सभी धर्म निरपेक्ष शक्तियों खासकर मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंची। सिंह ने कहा कि मैं इसे अपनी गलती स्वीकार करता हूं और आश्वस्त करता हूं कि अयोध्या मामले से जुड़े आरोपियों व साम्प्रदायिकता भड़काने वाले लोगों से कभी गठजोड़ नहीं करूंगा।मुलायम ने लिखा कि लोकसभा चुनाव में ऐसे लोगों (कल्याण सिंह) को साथ लेने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं। , उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अयोध्या के छह दिसम्बर 1992 की घटना के आरोपी कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के मुसलमानों से माफी मांगने को हताशा भरा कदम बताते हुए कहा है कि अगर माफी ही मांगनी है तो उन्हें पिछड़ों से मांगनी चाहिए।सिंह ने कहा कि मुलायम सिंह से हाथ मिलाते समय उनके समर्थकों ने उन्हें आगाह किया था कि मुलायम धोखेबाज हैं। फरेब उनकी फितरत है लेकिन अपने सरल स्वभाव के कारण पिछडों की लड़ाई लड़ने के लिए उन्हें समर्थन दे दिया। लोकसभा के पिछले चुनाव में कल्याण सिंह की वजह से ज्यादातर मुसलमानों ने मुलायम सिंह और उनकी समाजवादी पार्टी से कन्नी काट ली थी। इसके कारण उनकी पार्टी अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। यहां तक कि उनकी बहू डिंबल यादव फिरोजाबाद लोकसभा सीट से उपचुनाव हार गई थी। डुमरियागंज विधानसभा सीट के लिए हाल ही में हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी चौथे नंबर पर पहुंच गई थी।
इन सब बातों का ख़याल अब जाकर मुलायम सिंह यादव को आया है । इससे पहले जब उन्होंने सपा के संस्थापक सदस्य मोहम्मद आजम खान को पार्टी से बेआबरू होकर निकाला तब उन्हें ध्यान क्यों नहीं आया था ? आजम खान चिल्ला-चिलाकर कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद के ढहने का गुनाहगार बता रहे थे , उन्हें मुस्लिमों का हत्यारा बता रहे थे , उस वक्त मुलायम सिंह यादव कल्याण सिंह के गले में बाहें डालकर घूम रहे थे । दावे के साथ कह रहे थे की उनकी दोस्ती हमेशा अमर रहेगी। अमर सिंह जैसे बडबोले इंसान के चक्कर में आकर जब मुलायम सिंह यादव मायावती द्वारा बनाये गए डॉक्टर आंबेडकर स्मारकों , पार्कों को अय्याशी का अड्डा बता रहे थे , अपनी सरकार आने पर दलितों , पिछड़ों के महापुरुषों की मूर्तोयों को तोड़ने की बात कर रहे थे , उस समय आपकी बुद्धि कहाँ गयी थी ? और इसके लिए दलितों से आप कब माफी मांगेंगे ?वक्त बड़ा बलवान होता है । अब पछताए क्या हॉट है , जब चिड़िया चुग गयी खेत ? मुसलमान भाई इतने नादाँ नहीं है की जब चाहे घडियाली आंसू बहाकर कोई भी नेता उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेगा। अब मुलायम सिंह यादव को अपनी नीयत और नीतियों में सच्चाई और पारदर्शिता लानी होगी , तब कुछ बदलाव हो पायेगा ? और हाँ, यह सारी कवायद कहीं आजम खान को मनाने के लिए तो नहीं है ?


Wednesday, July 14, 2010

आमिर खान, ये कैसा न्याय है ?
आमिर खान की आने वाली फिल्म पीपली लाइव एक बार फिर से चर्चा में है . आमिर खान की हर फिल्म रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो जाती है इसलिए 'एक बार
फिर चर्चा में है ' का जिक्र इया गया है . इससे पहले उनकी थ्री ईडियट फिल्म आयी थी जों चेतन भगत के उपन्यास 'थ्री मिस्टेक्स इन माई लाइफ ' पर आधारित थी
. कहानी के मूल लेखक चेतन भगत ने कई गंभीर आरोप लगाकर फिल्म को खूब पब्लिसिटी दिलाई थी .इस बार कुछ कारण दूसरे हैं. मध्य प्रदेश के एक लोक गायक
गया प्रसाद प्रजापति का लिखा गीत -'सखी सिया तो खूब ही कमात हैं, मंहगाई डायन खाए जात है. ' का इस्तेमाल इस फिल्म में किया गया है . इसमें गयाप्रसाद के १०
अन्य साथियों ने भी आवाज दी है . गया प्रसाद ने आरोप लगाया था कि आमिर खान प्रोडक्शन के लोगों ने सिर्फ ११०० रुपये देकर एक कोरे कागज़ पर उनसे हस्ताक्षर
करवा लिए . जबकि यह गाना फिल्म की रिलीज से पहले ही हिट हो गया. तब मीडिया को उसके लेखक की सुध आयी , और जब गया प्रसाद ने अपने और अपनी टीम
के साथ हुयी धोखाधड़ी का बखान किया तब आमिर खान का एक ऐसा चेहरा उजागर हुआ जिसे लोग नहीं जानते , क्योंकि जब-तब (खासकर तब , जब उनकी फिल्म
रिलीज के कगार पर होते हैं) वे प्रेस के सामने समाज हित और देश हित की मीठी -मीठी बातें करते हैं . मगर असलियत ये कि उनके प्रोडक्शन ने गरीब कलाकारों का
आर्थिक शोषण किया. आमिर खान फिल्म जगत के लिए नए तो हैं नहीं जों यह कहकर बच जायेंगे कि उन्हें ज्ञान नहीं है कि गीतकारों को मुंबई में कितना पारिश्रमिक दिया
जाता है . इसके बावजूद महज ग्यारह सौ रुपये में ११ लोगों से काम करवाना धोखाधड़ी के अलावा और क्या हो सकता है ? यह तो सरासर अन्याय है . फिल्म जगत में
कलाकारों के शोषण की बात कोई नई नहीं है. शारीरिक , आर्थिक मानसिक हर तरह का शोषण यहाँ पर किया जाता है. मगर संघर्ष कर रहे गरीब कलाकारों की आवाज
नक्कारखाने में तूती की तरह कैद होकर रह जाती है . चूंकि यह मामला एक हिट गीत से जुड गया इसलिए गयाप्रसाद को आमिर खान ने मुंबई बुलाकर उन्हें डेढ़ लाख का
पारिश्रमिक दिया और उनकी शेष टीम को ५--५० हजार रुपये दिए. 'मंहगाई डायन ' समय की नब्ज को पकड़कर लिखा गया है. विपक्षी पार्टियों ने भी इस पर हो हल्ला मचा
दिया , इसलिए यह लोगों की नजर में जल्दी से आ गया. कुछ लोग तो यह भी मंशा जाहिर कर रहे हैं कि आमिर खान जानबूझकर इस तरह के विवाद खड़े करते हैं , उन्होंने
मीडिया की वह नब्ज पकडली है , जिसे टटोलकर अपनी मनचाही बात कभी भी कहलवाई जा सकती है . दरअसल फिल्म बनाने के बाद उसके प्रचार का मामला बेहद पेचीदा
होता है . टी.वी. विज्ञापन,अखबारों में वियापन, होर्डिंग्स आदि में करोड़ों का खर्च आता है . फिर भी पब्लिसिटी ठीक तरह से नहीं हो पाती , लेकिन अगर किसी फिल्म को
रिलीज से पहले ही विवादित बना दिया जाए तो मामला आसान हो जाता है . फिल्म के शौक़ीन लोग यह जानने के लिए उत्सुक होते हैं कि आखिर विबाद क्यों हुआ ?
फिल्म बनाने वाले लोग इसीकाफायदा उठाकर प्रचार के लिए इस तरह केहथकंडे अपनाते हैं. कहीं आमिर खान भी तो इसी प्रचलन का शिकार तो नहीं हो रहे हैं ? वरना
अकेले गयाप्रसाद की नहीं यह उन हजारों लोगों की बात है , जिन्हें उनका वाजिब हक नहीं दिया जाता है. आमिर खान, ये कैसा न्याय है ? जब मामला तूल पकड़ा तब
आपने गरीब और होनहार कलाकार को पारिश्रमिक दिया, क्या आपकी प्रोडक्शन के लोगों ने आपको बिनाबताये ये सब कर दिया ? क्या आपको नहीं मालूम था कि गया प्रसाद का
गीत आपकी फिल्म के लिए लिया गया है ? सिर्फ आदर्शवादी बातें कहने भर से कुछ होने वाला नहीं है .उसके लिए उच्च आदर्श भी प्रस्तुत करना पड़ता है .

Monday, July 12, 2010

मनसे विधयाकों की बहाली , ये तो होना ही था
मनसे के चार निलंबित विधायकों शिशिर शिंदे, राम कदम, रमेश वान्ज्ले और वसंत गीते का निलंबन रद्द कर दिया है. इन सभी चार विधायकों को उस समय
निलंबित कर दिया था जब समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी द्वारा हिन्दी में शपथ लिए जाने पर इन चारों ने उनके साथ मारपीट और गाली -
गलौच की थी. कल महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष बाबा साहेब कुपेकर ने मनसे के चारों विधायकों का निलम्बन रद्द करने के घोषणा की . यह कोई अप्रत्याशित
बात नहीं थी, हाँ यह फैसला जरूर अप्रत्याशित था . जब यहाँ पर विधान परिषद के चुनाव हुए तो कांग्रेस के उम्मीदवार संजय दत्त , दीप्ति चौधरी और हुसैन दलवाई
को जिताने के लिए मनसे के ९ विधायकों के वोट आवश्यक थे , इसलिए उनके लिए मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे से सौदेबाजी की गयी . गुप्त समझौता हुआ कि मनसे के ९
विधायक कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करेंगे और इसके बदले में राज ठाकरे की पार्टी के ४ विधायकों का निलंबन रद्द कर दिया जाएगा. यह कोरी कल्पना नहीं
है बल्कि पहले ही राज ठाकरे ने इस रहस्य को उजागर कर दिया था . जब शिवसेना ने मनसे पर धंसे होने का आरोप लगाया और कहा कि मनसे के विधायकों ने नोट
लेकर वोट दिए हैं तब राज ठाकरे ने प्रेस कोंफ्रेंस लेकर बाकायदा यह एलान कर दिया कि अपने विधायकों का निलंबन वापस लेने के लिए ही उन्होंने को कांग्रेस को वोट दिलवाए
. अब जबकि चारों विधायक बहाल हो चुके हैं तो यह सिद्ध हो जाता है कि राज ठाकरे की बात बिलकुल सही थी . जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और यहाँ तक की मुख्यमंत्री
अशोक चव्हाण ने राज ठाकरे की इस बात को गलत बताया था. अब इस राज से पर्दा उठ गया कि उनकी भी बात झूठी थी. लोग सवाल करते हैं कि अगर मनसे के चार विधायकों
का अपराध ऐसा नहीं था कि उन्हें निलंबित नहीं किया जाए , तो निलंबित क्यों किया गया ? और अगर वे अपराधी थे और सख्त सजा के हकदार थे और उन्हें निलंबित कर भी दिया
तो फिर बहाल किस आधार पर किया गया ? क्या इसीलिये कि मनसे का मनचाहा उपयोग किया जा सके, उसे मजबूर करके उससे अपने हक में वोटिंग कराई जा सके ? हालात पर
विचार किया जाए तो कांग्रेस की नीयत कुछ ऐसी ही लगती है . इस तरह की राजनीतिक सौदेबाजी ने लोकतंत्र को सरेआम बदनाम कर दिया है . निलंबन रद्द करने के लिए मनसे के
वोट हासिल करना गैर कानूनी कार्य है , इसमें जितने भी लोग शामिल हैं , उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए . चुनाव आयोग को दखल देकर राज ठाकरे की प्रेस कोंफ्रेंस की वो सीडी
हासिल करनी चाहिए , जिसमे उन्होंने कांग्रेस के साथ सौदेबाजी की बात बड़ी शान से कही थी. उससे अगले दिन के अखबारों की कटिंग हासिल कर इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी
चाहिए , अगर लोकतंत्र की मर्यादा, प्रतिष्ठा को कायम रखना है, तो इसके लिए ऐसी राजनीतिक दलाली को बंद करना होगा . इस मामले से अब कांग्रेस का असली चेहरा भी उजागर हो गया
है . जब मनसे के कार्यकर्ता परप्रांतीयों विशेषकर ,उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को प्रताडित कर रहे थे , वहाँ के परीक्षार्थियों की पिटाई कर रहे थे उस समय यह आरोप लगे थे कि कांग्रेस
ही मनसे को अंदर से सपोर्ट कर रही है . विपक्षी पार्टी के लोग कहते थे कि कांग्रेस ने ही मनसे को खडा होने में मदद की, उसीने राज ठाकरे को हीरो बनाया , ताकि वह मनसे को समय पड़ने पर इस्तेमाल
कर सके , और उसने ऐसा किया भी . शिवसेना से अलग होकर मनसे ने चुनाव लड़ा . नतीजा शिवसेना न तो प्रदेश में सरकार बना पाई और न ही लोकसभा चुनाव में कुछ खास कर पाई .
मनसे के कारण वह दर्जनों सीट पर चुनाव हार गयी और कांग्रेस जीत गयी. विधान परिषद चुनाव में भी कांग्रेस ने मनसे से सौदेबाजी कर उसके वोट झटक लिए. यह सब ठीक उसी तरह से हो रहा है जैसे
कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी को कमजोर करने के लिए शिवसेना को छिपा समर्थन दिया था . फिर एक दिन वो भी आया जब शिवसेना कांग्रेस को हराकर प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हो गयी .
अब कांग्रेस ने मनसे को इसी तरह छिपकर समर्थन दे रखा है . अब सारे पत्ते खुल चुके हैं. इसका खामियाजा निश्चित तौर पर कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनावों में भुगतना पडेगा.
जिन गरीब, बेकसूर उत्तर भारतीयों को पीटा गया, उन्हें परिक्षा देने से रोका गया , ऐसे लोग कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेंगे.

Sunday, July 11, 2010

आखिर क्या खाएं , क्या पियें ?
कब बनेगा सख्त कानून ?
आजकल बाजार में चले जाइए , हर चीज मंहगी तो है ही , नकली भी मिल रही है . कोई ऐसी चीज नहीं जिस पर भरोसा किया जा सके .
दूध खरीदते हैं तो उसमे यूरिया खाद, वाशिंग पावडर की मिलावट होती है , दूधिया पहले से ही नंबर बढाने के चक्कर में उसमे कीचड मिलाकर लाते हैं.
मसालों में विभिन्न प्रकार की गंदगियां जैसे घोड़े की लीद ,पिसी हुई ईंट आदि की मिलावट होती है , घी में मृत जानवरों की चर्बी मिलाई जाती है .
दाल में कंकड -पत्थर के टुकड़े मिलाए जाते हैं. सब्जियों में भी तरह-तरह की मिलावट की जाती है . चार दिन पहले मैं भायंदर पश्चिम की सब्जी मार्केट में
, मेरी इच्छा वटाना (हरी मटर ) खरीदने की थी , मैं एक ऐसे दुकानदार के पास गया , जिसके पास हरी मटर रखी थी , मगर उसके छिलके सादे जैसे लग रहे थे
उसको भी वह ३५ रुपये पाँव दे रहा था . वहीं पर उसने मटर के दाने रखे हुए थे , मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो उसने बताया कि असली हरी मटर के दाने
हैं, मैंने एक पाँव खरीद लिए , उनमे से एक दाना तोड़कर भी खाया . घर आने पर , मैंने मटर के उन दानों को पानी में रखने को बोल दिया. सुबह जब मेरी
उस मटर पर नजर पडी तो हैरान रहा गया. मटर से छिलके उअतर रहे थे और पानी पूरा हरा- हरा हो गया था.मैं समझ गया कि दाल में क्कुछ काला जरूर है
, जब ध्यान से देखा तो पता चला कि वह हरी मटर नहीं थी. उसमे कुछ दाने हरी मटर के तो बाकी सूखी मटर को फुलाकर रख दिया गया था, इसके बाद
उसे रंगकर १०० रुपये किलो के भाव से बेचा जा रहा था. यह जिक्र इसलिए किया जब स्टार न्यूज पर देखा कि अलीगढ़ में सब्जियों को रंगकर बेचा जा रहा था
, जब सम्बंधित विभाग के अधिकारियों ने छापा मारा तब इस गोरख्धंधे का भंडाफोड हुआ. हाल ही पता चला कि लौकी को जल्दी बढाने के लिए टोक्सिन का इन्जेक्शन
लगाया जाता है . दिल्ली के एक वैज्ञानिक की पिछले दिनों लौकी का जूस पीने से मौत हो गयी थी. उसमे भी यह बात बहुत उछली थी कि उनकी मौत लौकी में टोक्सिन
की मात्रा ज्यादा होने से हुई होगी. वैसे लौकी न तो जहरीली होती है और न ही कड़वी . मगर उस दिन उन्होंने लौकी का स्वाद कड़वा पाया था . हो सकता है कि
लौकी में मिलावट के कारण ही उनकी जान गयी हो . जयपुर और उत्तर प्रदेश में भी मिलावटी सॉस बनाने के कारखाने पकडे गए. बनारस के पान दरीबा इलाके से एक
ऐसी फैक्ट्री पकड़ी गयी जों प्लास्टर ऑफ पेरिस से कत्था बना रही थी. जयपुर में सडे हुए कद्दू और जहरीले रंगों से टमाटर सॉस बनाया जा रहा था. यानि कि अब कोई ऐसी
चीज नहीं बची है जिसे खाया जा सके. यहाँ तक कि हवा तक जहरीली हो चुकी है . हर चीज में जहरीली मिलावट है , और हर शहर , हर गाँव हर गली मोहल्ले में
इस तरह की जानलेवा मिलावट की जा रही है. हर इंसान इसका शिकार हो रहा है. फल , सब्जी, दूध , दही, मक्खन , श्रीखंड, घी , यहाँ तक कि सौंदर्य प्रसाधन में भी
जहरीली मिलावट की जा रही है . ज्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए देश की निर्दोष जनता के साथ विश्वाश्घात किया जा रहा है . आज जब हम कुछ खाते -पीते हैं, या फिर
कुछ खरीदते हैं तो अपनी मेहनत की कमाई के साथ -साथ अपना अपना स्वास्थ्य भी लुटा बैठते हैं. हमें पता ही नहीं होता कि जानलेवा मंहगाई के बावजूद भी हम
किसी तरह कोई चीज खरीद रहे हैं , तो उसमे भी मिलावट मिलती है. देखा जाए तो मिलावट करने वाले लोग आतंकवादियों या नक्सलवादियों से भी ज्यादा खरतनाक
हैं , क्योंकि उनसे तो हम लोहा ले सकते हैं, क्योंकि हमें पता होता है कि हमारा दुश्मन कौन है. उसके लिए हमारे पास कई तरह की सेनाएं हैं. लड़ाके हैं. आधुनिक हथियार हैं.
पुलिस है . सब कुछ है . मगर मिलावट करके करोड़ों लोगों की जान से खिलवाड करने वालों से लड़ने के लिए हमारे पास क्या है ? कुछ भी नहीं. यहाँ तक कि एक सख्त
कानून भी नहीं . भाजपा और कांग्रेस की केन्द्र में ज्यादा सरकारें रही हैं , आज भी कांग्रेस की सरकार है मगर क़त्ल से भी खतरनाक इन मिलावटखोरों के खिलाफ कोई ऐसा
कडा कानून नहीं बनाया जा रहा, जिससे इस पर रोक लग सके. आज समय की जरूरत है कि खाद्य विभाग को सक्रिय करना चाहिए , इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करना
चाहिए और कोई ऐसा क़ानून बनाना चाहिए जिसमे मिलावाटखोरों को फांसी से कम का प्रावधान नहीं हो . जुर्माना भी ज्यादा हो और एक बार मिलावट करते अगर कोई
पकड़ा गया तो उसकी कंपनी बंद करने , एकाउंट सील करने , जमीन और सभी सामान जब्त करने का प्रावधान हो . तभी देश को बीमार करने वाले कसाइयों (मिलावटखोरों )
की नाक में नकेल पड सकती है .

