आज हाल ये है कि आप किसी भी सरकारी विभाग में चले जाइए , वहाँ पर आप बिना रिश्वत कोई काम नहीं करवा सकते , चाहे कितनी भी बड़ी सिफारिश क्यों न हो , आप कितने भी बड़े तुर्रमखाँ क्यों न हों अगर आपको अपना कम जल्दी करवाना है तो सुविधा शुल्क देना ही होगा. या फिर आप तैयार हो जाइए एक कभी न खत्म होने वाले प्रोसीजर को पूरा करने के लिए .कोई भी विभाग अछूता नहीं है . जिस गुजरात के सुशासन की लोग तारीफ़ करते नहीं थकते , वहाँ का हाल ये है कि पुलिसवाले डायरेक्ट मुख्यमंत्री के नाम से रिश्वत मांगते हैं. एक बार मै परिवार सहित सड़क मार्ग से दिल्ली जा रहा था . गांधीनगर में एक पुलिसवाले ने गाड़ी रुकवादी , ड्राइवर ने पुलिसवाले की डिमांड के अनुसार सारे कागजात दिखा दिए . उसने अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया, गाड़ी के पेपर दिखाए . सब कुछ ठीक था. पुलिसवाला चक्कर में पड़ गया. उसने स्कोर्पियो के दो चक्कर लगाए , कहीं कुछ कमी नजर नहीं आई. फिर कुछ याद करते हुए बोला. आपका चालान काटना पड़ेगा. निकालिए दो हजार रुपये . ड्राइवर भीड़ गया -' जब सारे कागजात ओके हैं, तो चालान किस बात का ? ' पुलिसवाला एक कागज़ पर कुछ लिखता रहा , फिर बोला-'ठीक है , दो हजार नहीं देना चाहते तो ५०० दे दो , मै संभाल लूंगा , ये एंट्री फीस है , देनी ही पड़ती है. आप लोग नहीं दोगे तो हम नरेंद्र मोदी को कैसे देंगे , घर से तो देने से रहे' . मै हैरत में था. एक पुलिसवाला रोड पर खड़े होकर सरेआम मुख्यमंत्री के नाम पर रिश्वत मांग रहा था. जब उसे ड्राइवर ने मेरे बारे में बताया तो वह बेशर्मी से बोला- 'तो ठीक है, आप प्रेस में हैं तो सौ रुपये दे दें , लूंगा तो जरूर . आगे आपकी मर्जी. अगर किसी से शिकायत करनी हो तो शौक से कर सकते हैं. सब आपको यही सलाह देंगे कि मामला वहीँ निपटा लेते तो अच्छा होता ' . इससे समझा जा सकता है कि रिश्वतखोरी का यह रोग किस हद तक मजबूत हो चुका है .
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