Wednesday, June 30, 2010

बलात्कार के दाग

बलात्कार सामाजिक और कानूनी रूप से गलत है ही साथ ही शारीरिक रूप से भी तकलीफदेह होता है. अगर बलात्कार से पीड़ित लड़की एड्स या फिर ऐसे ही किसी रोग से ग्रसित है तो बलात्कारी को यह रोग लग सकता है और अगर बलात्कारी को इस तरह का कोई रोग है तो पीड़ित लड़की /महिला इसकी शिकार हो सकती है. इस तरह उसका पूरा जीवन खराब हो सकता है. जब कोई पीड़ित शिकायत करती है तो बलात्कार पीड़ितों से पुलिस भी बहुत खतरनाक ढंग से पेश आती है और आनी भी चाहिए. दोष सिद्ध होने पर इसकी सजा भी उम्रकैद तक हो सकती है . इस प्रकार क्षणिक आवेग के कारण बलात्कार करने वाला अपनी भी जिंदगी खराब कर्ता है और उस बेगुनाह की भी . इसके अलावा बलात्कार करने वाले का परिवार कभी भी समाज में ऊंचा सिर करके नहीं चल पाता. उसके परिवार को सभी लोग शक और अनादर की निगाह से देखते हैं. इसलिए स्कूल, कोलेज , ट्यूशन आदि में भी बच्चों को बचपन से ही इन सब खतरों से आगाह करने की जरूरत है. सरकार इस तरह के विज्ञापन करे जिससे गलत काम करने वाले को सद्बुद्धि आये. वह इस गुनाह को करने से पहले एक नहीं, कई-कई बार डरे. जब कोई दुष्ट विदेशी मेहमान के साथ यह दुष्कर्म कर्ता है तो उसके और उसके परिवार के साथ-साथ समूचा देश भी शर्मिन्दा होता. है. अखबार और टी.वी. में इस सम्बन्ध में समाचार /आलेख आदि प्रकाशित होते हैं. समूचे विश्व में देश का नाम खराब होता है इसलिए ऐसे मामलों में दुष्कर्म की भयावहता और बढ़ जाती है. अब समय आ गया है जब बलात्कार के मामलों में सरकार को नया और सख्त क़ानून बनाने के बारे में सोचना चाहिए . नया मामला दिल्ली का है . देश की राजधानी में एक ब्राजील की छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गया.

पुलिस ने 27 साल की ब्राजीलियाई महिला किराएदार के साथ बलात्कार के आरोपी मकान मालिक को गिरफ्तार कर लिया है।

मेडिकल रिपोर्ट में महिला के साथ बलात्कार की पुष्टि होने के बाद यह गिरफ्तारी हुई। हालांकि उन्होंने आरोपी की पहचान बताने से इंकार कर दिया।

चितरंजन पार्क में हुई यह घटना मंगलवार प्रकाश में आई जब महिला ने शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया कि कॉफी में नशीला पदार्थ देकर उसके मकान मालिक ने उसके साथ दो बार बलात्कार किया।

नोएडा के एक निजी संस्थान से जनसंचार की पढाई कर रही यह महिला जून के पहले हफ्ते में भारत आई थी। 19 जून तक वह किराए के मकान में थी। महिला ने दावा किया कि 20 जून को उसका मकान मालिक उससे मिलने आया और उसे कॉफी पीने का प्रस्ताव दिया। कॉफी पीने के बाद वह बेहोश हो गई जिसके बाद मकान मालिक ने उसके साथ बलात्कार किया। उस व्यक्ति ने कथित तौर पर 21 जून को भी बलात्कार किया।

27 जून को जब उसने बलात्कार का प्रयास किया तो महिला ने विरोध किया और मकान मालिक को परिसर छोड़कर जाने को कहा।बलात्कार की इस घटना से अपना देश भी विदेशों में शर्मशार हुआ है . यह सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा बलात्कार का मामला नहीं है बल्कि ब्राजील के समाचार पत्रों में इसे इस तरह से लिखा जाएगा 'भारतीय ने किया ब्राजील की छात्रा से बलात्कार '. इस तरह उस दुष्कर्मी के साथ अपने प्यारे देश का नाम भी खराब होता है. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी पीड़ित महिला को न्याय दिलाने की बात कर चुकी हैं , यह अच्छी बात है. इससे पहले गोआ में घूमने आई विदेशी लड़कियों के साथ भी इस तरह की कई घटनाएं हुई थीं. एक डबल मामला तो दो -चार दिन पहले ही सामने आया था. पर्यटन स्थलों पर ऐसी घटनाएं अक्सर होती रहती हैं जो चिंताजनक हैं. इसका सख्त समाधान निकालना ही होगा, वरना यह बदनुमा दाग बार -बार लगते रहेंगे .







Monday, June 28, 2010

तन्हाई का दर्द और निराशा मी आत्महत्या

कभी-कभी ऐसा होता है कि इंसान भीड़ में भी अपने आपको तनहा समझ लेता है . इस तन्हाई को दूर करने के लिए वह नशे को अपना साथी बनाना चाहता है. सिगरेट का सहारा , शराब का सहारा और आखिर में आत्महत्या या मौत उसका स्वागत करती है . वैसे तो यह जीवन के कई क्षेत्रों में सदियों से होता चला आ रहा है और आज भी हो रहा है, निश्चित तौर पर पर कहीं न कहीं कभी न कहीं मगर आगे भी होता ही रहेगा. अँधेरी में मशहूर मोडल विवेका बाबाजी की साथ भी तो यही हुआ. वह अँधेरी के फ्लेट में अकेले रहती थी. कहा जा रहा है कि उसने नशे की हालत में आत्महत्या करली, उसकी लाश के पास से पुलिस ने सिगरेट के बहुत सारे टोटे भी बरामद किये.मॉडल विवेका बाबाजी की कथित आत्महत्या मामले में उनके प्रेमी गौतम वोहरा ने अदालत में बयान दिया है कि उनका कभी भी विवेका के साथ शादी का इरादा नहीं था। वे दोनो सिर्फ एक अच्छे दोस्त थे। इससे अधिक कुछ भी नहीं। इस केस में शुरु से ही विवेका के दोस्त गौतम वोरा का नाम सामने आ रहा है। शुक्रवार को विवेका की खुदकुशी के बाद से ही गौतम लापता था, उसका फोन भी बंद था। खार पुलिस ने गौतम को तत्काल थाने में रिपोर्ट करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद वह सोमवार को अदालत में पेश हुआ।
दूसरी ओर, विवेका की बिसरा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कथित आत्महत्या के पहले उसने जमकर नींद की गोलियां खाई थी। विवेका का जुहू के एक शवदाह में अंतिम संस्कार कर दिया गया। विवेका की मौत से पूरा परिवार सदमे में है।विवेका बाबाजी की कथित खुदकुशी में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। पुलिस को अब उनकी बॉडी से से भारी मात्रा में नींद की गोलियों के साथ हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिला। जिसका मिश्रण किसी जहर से कम नहीं है। पुलिस अब उनके पांचों पूर्व प्रेमी से पूछताछ की तैयारी कर रही है। पुलिस को शक है कि उन्होंने खुदकुशी नहीं बल्कि उनकी हत्या हुई है। जिसमें कोई भी शामिल हो सकता है।खार पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर मंगेश पोटे ने बताया कि मॉडल की हत्या के संबंध में जल्दी उनके सभी प्रेमियों से बातचीत की जाएगी। इसके अलावा हम इस एंगल से भी जांच कर रहे हैं कि कहीं बाबाजी को मारने के लिए जहर तो नहीं दिया गया था। पुलिस के अनुसार, विवेका की बिसरा रिपोर्ट में कुछ ऐसे तत्व मिले हैं जो कि जहर की तरफ इशारा कर रहे हैं। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट इशारा कर रही है कि हो सकता है उसने आत्महत्या नहीं की हो बल्कि उसका क़त्ल किया गया है. पुलिस जांच में जुटी है और जल्द ही यह उजागर हो जाएगा कि असलियत क्या है ,मगर सच जो हो यह भी कटु सत्य है कि अगर विवेका बाबाजी अकेली न रह रही होती और अपने परिवार के साथ होती तो शायद यह हादसा नहीं हो पाता . असल में आज की युवा पीढ़ी चमक -दमक भरी जिंदगी जीने के लिए इतनी बेताब है कि उसके और उसके परिवार के विचारों में अचानक जमीन -आसमान का अंतर आ जाता है . यही वजह है कि फैशन या फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुक रखने वाली ज्यादातर लड़कियां अपने परिवार से अलग रहती हैं. ऐसे में उनके सम्बन्ध हम उम्र या हमपेशा लड़कों से हो जाते हैं. काम के तनाव के कारण वे नशे की आदी हो जाती हैं और नशे में वे क्या कर रही हैं , इसका पता बहुत बाद में चलता है . जब तक वे मामले को संभालने की कोशिश करती हैं तब तक सब कुछ फिनिश हो जाता है . बहुत देर हो चुकी होती हैं. दिल्ली की एक मोडल को दिल्ली की सड़कों पर पागलों की तरह घुमते हुए कई टी.वे चैनलों ने दिखाया था. इसी तरह पहले भी दो मोडल आत्महत्या कर चुकी हैं और कईयों को मौत के घाट उतारा जा चुका है .पता नहीं पुलिस इस मामले में क्या जांच रिपोर्ट पेश करती है मगर यह सत्य है कि तन्हाई का दर्द और निराशा फिल्म इंडस्ट्री और फैशन जगत से जुड़े लोगों को आत्महत्या की तरफ धकेल रहा है . इस सिलसिले को ये लोग खुद ही रोक सकते हैं. अगर हम हमारे सपनों की ऊंचाई की तरह हौंसले को भी ऊंचा रखें तो इस स्थिति से आसानी से लड़ा जा सकता है. सफलता बुरी चीज नहीं है , मगर उसके लिए घर परिवार का त्याग जन बूझकर नहीं करना चाहिए . क्योंकि घर में एक दुसरे से अपना दुःख कहने -सुनने से भी वह हल्का हो जाता है. यह समझना चाहिए कि इस धरती पर हर समस्या का समाधान मौजूद है. मालिक ने हर इंसान को ऐसी शक्ति दी है , बस उसका उपयोग करना आना चाहिए .

Sunday, June 27, 2010

यू.पी. के मंत्रियों की नजर में ब्रह्मा जी बेटी चो....

पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य, ये हैं उत्तर प्रदेश के विशेष मंत्री , विशेष इसलिए क्योंकि ये सभी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के करीबी कहे जाते हैं , इन सभी को बसपा की दूसरी पंक्ति का नेता माना जाता है . जौनपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने राधेश्याम वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी के पांच मंत्रियों समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दिया गया है। इसमें पत्रिका के संपादक डॉक्टर राजीव रत्न , सुषमा , लेखक अश्विनी कुमार शाक्य और अशोक आनंद भी शामिल हैं। कोर्ट ने पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, परिवार कल्याण मंत्री बाबू कुशवाहा, सहकारिता मंत्री व बसपा अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य, ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पारसनाथ मौर्य हैं। इस प्रकार कुल ९ आरोपियों के विरुद्ध महात्मा गांधी सहित हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करने का मामला दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं. इससे राजनीतिक क्षेत्रों में तूफ़ान उठ खडा हुआ है. विपक्षी पार्टियों को यह ऐसा मुद्दा हाथ लग गया है जिसे वे जमकर भुनाना चाहते हैं. इस मामले से मायावती की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची है और उनकी ' सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय ' मुहिम को नुक्सान पहुंचेगा . ऐसे समय में जब मायावती की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से की जा रही थी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार दर्शाया जा रहा था , ऐसे समय में सवर्ण समाज को नाराज करने का खामियाजा उन्हें अगले चुनाव में भुगतना पड सकता है. 'आंबेडकर टुडे नामक जिस पत्रिका के बारे में बवाल मच रहा है उसके मालिक डॉक्टर राजीव रत्न स्वामी प्रसाद मौर्या की करीबी और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त पारसनाथ मौर्या के बेटे हैं. उपरोक्त मंत्रियों का नाम बाकायदा संरक्षक के तौर पर छपता था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी जानकारी इन मंत्रियों को नहीं थी.
क्या है मामला ? - दरअसल लखनऊ से छापने वाली पत्रिका आंबेडकर टुडे में हिंदू धर्म , महात्मा गांधी और देवी -देवताओं के बारे में आपत्ति जनक बातें प्रकाशित होती थीं जैसे कि इसके पृष्ठ 31 पर एक आलेख में लेखक श्री अश्विनी कुमार शाक्य पुत्र श्री पी. एल. शाक्य जिनका पता पत्रिका के अनुसार ‘पगारा रोड, जौरा, जिला मुरैना, मध्य प्रदेश’ अंकित है, के द्वारा जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया है वह अकथनीय है।बानगी देखिये -

वैदिक ब्राह्मण और उसका धर्म शीर्षक से प्रस्तुत तालिका में वे कहते हैं कि हिन्दू धर्म ‘मानव मूल्यों पर कलंक’’ है.

हिन्दू धर्म को ‘‘त्याज्य धर्म’’ बताया गया है, इसे ‘‘भोन्दू और रोन्दू’’ धर्म व ‘‘पापगढ़’’ कहा गया है.

वेद क्रूर, निर्दयी, जंगली, बेवकूफी का म्यूजियम, मूर्खताओं का इन्द्रजाल बताये गये हैं.

हिन्दू धर्मशास्त्र निकृष्ट शास्त्र कहे गये हैं.

33 करोड़ देवता गैंगस्टर, कपटी, षडयंत्री, क्रूर और हत्यारे कहे गये हैं.जोश में आकर वे आगे लिखते हैं कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ‘‘बेटीचो...' है . यह ऐसी गाली है जिसे ज्यों की त्यों प्रकाशित करने के बजाय ... कर दिया गया है. मै २०१० के अंक में छपे इन आपत्तिजनक लेखों के कारण कई जिलों में विरोध प्रदर्शन भी किये गए थे.

दलित बुद्धिजीवी भी नाखुश -मंत्री का बेटा और स्वामीप्रसाद मौर्य का करीबी होने के कारण डॉक्टर राजीव को कई लाख रुपये का सरकारी पुरस्कार दिया गया था, उनकी पत्रिका को भी लाखों के विज्ञापन मिलते रहे हैं . इतना ही नहीं , उनकी शादी के बाद ही उनकी पत्नी को सरकारी अधिकारी बना दिया गया. इस मामले से दलित बुद्धिजीवी भी खुश नहीं हैं. 'ज़िंदा देवी ' जैसी मायावती समर्थक पुस्तक लिखकर चर्चा में आये साहित्यकार दुसाध का मानना है कि जो सच्चे साहित्यकार हैं, उनकी कोई सुधि नहीं लेता , जो चाटुकार हैं, उनको उत्तर प्रदेश सरकार पुरष्कृत कर रही है.

अभिव्यक्ति की आजादी - यह ठीक है कि हर इंसान को अपना दुःख बयान का पूरा अधिकार है. अपनी बात सब कह सकते हैं. अपने विचार रख सकते हैं. मगर किसी को गाली देना गलत है.सच कहा जा सकता है मगर सादगी और गरिमा पूर्वक . अगर ब्रह्मा ने कुछ कुछ गलत किया तो उसे तथ्य्पूर्वक संवैधानिक भाषा में लिखा जा सकता है. अपनी तरफ से असंसदीय भाषा इस्तेमाल करना उचित नहीं है. अगर कहीं किसी देवता ने गलत कार्य किया है तो उसे पुस्तक के नाम , पेज आदि का उदाहरण देकर अपनी बात राखी जा सकती है. अपनी विचारधारा को रखा जा सकता है, उसका समर्थन किया जा सकता है , मगर दुसरे के विचारों को गलत बताना , उसका अपमान करना मानव हित में नहीं है .

समर्थक या विरोधी ?- यह सच है कि जब १४ अप्रैल १९८४ को बहुजन समाज पार्टी के गठन हुआ तो बसपा कार्यकर्ता हिंदू धर्म का उग्र विरोध करते थे, देवी -देवताओं की हरकतों को , मनुवादी चालों को उजागर किया करते थे. विषमता फैलाने वाले, पाखण्ड रचने वाले, छूआछात फैलाने वाले तत्वों का खुलासा करते थे ,उस समय बसपा का नारा हुआ करता था-'बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय '. मगर मायावती ने इसमें संसोधन कर नया नारा दिया-'सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय '. इसको सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया. परिणाम भी सुखद आया. बसपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी. अब , जबकि देश का बहुजन समाज मायावती को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रहा है ऐसे में डो समुदाय के बीच नफरत की खाई पैदा करना बसपा के विरोधियों का काम है या समर्थकों का ? सवाल पूरे बहुजन संमाज का है और जवाब है सिर्फ बहनजी के पास.









Friday, June 25, 2010

फिर बढे डीजल , पेट्रोल ,केरोसिन और रसोई गैस के दाम, और दो कांग्रेस को वोट

एक बार फिर से डीजल , पेट्रोल , केरोसिन और रसोई गैस के दाम बढा दिए गए हैं. इसके अलावा सरकार ने सब्सिडी भी हमेशा के लिए खत्म कर दी है. इससे अब भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय बाजार के हिसाब से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें वसूली जायेंगी. इससे पहले भी यह सरकार कई बार दाम बढा चुकी है. हाल ही में सी एन जी, एल पी जी के दाम बढाए गए हैं . इसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि मुंबई , दिल्ली में आटो, टैक्सी के दाम बढ़ गए . अब होगा ये कि हर चीज और भी मंहगी हो जायेगी . दूध, दही , घी , पनीर, सभी तरह की सब्जियां, प्राइवेट वाहनों का भाडा सब पर मंहगाई का भार बढ़ जाएगा . पहले से ही मंहगाई से लोगों का बुरा हाल था . किसी तरह से घर का किचन चलाया जा रहा था , अब वो भी मुश्किल हो जाएगा. खाने की थाली में अब न जाने क्या बचेगा . ई जी ओ एम् की कीमत बढाने की घोषणा से देश सन्न हो गया है. केन्द्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी ने एक दिन पहले ही प्रणव मुखर्जी से मिलकर अपील की थी कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें नहीं बढनी चाहिए . विरोध स्वरूप वे कैबिनेट की बैठक में भी नहीं गयी थीं. मगर उनके विरोध का कोई असर नहीं हुआ. कीमतें आखिरकार बढ़ा दी गईं, अब ममता क्या करेंगी ? क्या वे मंत्रीपद छोड़ देंगी ? क्या उनका विरोध सच्चा था , या महज ड्रामा था ? अगर ड्रामा नहीं था तो उन्होंने मंत्रीपद छोड़ क्यों नहीं दिया ? वे चाहें तो सरकार गिराई जा सकती है. उनेहं बस पहल करने की जरूरत है. मगर सत्ता का सुख जनता के लिए छोड़ना बहुत मुश्किल काम होता है. हमारे नेता सिर्फ जनता की भलाई करने का नाटक करते हैं. जब वे नाटक करने भर से ही सत्ता का सुख भोग सकते हैं तो उन्हें सचमुच जनता की भलाई करने की क्या जरूरत हा. कांग्रेसियों को मालूम है कि भारत की जो जनता वोट देती है , वह ज्यादातर बिकाऊ या भडकाऊ है. किसी ने जातिवाद का नारा बुलंद किया तब भड़क गयी. अपना कीमती वोट जातिवाद की राजनीति करने वालों को दे दिया, और किसी साम्प्रदायिक पार्टी ने धर्म का नारा दिया तब भी आसान से बहाल जाती है, अपने वोट सम्प्रदाय के नाम पर समर्पित कर देती है.रही सही कसर नोटों से पूरी हो जाती है. कांग्रेस के लोग आराम से उन लोगों के वोट खरीद लेते हैं. जो लोग अपना वोट बेचते हैं वे एक दो दिन तो मुर्ग मसल्लम का स्वाद चखते हैं, दारु पीने को मिलती है मगर अगले पांच सालों तक नेता उनके वोट वसूलकर उनका खून चूसते हैं. काँग्रेस ने आम आदमी के हित का वादा करके लोगो से वोट वसूले थे, अब उसी जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है. पहले से ही जो लोग दाने -दाने को मोहताज थे , उन पर जानलेवा मंहगाई का शिकंजा कस दिया गया है.भाजपा ने इस बढोतरी को जनता को तहस -नहस करने वाला कदम बता रही है. उसने पूरे देश में आंदोलन करने का एलान किया है . भाजपा ने कहा है कि कांग्रेस देश के लोगों के साथ अन्याय कर रही है. इस बार भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुप हैं. भले ही सोनिया गांधी इस देश में जन्मी नहीं है , यहाँ के बारे में ज्यादा नहीं जानतीं, मगर राहुल गांधी तो यहाँ की गरीबी और बेरोजगारी से अच्छी तरह से परिचित हैं. वे अपनी सरकार से इस सम्बन्ध में बात क्यों नहीं करते ? आखिर इतनी मंहगाई बढाने से कांग्रेस को मिलने वाला क्या है ? ऐसा लगता है कि कांग्रेस सिर्फ कुछ चुनिन्दा दलालों, कारपोरेट घरानों और मुनाफेखोरों की भलाई के बारे में ही सोचती है. ऐसी निकम्मी सरकार को एक पल भी पावर में रहने का अधिकार नहीं है. देशवासियों में अगर ज़रा भी नैतिकता है तो अगली बार चाहे किसीको भी दें मगर कांग्रेस और उसके सहयोगियों को हरगिज वोट नहीं करें. वोट के खरीदारों को एक बार यह एहसास कराने का वक्त आ गया है कि हमारे वोटों से चुने जाने वालों को बाप बनने का अधिकार नहीं है. जिसे हम जन्म देते हैं वो हमारी औलाद होती है. हमारे वोटों से मंत्री , मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री बनने वालों को याद दिलाना होगा कि वे हमारी वोटों से पैदा हुए हैं , इसलिए वे बेटे हुए और बेटे बनकर रहें तो बेहतर वरना अगली बार लायक औलाद पैदा की जायेगी

