Friday, July 9, 2010

धत्त तेरे की , शरद पवार को रोना भी आया तो किस पर

धत्त तेरे की , शरद पवार को रोना भी आया तो किस पर ?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष , अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष , केन्द्रीय कृषि , खाद्य एवं नागरिकआपूर्ति ,पशुपालन, दुग्ध विकास और ग्राहक संरक्षण मंत्री शरद पवार उम्र और अनुभव के आधार पर बहुतसीनियर हैं, राष्ट्रीय राजनीति में वे कई सालों से शिखर पर हैं . इसमें कोई दो राय नहीं है कि महाराष्ट्र के वे एकमात्रताकतवर राष्ट्रीय नेता हैं. उनके प्रति मेरे मन में पूरा आदर -सम्मान है , लेकिन आजकल उनके बयानों और कार्योंकी अगर समीक्षा की जाए तो सर्वथा निंदनीय है . आज देश में आम लोगों का जीना मुहाल हो गया गया है. शरदपवार के गृह राज्य महाराष्ट्र में हजारों किसान आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं . देश में मेंभारी मंहगाई के चलते त्राहि मम मंची हुई है. कितने ही लोग गरीबी , बेरोजगारी , मंहगाई , कर्जबाजारी के कारणअपने बच्चों की ह्त्या करके खुद आत्महत्या कर रहे हैं . लोगों को दो जून की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है . डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस आदि के दाम कई बार बढाने के बाद अब लोग और परेशान हो चुके हैं.जीने के लिएजितनी भी वस्तुएं अति आवश्यक हैं, वे सभी आम इंसान की पहुच से बाहर हो चुकी हैं. ऐसे में शरद पवार ने यहबयान देकर और भी आग में घी डालने का काम किया है कि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के बाद शक्कर के भाव भीसरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिए जाने चाहिए . कृषि मंत्रालय चीनी की कीमतों को बाजार पर छोड़ देने के पक्ष में है। कृषि मंत्री शरद पवार ने इसकी वकालत करते हुए कहा है कि चीनी कीमतों से सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। पवार ने कहा कि मंत्रालय इस बारे में कैबिनेट को प्रस्ताव भेजेगा। यदि पवार की सलाह पर अमल हुआ तो अगस्त तक इस बारे में फैसला आ सकता है।

पवार का कहना है कि जुलाई से अब तक चीनी के दामों में कमी के कारण चीनी कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। जिस तरह तेल की कीमतों को बाजार पर छोड़ दिया गया है। उसी तरह चीनी के दामों से भी सरकारी नियंत्रण हटा लेना चाहिए। उनका तर्क है कि मिल मालिक खुद तय करें कि कितनी चीनी बाजार में आनी चाहिए। यदि पवार की सलाह पर अमल किया जाता है तो तो चीनी के दामों में उछाल आ सकता है।
निश्चित ही इससे एक बार फिर दलालों और जमाखोरों के हौंसले बुलंद होंगे. भाव बढ़ेंगे . और अगर कहीं इसप्रस्ताव को अमल में लाया गया तो शक्कर के भाव भी आसमान पर पहुँच जायेंगे और दलालों को अपनी मनमानीकरने की पूरी छूट मिल जायेगी . मगर इस सबसे को अगर कोई चिंता कोई दुःख , कोई दर्द है तो बस इतना कि वे अपनी पार्टी के संगठन को बढाने के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं. उनकी इच्छा पार्टी संगठन के काम के लिए ज्यादा समय देने की है. उनका कहना है कि ' मुझे गिल्टी फील हो रही है कि लंबे समय से राज्य के कई जिलों में नहीं जा पाने की वजह से नई जनरेशन से मैं जुड नहीं पा रहा हूँ ' . क्या ऐसे लापरवाह और निष्क्रिय मंत्री को एक पल , सिर्फ एक पल के लिए भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार है ? जों व्यक्ति सारे देश का मंत्री होने के बावजूद सिर्फ एक पार्टी के संगठन को प्राथमिकता देता हो, केन्द्रीय मंत्री होने पर भी सिर्फ एक राज्य की परवाह करता हो , वो भी उस राज्य के हितों की परवाह नहीं , सिर्फ पार्टी हित में मिलने की परवाह , ऐसे मंत्री को झेलना देश के दुर्भाग्य के सिवाय और क्या हो सकता है ? मन मोहन सिंह जी, इतनी मजबूरी भी ठीक नहीं है. माना कि सरकार चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों की उल्टी -सीधी बातें मानना जरूरी होता है . मगर जब सरकार देशवासियों के खिलाफ काम कर रही हो तो ऐसी सरकार को विदा करना जरूरी है है. और राजी रिश्ता नहीं ... लात मारकर ....
-मुकेश मासूम

Thursday, July 8, 2010

क्या दलित इंसान नहीं हैं

क्या दलित इंसान नहीं हैं ?

यूनिसेफ के सहयोग से दलित आर्थिक आदोलन और नेशनल कैंपेन आन दलित ह्यूमन राइट्स ने मिलकर एक अध्ययन किया है। यह अध्ययन स्कूलों में दलित बच्चों की स्थिति का जायजा लेने के मकसद से किया गया। इसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं।

इस रपट से एक बात तो बिल्कुल साफ हो जाती है कि अभी भी भारत का समाज दलितों के प्रति घृणा का भाव ही रखता है। इस रपट में जिन-जिन राच्यों का अध्ययन किया गया, उन सब राच्यों के स्कूली बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव बस इसलिए किया गया, क्योंकि वे दलित थे। इस रपट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि भेदभाव की वजह से बड़ी संख्या में दलित बच्चे अपने आगे की पढ़ाई बरकरार नहीं रख पाते।इस रपट को चार राच्यों के 94 स्कूलों की हालत का अध्ययन करके तैयार किया गया है। दलित बच्चों के साथ हुए भेदभाव के उदाहरणों से यह रपट भरी पड़ी है। उन उदाहरणों के जरिए एक खास तरह की मानसिकता में जकड़े समाज को समझा जा सकता है। इस रपट को तैयार करने वाले राजस्थान के एक स्कूल में गए। वहा जाकर उन्होंने पूछा कि किस बच्चे को यहा के शिक्षक अक्सर पीटते हैं और क्यों पीटते हैं? इस सवाल का जवाब तुरंत वहा मौजूद बच्चों ने दिया। यह जवाब ऐसा है, जो खुद को सभ्य कहने वाले समाज का असली चेहरा दिखाता है। बच्चों ने इस सवाल के जवाब में तुरंत एक ऐसे बच्चे की ओर इशारा किया, जो दलित था। उन बच्चों ने यह भी कहा कि दलित होने के नाते वह निशाने पर रहता है।

यह मामला केवल राजस्थान का नहीं है। दूसरे राच्यों में भी इसी तरह की स्थिति है। बिहार का उदाहरण लिया जा सकता है।

बिहार की ही एक दलित छात्रा ने बताया कि शिक्षक हम लोगों यानी दलित बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं देते। हमें जमीन पर बैठाया जाता है।

हालात की बदहाली का आलम यह है कि मिड-डे मील में मिलने वाले भोजन में भी दलित छात्रों के साथ भेदभाव बरता जा रहा है। उन्हें जो खाना मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता सही नहीं होती है। इसके अलावा दलित बच्चों को भरपेट भोजन भी मिड-डे मील योजना के तहत नहीं मिल रहा है। इस तरह की शिकायत कई बच्चों ने की।

बिहार के दलित बच्चों ने यह भी शिकायत की कि उन्हें कक्षा में सबसे पीछे बैठने को कहा जाता है। इसके अलावा शिक्षक उनका होमवर्क भी नहीं जाचते हैं। इस रपट में यह भी बताया गया है कि ज्यादातर स्कूल वैसी जगहों पर हैं, जो उच्च जाति के लोगों के दबदबे वाला क्षेत्र है। बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में खास तौर पर ऐसी स्थिति है।दलितों की बारात में व्यवधान पैदा करना , दुल्हे को घोड़े पर नहीं बैठने देना ,दलितों को सार्वजनिक रूप से चारपाई पर नहीं बैठने देना आदि पुराने मसले हैं. ताजा मामला उतार प्रदेश का है. यहाँ के रमाबाई नगर स्थित संदलपुर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय जसापुर के सवर्ण बच्चों ने गांव की दलित महिला के हाथ का बना मिड-डे-मील लेने से इंकार कर दिया। लगातार दूसरे दिन खाने से साफ़ इनकार कर दिया गया. इस मामले की जांच अपर जिलाधिकारी (एडीएम) से कराने को कहा है। शिक्षा विभाग की ओर से बीएसए जांच करेंगे। प्राथमिक विद्यालय जसापुर में 135 बच्चे पंजीकृत हैं। इनमें 31 बच्चे दलित, 19 पिछड़े व 85 सामान्य वर्ग के हैं। बताया गया है कि पिछले सत्र में यहां मिड-डे-मील बनाने के लिये दो सवर्ण महिलाओं मीरा व सुमन की तैनाती थी। हाल ही में यहां पर दलित वर्ग की महारानी व शांती को भी खाना बनाने के लिये ग्राम पंचायत द्वारा अधिकृत किया गया। उक्त दलित महिलाओं द्वारा खाना बनाने से यहां के 85 सवर्ण बच्चों ने मंगलवार से मिड-डे-मील लेने से इंकार कर दिया। यह घटना दर्शाती है कि आज भी किस तरह दलित विरोधी मानसिकता फल फूल रही है. इस नफरत का आखिर आधार क्या है ? अगर मामला दो महिलाओं को रोजगार मिलने का होता तो इस स्कूल में पहले से ही दो सवर्ण महिलाएं भोजन बनाने के काम में नियुक्त हैं. लेकिन यह ,मामला छुआछात का है . यह कैसी विडंबना है कि लोग कुत्ते-बिल्लियों को पाल सकते हैं, उनसे प्यार कर सकते हैं , मगर जों लोग सेवा करते हैं, वफादारी करते हैं. श्रम करते हैं उनके स्पर्श से भी कतराते हैं. क्या दलित इंसान नहीं हैं ? इस तरह की घटनाएं सभ्य और स्वस्थ समाज के लिए कलंक हैं. सभी लोगों को मिलकर भारत से इस कलंक को मिटाना होगा . उत्तर प्रदेश की मुख्मंत्री मायावती भी दलित समाज से ताल्लुक रखती हैं , वे इस असमानता के दर्द से भलीभांति परिचित हैं, उनकी स्पष्ट बहुमत की सरकार है. अगर वे अब भी इस जख्म का इलाज नहीं तलाश पाईं तो फिर कभी नहीं तलाश पाएंगी .

