Sunday, June 27, 2010

यू.पी. के मंत्रियों की नजर में ब्रह्मा जी बेटी चो....

पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य, ये हैं उत्तर प्रदेश के विशेष मंत्री , विशेष इसलिए क्योंकि ये सभी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के करीबी कहे जाते हैं , इन सभी को बसपा की दूसरी पंक्ति का नेता माना जाता है . जौनपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने राधेश्याम वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी के पांच मंत्रियों समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया गया है। इसमें पत्रिका के संपादक डॉक्टर राजीव रत्न , सुषमा , लेखक अश्विनी कुमार शाक्य और अशोक आनंद भी शामिल हैं। कोर्ट ने पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य हैं। इस प्रकार कुल ९ आरोपियों के विरुद्ध महात्मा गांधी सहित हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करने का मामला दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं. इससे राजनीतिक क्षेत्रों में तूफ़ान उठ खडा हुआ है. विपक्षी पार्टियों को यह ऐसा मुद्दा हाथ लग गया है जिसे वे जमकर भुनाना चाहते हैं. इस मामले से मायावती की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है और उनकी ' सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय ' मुहिम को नुक्सान पहुंचेगा . ऐसे समय में जब मायावती की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से की जा रही थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार दर्शाया जा रहा था , ऐसे समय में सवर्ण समाज को नाराज करने का खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में भुगतना पड सकता है. 'आंबेडकर टुडे नामक जिस पत्रिका के बारे में बवाल मच रहा है उसके मालिक डॉक्टर राजीव रत्न स्वामी प्रसाद मौर्या की करीबी और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त पारसनाथ मौर्या के बेटे हैं. उपरोक्त मंत्रियों का नाम बाकायदा संरक्षक के तौर पर छपता था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी जानकारी इन मंत्रियों को नहीं थी.
क्या है मामला ? - दरअसल लखनऊ से छापने वाली पत्रिका आंबेडकर टुडे में हिंदू धर्म , महात्मा गांधी और देवी -देवताओं के बारे में आपत्ति जनक बातें प्रकाशित होती थीं जैसे कि इसके पृष्ठ 31 पर एक आलेख में लेखक श्री अश्विनी कुमार शाक्य पुत्र श्री पी. एल. शाक्य जिनका पता पत्रिका के अनुसार ‘पगारा रोड, जौरा, जिला मुरैना, मध्य प्रदेश’ अंकित है, के द्वारा जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया है वह अकथनीय है।बानगी देखिये -

वैदिक ब्राह्मण और उसका धर्म शीर्षक से प्रस्तुत तालिका में वे कहते हैं कि हिन्दू धर्म ‘मानव मूल्यों पर कलंक’’ है.

हिन्दू धर्म को ‘‘त्याज्य धर्म’’ बताया गया है, इसे ‘‘भोन्दू और रोन्दू’’ धर्म व ‘‘पापगढ़’’ कहा गया है.

वेद क्रूर, निर्दयी, जंगली, बेवकूफी का म्यूजियम, मूर्खताओं का इन्द्रजाल बताये गये हैं.

हिन्दू धर्मशास्त्र निकृष्ट शास्त्र कहे गये हैं.

33 करोड़ देवता गैंगस्टर, कपटी, षडयंत्री, क्रूर और हत्यारे कहे गये हैं.जोश में आकर वे आगे लिखते हैं कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ‘‘बेटीचो...' है . यह ऐसी गाली है जिसे ज्यों की त्यों प्रकाशित करने के बजाय ... कर दिया गया है. मै २०१० के अंक में छपे इन आपत्तिजनक लेखों के कारण कई जिलों में विरोध प्रदर्शन भी किये गए थे.

दलित बुद्धिजीवी भी नाखुश -मंत्री का बेटा और स्वामीप्रसाद मौर्य का करीबी होने के कारण डॉक्टर राजीव को कई लाख रुपये का सरकारी पुरस्कार दिया गया था, उनकी पत्रिका को भी लाखों के विज्ञापन मिलते रहे हैं . इतना ही नहीं , उनकी शादी के बाद ही उनकी पत्नी को सरकारी अधिकारी बना दिया गया. इस मामले से दलित बुद्धिजीवी भी खुश नहीं हैं. 'ज़िंदा देवी ' जैसी मायावती समर्थक पुस्तक लिखकर चर्चा में आये साहित्यकार दुसाध का मानना है कि जो सच्चे साहित्यकार हैं, उनकी कोई सुधि नहीं लेता , जो चाटुकार हैं, उनको उत्तर प्रदेश सरकार पुरष्कृत कर रही है.

अभिव्यक्ति की आजादी - यह ठीक है कि हर इंसान को अपना दुःख बयान का पूरा अधिकार है. अपनी बात सब कह सकते हैं. अपने विचार रख सकते हैं. मगर किसी को गाली देना गलत है.सच कहा जा सकता है मगर सादगी और गरिमा पूर्वक . अगर ब्रह्मा ने कुछ कुछ गलत किया तो उसे तथ्य्पूर्वक संवैधानिक भाषा में लिखा जा सकता है. अपनी तरफ से असंसदीय भाषा इस्तेमाल करना उचित नहीं है. अगर कहीं किसी देवता ने गलत कार्य किया है तो उसे पुस्तक के नाम , पेज आदि का उदाहरण देकर अपनी बात राखी जा सकती है. अपनी विचारधारा को रखा जा सकता है, उसका समर्थन किया जा सकता है , मगर दुसरे के विचारों को गलत बताना , उसका अपमान करना मानव हित में नहीं है .

समर्थक या विरोधी ?- यह सच है कि जब १४ अप्रैल १९८४ को बहुजन समाज पार्टी के गठन हुआ तो बसपा कार्यकर्ता हिंदू धर्म का उग्र विरोध करते थे, देवी -देवताओं की हरकतों को , मनुवादी चालों को उजागर किया करते थे. विषमता फैलाने वाले, पाखण्ड रचने वाले, छूआछात फैलाने वाले तत्वों का खुलासा करते थे ,उस समय बसपा का नारा हुआ करता था-'बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय '. मगर मायावती ने इसमें संसोधन कर नया नारा दिया-'सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय '. इसको सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया. परिणाम भी सुखद आया. बसपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी. अब , जबकि देश का बहुजन समाज मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रहा है ऐसे में डो समुदाय के बीच नफरत की खाई पैदा करना बसपा के विरोधियों का काम है या समर्थकों का ? सवाल पूरे बहुजन संमाज का है और जवाब है सिर्फ बहनजी के पास.









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