Thursday, June 24, 2010

विचार मंच
जिन्ना अब धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं क्या ?
खबर है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह फिर से भाजपा में शामिल होने वाले हैं
बहुत संभव है कि इस लेख को प्रकाशित होने से पहले या कुछ देर /दिन बाद वे शामिल ह भी जाएँ. ये वही जसवंत सिंह हैं जिन्होंने अपनी पुस्तक में पाकिस्तान के संस्थापक और वहाँ के पूर्व शासक मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताया था. उनकी पुस्तक आते ही ऐसा बवाल मचा कि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हांलाकि उन्होंने कोई नई बात नहीं कही अथवा लिखी थी. इससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ़ कर चुके थे. मगर उस मामले और जसवंत सिंह के मामले में अलग-अलग मापदंड अपनाए गए. जब पार्टी एक है तो पार्टी के विधान दो कैसे हो सकते हैं ? यह मामला उस समय खूब उठा था. यहाँ तक कि भाजपा के तत्कालीन वरिष्ठ नेता और सुप्रसिद्ध पत्रकार अरुण शौरी ने भी इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. उस समय बात तो यहाँ तक कही गयी थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की इच्छा के विरुद्ध उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया . इसी तरह इससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री कल्याण सिंह और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. उससे भी पहले भाजपा का थिंक टेंक कहे जाने वाले गोविन्दाचार्य को पार्टी से निकाल बाहर किया गया. भाजपा से निकले इन सभी नेताओं ने खूब हाथ पैर मारे , कल्याण सिंह ने कभी जाट नेता अजीत सिंह का हाथ थामा तो कभी उन्होंने मुलायम सिंह यादव् से गठबंधन किया . मगर अपने बेटे और शिष्या को विधायक बनाने के अलावा कुछ खास करिश्मा नहीं दिखा पाए. अब तो वे अपनी खुद की पार्टी भी बना चुके हैं लेकिन उनके जिले और गिने -चुने क्षेत्रों के अलावा अभी तक वे अपनी पार्टी का संगठन तक भी नहीं बना पाए हैं. उमा भारती भी अपने पार्टी का गठन कर चुनाव लड़,लडवा और हार चुकी हैं. इसके बावजूद यह तथ्य उभरकर सामने आया कि भाजपा से निकले हुए लोग भले ही अकेले राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक राजनीति में कोई तीर नैन मार पाए मगर इन्होने भाजपा का बहुत नुक्सान पहुंचाया . अगर ये लोग भाजपा में होते तो निश्चित तौर पर भाजपा का हाल कुछ अलग ही होता. हो सकता है कि इस समय केन्द्र में भाजपा की सरकार भी होती . क्योंकि ये सभी नेता अपने -अपने प्रदेशों के धुरंधर नेता हुए करते थे मगर भाजपा की आपसी कलह ने दिग्गजों को पार्टी से बाहर करवा दिया. इसी गुटबाजी के कारण भाजपा हर जगह से हारती गयी. उत्तर प्रदेश में वह तीसरे -चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गयी. केन्द्र में दो -दो बार मुंह की खानी पडी. इन्हीं सब कारणों से अब आर एस एस और भाजपा के रणनीतिकारों को अपने पुराने साथियों की याद सताने लगी है. इसी वजह से छत्तीस गढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के निजी कार्यक्रम के बहाने लालकृष्ण आडवाणी अब उमा भारती को अपने हेलिकोप्टर में उनके घर ले जा रहे हैं. इधर जसवंत सिंह के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए गए हैं. इसी प्रकार कल्याण सिंह पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए गए हैं. पिछले दिनों न्भाज्पा के राष्ट्रे अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी पार्टी के अंदर गुटबाजी होने की बात स्वीकार की थी . अगर भाजपा को अपना ख्या हुया पुराना वैभव वापस लाना है तो उसे अपने साथियों को तो मनाकर घर लाना ही होगा साथ ही यू पी ए सरकार की जन विरोधी नीतियों को घर -घर उजागर करना होगा . साथ ही देश की जनता को यह भी बताना होगा कि आखिर उसके पास ऐसी कौन सी अच्छी नीतियां हैं,जिनसे वह बेहतर सरकार दे सकती है. भाजपा को एक बात अच्छी तरह से सोच लेनी चाहिए के देश के वोटर अब दस साल पहले जैसे वोटर नहीं रहे. अब वे सिर्फ सवाल उठाने से खुश नहीं होते बल्कि अब वे उन सवालों के जवाब भी चाहते हैं.अगर भाजपा के रणनीतिकार यह सोचते हैं कि राम या धर्म के नाम पर वे लोगों की भानाओं को भडका सकते हैं और उन्हीं भावनाओं के रथ पर सवार होकर देश पर शासन कर लेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है. अब राम से ज्यादा रोटी और भावनाओं से ज्यादा विकास महतवपूर्ण हो चूका है. कांग्रेस की तरह दुश्मनों के वोट बाँट कर या वोट खरीदने के घृणित खेल को अब कोई नहीं दोहराना चाहेगा , मगर मतदाता भाजपा की तरफ तभी मुडेंगे जब उसके नेता संगठित रहेंगे और कांग्रेस की कमर तोड़ मंहगाई , सरकारी महकमे में जानलेवा भ्रष्टाचार, नक्सलवाद , उग्रवाद , आतंकवाद आदि को उजागर कर उसके ठोस इलाज का दावा और वादा करेंगे साथ ही यह भरोसा भी दिलाएंगे कि वे पाना वादा अवश्य पूरा करेंगे.




Wednesday, June 23, 2010

कब गिरफ्तार होंगे मासूम बच्चियों के हत्यारे ?
मुंबई के कुर्ला क्षेत्र में एक के बाद एक तीन मासूम बच्चियों की आबरू लूटने के बाद बेरहमी से ह्त्या कर दी गयी है. कार्रवाई के नाम पर स्थानीय पुलिस इन्स्पेक्टर प्रकाश काले का तबादला कर दिया गया है. ७९ लोगों को निर्वस्त्र कर जांच की गयी, मेडिकल कराया गया और ७० लोगों का डी एन ए टेस्ट करवाया गया है. संदिग्धों के स्केच जारी किये गए हैं और कई टीमों का गठन किया गया है . खुद मुंबई पुलिस आयुक्त संजीव दयाल आला अधिकारियों के साथ बैठक कर चुके हैं , इसके बावजूद बलात्कारी हत्यारे अभी तक पकड़ से दूर हैं. स्कोट लेंड यार्ड के बाद पूरे विश्व में मुंबई पुलिस को सबसे ज्यादा सक्षम माना जाता रहा है. मगर इस घटना ने इस किवदंती पर पूर्ण विराम लगा दिया है. इतने ज्यादा लोगों की जांच करने से साफ़ हो जाता है कि अभी तक पुलिस अँधेरे में ही तीर मार रही है. कोई ठोस सुराग नहीं मिल पाया है . पूरा पुलिस महकमा जैसे फेल सा हो गया है. कुर्ला के लोगों का पुलिस से भरोसा उठ चुका है. वे डरे सहमे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर क्या करें . पुलिस की नाकामी से उनका डर और भी ज्यादा बढ़ता जा रहा है . लोग अपने बच्चों को अकेला छोड़ने से डर रहे हैं. जो लोग रोजाना कमाते हैं , रोजाना खाते हैं , उनके लिए बच्चों की देखभाल करना बड़ा मुश्किल हो गया है. अब यहाँ पर राजनीति भी शुरू हो गयी है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने कुर्ला का दौरा कर गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग की है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने सैकड़ों लोगों का मोर्चा निकालकर पुलिस पर दवाब बनाया . लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर अभी तक पुलिस को इस मामले में सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है . ऐसा कौन सा अपराधी या आपराधिक गिरोह है जिसके हौंसले इतने बुलंद हैं कि वह वारदात पर वारदात को अंजाम दिए जा रहे हैं .ऐसे चुनौती देने वाले की गर्दन अभी तक क़ानून के लंबे हाथों से दूर क्यों है ? ये ऐसे सवाल हैं जिनसे आजकल हर मुम्बईकर जूझ रहा है . अगर इसकी जड़ में जाएँ तो पता चलेगा कि कहीं न कहीं इसके लिए पुलिस ही जिम्मेदार है. कुर्ला सहित मुंबई के बहुत से इलाकों में वीडियो पार्लर खुलेआंम चलाये जा रहे हैं. वहाँ पर ब्लू फ़िल्में धडल्ले से चलाई जा रही हैं. सभी नियम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाकर ये सब किया जा रहा है . कम उम्र के लड़कों को बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए उकसाने में इन वीडियो पार्लर का भी बहुत बड़ा योगदान है और ये वीडियो पार्लर ऐसे ही नहीं चलाये जाते बल्कि इसलिए पुलिस को बाकायदा हफ्ता दिया जाता है . यहाँ तक कि इलाके के गुंडे और नेता भी इन वीडियो पार्लर चलाने वालों से हफ्ता वसूलते हैं. अगर मुंबई पुलिस चाहती है कि बलात्कार और क़त्ल की वारदातों पर सचमुच काबू पाना है तो सबसे पहले मुंबई और आसपास के क्षेत्रों से उन वीडियों पार्लर को बंद कराये जाने की जरूरत है जिसके कारण युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है. जिस प्रकार गृह मंत्री आर आर पाटिल ने लेडिज बार बंद कराने में मेहनत की थी , वैसे ही उन्हें सख्ती से इन वीडियो पार्लर को हटाना चाहिए . प्रत्येक इलाके के सीनियर इन्स्पेक्टर को इसके लिए जवाबदेही देनी चाहिए . तब जाकर इस तरह की घटनाओं में कमी आएगी. अब अगर मुंबई पुलिस को अपनी इज्जत बचानी है तो कुर्ला सीरियल किलिंग प्रकरण के अपराधियों को जल्द से जल्द हथकड़ी लगानी चाहिए .