Wednesday, July 7, 2010

मोहब्बत का फरेब और नैतिक पतन
एक जमाना था जब लोग सच्ची मोहब्बत के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा दिया करते थे , उनके लिए अपना सब कुछ त्याग दिया करते थे .
उनके लिए इश्क ही मंदिर , इश्क ही मस्जिद और इश्क ही खुदा हुआ करता था . उन्हें अपनी महबूबा की शक्ल में भगवान नजर आता था . लैला मजनू
फिल्म में बताया गया है कि जब एक व्यक्ति नमाज पढ़ रहा होता है तो उधर से मजनू गुजरता है , वह नमाजी से टच हो जाता है . इस पर जब वह ऐतराज
जताता है तो मजनूँ कहता है - कि तुम्हारी यह किसी इबादत है , जिससे तुम्हें मेरे होने का एहसास हो गया . मुझे तो अपनी लैला की मोहब्बत में कुछ भी याद नहीं
है , उस जमाने में लोग स्वार्थ की नहीं सच्ची मोहब्बत करते थे और अपने प्यार के लिए किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार रहते थे . लैला-मजनू, हीर -रांझा
,रोमियो-जूलियट आदि ऐसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं . मगर अब ज़माना बिलकुल बदल गया है . अब अगर आप बार में जाते हैं तो वहां की हसीन बालाएं
आपके नोटों के बण्डल के साइज के हिसाब से मुस्कराती हैं, उसी हिसाब से आप पर 'प्यार' लुटाती हैं. कालेज की लड़कियां अपनी पॉकेट मनी के लिए प्यार का
नाटक करती हैं , कुछ लड़कियां नौकरी पाने के लिए और कुछ फिल्मों, टीवी सीरियल आदि में चांस पाने के लिए प्यार का प्रदर्शन करती हैं. कई ऐसे उदाहरण भी
हैं जिनमे किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई खूबसूरत और कमसिन लड़की ने उस कार्यक्रम के प्रोडूयूसर ,मगर बुड्ढे और दाग दगीली पर्सनैलिटी वाले दूजिया
(दुसरा विवाह करने वाले ) से भी शादी कर ली है . मकसद वही कि कैरियर बनने में मदद मिलेगी और खर्चे की स्यौरिटी रहेगी . भले ही वह जवानी में ही
विधवा हो जाए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ऐसे ही हजारों किस्सों में से एक किस्सा प्रिया का भी है . प्रिया ने तो बेवफाई, बेहयाई , और बेगैरत की सारी हदें पार
कर दीं . विदेश जाकर दौलत कमाने की चाह में उसने पहले तो एक ६० वर्षीय ऐसे व्यक्ति से शादी करली जों कनाडा में रह चुका था , उसने सोचा कि कनाडा
जाने के लिए राजिंदर सिंह मान का सहारा लिया जाए. इसके लिए उसने राजिंदर सिंह मान से संपर्क किया , इससे पहले उसने पता लगा लिया था कि राजिंदर सिंह मान
अपनी पत्नी को तलाक दे चुके हैं. इसी कारण उसने नौकरी के लिए आवेदन किया, मगर पुलिस का वेरिफिकेशन न होने के कारण वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी
मगर फिर थोड़े दिनों के बाद उसने संपर्क किया और वह उस घर में नौकरी पाने में कामयाब हो गयी. प्रिया ने अपनी अदाओं का ऐसा जादू चलाया कि राजिंदर सिंह मान
फिसल गए, मोहब्बत के फरेब में आ गए . ढलती उम्र में भी उन्होंने प्रिया इन्दर कौर से शादी कर ली. और फिर प्रिया उनसे कनाडा जाने की जिद करने लगी , मगर जब
राजिंदर सिंह मान ने स्पष्ट कर दिया कि वे कनाडा कनाडा किसी भी कीमत पर नहीं जायेंगे तो प्रिया ने उन्हें छोड़ इया . अगर मामला यहीं तक होता तो गनीमत होती मगर
आगे उसने ऐसा कारनामा दिखाया जिसे सुनकर बड़े से बड़ा ठग भी दहल जाए. कुछ साल के बाद वह फिर वापस लौटी , लेकिन वहां पर उसे राजिंदर की बजाय उनका बेटा
राजन मिला जों कि कनाडाई नागरिक है. यह जानकर उसकी बांछें खिल गईं, उसने राजन पर प्यार का जादू चलाया और जल्द ही वह उसका दिल जीतने में कामयाब हो गयी.
वह यहीं पर नहीं रुकी बल्कि नैतिकताओं की सभी हदों को पार करते हुए उसने अपने पहले पति राजिंदर के बेटे राजन से विवाह कर लिया . जब यह खबर राजिंदर को पता चली
तो दोनों पिता -पुत्र ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई . अभी तक प्रिया फरार है . हाँ, इतना जरूर पता चल पाया है कि वह उत्तर प्रदेश में किसी क़त्ल के सिलसिले में भी
फरार है. वह कब गिरफ्तार होगी और अदालत उसे क्या सजा देगी यह तो अलग बात है मगर उसने जिस तरह मोहब्बत की मर्यादा को लांघा है, उसका गला घोंटा है ,
उसे प्यार करने वाले कभी माफ नहीं करेंगे. इंसान को अपने स्वार्थ में इतना भी अंधा नहीं होना चाहिए कि उसे प्यार और रिश्तों की पवित्रता ही दिखाई नहीं दे.

Sunday, July 4, 2010

भारत बंद की गूँज से केन्द्र की बहरी सरकार के कान खुलेंगे ?
लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भारत बंद का एलान किया है । ये अलग बात है कि बंद को कानूनी संरक्षण नहीं मिला है , अर्थात अदालत ने बंद पर बंद लगा रखा है । इसके बावजूद पहली बार विपक्षी पार्टियों ने एकता दिखाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े आन्दोलन किया है । कांग्रेस की जन विरोधी नीतियों के कारण सिर्फ अमीरों की चांदी हो रही है। माध्यम वर्ग के लोग गरीब हो रहे हैं और गरीब अब गरीबी की रेखा के नीचे आ गए हैं। और जों गरीबी की रेखा के नीचे बसर कर रहे हैं वे न ज़िंदा हैं , न मुर्दा हैं। बस किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे हैं। वे भूखे हैं, उनके पास रहने के लिए न अच्छे घर हैं, न पहनने के लिए अच्छे वस्त्र । वे बीमार होने पर अपने लिए न तो ठीक से इलाज करवा पा रहे हैं, और न अपने बच्चों को शिक्षित कर पा रहे हैं। इसी कारण उनके बच्चे बचपन में ही श्रम करने के लिए मजबूर हैं। सिर्फ उनकी ही नहीं , बल्कि उनकी आने वाली कई पीढियां गरीबी, भुखमरी , अशिक्षा , अज्ञान और अन्धकार की शिकार हो रही हैं । 'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ' का नारा देकर , देश से गरीबी खत्म करने का वादा कर सरकार बनाने वाली यू पी ऐ सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। वह रोजाना नए टेक्स लाद रही है , रोजाना किसी न किसी चीज के भाव बढ़ा रही है। पेट्रोल और डीजल के दाम तो बार -बार और हर बार बढाए जा रहे हैं इससे अती आवश्यक चीजों के भाव भई आसमान छूने लगे हैं । सुई से लेकर जहाज तक के भाव बढ़ चुके हैं। अगर किसीको फायदा हो रहा है तो वो हैं अमीर लोग तथा दलाल । अमीर इस सरकार में और भी अमीर बनते जा रहे हैं। केन्द्र की सरकार सिर्फ अमीरों के हित में क़ानून बना रही है। उसकी नीतियों में अमीरों का हित ही सर्वोपरि है। कोई कांग्रेस से यह पूछने के लिए तैयार नहीं है कि अब कहाँ गए जादुई राहुल गांधी , गरीबों और दलितों के मसीहा बनने का ढोंग रचने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी केन्द्र सरकार के इन जन विरोधी फैसलों का विरोध क्यों नहीं करते । वे सिर्फ दलितों और गरीबों की मजबूरी देखने जाते हैं। सिर सपाटे के लिए शौक़ीन राहुल गांधी को दलितों के आंसू देखना बहुत अच्छा लगता है मगर उनके आंसू पौंछकर उन्हें हंसाने का काम कौन करेगा ? इस भारत देश पर केन्द्र और राज्यों में ज्यादातर सरकारें कांग्रेस की रही हैं। आजादी के ६३ साल बाद भी लोग भूखे, नंगे , कमजोर , बेघर , बेबस, बेकार और गरीब क्यों हैं ? इस सवाल का जवाब कांग्रेस से बेहतर कौन दे पायेगा ? मगर राहुल गांधी कांग्रेस से पूछने के बजाय उन गरीबों और दलितों के जख्मों पर नमक छिडकने जाते हैं जिनको गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की सौगात खुद कांग्रेस ने ही दी है. राष्ट्रपति जी भी खामोश हैं. उनके विषय में क्या कहें , वी आदरणीय हैं, समाननीय हैं. न वे कुछ कह सकतीं और न आम आदमी ही उनके लिए कुछ कह सकता है. क्या यही लोकतंत्र है ? क्या यही है लोगों द्वारा , लोगों के लिए , लोगों का शासन ? कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां देश के साथ बहुत गंदा खेल खेल रही हैं. जब भोपाल गैस त्रासदी में यह सिद्ध हो गया कि लगभग २५ हजार निर्दोषों का हत्यारा एंडरसन तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की सहमति से यहाँ से भागने में कामयाब हो गया था तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने देश का ध्यान बांटने के लिए मंहगाई का धमाका कर दिया . पहले रोजाना भोपाल गैस त्रासदी और उसके दोषियों से कांग्रेस के मधुर संबंधों की ख़बरें रोजाना पहले पेज की शोभा बढ़ाया करती थीं अब वे गायब हो गयीं. क्या इस तरह की हरकतों से कांग्रेसियों का पाप कम हो सकता है ? क्या इससे सच्चाई बदल सकती है ?क्या देश कभी ये भूल पायेगा कि जब भोपाल में सोते- सोते कई हजार एक साथ काल के गाल में समा गए तो उस समय मध्य प्रदेश और केन्द्र में कांग्रेस की ही सरकारें थीं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और केन्द्र में स्वर्गीय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। इन्हीं दोनों ने भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी एंडरसन को उसके देश भगाने में मदद की और सी बी आई के सहयोग से इस केस को कमजोर किया ।जिसके कारण एंडरसन तो फरार हो गया और बाकी आरोपियों को मामूली सी सजा हो पाई। इसका जिक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि पेट्रोल, डीजल , रसोई गैस के दाम बढाने के पीछे कांग्रेस की मंशा यह भी थी कि जनता का ध्यान भोपाल प्रकरण से हट जाएगा। अब विपक्ष ने एकजुट होकर इस जनविरोधी सरकार के खिलाफ एक दिन के भारत बंद का जों एलान किया है , इसकी गूँज से केन्द्र की बहरी सरकार के कान खुल पायें ये मुमकिन नहीं दिखता , इसलिए विपक्ष को जब तक संघर्ष करना होगा तब तक कि इस सरकार का पतन नहीं हो जाता

Friday, July 2, 2010

छत्रपति शाहूजी महाराज नगर , कांग्रेस के पेट में दर्द क्यों ?

