कमर तोड़ मंहगाई
कुम्भकर्णी नींद में सोई सरकार
मंहगाई का आलम ये है कि मटर की फली (वटाना) १२० रुपये किलो है , जबकि चिकन ७० से ८० रुपये किलो बिक रहा है. भिन्डी का भाव भी आसमान छू रहे हैं. एक किलो के लिए ५० रुपये वसूले जा रहे हैं. सिर्फ वटाना और भिन्डी ही नहीं, हर सब्जी और फल की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हुई हैं.यही हाल दाल और तिलहन का है . मुंबई में जो लोग छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं उनका जीना मुहाल हो गया है. ज्यादातर लोग कर्ज से काम निकाल रहे हैं और जो कर्ज लौटा नहीं पाते, वे लोग निराशा में आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं.कुछ लोग मजबूरी में अपराध का रास्ता चुन लेते हैं. ऐसा नहीं है कि जीवन में काम आने वाली अति आवश्यक वस्तुएं ही मंहगी हैं, बल्कि जो भी चीजें हैं , उन सभी की भाव कई गुना बढ़ गए हैं . उसके अनुपात में तनख्वाह बहुत कम बढ़ी हैं. इस मंहगाई के लिए सीधे तौर पर केन्द्र सरकार जिम्मेदार है. प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं. मंहगाई कम करने की बजाय केन्द्र सरकार वस्तुयों के दाम और भी बढते जा रहे हैं.लेकिन हैरत की बात ये है कि मंहगाई कम करने के बजाय केन्द्र सरकार और ज्यादा बढ़ाना चाहती है. कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं इसलिए भले ही केन्द्र सरकार ने डीजल , पेट्रोल और रसोई गैस के दाम बढाने के फैसले को स्थगित कर दिया है मगर उसका इरादा तो पक्का था . इससे साफ़ जाहिर होता है कि केन्द्र सरकार की दिलचस्पी मंहगाई कम करने में बिलकुल नहीं है. अब तक सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे लगे कि वह सचमुच इस समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत है. केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार सिर्फ भविष्यवाणी करते रहते हैं. या फिर मौसम का बहाना बनाकर देश की इस सबसे बड़ी समस्या से मुंह मोड लिया जाता है. शरद पवार बहाना करते हैं कि खराब मौसम के कारण फसल खराब हो गयी , इस कारन मंहगाई बढ़ रही है. कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जाएगा. मगर सब कुछ ठीक कब होगा ? आखिर क्या कारण है कि यह सरकार हर मोर्चे पर विफल होने के बाद भी सकुशल चल रही है. विपक्ष भी इस मुद्दे को इतनी मजबूती के साथ नहीं उठा पा रहा है , जितना उठाना चाहिए और देश की जनता भगवान भरोसे छोड़ दी गयी है. प्रधानमंत्री सिर्फ इतना करते हैं कि विकास दर का प्रतिशत बताकर लोगों को तसल्ली देते हैं कि हालात नियंत्रण में हैं. उलटे -सीधे आंकड़े पेश कर बताया जाता है कि ज्यादा मंह्गाई नहीं है . मगर लोगों का पेट रोटी से भरता है .चाहे जितने आंकड़े बताओ मगर सच तो आखिर सच ही रहेगा , जब मंहगाई के मुद्दे पर मीडिया केन्द्र सरकार को घेरती है तो वह राज्य सरकारों पर छोड़ देती है. अगर देखा जाए तो ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार है . इसके बावजूद भी मंहगाई का राक्षस जीने नहीं देता. अगर मुनाफाखोरों पर लगाम कसी जाए तो एक हफ्ते में ही मंहगाई जमीन पर आ जायेगी. मुंबई सहित देश भर में दलालों ने सस्ते में माल जमा कर रखा है और कृत्रिम मंहगाई बढ़ाकर वे दौलत कमा रहे हैं. ऐसे लोग ज्यादातर वे होटे हैं जो कांग्रेस पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए चन्दा देते हैं. जब पार्टी जीत जाती है तो वे इसका भरपूर फायदा उठाते हैं. चाहकर भी फिर सरकार उन मुनाफेखोरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाती. अगर केन्द्र सरकार यह स्वीकार करती है कि वह मंहगाई कम करने के प्रयास कर रही है, मगर हो नहीं पा रही तो इससे यह साबित होता है कि उसे सरकार चलाने का कोई अधिकार नहीं है.ऐसी निकम्मी सरकार को विदा करना चाहिए . ऐसा लगता है जैसे सोनिया गांधी इस देश के लोगों को तडपता हुआ देखना चाहती है. वरना वे मंहगाई रोकने के ठोस उपाय नहीं करतीं .
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