Monday, June 21, 2010

जातिवाद की आग में धधकती मोहब्बत

ओनर किलिंग के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट को सुध आई है . सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में ९ राज्यों को नोटिस जारी किये गए हैं. हरियाणा और दिल्ली में कल दो अलग-अलग स्थानों पर चार प्रेमी-प्रेमिकाओं को मौत के घाट उतार दिया गया. इन चारों का गुनाह इतना ही था कि इन्होने जाति , गोत्र आदि की सीमाओं को लांघकर एक दूसरे से प्रेम किया था और साथ-साथ जिंदगी बिता रहे थे .दिल्ली के अशोक विहार के ब्लॉक नंबर आई में रहने वाले एक दंपती की हत्या कर दी गई। महिला की लाश फ्लैट नंबर १/१६७ से मिली है। जबकि उसके पति की लाश बाहर खड़ी कार के पास से पुलिस ने बरामद की। दोनों गुड़गांव की एक कंपनी में काम करते थे।
2006 में राजपूत जाति के कुलदीप सिंह ने गूजर समुदाय की मोनिका से प्रेम विवाह किया था। दोनों ने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ शादी की थी। तभी से दोनों पक्षों में तनातनी चल रही थी। इसका अंत उन दोनों के अंत के साथ हुआ. मोनिका की गूजर जाति के लोगों को यह बात नागवार गुजरती थी कि राजपूत समाज का लड़का उनका दामाद बने. ये बात अलग है कि कुलदीप और मोनिका एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे और दोनों शादी के बंधन में बंधकर अलग रह रहे थे. मगर मोहब्बत के दुशमनों को यह बात भी रास नहीं आई. उन्हें यह गवारा नहीं था कि वे दोनों एक साथ रहें. इसलिए उन दोनों की बेरहमी से ह्त्या कर दी गयी.
ऑनर किलिंग के लिए कुख्यात हरियाणा में एक और प्रेमी जोड़े की जान ले ली गई। जिले के नीमड़ीवाली गांव में एक छात्रा और उसके हम उम्र युवक की लाशें एक मकान में शहतीर पर लटकी मिलीं। जान गंवाने वाली इंटर की छात्रा मोनिका बोहरा (18) नीमड़ीवाली के दलवीर सिंह की बेटी थी जबकि युवक प्रदीप (19) मानहेरू गांव के जयभगवान का बेटा था। प्रदीप नीमड़ीवाली में अपने मामा के साथ दूध का काम करता था।इन दोनों का प्रेम उनके घरवालों को रास नहीं आरहा था. इसी कारण दोनों को पहले समझाया गया, और जब वे अलग नहीं हुए तो उन्हें हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया. इस तरह एक ही दिन में दो अलग-अलग राज्यों में चार प्रेमी जोड़ों की ह्त्या कर दी गयी. सुप्रीम कोर्ट ने ओनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं के सन्दर्भ में ९ राज्यों को नोटिस भेजे हैं, मगर सरकारें खामोश हैं. राज्य सरकार इस मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रही हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा समस्या को हल करने की बजाय उसे और बढ़ावा दे रहे हैं. राहुल गांधी और सोनिया गांधी की नाराजगी के बावजूद हुड्डा इस समस्या के समाधान के लिए चिंतित/प्रयासरत दिखाई नहीं देते. अगर धायं से देखा जाए तो इस समस्या की जड़ में जातिवाद का जहर भरा हुआ है. खुद की जाति को श्रेष्ट समझना और सामने वाले की जातो निम्न समझना ही मूल विवाद की जड़ है. दिल्ली , राजस्थान , हरियाणा , उत्तर प्रदेश की सरकारों को महाराष्ट्र सरकार से सबक सीखना चाहिए . महाराष्ट्र की सरकार की तरफ से अंतरजातीय विवाह करने वालों को ५० हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. यानि कि अगर अगर कोई लड़का या लड़की अपने से दुसरी जाति के लड़का या लड़की से विवाह करते हैं तो तो सरकार उन्हें ५० हजार रुपये का इनाम देती है. इस कारण वहां पर ओनर किलिंग जैसी घटनाएं न के समान होती हैं , या तो होती ही नहीं हैं. इसी तरह अगर दूसरे राज्य की सरकारें भी अंतरजातीय /अंतरधर्मीय विवाहों को प्रोत्साहन दे, और जो लोग परें करने वालों को परेशान करते हैं उन्हें सख्त दंड दें तो समस्या का समाधान हो सकता है.लेकिन वहां पर उलटा ही होता है . वहाँ सरकार दो अलग- अलग जाति में प्यार या शादी करने वालों को पुरस्कृत करने के बजाय दण्डित करती है. पुलिस कभी भी लड़के -लड़की को सपोर्ट नहीं करती .क्योंकि उन्हें लड़का -लड़की की तरफ से रिश्वत नहीं मिलती , उनके घरवाले उन्हें मनचाही रिश्वत दे देते हैं. इस कारण वे उनका पक्ष लेते हैं. देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का बाद उन राज्यों की सरकार कितनी सजग होती हैं ? पता नहीं कब तक बेगुनाह प्यार करने वालों को मौत के घाट उतारा जाएगा ?





Sunday, June 20, 2010

नीतिश ने पांच करोड लौटाकर गुजरात का अपमान किया

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सत्ता के नशे में सब कुछ भूल गए हैं. याहन तक कि शिष्टाचार और मानवीयता भी , वरना वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पांच करोड की मदद को इस तरह नहीं लौटाते . नरेंद्र मोदी ने बिहार के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए यह रकम दान में दी थी. भाजपा, काग्रेस , राजद आदि ने इसकी निंदा की है. यह मामला तब शुरू हुआ जब बिहार के अखबारों में नरेन्द्र मोदी और नीतिश कुमार के फोटो हाथ में हाथ मिलाते हुए दिखाई दिए, यही फोटो पटना में छपे पोस्टरों में भी नजर आये. तब जाकर नीतिश कुमार को पता चला कि जिस पार्टी (भाजपा ) के सहयोग से वे पिछले कई सालों से मुख्यमंत्री पद का सुख भोग रहे हैं , वह साम्प्रदायिक पार्टी है . तभी उनको ये एहसास हुआ कि नरेंद्र मोदी भी उसी भाजपा के नेता हैं. इससे पहले उन्हें सिर्फ कुर्सी दिखाई दे रही थी. मगर अब चुनाव सिर पर हैं. इसलिए अब नीतिश कुमार के ज्ञान चक्षु खुल रहे हैं. उन्हें स्वाभिमान, सम्मान की याद आने लगी है. अब अब जाकर वे जान पाए हैं कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के शासन में मुस्लिम समाज के लोगों पर अन्याय हुआ, जुल्मो -सितम हुए. क्यंकि चुनाव सिर पर हैं और मुस्लिम समाज का एकमुश्त वोट हासिल करना है , इसलिए अब समझदानी का साइज अचानक बढ़ गया है. अगर उनके फोटो नरेंद्र मोदी के साथ छपेंगे तो मुस्लिम समाज के लोग उनसे नाराज हो जाएगा , जिससे वोट काटने का पूरा ख़तरा है. फिलहाल मुस्लिम समाज लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान से दूर है , नीतिश कुमार उसीका फायदा उठाकर मुस्लिम समाज के वोट एंठना चाहते हैं.तभी तो गुलगुलों से ऐतराज दर्ज करा रहे हैं, नीतिश कुमार को यह बताना चाहिए कि अगर वे नरेंद्र मोदी की मदद को लौटा सकते हैं तो उनकी पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री क्यों बने ? अगर अबन गए और अब उनकी अंतरआत्मा जाग चुकी है तो तत्काल प्रभाव से इस्तीफा क्यों नहीं देते ? दूसरी बात ये कि नरेंद्र मोदी ने जो पांच करोड की राशि दी थी वह अपने फंड से नहीं बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री के फंड से दी थी अर्थात वह राशि गुजरात की थी, गुजरात के लोगों की थी. वहां के लोगों का दिल देखिये कि उन्होंने तो इसका विरोध नहीं किया , जबकि वे रोक -टोक सकते थे. मगर बिहार के मुख्यमंत्री ने अपने स्वार्थ के लिए यानि कि मुस्लिम समाज को खुश करने के लिए सहायता राशि लौटा दी. इससे नुक्सान तो बिहार के बाढ़ पीड़ित लोगों का हुआ ना. जो पीड़ित हैं , उनमे हिंदू , मुस्लिम सभी लोग शामिल हैं. वह पैसा किसी एक धर्म के लोगों नहीं बल्कि सभी पीडतों में बांटा जाने वाला था , जिसे नीतिश कुमार ने लौटा दिया. इससे जद यू और भाजपा के बीच की खाई बढ़ गयी है. खुद नीतिश कुमार इस मुद्दे को हवा देना चाहते हैं और यहाँ तक कि खुद मोदी ने भी राजनीतिक फायदे के लिए ही यह सहायता राशि दी थी. ताकि चुनाव के दौरान इस बात को भुनाया जा सके . तो यहाँ पर सिर्फ नीतिश कुमार ही नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी भी सियासी चाल खेल रहे हैं. यह सिओर्फ़ इसी देश में संभव है कि नेता लोग बाढ़ पीड़ितों के जख्मों पर भी नमक लगाने से बाज नहीं आते.उन्हें सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब रहता है. अब नीतिश कुमार की चाल ये है कि वे इस मुद्दे को गरमाकर यह दिखाना चाहते हैं कि वे मोदी के कितने विरोधी हैं और मुस्लिमों के हितों की खातिर वे किसी भी हद तक जा सकते हैं. अगर गठबंधन टूटता भी है तो उन्हें मुस्लिम समाज की सहानुभूति मिलेगी , उसी लहर पर सवार होकर वे चुनाव की नैया पार लगाना चाहते हैं. मगर असली ताकत तो जनता के पास है. जनता को सजग होकर ऐसे खोखले और झूठे धर्म निरपेक्ष लोगों के चेहरे से नकाब उतार देना चाहिए . ऐसे लोगों के खिलाफ वोटिंग अच्छे लोगों की सरकार बनानी चाहिए .












Friday, June 18, 2010

ग्रुप सेक्स और पुरुष वैश्या के बढते मामले
इस रात की सुबह कब होगी ?
रोजाना ऐसी घटनाएं सुनने -देखने को मिल रही हैं, जिनसे ऐसा लगता है जैसे अब प्रकृति के बनाए नियमों सेखिलवाड करना ही कुछ इंसानों के शगल बन गया है. दिल्ली में अलग-अलग दो ऐसे मामले सामने आये जिन्होंनेदिलो-दिमाग को झकझोर कर रख दिया. एक मामला प्रसिद्द बिजनसमैन कुलदीपक अरोड़ा से जुड़ा है. अरोड़ा काएक्सपोर्ट का बड़ा व्यापार है. वह पढ़ा-लिखा व्यक्ति है . परसों अरोड़ा को इंदिरा गांधी एअरपोर्ट से गिरफ्तार करलिया गया. उनके खिलाफ उन्हींकी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि अरोड़ा उससे जबरदस्ती ग्रुप सेक्स करवाताथा. जब वह मना करती तो उसे धमकाया जाता था. यह घृणित कार्य पिछले चार वर्षों से कराया जा रहा था. अरोड़ाके खिलाफ दर्ज कराई गयी शिकायत के मुताबिक़ अरोड़ा, उसके भाई और बिजनेस पार्टनर्स के साथ उसे ग्रुप सेक्सकरने के लिए मजबूर किया जाता था. अब यह अप्राकृतिक सेक्स का कार्य चार सालों तक अरोड़ा की पत्नी कीसहमति से चला या उसे वाकई मजबूर किया गया, ययह तो जांच के बाद ही पता चल पायेगा मगर ये तय हो चुकाहै कि इतने वर्षों तक उन्होंने अप्राकृतिक कुकर्म किया .दूसरा मामला दिल्ली के ही बड़े व्यवसाई अनिल नंदा सेजुडा है. अनिल नंदा जाना पहचाना नाम है. वो अमिताभ बच्चन और राजकपूर परिवार से भी जुड़ा है तथा एक्मेनामक कंपनी का मालिक भी है. उसका सालाना टार्न ओवर करोड़ों नहीं, अरबों में है. इस अनिल नंदा पर अपनेड्राइवर जनेश्वर मिश्रा को ज़िंदा जलने का आरोप है. अपनी मौत से पूर्व मिश्रा ने नंदा पर जो गंभीर आरोप लगाए हैंवे किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देते हैं. मिश्रा का कहना है कि नंदा पुरुष वैश्या है , वह रोजाना नए -नएलड़कों को अपनी कोठी में बुलवाता है और फिर उनके साथ सम्लेंगिक सम्बन्ध बनाता है . जब कोई इसअप्राकृतिक कार्य को करने से मना कर देता है तो उसके साथ मारपीट की जाटे है, उसे धमकाया जाता है. खुद मिश्राने अपने मौत से पूर्व बयान में बताया कि जब उसने नंदा के इन कुकर्मों का विरोध किया तो उसे जान से मारने कीधमकी दी गयी. इतना ही नहीं, उसने पहले ही अपनी ह्त्या की आशंका जाहिर की थी और फिर आखिरकार वहीहुआ भी. उस पर पेट्रोल छिडककर आग लगा दी गयी.