छत्रपति शाहूजी महाराज नगर , कांग्रेस के पेट में दर्द क्यों ?
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अमेठी और सुल्तानपुर के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर छत्रपति शाहूजी महाराज नगर बनाने की घोषणा की है , इससे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पेट में दर्द होना शुरू हो गया है. कांग्रेस वहाँ पर राजीव गांधी नगर बनाने की मांग कर रही है. कांग्रेस का तर्क है कि अमेठी को राजीव गांधी परिवार के नाम से जाना जाता है इसलिए उसका नाम राजीव गांधी के नाम पर होना चाहिए . अन्य विपक्षी पार्टियां भी मायावती की आलोचना करती नहीं थक रही हैं. सपा के शिवपाल यादव ने तो यहाँ तक कह दिया कि 'उत्तर प्रदेश की बीएसपी सरकार बेवजह जिलों के नाम बदलकर एक वर्ग विशेष के महापुरुषों के नाम पर रख रही है। एसपी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने कहा कि मायावती सरकार का अमेठी का नाम बदलकर छत्रपति शाहूजी महाराज और कानपुर देहात का रमाबाई नगर रखना संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। कानपुर की पहचान इंटरनैशनल लेवल पर है और अमेठी की भी इसी नाम से पहचान है। इन दोनों के नाम बदले जाने का फैसला अनुचित है।
उन्होंने कहा कि इस सरकार का जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। यह सरकार केवल पत्थर लगाने, वर्ग विशेष के महापुरुषों के नाम पर जिलों के नाम रखने, पार्क बनाने और मूतिर्यां लगवाने का ही काम कर रही है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने आरोप लगाया कि विकास के नाम पर कोई पैसा खर्च नहीं हो रहा है, बल्कि जमकर पैसा बर्बाद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नोएडा में चौतरफा नीली पन्नियों से बुत ढके हुए खड़े है, जो रात में प्रेत से नजर आते हैं। यादव ने कहा कि हो सकता है कि यह सरकार जाते-जाते कई जिलों के नाम मायावती के नाम पर भी रख दे। ' मायावती का विरोध करने वालों से मैं ये कहना चाहता हूँ कि -
१, मायावती ने जिस महापुरुष यानि छत्रपति शाहूजी महाराज के नाम पर इस नए जिले का नाम दिया है वे महाराष्ट्र के मराठा शासक और छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज थे , अर्थात राजपूत थे. इसलिए यह आरोप गलत है कि मायावती दलित महापुरुषों के नाम पर ही नामकरण कर रही हैं. छत्रपति शाहूजी महाराज महान समाज सुधारक थे और उन्होंने अपनी रियासत में कमजोर वर्ग के लोगों को भी सामान अवसर दिए, सभी जाती और धर्म के लोगों को उन्होंने बड़े ओहदों पर काम करने का अवसर दिया. समता और समानता लाने के लिए , उंच -नीच खत्म करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किये . यहाँ तक कि डॉक्टर बाबा साहेब आम्बेडकर की भी उन्होंने आर्थिक सहायता की. उन्हें आरक्षण का जनक भी माना जाता है. ऐसे महा मानव का विरोध करना कांग्रेस के असली चेहरे को उजागर करता है.
२, मायावती ने अमेठी का नाम नहीं बदला है बल्कि राज्य में ७२ वे नए जिले का गठन किया है . सुल्तानपुर का कुछ क्षेत्र और अमेठी को मिलाकर इस नए जिले का गठन किया है. इससे अब नए जिले का और भी बेहतर विकास हो सकता है , राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी का नाम ज्यों की त्यों है , उसे नहीं बदला गया , फिर भी ये हाय तौबा क्यों ?
३, कांग्रेस के लोग बहुजन समाज पार्टी की सरकार से ये उम्मीद क्यों करती है कि वह कांग्रेस के नेताओं के नाम पर नए जिले का नामकरण करे ? क्या कांग्रेस ने कभी पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुखर्जी , जयप्रकाश नारायण , राम मनोहर लोहिया आदि के नाम पर कभी किसी जिले का नाम दिया है ?आखिर क्यों नहीं ? ये तो बहुजन समाज पार्टी के नेता नहीं थे, दलित महापुरुष नहीं थे . देश में लाखों गांधी नगर , इंदिरा नगर , राजीव नगर , स्मारक, प्रतिष्ठान आदि बानाने वाली कांग्रेस अपने गिरेबान में झांककर क्यों नहीं देखती ?
४, कांग्रेस के विरोध से साफ़ झलकता है कि वह सिर्फ एक परिवार की भलाई की बात करती है जबकि बहुजन समाज पार्टी सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय की राह पर चलकर सभी जाति , धर्मों और प्रान्तों की भलाई करती है और सबका समान सम्मान करती है. समाजवादी पार्टी के शिवपाल को क्या कहें , अगर उनमे ज़रा भी सभ्यता होती तो एक कांस्टेबल उनके कान के नीचे खर्चा पानी क्यों देता ?

Thursday, July 1, 2010

जनविरोधी सरकार का सन्देश , आंकड़े खाएं, आंकडें पियें ....

जनविरोधी सरकार का सन्देश , आंकड़े खाएं, आंकडें पियें ....

केन्द्र की जनविरोधी सरकार लगातार , बार- बार जनहित के बजाय जन विरोधी फैसले लेती जा रही है , जिससे आम लोगों का जीना दूभर हो रहा है . रही -सही कसर उलटे-सीधे आंकड़े पेश कर निकाली जा रही है . भ्रमित करने के लिए झूठे आंकड़े बताए जा रहे हैं . टी.वी चैनलों से 'मिलकर' उन्हें ब्रेकिंग न्यूज बताकर टेलीकास्ट करवाया जा रहा है. कल टी.वी . की ऐसी ही ब्रेकिंग न्यूज देखकर माता ठनका . लगभग सभी खबरिया चैनल दहाड़-दहाड़कर बता रहे थे कि मोटे अनाज और सब्जियों की कीमतों में हल्की कमी के साथ-साथ पिछले साल के तुलनात्मक आंकड़ों के प्रभाव से 19 जून को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान खाद्य वस्तुओं पर आधारित मुद्रास्फीति 3.98 प्रतिशत घटकर 12.92 प्रतिशत पर आ गई जो इससे पूर्व सप्ताह 16.90 प्रतिशत पर थी.

समीक्षा अवधि में दालों, फलों एवं दूध जैसी आवश्यक वस्तुएं महंगी बनी रहीं. विश्लेषकों का कहना है कि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट से सरकार को कुछ राहत मिलेगी. हालांकि यह राहत कुछ ही समय के लिए होगी क्योंकि हाल ही में डीजल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी का असर आगामी सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर देखने को मिलेगा.

योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणब सेन ने कहा, ‘खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में तेज गिरावट की मुख्य वजह बीते साल की इसी अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति का आधार उंचा होना है अन्यथा ज्यादातर खाद्य वस्तुएं महंगी बनी हुई हैं.’ सालाना आधार पर आलू करीब 40 प्रतिशत सस्ता हुआ, जबकि प्याज की कीमतों में सात प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई.

साप्ताहिक आधार पर दालों की कीमतों में 0.47 प्रतिशत की नरमी आई. हालांकि सालाना आधार पर दालें 31.57 प्रतिशत महंगी हैं. खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते मई में संपूर्ण मुद्रास्फीति 10.16 प्रतिशत रही. साल के ज्यादातर समय खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर 16 प्रतिशत के स्तर से उपर रही. कार्यालय में भी जिसने यह खबर देखी , सूनी वह हैरान था. जिस मंहगाई में लोगों के होठों की हंसी तक छीन ली है, दुधमुंहे बच्चों से दूध छीन लिया , गरीबों के बच्चों से खिलौने छीन लिए , बीमारों से दवा तक छीन लीं, दो जून का पेट भर खाना छीन लिया , उन लोगों को बताया जा रहा है कि मंहगाई कम हो गयी है. यह देश के साथ कितना बड़ा क्रूर मजाक है और टी.वी . चैनल वाले आँख और बुद्धि दोनों पर पट्टी बंधे यह 'खुशखबरी ' सुनाने में मस्त और व्यस्त थे. ताकि उनकी टी.आर.पी. बढ़ सके . प्रधानमंत्री के झूठे वादे ( जल्द ही मंहगाई पर नियंत्रण पा लिया जाएगा ) को सच होने के इन्तजार में की आश में जब लोगों को यह पता चलेगा कि वह काम हो गया , यानि कि मंहगाई कम हो चुकी है तो जाहिर है वे टी.वी. पर आँखें गड़ाएंगे ही. इसी नब्ज को पकड़ कर यह ब्रेकिंग न्यूज दिखाई जा रही थी या फिर लिफ़ाफ़े का कमाल था , कुछ पता नहीं . मगर यह तय है कि कई गुना बढ़ चुकी मंहगाई को कम होते बताता यह समाचार निहायत झूठा, निराधार , तथ्यहीन और अस्तित्वहीन था.लगता है योजना आयोग के प्रधान सलाहकार प्रणव सेन को सिर्फ इसी बात के लिए तनख्वाह दी जाती है कि किसी भी तरह से बड़ी हुई मंहगाई को कम करके बताओ. चाहे इसके लिए अती आवश्यक सैकड़ों में चीजों से किसी एक या दो चीजों में थोड़ा सा भाव पहले से कम क्यों न कर दिया जाए. इस तरह की मक्कारी और बाजीगरी से आखिर क्या होने वाला है. जब बाजार में पहुचते हैं तो वहाँ सरकार की सारी पोल पट्टी खुल जाती है. क्या अब जन विरोधी सरकार यह सन्देश देना चाहती है कि जनता अब आंकड़े खाए, आंकड़े पिए , आंकड़े ओढ़े और आंकड़े बिछाये ?कांग्रेस के नेता तो करोड़ों अरबों में खेलते हैं. कांग्रेस का कोई भी छोटे से छोटा नेता ऐसा नहीं होगा जिसके पास धन की कमी हो . उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता , अगर डीजल सौ रुपये लीटर और पेट्रोल दो सौ रुपये लीटर भी कर दोगी तो कांग्रेस नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ता , मगर जों इंसान अथक मेहनत करने पर भी महीने में सिर्फ हजार -दो हजार ही कमा पाते हैं,या जों बेरोजगार हैं. या फिर वे विधवाएं , जिनका कोई संभालने वाला नहीं है. वे अनपढ़ जों महनत मजदूरी कर किसी तरह से महीने में सिर्फ दस दिन काम पाते हैं , वे अपने परिवार का पेट कैसे भरें ? सिर्फ पेट भरने भर से भी तो जिंदगी नहीं चलती . और भी बहुत से खर्चे हैं. बीमारी है, सामाजिक रीती -रिवाज हैं. बच्चों की पढाई है, शादी -ब्याह , मौत आदि है . ये सब भी करने पड़ते हैं . तो ऐसे सच्चे ,अच्छे और मेहनती लोग क्या सिर्फ आंकड़ों के बल पर ही जियें ?

