उत्तर प्रदेश की चुनावी कसरत
क्या फिर से करिश्मा दोहराएगी बी एस पी ?
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री पद को संभाल रही हैं. लेकिन स्पष्ट बहुत की सरकार इस बार ही बनी है . इससे पहले वे अन्य पार्टियों की मदद से मुख्यमंत्री बना करती थीं, मगर प्रदेश की सरकार ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें भारी बहुमत के साथ जिताया है. मायावती के इस कार्यकाल को देखा जाए तो उन्होंने कई ऐसे विलक्षण कार्य भी किये हैं, जिन्हें कोई दुसरा राजनेता सोचते ही डरता है. आमतौर पर ऐसे कार्य राजनीतिक फायदा नहीं बल्कि नुक्सान ही पहुंचाते हैं. जैसे कि उन्होंने अपनी पार्टी के बाहुबली सांसद उमाकांत को खुद गिरफ्तार करवा दिया. अपने ही कैबिनेट के मंत्री जमुना निषाद का नाम जब ह्त्या के मामले में आया तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया . इसी प्रकार बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को पार्टी से निकाल बाहर किया. इससे भले बसपा को आंशिक नुक्सान हो मगर इससे फायदा ये हुआ कि प्रदेश में यह सन्देश जरूर गया कि अपराधी कितना भी ताकतवर क्यों न हो अगर वह गलत करेगा तो उसके खिलाफ इसी तरह की कड़ी कार्रवाई हो सकती है. इससे बसपा के दबंग कार्यकर्ता भी डरने लगे . नतीजा यह निकला कि जिस उत्तर प्रदेश में जंगल राज और माफिया राज के नारे गूंजते थे , अब वहां पर क़ानून का शासन स्थापित हो गया. बड़े- बड़े डाकुओं का भय अब खत्म होने लगा है. ठोकिया जैसे डकैत को मुठभेड़ में थोक दिया गया है. अब उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध नहीं होते. फिरौती के लिए अब अपराधिक गिरोह के द्वारा अपहरण नहीं होते. अब गेंगवार नहीं होते . राज्य की जनता को इससे तो छुटकारा मिल गया है . शान्ति व्यवस्था ठीक ठाक है. अब व्यापारी बिना डरे अपने कार्य कर सकते हैं. इससे निवेश के लिए सही माहोल तैयार हुआ है. यह मायावती की ही कार्यकुशलता का परिणाम है कि इतनी जल्दी यह सब संभव हो पाया , अगर सपा का शासन होता तो अब तक यह खूबसूरत राज्य कुशासन के दल -दल में ही कराह रहा होता. इसके अलावा मायावती की सरकार ने परिवहन के क्षेत्र में भी क्रान्ति की है. बसों की संख्या बढाई है. उनके फेरे बढाए हैं. प्रदेश के परिवहन मंत्री रामअचल राजभर ने दिल्ली से यूपी में फिर से बस सेवा शुरू करके लाखों लोगों का दिल जीता. इसके अलावा सर्वजन हिताय बस सेवा शुरू की. कई नए डिपो बनवाए. यह विभाग हमेशा घाटे में रहता था मगर मायावती के नेतृत्व में रामअचल राजभर ने इस विभाग को जबरदस्त मुनाफे में तब्दील कर दिया है . कहा जा सकता है कि परिवहन के क्षेत्र में उल्लेखनीय और यादगार तरक्की हुई है. क़ानून व्यवस्था और परिवहन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किये गए हैं. सड़कों का भी निर्माण हुआ है . शहरों को गाँवों से जोड़ा गया है .मगर सड़कों की गुणवत्ता ऐसी नहीं है जिससे संतुष्ट हुआ जा सके. बिजली-पानी के क्षेत्र में भी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है. सबसे खराब हालत शिक्षा क्षेत्र की है. ऐसा नहीं है कि इस दुर्दशा के लिए बी एस पी जिम्मेदार है . बल्कि इससे पूर्ववर्ती सरकार इसके लिए जिम्मेदार हैं . सरकारी स्कूलों में पढाई के नाम पर महज दिखावा दिखावा हो रहा है. पूरे राज्य में सरकारी शिक्षक निठल्लेपन के लिए मशहूर हैं. कहीं -कहीं तो पूरे स्कूल को एक ही टीचर हेंडल कर रहा है. बाकी लोग महीने में एकाध बार दिखाई देते हैं. मगर वजीफा और खाने के चक्कर में शिक्षा का सत्यानाश कर दिया गया है. इसे प्राथमिकता के आधार पर सुधारा जाना चाहिए था. हांलाकि यह भी ऐसा मुद्दा नहीं है जिससे वोट घाट या बढ़ सकें . मगर जिन सिड्यूल कास्ट के पक्के वोटों के दम पर आज मायावती राष्ट्रीय लीडर हैं , उनसे तो फर्क पड़ता है , और इस बार उनका यही पक्का वोटर उनसे नाराज चल रहा है.इन्हें लगता था कि बहन जी की सरकार बनेगी तो उन्हें प्लाट मिलेंगे, मकान मिलेंगे , खेत मिलेंगे , क्योंकि कांशीराम जी ने नारा दिया तह-'जो जमीन सरकारी है, वो जमीन हामरी है ' . मगर इस बार वे सिर्फ हाथ मलते रह गए. उन्हें लगा था कि उनको किसी विशेष कोटे से सरकारे नौकरियां मिलेंगी मगर ऐसा भी नहीं हुआ. अब दलित समाज जाग्रत हो चुका है . उसे सिर्फ सम्मान ही नहीं अधिकार भी चाहिए .वह अपनी कल्पनाओं को साकार होते देखना चाहता है. अगर बहुजन समाज पार्टी को इस बार की तरह करिश्मा दिखाना है तो अपने इस पक्के वोटर वर्ग को माना होगा. अभी दो साल बाकी हैं. समय रहते इस तरफ ध्यान दिया गया तो मुश्किल कोई नहीं है. लेकिन अगर ध्यान नहीं दिया यह वोटर वर्ग सवाल करेगा कि स्पष्ट बहुमत की सरकार में भी उनके काम नहीं हो सकते तो कब और कहाँ होंगे ?
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