जनेश्वर शर्मा ने बताया कि कोठी में काम करने वाले 99 फीसदी मर्दों का यौन शोषण होता है। नंदा पैसा देकर लड़के मंगवाता है।

जनेश्वर को दिल्ली की काली कोठी में 9 जून को आग लगा दी गई थी, लेकिन उससे दस दिन पहले- 29 मई 2010 को उसने एक चिट्ठी लिखी थी। उसने लिखा था-'मैं अनिल नंदा की 12C कोठी पर काम करता हूं। यहां पर बहुत अभद्र और गंदा काम किया जाता है, जिसका मुख्य आदमी अनिल नंदा है। मैंने कई बार सही बात बोली तो मुझे धमकाया जा रहा है। मेरा शोषण किया जा रहा है। अगर भविष्य में मुझे कुछ होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी अनिल नंदा और उसके आदमियों पर होगी'। जनेश्वर को इस चिट्ठी लिखने के दस दिन बाद पेट्रोल छिड़ककर अनिल नंदा की कोठी के भीतर ही आग लगा दी गई। और हफ्ते भर अस्पताल में जूझने के बाद उसने दम तोड़ दिया।

इन दोनों घटनाओं का अगर विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि दोनों ही मामलों में आरोपी करोड़ों -अरबोपति हैं. इस तरह के मामले दिन प्रतिदिन बढते जा रहे हैं. और इनको अंजाम देने वाले लोग भी अच्छे -पढ़े -लिखे , धनाढ्य और ऊंचे रसूख रखने वाले परिपक्व लोग हैं. यानि जानबूझकर वे प्रकृति के बनाये नियमों से खिलवाड कर रहे हैं. अब तो मुंबई , दिल्ली आदि शहरों में ग्रुप सेक्स , और अप्राकृतिक सेक्स की सुविधा देने वाले क्लब भी बन चुके हैं. ऐसे मामले उजागर होने पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए , वरना यह ऐसी भयानक काली रात है , जिसकी फिर कभी सुबह नहीं होगी .








Thursday, June 17, 2010

उत्तर प्रदेश की चुनावी कसरत
क्या फिर से करिश्मा दोहराएगी बी एस पी ?
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री पद को संभाल रही हैं. लेकिन स्पष्ट बहुत की सरकार इस बार ही बनी है . इससे पहले वे अन्य पार्टियों की मदद से मुख्यमंत्री बना करती थीं, मगर प्रदेश की सरकार ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें भारी बहुमत के साथ जिताया है. मायावती के इस कार्यकाल को देखा जाए तो उन्होंने कई ऐसे विलक्षण कार्य भी किये हैं, जिन्हें कोई दुसरा राजनेता सोचते ही डरता है. आमतौर पर ऐसे कार्य राजनीतिक फायदा नहीं बल्कि नुक्सान ही पहुंचाते हैं. जैसे कि उन्होंने अपनी पार्टी के बाहुबली सांसद उमाकांत को खुद गिरफ्तार करवा दिया. अपने ही कैबिनेट के मंत्री जमुना निषाद का नाम जब ह्त्या के मामले में आया तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया . इसी प्रकार बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को पार्टी से निकाल बाहर किया. इससे भले बसपा को आंशिक नुक्सान हो मगर इससे फायदा ये हुआ कि प्रदेश में यह सन्देश जरूर गया कि अपराधी कितना भी ताकतवर क्यों न हो अगर वह गलत करेगा तो उसके खिलाफ इसी तरह की कड़ी कार्रवाई हो सकती है. इससे बसपा के दबंग कार्यकर्ता भी डरने लगे . नतीजा यह निकला कि जिस उत्तर प्रदेश में जंगल राज और माफिया राज के नारे गूंजते थे , अब वहां पर क़ानून का शासन स्थापित हो गया. बड़े- बड़े डाकुओं का भय अब खत्म होने लगा है. ठोकिया जैसे डकैत को मुठभेड़ में थोक दिया गया है. अब उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध नहीं होते. फिरौती के लिए अब अपराधिक गिरोह के द्वारा अपहरण नहीं होते. अब गेंगवार नहीं होते . राज्य की जनता को इससे तो छुटकारा मिल गया है . शान्ति व्यवस्था ठीक ठाक है. अब व्यापारी बिना डरे अपने कार्य कर सकते हैं. इससे निवेश के लिए सही माहोल तैयार हुआ है. यह मायावती की ही कार्यकुशलता का परिणाम है कि इतनी जल्दी यह सब संभव हो पाया , अगर सपा का शासन होता तो अब तक यह खूबसूरत राज्य कुशासन के दल -दल में ही कराह रहा होता. इसके अलावा मायावती की सरकार ने परिवहन के क्षेत्र में भी क्रान्ति की है. बसों की संख्या बढाई है. उनके फेरे बढाए हैं. प्रदेश के परिवहन मंत्री रामअचल राजभर ने दिल्ली से यूपी में फिर से बस सेवा शुरू करके लाखों लोगों का दिल जीता. इसके अलावा सर्वजन हिताय बस सेवा शुरू की. कई नए डिपो बनवाए. यह विभाग हमेशा घाटे में रहता था मगर मायावती के नेतृत्व में रामअचल राजभर ने इस विभाग को जबरदस्त मुनाफे में तब्दील कर दिया है . कहा जा सकता है कि परिवहन के क्षेत्र में उल्लेखनीय और यादगार तरक्की हुई है. क़ानून व्यवस्था और परिवहन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किये गए हैं. सड़कों का भी निर्माण हुआ है . शहरों को गाँवों से जोड़ा गया है .मगर सड़कों की गुणवत्ता ऐसी नहीं है जिससे संतुष्ट हुआ जा सके. बिजली-पानी के क्षेत्र में भी बहुत कुछ करने की गुंजाइश है. सबसे खराब हालत शिक्षा क्षेत्र की है. ऐसा नहीं है कि इस दुर्दशा के लिए बी एस पी जिम्मेदार है . बल्कि इससे पूर्ववर्ती सरकार इसके लिए जिम्मेदार हैं . सरकारी स्कूलों में पढाई के नाम पर महज दिखावा दिखावा हो रहा है. पूरे राज्य में सरकारी शिक्षक निठल्लेपन के लिए मशहूर हैं. कहीं -कहीं तो पूरे स्कूल को एक ही टीचर हेंडल कर रहा है. बाकी लोग महीने में एकाध बार दिखाई देते हैं. मगर वजीफा और खाने के चक्कर में शिक्षा का सत्यानाश कर दिया गया है. इसे प्राथमिकता के आधार पर सुधारा जाना चाहिए था. हांलाकि यह भी ऐसा मुद्दा नहीं है जिससे वोट घाट या बढ़ सकें . मगर जिन सिड्यूल कास्ट के पक्के वोटों के दम पर आज मायावती राष्ट्रीय लीडर हैं , उनसे तो फर्क पड़ता है , और इस बार उनका यही पक्का वोटर उनसे नाराज चल रहा है.इन्हें लगता था कि बहन जी की सरकार बनेगी तो उन्हें प्लाट मिलेंगे, मकान मिलेंगे , खेत मिलेंगे , क्योंकि कांशीराम जी ने नारा दिया तह-'जो जमीन सरकारी है, वो जमीन हामरी है ' . मगर इस बार वे सिर्फ हाथ मलते रह गए. उन्हें लगा था कि उनको किसी विशेष कोटे से सरकारे नौकरियां मिलेंगी मगर ऐसा भी नहीं हुआ. अब दलित समाज जाग्रत हो चुका है . उसे सिर्फ सम्मान ही नहीं अधिकार भी चाहिए .वह अपनी कल्पनाओं को साकार होते देखना चाहता है. अगर बहुजन समाज पार्टी को इस बार की तरह करिश्मा दिखाना है तो अपने इस पक्के वोटर वर्ग को माना होगा. अभी दो साल बाकी हैं. समय रहते इस तरफ ध्यान दिया गया तो मुश्किल कोई नहीं है. लेकिन अगर ध्यान नहीं दिया यह वोटर वर्ग सवाल करेगा कि स्पष्ट बहुमत की सरकार में भी उनके काम नहीं हो सकते तो कब और कहाँ होंगे ?

Tuesday, June 15, 2010

ओनर किलिंग ;
सम्मान की खातिर अपनों की हत्या
झूठी इज्जत की खातिर ह्त्या करना कोई नई बात नहीं है . पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इस तरह की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं. अब नया मामला दिल्ली का है . यहाँ के गोकुलपुरी इलाके में रहने वाली आशा और योगेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वे दोनों एक दुसरे को बेपनाह मोहब्बत करने लगे थे और एक साथ जीवन गुजारना चाहते थे , लेकिन लड़की के घरवाले इसको अपनी शान के खिलाफ समझते थे. उनको लगता था कि इससे समाज में उनकी नाक कट जायेगी , इसलिए कथित तौर पर लड़की के परिजनों ने मिलकर आशा और योगेश की ह्त्या कर दी. ह्त्या के बाद जब लड़की के ताऊ से बात की गयी तो उसने कहा कि उसे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है. आशा और योगेश की ह्त्या भी इतने खतरनाक तरीके से की गयी जिसे सुनकर पत्थर से पत्थर दिल भी पिघल जाए. आशा को प्लान के मुताबिक़ पहले उसके ताऊ के घर यानि स्वरूप नगर स्थित इन्द्रप्रस्थ कालोनी भेज दिया गया. इसके बाद साजिस रचकर वहाँ पर योगेश को बुलवाया गया. जब वह पंहुचा तो आशा के ताऊ ओमप्रकाश ने परिवारवालों से मिलकर उन दोनों को बाँध दिया. इसके बाद वे सब राक्षस बन गए. मानवता न अजाने कहाँ गम हो गयी. सबने मिलकर दो प्यार करने वालों को लाठी डंडों से खूब मारा और फिर इसके बाद उन्हें बिजली के झटके दिए गए.अगर कुछ समय के लिए यह मान भी लिया जाए कि गुस्से में आकर उन्होंने किसी से प्रहार कर दिया और अनजाने में किसीकी ह्त्या हो गयी तो बात अलग है . मगर जान बूझकर मारने के लिए ही मारना और फिर मारने के बाद यह कहना कि उन्हें कोई पश्चाताप नहीं है, घटना को बेहद गंभीर बना देता है. ऐसे मामलों में अक्सर यह देखा गया है कि कुछ महीनों बाद जमानत हो जाति है और सालों केस चलता रहता है . जिससे लोगों को लगता है कि चाहे जो करो, कुछ होने वाला नहीं है . इसीका फायदा उठाकर कुछ लोग ऐसी हत्याकांडों को अंजाम देते रहते हैं. अगर ऐसे मामलों में जल्द सजा मिले और कठोर सजा मिले तब जाकर लोग ऐसे कांड करने से डरेंगे. इसलिए सरकार को ओनर किलिंग मामले फास्ट ट्रेक कोर्ट को सौंपने चाहिए ताकि जल्द फैसला आये और जल्द सजा मिल सके. इसके अलावा कुछ ऐसा क़ानून भी बनाया जा सकता है जो बालिग़ लड़के -लड़कियों को प्रेम करने या अपने मर्जी से जीवन साथी चुनने का अधिकार देता होऔर उनके अधिकारों की रक्षा करता हो. अक्सर देखने में ये आया है कि जब प्रेमी -प्रेमिका के बीच में उनके घरवाले आते हैं तो पुलिसवाले उनके घरवालों का ही साथ देते हैं . इस कारण प्यार करने वालों को पहली स्टेज से ही जुल्म का शिकार होना पड़ता है . इसीका फायदा प्यार के दुश्मन उठाते हैं. यही वजह है कि ओनर किलिंग की घटनाओं में बढोतरी होती रहती है. क्योंकि उनके हौंसले बढते रहते हैं. अगर प्रेमी -प्रेमिकाओं को कहीं से थोड़ी बहुत राहत मिलती है तो वो है कोर्ट. मगर तब तक देर हो चुकी होती है. प्यार एक स्वभाविक और प्राकृतिक जरूरत है . सदियों से लोग प्यार करते आये हैं और जब तक दुनिया रहेगी तब तक प्रेम का अस्तित्व रहेगा .इसलिए बेहतर यही होगा कि सच्चे प्यार करने वालों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार प्रभावी कदम उठाये , इस समस्या से जितना मुंह मोड़ा जाएगा यह उतनी ही बढ़ेगी, यह तय है .समाज के समझदार लोगों को भी आगे आकर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए. सामाजिक संगठनों को भी आगे आना होगा , सब मिलकर इस समस्या का समाधान खोजेंगे तभी ओनर किलिंग की बीमारी को काबू में किया जा सकता है.