Wednesday, June 30, 2010

बलात्कार के दाग

बलात्कार सामाजिक और कानूनी रूप से गलत है ही साथ ही शारीरिक रूप से भी तकलीफदेह होता है. अगर बलात्कार से पीड़ित लड़की एड्स या फिर ऐसे ही किसी रोग से ग्रसित है तो बलात्कारी को यह रोग लग सकता है और अगर बलात्कारी को इस तरह का कोई रोग है तो पीड़ित लड़की /महिला इसकी शिकार हो सकती है. इस तरह उसका पूरा जीवन खराब हो सकता है. जब कोई पीड़ित शिकायत करती है तो बलात्कार पीड़ितों से पुलिस भी बहुत खतरनाक ढंग से पेश आती है और आनी भी चाहिए. दोष सिद्ध होने पर इसकी सजा भी उम्रकैद तक हो सकती है . इस प्रकार क्षणिक आवेग के कारण बलात्कार करने वाला अपनी भी जिंदगी खराब कर्ता है और उस बेगुनाह की भी . इसके अलावा बलात्कार करने वाले का परिवार कभी भी समाज में ऊंचा सिर करके नहीं चल पाता. उसके परिवार को सभी लोग शक और अनादर की निगाह से देखते हैं. इसलिए स्कूल, कोलेज , ट्यूशन आदि में भी बच्चों को बचपन से ही इन सब खतरों से आगाह करने की जरूरत है. सरकार इस तरह के विज्ञापन करे जिससे गलत काम करने वाले को सद्बुद्धि आये. वह इस गुनाह को करने से पहले एक नहीं, कई-कई बार डरे. जब कोई दुष्ट विदेशी मेहमान के साथ यह दुष्कर्म कर्ता है तो उसके और उसके परिवार के साथ-साथ समूचा देश भी शर्मिन्दा होता. है. अखबार और टी.वी. में इस सम्बन्ध में समाचार /आलेख आदि प्रकाशित होते हैं. समूचे विश्व में देश का नाम खराब होता है इसलिए ऐसे मामलों में दुष्कर्म की भयावहता और बढ़ जाती है. अब समय आ गया है जब बलात्कार के मामलों में सरकार को नया और सख्त क़ानून बनाने के बारे में सोचना चाहिए . नया मामला दिल्ली का है . देश की राजधानी में एक ब्राजील की छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गया.

पुलिस ने 27 साल की ब्राजीलियाई महिला किराएदार के साथ बलात्कार के आरोपी मकान मालिक को गिरफ्तार कर लिया है।

मेडिकल रिपोर्ट में महिला के साथ बलात्कार की पुष्टि होने के बाद यह गिरफ्तारी हुई। हालांकि उन्होंने आरोपी की पहचान बताने से इंकार कर दिया।

चितरंजन पार्क में हुई यह घटना मंगलवार प्रकाश में आई जब महिला ने शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि कॉफी में नशीला पदार्थ देकर उसके मकान मालिक ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया।

नोएडा के एक निजी संस्थान से जनसंचार की पढाई कर रही यह महिला जून के पहले हफ्ते में भारत आई थी। 19 जून तक वह किराए के मकान में थी। महिला ने दावा किया कि 20 जून को उसका मकान मालिक उससे मिलने आया और उसे कॉफी पीने का प्रस्ताव दिया। कॉफी पीने के बाद वह बेहोश हो गई जिसके बाद मकान मालिक ने उसके साथ बलात्कार किया। उस व्यक्ति ने कथित तौर पर 21 जून को भी बलात्कार किया।

27 जून को जब उसने बलात्कार का प्रयास किया तो महिला ने विरोध किया और मकान मालिक को परिसर छोड़कर जाने को कहा।बलात्कार की इस घटना से अपना देश भी विदेशों में शर्मशार हुआ है . यह सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा बलात्कार का मामला नहीं है बल्कि ब्राजील के समाचार पत्रों में इसे इस तरह से लिखा जाएगा 'भारतीय ने किया ब्राजील की छात्रा से बलात्कार '. इस तरह उस दुष्कर्मी के साथ अपने प्यारे देश का नाम भी खराब होता है. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी पीड़ित महिला को न्याय दिलाने की बात कर चुकी हैं , यह अच्छी बात है. इससे पहले गोआ में घूमने आई विदेशी लड़कियों के साथ भी इस तरह की कई घटनाएं हुई थीं. एक डबल मामला तो दो -चार दिन पहले ही सामने आया था. पर्यटन स्थलों पर ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं जो चिंताजनक हैं. इसका सख्त समाधान निकालना ही होगा, वरना यह बदनुमा दाग बार -बार लगते रहेंगे .







Monday, June 28, 2010

तन्हाई का दर्द और निराशा मी आत्महत्या

कभी-कभी ऐसा होता है कि इंसान भीड़ में भी अपने आपको तनहा समझ लेता है . इस तन्हाई को दूर करने के लिए वह नशे को अपना साथी बनाना चाहता है. सिगरेट का सहारा , शराब का सहारा और आखिर में आत्महत्या या मौत उसका स्वागत करती है . वैसे तो यह जीवन के कई क्षेत्रों में सदियों से होता चला आ रहा है और आज भी हो रहा है, निश्चित तौर पर पर कहीं न कहीं कभी न कहीं मगर आगे भी होता ही रहेगा. अँधेरी में मशहूर मोडल विवेका बाबाजी की साथ भी तो यही हुआ. वह अँधेरी के फ्लेट में अकेले रहती थी. कहा जा रहा है कि उसने नशे की हालत में आत्महत्या करली, उसकी लाश के पास से पुलिस ने सिगरेट के बहुत सारे टोटे भी बरामद किये.मॉडल विवेका बाबाजी की कथित आत्महत्या मामले में उनके प्रेमी गौतम वोहरा ने अदालत में बयान दिया है कि उनका कभी भी विवेका के साथ शादी का इरादा नहीं था। वे दोनो सिर्फ एक अच्छे दोस्त थे। इससे अधिक कुछ भी नहीं। इस केस में शुरु से ही विवेका के दोस्त गौतम वोरा का नाम सामने आ रहा है। शुक्रवार को विवेका की खुदकुशी के बाद से ही गौतम लापता था, उसका फोन भी बंद था। खार पुलिस ने गौतम को तत्काल थाने में रिपोर्ट करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद वह सोमवार को अदालत में पेश हुआ।
दूसरी ओर, विवेका की बिसरा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कथित आत्महत्या के पहले उसने जमकर नींद की गोलियां खाई थी। विवेका का जुहू के एक शवदाह में अंतिम संस्कार कर दिया गया। विवेका की मौत से पूरा परिवार सदमे में है।विवेका बाबाजी की कथित खुदकुशी में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। पुलिस को अब उनकी बॉडी से से भारी मात्रा में नींद की गोलियों के साथ हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिला। जिसका मिश्रण किसी जहर से कम नहीं है। पुलिस अब उनके पांचों पूर्व प्रेमी से पूछताछ की तैयारी कर रही है। पुलिस को शक है कि उन्होंने खुदकुशी नहीं बल्कि उनकी हत्या हुई है। जिसमें कोई भी शामिल हो सकता है।खार पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर मंगेश पोटे ने बताया कि मॉडल की हत्या के संबंध में जल्दी उनके सभी प्रेमियों से बातचीत की जाएगी। इसके अलावा हम इस एंगल से भी जांच कर रहे हैं कि कहीं बाबाजी को मारने के लिए जहर तो नहीं दिया गया था। पुलिस के अनुसार, विवेका की बिसरा रिपोर्ट में कुछ ऐसे तत्व मिले हैं जो कि जहर की तरफ इशारा कर रहे हैं। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट इशारा कर रही है कि हो सकता है उसने आत्महत्या नहीं की हो बल्कि उसका क़त्ल किया गया है. पुलिस जांच में जुटी है और जल्द ही यह उजागर हो जाएगा कि असलियत क्या है ,मगर सच जो हो यह भी कटु सत्य है कि अगर विवेका बाबाजी अकेली न रह रही होती और अपने परिवार के साथ होती तो शायद यह हादसा नहीं हो पाता . असल में आज की युवा पीढ़ी चमक -दमक भरी जिंदगी जीने के लिए इतनी बेताब है कि उसके और उसके परिवार के विचारों में अचानक जमीन -आसमान का अंतर आ जाता है . यही वजह है कि फैशन या फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुक रखने वाली ज्यादातर लड़कियां अपने परिवार से अलग रहती हैं. ऐसे में उनके सम्बन्ध हम उम्र या हमपेशा लड़कों से हो जाते हैं. काम के तनाव के कारण वे नशे की आदी हो जाती हैं और नशे में वे क्या कर रही हैं , इसका पता बहुत बाद में चलता है . जब तक वे मामले को संभालने की कोशिश करती हैं तब तक सब कुछ फिनिश हो जाता है . बहुत देर हो चुकी होती हैं. दिल्ली की एक मोडल को दिल्ली की सड़कों पर पागलों की तरह घुमते हुए कई टी.वे चैनलों ने दिखाया था. इसी तरह पहले भी दो मोडल आत्महत्या कर चुकी हैं और कईयों को मौत के घाट उतारा जा चुका है .पता नहीं पुलिस इस मामले में क्या जांच रिपोर्ट पेश करती है मगर यह सत्य है कि तन्हाई का दर्द और निराशा फिल्म इंडस्ट्री और फैशन जगत से जुड़े लोगों को आत्महत्या की तरफ धकेल रहा है . इस सिलसिले को ये लोग खुद ही रोक सकते हैं. अगर हम हमारे सपनों की ऊंचाई की तरह हौंसले को भी ऊंचा रखें तो इस स्थिति से आसानी से लड़ा जा सकता है. सफलता बुरी चीज नहीं है , मगर उसके लिए घर परिवार का त्याग जन बूझकर नहीं करना चाहिए . क्योंकि घर में एक दुसरे से अपना दुःख कहने -सुनने से भी वह हल्का हो जाता है. यह समझना चाहिए कि इस धरती पर हर समस्या का समाधान मौजूद है. मालिक ने हर इंसान को ऐसी शक्ति दी है , बस उसका उपयोग करना आना चाहिए .

Sunday, June 27, 2010

यू.पी. के मंत्रियों की नजर में ब्रह्मा जी बेटी चो....

पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य, ये हैं उत्तर प्रदेश के विशेष मंत्री , विशेष इसलिए क्योंकि ये सभी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के करीबी कहे जाते हैं , इन सभी को बसपा की दूसरी पंक्ति का नेता माना जाता है . जौनपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने राधेश्याम वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी के पांच मंत्रियों समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया गया है। इसमें पत्रिका के संपादक डॉक्टर राजीव रत्न , सुषमा , लेखक अश्विनी कुमार शाक्य और अशोक आनंद भी शामिल हैं। कोर्ट ने पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य हैं। इस प्रकार कुल ९ आरोपियों के विरुद्ध महात्मा गांधी सहित हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करने का मामला दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं. इससे राजनीतिक क्षेत्रों में तूफ़ान उठ खडा हुआ है. विपक्षी पार्टियों को यह ऐसा मुद्दा हाथ लग गया है जिसे वे जमकर भुनाना चाहते हैं. इस मामले से मायावती की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है और उनकी ' सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय ' मुहिम को नुक्सान पहुंचेगा . ऐसे समय में जब मायावती की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से की जा रही थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार दर्शाया जा रहा था , ऐसे समय में सवर्ण समाज को नाराज करने का खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में भुगतना पड सकता है. 'आंबेडकर टुडे नामक जिस पत्रिका के बारे में बवाल मच रहा है उसके मालिक डॉक्टर राजीव रत्न स्वामी प्रसाद मौर्या की करीबी और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त पारसनाथ मौर्या के बेटे हैं. उपरोक्त मंत्रियों का नाम बाकायदा संरक्षक के तौर पर छपता था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी जानकारी इन मंत्रियों को नहीं थी.
क्या है मामला ? - दरअसल लखनऊ से छापने वाली पत्रिका आंबेडकर टुडे में हिंदू धर्म , महात्मा गांधी और देवी -देवताओं के बारे में आपत्ति जनक बातें प्रकाशित होती थीं जैसे कि इसके पृष्ठ 31 पर एक आलेख में लेखक श्री अश्विनी कुमार शाक्य पुत्र श्री पी. एल. शाक्य जिनका पता पत्रिका के अनुसार ‘पगारा रोड, जौरा, जिला मुरैना, मध्य प्रदेश’ अंकित है, के द्वारा जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया है वह अकथनीय है।बानगी देखिये -

वैदिक ब्राह्मण और उसका धर्म शीर्षक से प्रस्तुत तालिका में वे कहते हैं कि हिन्दू धर्म ‘मानव मूल्यों पर कलंक’’ है.

हिन्दू धर्म को ‘‘त्याज्य धर्म’’ बताया गया है, इसे ‘‘भोन्दू और रोन्दू’’ धर्म व ‘‘पापगढ़’’ कहा गया है.

वेद क्रूर, निर्दयी, जंगली, बेवकूफी का म्यूजियम, मूर्खताओं का इन्द्रजाल बताये गये हैं.

हिन्दू धर्मशास्त्र निकृष्ट शास्त्र कहे गये हैं.

33 करोड़ देवता गैंगस्टर, कपटी, षडयंत्री, क्रूर और हत्यारे कहे गये हैं.जोश में आकर वे आगे लिखते हैं कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ‘‘बेटीचो...' है . यह ऐसी गाली है जिसे ज्यों की त्यों प्रकाशित करने के बजाय ... कर दिया गया है. मै २०१० के अंक में छपे इन आपत्तिजनक लेखों के कारण कई जिलों में विरोध प्रदर्शन भी किये गए थे.

दलित बुद्धिजीवी भी नाखुश -मंत्री का बेटा और स्वामीप्रसाद मौर्य का करीबी होने के कारण डॉक्टर राजीव को कई लाख रुपये का सरकारी पुरस्कार दिया गया था, उनकी पत्रिका को भी लाखों के विज्ञापन मिलते रहे हैं . इतना ही नहीं , उनकी शादी के बाद ही उनकी पत्नी को सरकारी अधिकारी बना दिया गया. इस मामले से दलित बुद्धिजीवी भी खुश नहीं हैं. 'ज़िंदा देवी ' जैसी मायावती समर्थक पुस्तक लिखकर चर्चा में आये साहित्यकार दुसाध का मानना है कि जो सच्चे साहित्यकार हैं, उनकी कोई सुधि नहीं लेता , जो चाटुकार हैं, उनको उत्तर प्रदेश सरकार पुरष्कृत कर रही है.

अभिव्यक्ति की आजादी - यह ठीक है कि हर इंसान को अपना दुःख बयान का पूरा अधिकार है. अपनी बात सब कह सकते हैं. अपने विचार रख सकते हैं. मगर किसी को गाली देना गलत है.सच कहा जा सकता है मगर सादगी और गरिमा पूर्वक . अगर ब्रह्मा ने कुछ कुछ गलत किया तो उसे तथ्य्पूर्वक संवैधानिक भाषा में लिखा जा सकता है. अपनी तरफ से असंसदीय भाषा इस्तेमाल करना उचित नहीं है. अगर कहीं किसी देवता ने गलत कार्य किया है तो उसे पुस्तक के नाम , पेज आदि का उदाहरण देकर अपनी बात राखी जा सकती है. अपनी विचारधारा को रखा जा सकता है, उसका समर्थन किया जा सकता है , मगर दुसरे के विचारों को गलत बताना , उसका अपमान करना मानव हित में नहीं है .

समर्थक या विरोधी ?- यह सच है कि जब १४ अप्रैल १९८४ को बहुजन समाज पार्टी के गठन हुआ तो बसपा कार्यकर्ता हिंदू धर्म का उग्र विरोध करते थे, देवी -देवताओं की हरकतों को , मनुवादी चालों को उजागर किया करते थे. विषमता फैलाने वाले, पाखण्ड रचने वाले, छूआछात फैलाने वाले तत्वों का खुलासा करते थे ,उस समय बसपा का नारा हुआ करता था-'बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय '. मगर मायावती ने इसमें संसोधन कर नया नारा दिया-'सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय '. इसको सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया. परिणाम भी सुखद आया. बसपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी. अब , जबकि देश का बहुजन समाज मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रहा है ऐसे में डो समुदाय के बीच नफरत की खाई पैदा करना बसपा के विरोधियों का काम है या समर्थकों का ? सवाल पूरे बहुजन संमाज का है और जवाब है सिर्फ बहनजी के पास.









Friday, June 25, 2010

फिर बढे डीजल , पेट्रोल ,केरोसिन और रसोई गैस के दाम, और दो कांग्रेस को वोट

एक बार फिर से डीजल , पेट्रोल , केरोसिन और रसोई गैस के दाम बढा दिए गए हैं. इसके अलावा सरकार ने सब्सिडी भी हमेशा के लिए खत्म कर दी है. इससे अब भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय बाजार के हिसाब से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें वसूली जायेंगी. इससे पहले भी यह सरकार कई बार दाम बढा चुकी है. हाल ही में सी एन जी, एल पी जी के दाम बढाए गए हैं . इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि मुंबई , दिल्ली में आटो, टैक्सी के दाम बढ़ गए . अब होगा ये कि हर चीज और भी मंहगी हो जायेगी . दूध, दही , घी , पनीर, सभी तरह की सब्जियां, प्राइवेट वाहनों का भाडा सब पर मंहगाई का भार बढ़ जाएगा . पहले से ही मंहगाई से लोगों का बुरा हाल था . किसी तरह से घर का किचन चलाया जा रहा था , अब वो भी मुश्किल हो जाएगा. खाने की थाली में अब न जाने क्या बचेगा . ई जी ओ एम् की कीमत बढाने की घोषणा से देश सन्न हो गया है. केन्द्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी ने एक दिन पहले ही प्रणव मुखर्जी से मिलकर अपील की थी कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें नहीं बढनी चाहिए . विरोध स्वरूप वे कैबिनेट की बैठक में भी नहीं गयी थीं. मगर उनके विरोध का कोई असर नहीं हुआ. कीमतें आखिरकार बढ़ा दी गईं, अब ममता क्या करेंगी ? क्या वे मंत्रीपद छोड़ देंगी ? क्या उनका विरोध सच्चा था , या महज ड्रामा था ? अगर ड्रामा नहीं था तो उन्होंने मंत्रीपद छोड़ क्यों नहीं दिया ? वे चाहें तो सरकार गिराई जा सकती है. उनेहं बस पहल करने की जरूरत है. मगर सत्ता का सुख जनता के लिए छोड़ना बहुत मुश्किल काम होता है. हमारे नेता सिर्फ जनता की भलाई करने का नाटक करते हैं. जब वे नाटक करने भर से ही सत्ता का सुख भोग सकते हैं तो उन्हें सचमुच जनता की भलाई करने की क्या जरूरत हा. कांग्रेसियों को मालूम है कि भारत की जो जनता वोट देती है , वह ज्यादातर बिकाऊ या भडकाऊ है. किसी ने जातिवाद का नारा बुलंद किया तब भड़क गयी. अपना कीमती वोट जातिवाद की राजनीति करने वालों को दे दिया, और किसी साम्प्रदायिक पार्टी ने धर्म का नारा दिया तब भी आसान से बहाल जाती है, अपने वोट सम्प्रदाय के नाम पर समर्पित कर देती है.रही सही कसर नोटों से पूरी हो जाती है. कांग्रेस के लोग आराम से उन लोगों के वोट खरीद लेते हैं. जो लोग अपना वोट बेचते हैं वे एक दो दिन तो मुर्ग मसल्लम का स्वाद चखते हैं, दारु पीने को मिलती है मगर अगले पांच सालों तक नेता उनके वोट वसूलकर उनका खून चूसते हैं. काँग्रेस ने आम आदमी के हित का वादा करके लोगो से वोट वसूले थे, अब उसी जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है. पहले से ही जो लोग दाने -दाने को मोहताज थे , उन पर जानलेवा मंहगाई का शिकंजा कस दिया गया है.भाजपा ने इस बढोतरी को जनता को तहस -नहस करने वाला कदम बता रही है. उसने पूरे देश में आंदोलन करने का एलान किया है . भाजपा ने कहा है कि कांग्रेस देश के लोगों के साथ अन्याय कर रही है. इस बार भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुप हैं. भले ही सोनिया गांधी इस देश में जन्मी नहीं है , यहाँ के बारे में ज्यादा नहीं जानतीं, मगर राहुल गांधी तो यहाँ की गरीबी और बेरोजगारी से अच्छी तरह से परिचित हैं. वे अपनी सरकार से इस सम्बन्ध में बात क्यों नहीं करते ? आखिर इतनी मंहगाई बढाने से कांग्रेस को मिलने वाला क्या है ? ऐसा लगता है कि कांग्रेस सिर्फ कुछ चुनिन्दा दलालों, कारपोरेट घरानों और मुनाफेखोरों की भलाई के बारे में ही सोचती है. ऐसी निकम्मी सरकार को एक पल भी पावर में रहने का अधिकार नहीं है. देशवासियों में अगर ज़रा भी नैतिकता है तो अगली बार चाहे किसीको भी दें मगर कांग्रेस और उसके सहयोगियों को हरगिज वोट नहीं करें. वोट के खरीदारों को एक बार यह एहसास कराने का वक्त आ गया है कि हमारे वोटों से चुने जाने वालों को बाप बनने का अधिकार नहीं है. जिसे हम जन्म देते हैं वो हमारी औलाद होती है. हमारे वोटों से मंत्री , मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री बनने वालों को याद दिलाना होगा कि वे हमारी वोटों से पैदा हुए हैं , इसलिए वे बेटे हुए और बेटे बनकर रहें तो बेहतर वरना अगली बार लायक औलाद पैदा की जायेगी

























