Monday, June 7, 2010

२५ हजार से ज्यादा लाशें
कीमत सिर्फ १२ लाख
सन १९८४ की २-३ दिसंबर की वो भयानक काली रात जिसने २५ हजार से ज्यादा बेक़सूर भोपालवासियों को मौत की आगोश में धकेल दिया. लाखों को अपाहिज बना दिया , आज भी याद आती है तो दिलो -दिमाग के साथ-साथ रूह भी थरथरा उठती है. यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से रिसी गैस ने सबसे बड़े और खतरनाक हादसे को जन्म दिया. हजारों बेगुनाह लोग सोते-सोते ही काल के गाल में समा गए. उस दिल दहला देने वाले हादसे के ठीक २५ साल के बाद फैसला आया है.इस मामले में 9 आरोपियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा चला। एक आरोपी तत्कालीन सहायक वर्क्स मैनेजर (यूसीआइएल) आर. बी. राय चौधरी की इस बीच मौत हो गई।
चौधरी के निधन के बाद बचे 8 आरोपियों में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआइएल) के तत्कालीन अध्यक्ष केशब महेन्द्र, यूसीआइएल के मैनेजिंग डायरेक्ट विजय गोखले, वाइस प्रेजिडेंट किशोर कामदार, वर्क्स मैनेजर जे. मुकुंद, प्रॉडक्शन मैनेजर एस.पी. चौधरी, प्लांट सुपरिटेंडेंट के. वी. शेट्टी और यूसीआइएल के प्रॉडक्शन इंचार्ज एस. आई. कुरैशी शामिल हैं। आठवां आरोपी यूनियन कर्बाइड कंपनी है। ७ आरोपियों को दो-दो साल की कैद और एक -एक लाख का जुर्माना लगाया गया है , जबकि यूनियन कार्बाइड कंपनी को दोषी मानते हुए उस पर ५ लाख का जुर्माना लगाया गया है.एक आरोपी के सुनवाई के दरम्यान पहले ही मौत हो चुकी है. यानि कि कुल १२ लाख का जुर्माना लगाया गया. २५ हजार से ज्यादा लाशें , और उनकी कीमत लगाई गयी है १२ लाख . कैसा क्रूर और अमानवीय सौदा है ये. प्रधानमंत्री जी, टमाटर , मटर , मूली, गाजर, आलू -प्याज , अनाज भुस , डीजल -पेट्रोल आदि सबकी कीमतें आप कई बार , बल्कि बार-बार बढ़ा चुके हैं. कभी फुर्सत मिले और सोनिया-राहुल से इजाजत मिले तो इंसान की जान की कीमत भी बढ़ा दीजियेगा. २५ हजार से ज्यादा बेकसूरों की जान की कीमत कोई १२ लाख लगाए यह इन्साफ नहीं, शोषण है, अपमान है इंसानियत का.यह फैसला भोपाल गैस पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिडकने जैसा है. हद तो उस समय हुई जब आरोपियों को मात्र २५ हजार की जमानत पर छोड़ दिया गया. अब तक सुनते आये थे कि क़ानून अंधा होता है, आज समझ में आया कि सिर्फ अंधा ही नहीं, बल्कि गूंगा , बहरा और बेरहम भी है.भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए २५ सालों से संघर्ष कर रहे लोगों का कहना है कि यहाँ पर क़ानून को अंधा बनाने का काम केन्द्र सरकार ने किया है . सीबीआई पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं . जानबूझकर उसने कम सजा दिलाने वाली धाराएं लगाईं और इस केस को कमजोर करने का प्रयास किया . होना तो यह चाहिए था कि सभी आरोपियों के विरुद्ध इन्डियन पैनल कोड की धारा ३०२ के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए . फास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन कर इस मामले का निपटारा एक से दो साल के अंदर ही हो जाना चाहिए था . अब इस अबत की जांच होनी चाहिए कि आखिर सीबीआई ने ऐसा क्यों नहीं किया ? भोपाल के लोग जो आरोप लगा रहे हैं, उनकी तह में जाना बहुत जरूरी है . चूंकि सीबीआई केन्द्र सरकार के अधीन कार्य करती है , अतः केन्द्र सरकार का वो कौन सा मंत्री है जो भोपाल गैस पीड़ितों के दोषियों को बचा रहा है . जिस कंपनी से हुए गैस रिसाव के कारण यह हादसा हुआ , वह दौलत वालों की कंपनी है और उसके अधिकारी भी . ऐसे में इस बात की पूरी गुंजाइश है कि फैसले को प्रभावित करने का प्रयास किया गया हो . क्यंकि २५ हजार से ज्यादा लोगों के हत्यारों को सिर्फ दो दो साल की सजा देना और फिर उनको तुरंत २५-२५ हजार की जमानत पर छोड़ देना न न्यायसंगत है, न तर्कसंगत .केन्द्र सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी में मृत लोगों को श्रधांजलि देने के बजाय उनको जख्मो कु कुरेदा है, भोपाल की जनता कांग्रेस को इसका जवाब जरूर देगी, भोपाल ही क्यों , देश की जनता को भी इसका कडा जवाब देना चाहिए . अगर यूनियन कार्बाइड कंपनी को सबक सिखाया गया होता तो भविष्य में कोई विदेशी कंपनी इस तरह का दुस्साहस करने की जुर्रत नहीं करती . भले ही कंपनी ने जानबूझकर यह नहीं किया मगर सभी नियमों का पालन करना उसकी जिम्मेदारी थी और इसमें उसने कोताही बरती , इस कारण कारन भोपाल के लोगों को ऐसा गम दिया गया , जिसे ताउम्र नहीं भुलाया जा सकता.