Monday, June 14, 2010

कमर तोड़ मंहगाई
कुम्भकर्णी नींद में सोई सरकार
मंहगाई का आलम ये है कि मटर की फली (वटाना) १२० रुपये किलो है , जबकि चिकन ७० से ८० रुपये किलो बिक रहा है. भिन्डी का भाव भी आसमान छू रहे हैं. एक किलो के लिए ५० रुपये वसूले जा रहे हैं. सिर्फ वटाना और भिन्डी ही नहीं, हर सब्जी और फल की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हुई हैं.यही हाल दाल और तिलहन का है . मुंबई में जो लोग छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं उनका जीना मुहाल हो गया है. ज्यादातर लोग कर्ज से काम निकाल रहे हैं और जो कर्ज लौटा नहीं पाते, वे लोग निराशा में आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं.कुछ लोग मजबूरी में अपराध का रास्ता चुन लेते हैं. ऐसा नहीं है कि जीवन में काम आने वाली अति आवश्यक वस्तुएं ही मंहगी हैं, बल्कि जो भी चीजें हैं , उन सभी की भाव कई गुना बढ़ गए हैं . उसके अनुपात में तनख्वाह बहुत कम बढ़ी हैं. इस मंहगाई के लिए सीधे तौर पर केन्द्र सरकार जिम्मेदार है. प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं. मंहगाई कम करने की बजाय केन्द्र सरकार वस्तुयों के दाम और भी बढते जा रहे हैं.लेकिन हैरत की बात ये है कि मंहगाई कम करने के बजाय केन्द्र सरकार और ज्यादा बढ़ाना चाहती है. कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले हैं इसलिए भले ही केन्द्र सरकार ने डीजल , पेट्रोल और रसोई गैस के दाम बढाने के फैसले को स्थगित कर दिया है मगर उसका इरादा तो पक्का था . इससे साफ़ जाहिर होता है कि केन्द्र सरकार की दिलचस्पी मंहगाई कम करने में बिलकुल नहीं है. अब तक सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे लगे कि वह सचमुच इस समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत है. केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार सिर्फ भविष्यवाणी करते रहते हैं. या फिर मौसम का बहाना बनाकर देश की इस सबसे बड़ी समस्या से मुंह मोड लिया जाता है. शरद पवार बहाना करते हैं कि खराब मौसम के कारण फसल खराब हो गयी , इस कारन मंहगाई बढ़ रही है. कुछ दिनों बाद सब ठीक हो जाएगा. मगर सब कुछ ठीक कब होगा ? आखिर क्या कारण है कि यह सरकार हर मोर्चे पर विफल होने के बाद भी सकुशल चल रही है. विपक्ष भी इस मुद्दे को इतनी मजबूती के साथ नहीं उठा पा रहा है , जितना उठाना चाहिए और देश की जनता भगवान भरोसे छोड़ दी गयी है. प्रधानमंत्री सिर्फ इतना करते हैं कि विकास दर का प्रतिशत बताकर लोगों को तसल्ली देते हैं कि हालात नियंत्रण में हैं. उलटे -सीधे आंकड़े पेश कर बताया जाता है कि ज्यादा मंह्गाई नहीं है . मगर लोगों का पेट रोटी से भरता है .चाहे जितने आंकड़े बताओ मगर सच तो आखिर सच ही रहेगा , जब मंहगाई के मुद्दे पर मीडिया केन्द्र सरकार को घेरती है तो वह राज्य सरकारों पर छोड़ देती है. अगर देखा जाए तो ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार है . इसके बावजूद भी मंहगाई का राक्षस जीने नहीं देता. अगर मुनाफाखोरों पर लगाम कसी जाए तो एक हफ्ते में ही मंहगाई जमीन पर आ जायेगी. मुंबई सहित देश भर में दलालों ने सस्ते में माल जमा कर रखा है और कृत्रिम मंहगाई बढ़ाकर वे दौलत कमा रहे हैं. ऐसे लोग ज्यादातर वे होटे हैं जो कांग्रेस पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए चन्दा देते हैं. जब पार्टी जीत जाती है तो वे इसका भरपूर फायदा उठाते हैं. चाहकर भी फिर सरकार उन मुनाफेखोरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाती. अगर केन्द्र सरकार यह स्वीकार करती है कि वह मंहगाई कम करने के प्रयास कर रही है, मगर हो नहीं पा रही तो इससे यह साबित होता है कि उसे सरकार चलाने का कोई अधिकार नहीं है.ऐसी निकम्मी सरकार को विदा करना चाहिए . ऐसा लगता है जैसे सोनिया गांधी इस देश के लोगों को तडपता हुआ देखना चाहती है. वरना वे मंहगाई रोकने के ठोस उपाय नहीं करतीं .

Sunday, June 13, 2010

मनसे , धनसे और कांग्रेस की सौदेबाजी
महाराष्ट्र नव निर्माण सेना यानि मनसे को शिवसेना ने धनसे क्या कह दिया , सफाई देने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राज ठाकरे को प्रेस कोंफ्रेंस बुलानी पडी . इसमें राज ठाकरे ने जो रहस्योदघाटन किया है वह हरत करने वाला और चिंताजनक है. उन्होंने साफ़ स्पष्ट किया कि मनसे के १३ विधायकों ने राज्य सभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार विजय सावंत को इसलिए वोट दिए ताकि मनसे के सस्पेंड चल रहे ४ विधायकों का निलंबन रद्द किया जा सके. उन्होंने कहा कि उनके लिए ना कोई स्थाई दुश्मन है और ना ही स्थाई दोस्त. जहां उन्हें लाभ होगा वे वही जायेंगे , और फाय्देवाला काम ही करेंगे. सौदेबाजी को भी वे मराठी के हितों में बताने वाला नहीं भूले. हाल ही में संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव में शिवसेना का एक उम्मीदवार एडवोकेट अनिल परब चुनाव हर गया था क्योंकि मनसे के विधायकों ने के उम्मीदवार विजय सावंत के पक्ष में मतदान किया था , इससे सावंत की विजय हो गयी, तभी से इस तरह की खबरी मिल रही थीं कि मनसे ने कोई बड़ी डील है , तभी कांग्रेस का उम्मीदवार विजय का स्वाद चख पाया है. विधान भवन में सपा के बडबोले विधायक अबू आसिम आजमी के साथ अभद्रता और हाथापाई करने के आरोप में मनसे के चार विधायक सस्पेंड चल रहे हैं. राज्यसभा के चुनाव में एक वोट हासिल करने के लिए गाड़ी , फ्लेट और लाखों -करोड़ों रुपये के प्रलोभनों की बात भी सामने आयी थी. उस समय मनसे पर भी लोग उंगलिया उठाने लगे थे. शिवसेना ने तो बाकायदा यह आरोप लगाया था कि मनसे अब धनसे हो गयी है यानि धन लेकर मनसे ने कांग्रेस को वोट दिए हैं.इन आरोपों से तिलमिलाए राज ठाकरे ने बाकायदा प्रेस कोंफ्रेंस आयोजित कर खुद यह एलान किया कि अपने सस्पेंड विधायकों का निलंबन वापस करने के लिए ही उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को मनसे के वोट दिलवाए . उन्होंने बताया कि सस्पेंड रहने के कारण उन विधायकों के क्षेत्रों के साथ अन्याय हो रहा था इसलिए उनका बहाल होना जरूरी था. इससे पहले कांग्रेस के नेता मनसे विधायकों के मतों के बदले में किसी तरह के लेन-देन या किसी वादे से इनकार किया था. मगर अब कांग्रेस की पोल खुल गयी है. यह साबित हो गया है कि कांग्रेस अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है. महाराष्ट्र से बाहर के राज्यों से मुंबई आये लोगों के साथ हुए सलूक को कोई कैसे भूल सकता है . शिवसेना और मनसे के कार्यकर्ता समय-समय पर पर प्रान्तीयों पर बेवजह जुल्म ढाते रहते हैं. कांग्रेस सिर्फ कूटनीतिक चाल खेलती है. परप्रांतीयों का हमदर्द होने का नाटक करती है , मगर असलियत में वह पीटने वालों से मिली होती है. परप्रांतीयों पर हुए हमले और उनके खिलाफ जहर उगलने के बाद जब राज ठाकरे को गिरफ्तार किया गया और जिस तरह उनको हाई लाईट कर हीरो बनाया गया तब भी लोगों ने कहा था कि कांग्रेस ही राज ठाकरे को हीरो बना रही है ताकि वह मजबूत होकर शिवसेना के खिलाफ ताकत से खड़े हो जाएँ और वोटों का बंटबारा होकर कांग्रेस को फायदा हो जाए. कांग्रेस की यह चाल कामयाब भी हुई . मनसे के कारण उसके कई विधायक और सांसद जीत गए. कांग्रेस ने जो पद लगाया था उसकी छाया , फल -फूल वह अभी तक इस्तेमाल कर रही है. आखिरकार राज्यसभा चुनाव में भी उसे इसीका फायदा हुआ, मगर सवाल उठता है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए क्या यह परम्परा उचित है. अगर कांग्रेस सत्ता में है तो क्या वह किसी को जन प्रतिनिधि को कभी भी सस्पेंड कर सकती है और कभी भी बहाल कर सकती है . क्या इस तरह की सौदेबाजी से चुने गयी राज्यसभा सदस्य का चुनाव वैध है. क्या विजय सावंत को तुरंत टर्मिनेट नहीं करना चाहिए ? क्या चुनाव आयोग ने राज ठाकरे का बयान सूना है ? क्या वह दखल देकर कांग्रेस के नेताओं और कांग्रेस को नोटिस जारी करेगा ? क्या कांग्रेस की सदस्यता रद्द नहीं कर देनी चाहिए ? कौन देगा इन सवालों का जवाब ? ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब व्यापार करने वाली एक कंपनी बनकर रह गयी है. जहाँ सब कुछ व्सायिक्व्या फायदे के लिए किया जाता है. कांग्रेस का हाथ अब सौदागरों के साथ हो गया है .












