विचार मंच
जिन्ना अब धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं क्या ?
खबर है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह फिर से भाजपा में शामिल होने वाले हैं
बहुत संभव है कि इस लेख को प्रकाशित होने से पहले या कुछ देर /दिन बाद वे शामिल ह भी जाएँ. ये वही जसवंत सिंह हैं जिन्होंने अपनी पुस्तक में पाकिस्तान के संस्थापक और वहाँ के पूर्व शासक मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया था. उनकी पुस्तक आते ही ऐसा बवाल मचा कि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हांलाकि उन्होंने कोई नई बात नहीं कही अथवा लिखी थी. इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ़ कर चुके थे. मगर उस मामले और जसवंत सिंह के मामले में अलग-अलग मापदंड अपनाए गए. जब पार्टी एक है तो पार्टी के विधान दो कैसे हो सकते हैं ? यह मामला उस समय खूब उठा था. यहाँ तक कि भाजपा के तत्कालीन वरिष्ठ नेता और सुप्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी ने भी इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. उस समय बात तो यहाँ तक कही गयी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की इच्छा के विरुद्ध उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया . इसी तरह इससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री कल्याण सिंह और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. उससे भी पहले भाजपा का थिंक टेंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य को पार्टी से निकाल बाहर किया गया. भाजपा से निकले इन सभी नेताओं ने खूब हाथ पैर मारे , कल्याण सिंह ने कभी जाट नेता अजीत सिंह का हाथ थामा तो कभी उन्होंने मुलायम सिंह यादव् से गठबंधन किया . मगर अपने बेटे और शिष्या को विधायक बनाने के अलावा कुछ खास करिश्मा नहीं दिखा पाए. अब तो वे अपनी खुद की पार्टी भी बना चुके हैं लेकिन उनके जिले और गिने -चुने क्षेत्रों के अलावा अभी तक वे अपनी पार्टी का संगठन तक भी नहीं बना पाए हैं. उमा भारती भी अपने पार्टी का गठन कर चुनाव लड़,लडवा और हार चुकी हैं. इसके बावजूद यह तथ्य उभरकर सामने आया कि भाजपा से निकले हुए लोग भले ही अकेले राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक राजनीति में कोई तीर नैन मार पाए मगर इन्होने भाजपा का बहुत नुक्सान पहुंचाया . अगर ये लोग भाजपा में होते तो निश्चित तौर पर भाजपा का हाल कुछ अलग ही होता. हो सकता है कि इस समय केन्द्र में भाजपा की सरकार भी होती . क्योंकि ये सभी नेता अपने -अपने प्रदेशों के धुरंधर नेता हुए करते थे मगर भाजपा की आपसी कलह ने दिग्गजों को पार्टी से बाहर करवा दिया. इसी गुटबाजी के कारण भाजपा हर जगह से हारती गयी. उत्तर प्रदेश में वह तीसरे -चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गयी. केन्द्र में दो -दो बार मुंह की खानी पडी. इन्हीं सब कारणों से अब आर एस एस और भाजपा के रणनीतिकारों को अपने पुराने साथियों की याद सताने लगी है. इसी वजह से छत्तीस गढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के निजी कार्यक्रम के बहाने लालकृष्ण आडवाणी अब उमा भारती को अपने हेलिकोप्टर में उनके घर ले जा रहे हैं. इधर जसवंत सिंह के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए गए हैं. इसी प्रकार कल्याण सिंह पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए गए हैं. पिछले दिनों न्भाज्पा के राष्ट्रे अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी पार्टी के अंदर गुटबाजी होने की बात स्वीकार की थी . अगर भाजपा को अपना ख्या हुया पुराना वैभव वापस लाना है तो उसे अपने साथियों को तो मनाकर घर लाना ही होगा साथ ही यू पी ए सरकार की जन विरोधी नीतियों को घर -घर उजागर करना होगा . साथ ही देश की जनता को यह भी बताना होगा कि आखिर उसके पास ऐसी कौन सी अच्छी नीतियां हैं,जिनसे वह बेहतर सरकार दे सकती है. भाजपा को एक बात अच्छी तरह से सोच लेनी चाहिए के देश के वोटर अब दस साल पहले जैसे वोटर नहीं रहे. अब वे सिर्फ सवाल उठाने से खुश नहीं होते बल्कि अब वे उन सवालों के जवाब भी चाहते हैं.अगर भाजपा के रणनीतिकार यह सोचते हैं कि राम या धर्म के नाम पर वे लोगों की भानाओं को भडका सकते हैं और उन्हीं भावनाओं के रथ पर सवार होकर देश पर शासन कर लेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है. अब राम से ज्यादा रोटी और भावनाओं से ज्यादा विकास महतवपूर्ण हो चूका है. कांग्रेस की तरह दुश्मनों के वोट बाँट कर या वोट खरीदने के घृणित खेल को अब कोई नहीं दोहराना चाहेगा , मगर मतदाता भाजपा की तरफ तभी मुडेंगे जब उसके नेता संगठित रहेंगे और कांग्रेस की कमर तोड़ मंहगाई , सरकारी महकमे में जानलेवा भ्रष्टाचार, नक्सलवाद , उग्रवाद , आतंकवाद आदि को उजागर कर उसके ठोस इलाज का दावा और वादा करेंगे साथ ही यह भरोसा भी दिलाएंगे कि वे पाना वादा अवश्य पूरा करेंगे.
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