Thursday, June 24, 2010

विचार मंच
जिन्ना अब धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं क्या ?
खबर है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह फिर से भाजपा में शामिल होने वाले हैं
बहुत संभव है कि इस लेख को प्रकाशित होने से पहले या कुछ देर /दिन बाद वे शामिल ह भी जाएँ. ये वही जसवंत सिंह हैं जिन्होंने अपनी पुस्तक में पाकिस्तान के संस्थापक और वहाँ के पूर्व शासक मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया था. उनकी पुस्तक आते ही ऐसा बवाल मचा कि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हांलाकि उन्होंने कोई नई बात नहीं कही अथवा लिखी थी. इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ़ कर चुके थे. मगर उस मामले और जसवंत सिंह के मामले में अलग-अलग मापदंड अपनाए गए. जब पार्टी एक है तो पार्टी के विधान दो कैसे हो सकते हैं ? यह मामला उस समय खूब उठा था. यहाँ तक कि भाजपा के तत्कालीन वरिष्ठ नेता और सुप्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी ने भी इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. उस समय बात तो यहाँ तक कही गयी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की इच्छा के विरुद्ध उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया . इसी तरह इससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री कल्याण सिंह और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. उससे भी पहले भाजपा का थिंक टेंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य को पार्टी से निकाल बाहर किया गया. भाजपा से निकले इन सभी नेताओं ने खूब हाथ पैर मारे , कल्याण सिंह ने कभी जाट नेता अजीत सिंह का हाथ थामा तो कभी उन्होंने मुलायम सिंह यादव् से गठबंधन किया . मगर अपने बेटे और शिष्या को विधायक बनाने के अलावा कुछ खास करिश्मा नहीं दिखा पाए. अब तो वे अपनी खुद की पार्टी भी बना चुके हैं लेकिन उनके जिले और गिने -चुने क्षेत्रों के अलावा अभी तक वे अपनी पार्टी का संगठन तक भी नहीं बना पाए हैं. उमा भारती भी अपने पार्टी का गठन कर चुनाव लड़,लडवा और हार चुकी हैं. इसके बावजूद यह तथ्य उभरकर सामने आया कि भाजपा से निकले हुए लोग भले ही अकेले राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक राजनीति में कोई तीर नैन मार पाए मगर इन्होने भाजपा का बहुत नुक्सान पहुंचाया . अगर ये लोग भाजपा में होते तो निश्चित तौर पर भाजपा का हाल कुछ अलग ही होता. हो सकता है कि इस समय केन्द्र में भाजपा की सरकार भी होती . क्योंकि ये सभी नेता अपने -अपने प्रदेशों के धुरंधर नेता हुए करते थे मगर भाजपा की आपसी कलह ने दिग्गजों को पार्टी से बाहर करवा दिया. इसी गुटबाजी के कारण भाजपा हर जगह से हारती गयी. उत्तर प्रदेश में वह तीसरे -चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गयी. केन्द्र में दो -दो बार मुंह की खानी पडी. इन्हीं सब कारणों से अब आर एस एस और भाजपा के रणनीतिकारों को अपने पुराने साथियों की याद सताने लगी है. इसी वजह से छत्तीस गढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के निजी कार्यक्रम के बहाने लालकृष्ण आडवाणी अब उमा भारती को अपने हेलिकोप्टर में उनके घर ले जा रहे हैं. इधर जसवंत सिंह के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए गए हैं. इसी प्रकार कल्याण सिंह पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए गए हैं. पिछले दिनों न्भाज्पा के राष्ट्रे अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी पार्टी के अंदर गुटबाजी होने की बात स्वीकार की थी . अगर भाजपा को अपना ख्या हुया पुराना वैभव वापस लाना है तो उसे अपने साथियों को तो मनाकर घर लाना ही होगा साथ ही यू पी ए सरकार की जन विरोधी नीतियों को घर -घर उजागर करना होगा . साथ ही देश की जनता को यह भी बताना होगा कि आखिर उसके पास ऐसी कौन सी अच्छी नीतियां हैं,जिनसे वह बेहतर सरकार दे सकती है. भाजपा को एक बात अच्छी तरह से सोच लेनी चाहिए के देश के वोटर अब दस साल पहले जैसे वोटर नहीं रहे. अब वे सिर्फ सवाल उठाने से खुश नहीं होते बल्कि अब वे उन सवालों के जवाब भी चाहते हैं.अगर भाजपा के रणनीतिकार यह सोचते हैं कि राम या धर्म के नाम पर वे लोगों की भानाओं को भडका सकते हैं और उन्हीं भावनाओं के रथ पर सवार होकर देश पर शासन कर लेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है. अब राम से ज्यादा रोटी और भावनाओं से ज्यादा विकास महतवपूर्ण हो चूका है. कांग्रेस की तरह दुश्मनों के वोट बाँट कर या वोट खरीदने के घृणित खेल को अब कोई नहीं दोहराना चाहेगा , मगर मतदाता भाजपा की तरफ तभी मुडेंगे जब उसके नेता संगठित रहेंगे और कांग्रेस की कमर तोड़ मंहगाई , सरकारी महकमे में जानलेवा भ्रष्टाचार, नक्सलवाद , उग्रवाद , आतंकवाद आदि को उजागर कर उसके ठोस इलाज का दावा और वादा करेंगे साथ ही यह भरोसा भी दिलाएंगे कि वे पाना वादा अवश्य पूरा करेंगे.




Wednesday, June 23, 2010

कब गिरफ्तार होंगे मासूम बच्चियों के हत्यारे ?
मुंबई के कुर्ला क्षेत्र में एक के बाद एक तीन मासूम बच्चियों की आबरू लूटने के बाद बेरहमी से ह्त्या कर दी गयी है. कार्रवाई के नाम पर स्थानीय पुलिस इन्स्पेक्टर प्रकाश काले का तबादला कर दिया गया है. ७९ लोगों को निर्वस्त्र कर जांच की गयी, मेडिकल कराया गया और ७० लोगों का डी एन ए टेस्ट करवाया गया है. संदिग्धों के स्केच जारी किये गए हैं और कई टीमों का गठन किया गया है . खुद मुंबई पुलिस आयुक्त संजीव दयाल आला अधिकारियों के साथ बैठक कर चुके हैं , इसके बावजूद बलात्कारी हत्यारे अभी तक पकड़ से दूर हैं. स्कोट लेंड यार्ड के बाद पूरे विश्व में मुंबई पुलिस को सबसे ज्यादा सक्षम माना जाता रहा है. मगर इस घटना ने इस किवदंती पर पूर्ण विराम लगा दिया है. इतने ज्यादा लोगों की जांच करने से साफ़ हो जाता है कि अभी तक पुलिस अँधेरे में ही तीर मार रही है. कोई ठोस सुराग नहीं मिल पाया है . पूरा पुलिस महकमा जैसे फेल सा हो गया है. कुर्ला के लोगों का पुलिस से भरोसा उठ चुका है. वे डरे सहमे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर क्या करें . पुलिस की नाकामी से उनका डर और भी ज्यादा बढ़ता जा रहा है . लोग अपने बच्चों को अकेला छोड़ने से डर रहे हैं. जो लोग रोजाना कमाते हैं , रोजाना खाते हैं , उनके लिए बच्चों की देखभाल करना बड़ा मुश्किल हो गया है. अब यहाँ पर राजनीति भी शुरू हो गयी है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने कुर्ला का दौरा कर गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग की है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने सैकड़ों लोगों का मोर्चा निकालकर पुलिस पर दवाब बनाया . लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर अभी तक पुलिस को इस मामले में सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है . ऐसा कौन सा अपराधी या आपराधिक गिरोह है जिसके हौंसले इतने बुलंद हैं कि वह वारदात पर वारदात को अंजाम दिए जा रहे हैं .ऐसे चुनौती देने वाले की गर्दन अभी तक क़ानून के लंबे हाथों से दूर क्यों है ? ये ऐसे सवाल हैं जिनसे आजकल हर मुम्बईकर जूझ रहा है . अगर इसकी जड़ में जाएँ तो पता चलेगा कि कहीं न कहीं इसके लिए पुलिस ही जिम्मेदार है. कुर्ला सहित मुंबई के बहुत से इलाकों में वीडियो पार्लर खुलेआंम चलाये जा रहे हैं. वहाँ पर ब्लू फ़िल्में धडल्ले से चलाई जा रही हैं. सभी नियम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाकर ये सब किया जा रहा है . कम उम्र के लड़कों को बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए उकसाने में इन वीडियो पार्लर का भी बहुत बड़ा योगदान है और ये वीडियो पार्लर ऐसे ही नहीं चलाये जाते बल्कि इसलिए पुलिस को बाकायदा हफ्ता दिया जाता है . यहाँ तक कि इलाके के गुंडे और नेता भी इन वीडियो पार्लर चलाने वालों से हफ्ता वसूलते हैं. अगर मुंबई पुलिस चाहती है कि बलात्कार और क़त्ल की वारदातों पर सचमुच काबू पाना है तो सबसे पहले मुंबई और आसपास के क्षेत्रों से उन वीडियों पार्लर को बंद कराये जाने की जरूरत है जिसके कारण युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है. जिस प्रकार गृह मंत्री आर आर पाटिल ने लेडिज बार बंद कराने में मेहनत की थी , वैसे ही उन्हें सख्ती से इन वीडियो पार्लर को हटाना चाहिए . प्रत्येक इलाके के सीनियर इन्स्पेक्टर को इसके लिए जवाबदेही देनी चाहिए . तब जाकर इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी. अब अगर मुंबई पुलिस को अपनी इज्जत बचानी है तो कुर्ला सीरियल किलिंग प्रकरण के अपराधियों को जल्द से जल्द हथकड़ी लगानी चाहिए .