Friday, June 11, 2010

दिल्ली पुलिस की दरिंदगी
बेटे को किया माँ से बलात्कार के लिए मजबूर
दिल्ली में पिछले दिनों एक ऐसी घटना प्रकाश में आई , जिसने दरिंदगी की सारी हदें पार करदीं. फिलहाल कार्रवाईके नाम पर तीन पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया है , मगर इसने हमारे सिस्टम पर ऐसा बदनुमा दाग लगा दियाहै , जिसे धोना बहुत मुश्किल है. देश की राजधानी दिल्ली में आखिर किसी पुलिसवाले के हौंसले इतने बुलंद कैसेहोते हैं कि वो किसी महिला के सारे कपडे उतरवाए और उसके बेटे को उससे बलात्कार करने के लिए मजबूरकरे.यह घटना सभ्य समाज के माथे पर कलंक की तरह है . दिल्ली के मायापूरी इलाके में झा दंपत्ति अपने दो बेटोंरमेश (१०) और राजू (१२ ) के साथ रहते हैं . २१ मई को अचानक उनके बेटे कहीं गायब हो गए. काफी खोजबीन केबाद भी जब कहीं पता नहीं चला तो वे पुलिस थाने भी गए , लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ . जब वे घर आये तो घरपर भीड़ जमा थी. कुछ पुलिसकर्मी उनके घर के सामने आये तो वहाँ पर भीड़ एकत्रित मिली . जब उन्होंनेपुलिसवालों से अपने बेटों के बारे में पूछताछ की तो उन्हें उलटा ही जवाब मिला. पुलिस श्रीमती झा को पुलिस थानेले आई , वहाँ पर राजू के सामने ही उसकी माँ को नग्न किया गया. नग्न करने के बाद बेटे को विवश किया गयाकि वह अपनी माँ के साथ बलात्कार करे . ऐसा करने पर उन्हें खूब पीटा गया . यह सिर्फ अकेली घटना नहीं हैजिसने पुलिस का असली चेहरा उजागर कर दिया है. बात महज दिल्ली की ही नहीं है, सारे देश में ऐसी घटनाएंअक्सर देखने सुनने को मिलती हैं
.राजस्थान में धौलपुर जिले के सैंपऊ कस्बे में पुलिसवालों ने चोरी के एक मामले में पूछताछ के दौरान एक वृद्ध को पेड़ पर लटकाकर यातना दी। मामला उजागर होने के बाद एसपी ने इलाके के थानेदार को निलंबित कर प्रकरण की जांच एडिशनल एसपी को सौंपी है।
सैंपऊ की एक मोटर पार्ट्स की दुकान से 27 मार्च की रात को करीब डेढ़ लाख रुपए का सामान चोरी हो गया था। इस मामले में पूछताछ के दौरान जयदेव के हाथ पीछे बांधकर रस्सी से पेड़ पर लटका दिया गया। इस दौरान थाना प्रभारी राजेंद्र कविया और अन्य पुलिसकर्मी रस्सी को खींच रहे थे। मौके पर मौजूद वृद्ध की पत्नी ने दया की गुहार लगाई तो थाना प्रभारी ने उसे भी पेड़ पर लटका देने की धमकी दी। तभी वहां एक फोटो जर्नलिस्ट के पहुंचने पर पुलिस ने तुरंत वृद्ध को नीचे उतार लिया।

ऐसी घटनाओं से मानवता भी शर्मसार हो जाती है. सवाल ये उठता है कि आखिर पुलिसवाले इतना दुस्साहस कैसे कर लेते हैं. ऐसा कैसे होता है कि कुर्सी पर बैठा पुलिसवाला अपने हाथ में क़ानून ले लेता है . वह संविधान को ताक पर रख देता है. ऐसा गर बार -बार और हर बार होता है तो ऐसा समझने चाहिए कि इस विभाग में ऐसा कुछ हो रहा है जो कानून के खिलाफ है, मानवता के खिलाफ है और यहाँ तक कि सभ्य समाज के खिलाफ है. और ऐसी स्थिति में आमूल -चूल परिवर्तन की जरूरत है. जब राजनेता पुलिस का गलत इस्तेमाल करते हैं तो इससे होता ये है कि पुलिसवाले भी निरंकुश हो जाते हैं और उनमे से कुछ तो ऐसे होते हैं जो क़ानून को खिलौना समझकर सारे गैर कानूनी काम करने लगते हैं. इसलिए सबसे पहले पुलिस का गलत इस्तेमाल बंद करना होगा. इसके बाद समय- समय पर कोई ऐसी स्वतंत्र जांच एजेंसी बनानी होगी जो अपराधियो के साथ- साथ गलत पुलिसवालों पर भी नजर रख सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ऐसे हादसे रोजाना होते रहेंगे .














Thursday, June 10, 2010

राष्ट्र के साथ विश्वाश्घात , राहुल एंड कंपनी की खामोशी

भोपाल गैस त्रासदी मामले के मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन को केन्द्र और राज्य सरकार के सहयोग से भगाया गया था। यह खुलासा किसी विपक्षी पार्टी के नेता ने नहीं बल्कि तत्कालीन केमिकल फर्टिलाइजर मंत्री वसंत साठे ने किया है. साथे का कहना है कि केन्द्र और राज्य सरकारों में बैठे कुछ लोगों की मदद के कारण ही वह भारत से भागने में कामयाब हो सका। उसे भगाने के पीछे अमरीकी दबाव हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर बाद में केबिनेट बैठक में कभी कोई चर्चा नहीं हुई।
साठे ने कहा कि इस पूरे मामले में एमपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ही सही खुलासा कर सकते हैं। उन्हें अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। जनता पार्टी के अध्यक्ष स्वामी ने सनसनीखेज आरोप लगाया है कि मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की ट्रस्ट को तीन करोड रुपये दिए गए , उसके बदले में एंडरसन को भगाया गया. यह वही एंडरसन है जिसकी कंपनी से रिसी गैस के कारण २५ हजार से अधिक बेक़सूर भोपालवासी मौत की आगोश में समा गए जबकि हजारों लोग आज तक पीड़ित हैं. ऐसे मामले के मुख्य आरोपी को जिस समय भगाया गया , उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और स्वर्गीय राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार थी मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह . इसका अर्थ ये हुआ कि कांग्रेस ने देश के साथ विश्वाश्घात किया. यही कारण है कि भोपाल गैस त्रासदी के सम्बन्ध में जो फैलसा आया है उस पर प्रश्नचिन्ह उठ रहे हैं. कांग्रेस ने बेशर्मी की हद पार करते हुए ऐसे बयान देने शुरू किये हैं जिनसे विरोधाभास झलकता है. दिग्विजय सिंह कहते हैं कि इसमें केन्द्र सरकार और सीबीआई जिम्मेदार हैं तो सत्यव्रत चतुर्वेदी इससे नाइत्तेफाकी रखते हैं. अब सवाल ये उठता है कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री क्यों खामोश हैं ? सोनिया गांधी क्यों चुप हैं ? अर्जुन सिंह के होठ क्यों सिले हुए हैं और सबसे अहम सवाल कि जो राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने कि रिहर्सल करते फिरते हैं, दलितो के घरों में पिकनिक मनाते फिरते हैं , अब वे क्यों खामोश हैं ?बस उनको यही दिखता है कि उत्तर प्रदेश में मायावती दलितों के हित में कुछ नहीं कर रही हैं.जब राहुल गांधी के पिता की बात आयी है तो सबने चुप्पी साध ली है. अब राहुल गांधी आआगे आकर इसका खुलासा क्यों नहीं करते कि आखिर देश के २५ हजार बेकसूरों के मुख्य हत्यारे को सरकारी मेहमान बनाकर क्यों रखा गया ? यह काम इतना आसान नहीं हो सकता कि सिर्फ कोई अधिकारी इतना बड़ा दुस्साहस कर सके. त्याग की मूर्ती कहलाने वाली सोनिया गांधी अब त्याग का प्रदर्शन क्यों नहीं करतीं. मनमोहन सिंह अगर सचमुच देश के प्रधान्मंत्री हैं तो भोपाल के गुनाहगारों को बचाने वाले बड़े गुनाहगारों के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा है . देश यह जानना चाहता है कि आखिर अब भी किसका इन्तजार किया जा रहा है ? कौन आएगा जो एक्शन लेगा ? २५ साल तक इन्तजार कर चुकी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित आखिर फ़रियाद किअरें तो किस्से ? यह इस देश में ही सम्भव है कि कोई विदेशी हमारे यहाँ व्यापार करे, दौलत और शौहरत कमाए , फिर २५ हजार से ज्यादा लोगों को मौत की आगोश में सुलादे और इसके बाद हमारी सरकारें उसकी खातिर खुशामद करें. ये है कांग्रेस का असली चेहरा . यही है राहुल गांधी के आदर्श . यही है इस परिवार का त्याग ? देश के साथ विश्वाश्घात करने वालों को अगर आज माफ कर दिया गया तो ऐसे हादसे रोज होंगे . कल भोपाल की बारी थी , कल हमारी -आपकी बारी भी आ सकती है.










Tuesday, June 8, 2010

अरे रामदास , भीमदास
बनने में ही भलाई है

आज से लगभग १५ साल पहले जब रिपब्लिकन पार्टी के युवा नेता रामदास आठवले को महाराष्ट्र सरकार में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया था तो लोग उन्हें देखने मंत्रालय में जाया करते थे. जब मै मंत्रालय जाता तो उनके केबिन के सामने भीड़ देखता, पूछता तो पता चलता कि लोग आठवले को मिनिस्टर की कुर्सी पर बैठे देखकर यह जानने को उत्सुक हैं कि एक गरीब परिवार का लड़का उस कुर्सी पर कैसा दिखता है . उस समय आठवले की छवि तेज तर्रार युवक की थी . दिग्गज मराठा नेता शरद पवार ने आठवले में छिपे उस जादू को पहचान लिया था, जिसका वे आज तक फायदा उठा रहे हैं. वो दौर ऐसा था कि दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा रामदास आठवले में अपनी भविष्य की राजनीति तलाशने लगा था , इस वर्ग को लगने लगा कि अगर वे रामदास आठवले के साथ चलते हैं तो उन्हें भी सत्ता में भागीदारी मिल सकती है , ऐसे ही जैसे रामदास आठवले को शरद पवार ने मंत्री बनाया था. उनकी नगरसेवक, विधायक , सांसद और मंत्री बनने की महत्वकांक्षाओं को पर लग रहे थे , और डॉक्टर बाबा साहेब आम्बेडकर का आंदोलन धीरे -धीरे कमजोर हो रहा था. क्योंकि उस समय दलित युवाओं को सहारे के आदत अर्थात बैसाखियों की आदत लगने लगी थी. यानि कि थोड़े से दलित वोट मिल जाएँ , बाकी शरद पवार से गठबंधन कर कुछ सीट हासिल हो ही जायंगी ,भले ही इन कुछ सीटों के बदले दलित समाज के पूरे प्रदेश के वोट शरद पवार को क्यों न दिलाने पड़ें. इस तरह राजनीतिक बैसाखियों का चलन शुरू हो गया.इससे दलितों को नुक्सान ये हुआ कि वे तो अपने वोटों से कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस को सत्ता की सीढ़ियों चढाते रहे मगर दलित नेता पूरी तरह से बंट गए. अलग-अलग पार्टियां बनने लगीं , क्योंकि सब दलित नेता एक साथ सत्ता का सुख भोगना चाहते थे और इसके लिए वे अपनी नई -नई राह तलाश रहे थे. रासु गवई अपना एक अलग गुट बनाकर कांग्रेस के वफादार सिपाही बन गए और इसका उन्हें फायदा भी मिला यानि कि राज्यपाल के पद का प्रसाद
चखने को मिल गया. आठवले शरद पवार से ही चिपके रहे .जोगेन्द्र कवाडे और खोब्रागडे अलग जमे रहे . बाबा साहेब आम्बेडकर के पोते प्रकाश आम्बेडकर अलग पार्टी चलाते रहे . इधर यूपी में जबरदस्त पैर जमाने के बाद बहुजन समाज पार्टी भी महाराष्ट्र से चुनाव लड़ने लगी.इससे वोट बंटने लगे और दलित समर्थक सभी पार्टियां चुनाव हारती रहीं. प्रकाश आम्बेडकर और रामदास आठवले भी हर गए . आठवले ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी ने ही मिलकर उन्हें हरा दिया . इसके बाद भी वे पवार से मिलने के जुगाड भिडाते रहे . जब वे सांसद थे तो मंत्री बनने के लिए मिन्नतें करने लगे और जब सांसद नहीं रहे तो राज्यसभा सांसद बनने के लिए गिडगिडाते रहे , मगर उनकी फ़रियाद किसी ने नहीं सुनी. यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अशोक च्वहान के यहाँ भी दरबारी की मगर कोई फायदा नहीं हुआ. आठवले जी शायद भूल गए हैं कि सत्ता भीख मांगने से नहीं मिला करती . अगर ऐसा होता तो सारे भिखारी नगरसेवक, विधायक, मंत्री , मुख्यमंत्री होते . इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है. अपने लोगों को संगठित करना पड़ता है , जैसे बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में किया है. आठवले जी के साथ सबसे बुरा वाकया उस समय पेश आया जब उन्होंने राज्यसभा का पर्चा भरना चाहा तो रिडालोस के विधायकों ने भी उनका साथ नहीं दिया. सुनने में तो यहाँ तक आया कि वे १० अनुमोदक और सूचक भी नहीं जुटा पाए जो कि विधायक होते हैं. रामदास आठवले को जिस रिडालोस का समर्थन नहीं मिल पाया , उसको जिताने के लिए उन्होंने दलित समाज के बहुत सारे वोट ट्रांसफर करा दिए , मगर उनके लिए वोट ट्रांसफर नहीं हो पाए , इसका परिणाम ये निकला कि रामदास आठवले का एक भी विधायक नहीं जीत पाया . रिडालोस से गठबंधन करते समय अठावले ये भूल गए कि उसमे समाजवादी पार्टी भी शामिल है , वही समाजवादी पार्टी जिसने यूपी में मायावती के बनवाए आम्बेडकर स्मारकों कोअय्याशी का अड्डा कहा था , और यह एलान कर रखा है कि उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो वे सब मूर्तियों को तुडवा देंगे . ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन करके उन्हें क्या मिला ? माया मिली न राम. अपनों के हुए और न परायों के बन पाए . अगर दलित आंदोलन को ज़िंदा रखना है और महाराष्ट्र में भी बाबा साहेब आम्बेडकर के विचारों की सरकार बनानी है तो रामदास आठवले को अब बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए. और बहुजन समाज पार्टी को चाहिए कि वह रामदास आठवले को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भेज दें. इस तरह रामदास आठवले अपनी खोई जमीन , मान -सम्मान वापस पा लेंगे और बहुजन समाज पार्टी महाराष्ट्र में मजबूत हो जायेगी . इस तरह अगर डॉक्टर आम्बेडकर के सपनो की सरकार बनानी है तो सभी दलित समर्थक पार्टियों को एक मंच पर आना होगा. समाज की भलाई के लिए सभी अहम त्यागकर सबको आगे आना चाहिए .











