Wednesday, June 2, 2010

लेफ्ट को 'राईट ' करती ममता
पश्चिम बंगाल के स्थानीय चुनाव के परिणाम आ गए हैं. केन्द्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल क्लीन स्वीप करते हुए 141 सीटों में 135 सीटों का जो रिजल्ट आया उसमें से 95 पर कब्जा जमा लिया है जबकि सीपीएम को एक बड़ा झटका लगा और उसे सिर्फ 33 सीटों से ही इस बार संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस 7 और अन्य के खाते में चार सीटें गई हैं। वार्ड चुनाव में भारी बहुमत से जीतने के बाद ममता ने कहा कि यह मेरी जीत नहीं बल्कि इसका असली हकदार यहां की जनता है, जिसने यह ऐतिहासिक फैसला लिया।
तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा कि अब सीपीएम को शासन करने का कोई हक नहीं है क्योंकि जिस तरह से यहां की जनता ने अपना फैसला सुनाया है उसे देखकर उसे खुद सत्ता छोड़ देनी चाहिए।अब मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की बोलती बंद है . कई सालों से लगातार यहाँ के राज्य पर शासन करने वाले वाम दलों के लिए यह बहुत बड़ा सबक है , और ममता की विजयी आहट ने यह भी एहसास दिला दिया है कि अब वाम दलों का भविष्य खास उज्जवल नजर नहीं आता , ममता ने कांग्रेस को भी इतना बड़ा झटका दिया है कि खुद चिदम्बरम और सोनिया गांधी ने ममता को जीत की बधाइयां दी हैं. यहाँ से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस पहले गठबंधन कर साथ -साथ चुनाव लड़ने वाली थीं, मगर सीटों के बंटबारे को लेकर दोनों में तालमेल नहीं हो पाया और फिर दोनों ने अलग चुनाव लड़ा . अब परिणाम सामने है. दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने राजद और रामविलास पासवान से समझौता नहीं किया था , इसके बावजूद कांग्रेस केन्द्र में सरकार चला रही है, उससे पहले कांग्रेस राजद या रामविलास पासवान से मिलकर चुनाव लड़ा करती थी , इस बार के लोकसभा चुनाव में जब उन दोनो नेताओं ने हेकड़ी दिखाई तो कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ लिया , इससे हुआ ये कि भले ही उसे ज्यादा फायदा नहीं मिला मगर लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान का कद उसने जरूर कर दिया , उन दोनों की हेकड़ी खत्म करने के बाद कांग्रेस को यह गुमान हो गया कि उसे अकेले ही लड़ना चाहिए , अकेले चुनाव लड़कर वह अपनी खोई हुई पुरानी छवि वापस लाना चाहती है , लेकिन पश्चिम बंगाल में उसका यह दांव उलटा पड़ गया, ममता की जादुई उपस्थिति ने कांग्रेस की भी हालत खराब करदी, कोलकाता में महज ७ सीट पर समेत देना यही दर्शाता है . अब कांग्रेस की समझ में बात आयी है कि जब तक पार्टी का संगठन मजबूत नहीं होगा तब तक किसी जादू के बलबूते पर चुनाव नहीं जीता जा सकता, सिर्फ अच्छी उम्मीदवार ही चुनाव जीतने के लिए काफी नहीं होते , पार्टी के पास समर्पित कार्यकर्ताओं की भी फ़ौज होनी चाहिए , जो कि इस वक्त ममता के पास मौजूद है . वाम दलों की जो नीतियां हैं, उनसे जनता खुश नहीं है . जिस तरह से सिंगुर में बुद्धदेव सरकार ने टाटा का पक्ष लिया और किसानों पर लाठियां बरसाई , अब वे लोग अपने बहे हुए खून का हिसाब कर रहे हैं . जब तक वाम पार्टी की सरकार जनता के साथ थीं तब जनता भी उन्हें स्पष्ट बहुमत देकर सरकार में बिठाया करती थी , मगर अब लोगों को लगने लगा है कि लेफ्ट की सरकार राईट काम नहीं कर रही है. वाम पार्टियां और सरकार भी इसकी निष्पक्ष समीक्षा करने के लिए तैयार नहीं है . अब ममता विधानसभा चुनाव कराने की मांग कर रही हैं, हालाकि यह तो संभव नहीं है मगर इससे यह साफ़ हो गया है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव की तैयारियां पूरी कर ली हैं, जो लोग ममता के कैबिनेट बैठक में नहीं जाने का कारण जानना चाहते थे , अब समझ ही गए होंगे कि ममता दीदी को केन्द्र में कम और राज्य में ज्यादा दिलचस्पी हैं, शायद वे मुख्यमंत्री बन्ना चाहती हैं.
और जिस तरह से उनकी पार्टी का लाजवाब प्रदर्शन है, उससे लगता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी यह हसरत भी पूरी हो जायेगी , आखिर लोकतंत्र किसी की बपौती तो है नहीं , जो जनता के साथ होता , जनता उसके साथ चल देती है. क्योंकि -'ये पब्लिक है, सब जानती है '.










No comments: