Sunday, June 13, 2010

मनसे , धनसे और कांग्रेस की सौदेबाजी
महाराष्ट्र नव निर्माण सेना यानि मनसे को शिवसेना ने धनसे क्या कह दिया , सफाई देने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे को प्रेस कोंफ्रेंस बुलानी पडी . इसमें राज ठाकरे ने जो रहस्योदघाटन किया है वह हरत करने वाला और चिंताजनक है. उन्होंने साफ़ स्पष्ट किया कि मनसे के १३ विधायकों ने राज्य सभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार विजय सावंत को इसलिए वोट दिए ताकि मनसे के सस्पेंड चल रहे ४ विधायकों का निलंबन रद्द किया जा सके. उन्होंने कहा कि उनके लिए ना कोई स्थाई दुश्मन है और ना ही स्थाई दोस्त. जहां उन्हें लाभ होगा वे वही जायेंगे , और फाय्देवाला काम ही करेंगे. सौदेबाजी को भी वे मराठी के हितों में बताने वाला नहीं भूले. हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव में शिवसेना का एक उम्मीदवार एडवोकेट अनिल परब चुनाव हर गया था क्योंकि मनसे के विधायकों ने के उम्मीदवार विजय सावंत के पक्ष में मतदान किया था , इससे सावंत की विजय हो गयी, तभी से इस तरह की खबरी मिल रही थीं कि मनसे ने कोई बड़ी डील है , तभी कांग्रेस का उम्मीदवार विजय का स्वाद चख पाया है. विधान भवन में सपा के बडबोले विधायक अबू आसिम आजमी के साथ अभद्रता और हाथापाई करने के आरोप में मनसे के चार विधायक सस्पेंड चल रहे हैं. राज्यसभा के चुनाव में एक वोट हासिल करने के लिए गाड़ी , फ्लेट और लाखों -करोड़ों रुपये के प्रलोभनों की बात भी सामने आयी थी. उस समय मनसे पर भी लोग उंगलिया उठाने लगे थे. शिवसेना ने तो बाकायदा यह आरोप लगाया था कि मनसे अब धनसे हो गयी है यानि धन लेकर मनसे ने कांग्रेस को वोट दिए हैं.इन आरोपों से तिलमिलाए राज ठाकरे ने बाकायदा प्रेस कोंफ्रेंस आयोजित कर खुद यह एलान किया कि अपने सस्पेंड विधायकों का निलंबन वापस करने के लिए ही उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को मनसे के वोट दिलवाए . उन्होंने बताया कि सस्पेंड रहने के कारण उन विधायकों के क्षेत्रों के साथ अन्याय हो रहा था इसलिए उनका बहाल होना जरूरी था. इससे पहले कांग्रेस के नेता मनसे विधायकों के मतों के बदले में किसी तरह के लेन-देन या किसी वादे से इनकार किया था. मगर अब कांग्रेस की पोल खुल गयी है. यह साबित हो गया है कि कांग्रेस अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है. महाराष्ट्र से बाहर के राज्यों से मुंबई आये लोगों के साथ हुए सलूक को कोई कैसे भूल सकता है . शिवसेना और मनसे के कार्यकर्ता समय-समय पर पर प्रान्तीयों पर बेवजह जुल्म ढाते रहते हैं. कांग्रेस सिर्फ कूटनीतिक चाल खेलती है. परप्रांतीयों का हमदर्द होने का नाटक करती है , मगर असलियत में वह पीटने वालों से मिली होती है. परप्रांतीयों पर हुए हमले और उनके खिलाफ जहर उगलने के बाद जब राज ठाकरे को गिरफ्तार किया गया और जिस तरह उनको हाई लाईट कर हीरो बनाया गया तब भी लोगों ने कहा था कि कांग्रेस ही राज ठाकरे को हीरो बना रही है ताकि वह मजबूत होकर शिवसेना के खिलाफ ताकत से खड़े हो जाएँ और वोटों का बंटबारा होकर कांग्रेस को फायदा हो जाए. कांग्रेस की यह चाल कामयाब भी हुई . मनसे के कारण उसके कई विधायक और सांसद जीत गए. कांग्रेस ने जो पद लगाया था उसकी छाया , फल -फूल वह अभी तक इस्तेमाल कर रही है. आखिरकार राज्यसभा चुनाव में भी उसे इसीका फायदा हुआ, मगर सवाल उठता है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए क्या यह परम्परा उचित है. अगर कांग्रेस सत्ता में है तो क्या वह किसी को जन प्रतिनिधि को कभी भी सस्पेंड कर सकती है और कभी भी बहाल कर सकती है . क्या इस तरह की सौदेबाजी से चुने गयी राज्यसभा सदस्य का चुनाव वैध है. क्या विजय सावंत को तुरंत टर्मिनेट नहीं करना चाहिए ? क्या चुनाव आयोग ने राज ठाकरे का बयान सूना है ? क्या वह दखल देकर कांग्रेस के नेताओं और कांग्रेस को नोटिस जारी करेगा ? क्या कांग्रेस की सदस्यता रद्द नहीं कर देनी चाहिए ? कौन देगा इन सवालों का जवाब ? ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब व्यापार करने वाली एक कंपनी बनकर रह गयी है. जहाँ सब कुछ व्सायिक्व्या फायदे के लिए किया जाता है. कांग्रेस का हाथ अब सौदागरों के साथ हो गया है .












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