Monday, June 7, 2010

२५ हजार से ज्यादा लाशें
कीमत सिर्फ १२ लाख
सन १९८४ की २-३ दिसंबर की वो भयानक काली रात जिसने २५ हजार से ज्यादा बेक़सूर भोपालवासियों को मौत की आगोश में धकेल दिया. लाखों को अपाहिज बना दिया , आज भी याद आती है तो दिलो -दिमाग के साथ-साथ रूह भी थरथरा उठती है. यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से रिसी गैस ने सबसे बड़े और खतरनाक हादसे को जन्म दिया. हजारों बेगुनाह लोग सोते-सोते ही काल के गाल में समा गए. उस दिल दहला देने वाले हादसे के ठीक २५ साल के बाद फैसला आया है.इस मामले में 9 आरोपियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा चला। एक आरोपी तत्कालीन सहायक वर्क्स मैनेजर (यूसीआइएल) आर. बी. राय चौधरी की इस बीच मौत हो गई।
चौधरी के निधन के बाद बचे 8 आरोपियों में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआइएल) के तत्कालीन अध्यक्ष केशब महेन्द्र, यूसीआइएल के मैनेजिंग डायरेक्ट विजय गोखले, वाइस प्रेजिडेंट किशोर कामदार, वर्क्स मैनेजर जे. मुकुंद, प्रॉडक्शन मैनेजर एस.पी. चौधरी, प्लांट सुपरिटेंडेंट के. वी. शेट्टी और यूसीआइएल के प्रॉडक्शन इंचार्ज एस. आई. कुरैशी शामिल हैं। आठवां आरोपी यूनियन कर्बाइड कंपनी है। ७ आरोपियों को दो-दो साल की कैद और एक -एक लाख का जुर्माना लगाया गया है , जबकि यूनियन कार्बाइड कंपनी को दोषी मानते हुए उस पर ५ लाख का जुर्माना लगाया गया है.एक आरोपी के सुनवाई के दरम्यान पहले ही मौत हो चुकी है. यानि कि कुल १२ लाख का जुर्माना लगाया गया. २५ हजार से ज्यादा लाशें , और उनकी कीमत लगाई गयी है १२ लाख . कैसा क्रूर और अमानवीय सौदा है ये. प्रधानमंत्री जी, टमाटर , मटर , मूली, गाजर, आलू -प्याज , अनाज भुस , डीजल -पेट्रोल आदि सबकी कीमतें आप कई बार , बल्कि बार-बार बढ़ा चुके हैं. कभी फुर्सत मिले और सोनिया-राहुल से इजाजत मिले तो इंसान की जान की कीमत भी बढ़ा दीजियेगा. २५ हजार से ज्यादा बेकसूरों की जान की कीमत कोई १२ लाख लगाए यह इन्साफ नहीं, शोषण है, अपमान है इंसानियत का.यह फैसला भोपाल गैस पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिडकने जैसा है. हद तो उस समय हुई जब आरोपियों को मात्र २५ हजार की जमानत पर छोड़ दिया गया. अब तक सुनते आये थे कि क़ानून अंधा होता है, आज समझ में आया कि सिर्फ अंधा ही नहीं, बल्कि गूंगा , बहरा और बेरहम भी है.भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए २५ सालों से संघर्ष कर रहे लोगों का कहना है कि यहाँ पर क़ानून को अंधा बनाने का काम केन्द्र सरकार ने किया है . सीबीआई पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं . जानबूझकर उसने कम सजा दिलाने वाली धाराएं लगाईं और इस केस को कमजोर करने का प्रयास किया . होना तो यह चाहिए था कि सभी आरोपियों के विरुद्ध इन्डियन पैनल कोड की धारा ३०२ के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए . फास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन कर इस मामले का निपटारा एक से दो साल के अंदर ही हो जाना चाहिए था . अब इस अबत की जांच होनी चाहिए कि आखिर सीबीआई ने ऐसा क्यों नहीं किया ? भोपाल के लोग जो आरोप लगा रहे हैं, उनकी तह में जाना बहुत जरूरी है . चूंकि सीबीआई केन्द्र सरकार के अधीन कार्य करती है , अतः केन्द्र सरकार का वो कौन सा मंत्री है जो भोपाल गैस पीड़ितों के दोषियों को बचा रहा है . जिस कंपनी से हुए गैस रिसाव के कारण यह हादसा हुआ , वह दौलत वालों की कंपनी है और उसके अधिकारी भी . ऐसे में इस बात की पूरी गुंजाइश है कि फैसले को प्रभावित करने का प्रयास किया गया हो . क्यंकि २५ हजार से ज्यादा लोगों के हत्यारों को सिर्फ दो दो साल की सजा देना और फिर उनको तुरंत २५-२५ हजार की जमानत पर छोड़ देना न न्यायसंगत है, न तर्कसंगत .केन्द्र सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी में मृत लोगों को श्रधांजलि देने के बजाय उनको जख्मो कु कुरेदा है, भोपाल की जनता कांग्रेस को इसका जवाब जरूर देगी, भोपाल ही क्यों , देश की जनता को भी इसका कडा जवाब देना चाहिए . अगर यूनियन कार्बाइड कंपनी को सबक सिखाया गया होता तो भविष्य में कोई विदेशी कंपनी इस तरह का दुस्साहस करने की जुर्रत नहीं करती . भले ही कंपनी ने जानबूझकर यह नहीं किया मगर सभी नियमों का पालन करना उसकी जिम्मेदारी थी और इसमें उसने कोताही बरती , इस कारण कारन भोपाल के लोगों को ऐसा गम दिया गया , जिसे ताउम्र नहीं भुलाया जा सकता.












Sunday, June 6, 2010

प्रकाश झा की राजनीति
कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा
प्रकाश झा अच्छे फिल्म मेकर हैं , अब तक वे सार्थक फ़िल्में बनाते आये हैं, मगर इस बार उन्होंने दर्शकों के साथ ही राजनीति कर डाली है. घिसी -पिटी कहानी, प्रभावहीन संगीत और गाने के नाम पर टुकड़े-टुकड़े कुछ मुखड़े . बेचने का पूरा मसाला मौजूद . कई दीर्घ होठों के चुम्बन. सी ग्रेड टाइप बेड रूम द्रश्य, जिनकी प्रकाश झा से अपेक्षा नहीं की जा सकती , और सबसे बड़ी बात ये कि इस मसाले को बेचने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम का इस्तेमाल , इससे बस इतना ही फायदा मिला कि अखबार , टी.वी. में प्रचार हो गया. कुछ टी.वी. अखबारों में समीक्षा की सेटिंग करके फिल्म को तीन और कहीं ज्यादा स्टार दिलवा दिए , कुल मिलाकर फिल्म के अंदर राजनीति बहुत कम और बाहर बहुत ज्यादा की गयी.फिल्म देखने के बाद लोग खुद को ठगा सा महसूस करते हैं. अश्लील द्रश्य, हिंसा , साजिस और इसके अलावा कुछ नहीं . कहानी ऐसी घटिया कि लिखने वाले पर तरस आये , स्क्रीन प्ले ऐसा कि सर दुखने लगे. नामचीन कलाकारों के जमघट के सिवाय कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं. जब तक कोई फिल्म रिलीज नहीं हो पाति तब तक प्रोडक्शन टीम के अलावा किसीको भी यह जानकारे नहीं होती कि फिल्म के अंदर किस तरह के द्रश्य हैं, टीम के लोग भी बस अपना काम भर जानते हैं, साथ ही यह भी जानते हैं कि उन्होंने जितना काम किया है , उसमे से कितना रहेगा , कितना बचेगा यह सिर्फ एडिटर और डायरेक्टर जानता है , फिर कांग्रेस के छुटभैया नेताओं को कैसे पता चला कि 'राजनीति ' में कैटरीना कैफ का किरदार सोनिया गांधी से मिलता जुलता है . जबकि सच्चाई ये है कि बिलकुल है भी नहीं. जाहिर सी बात है कि इस विवाद को खुद प्रकाश झा ने खुद जन्म दिया , और इसे पाला पोसा भी , ताकि मुफ्त की पब्लिसिटी मिल सके और लोग भ्रमित होकर सोनिया गांधी की फिल्म देखने दौड़े चले आयें. सोनिया गांधी इटली की रहने वाली हैं. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी से विवाह किया और लिट्टे के आतंकियों के हमले में जब वे शहीद हो गए तो कालान्तर में सोनिया गांधी को कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. उन्होंने उस समय एक महान त्याग का परिचय दिया जब उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा दिया . जबकि प्रकाश झा की 'राजनीति' का चरित्र अर्थात कैटरीना कैफ अर्थात इंदु के पति की ह्त्या के बाद उन्हें क्षेत्रीय पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाता है. स्पष्ट बहुमत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बानाया जाता है. अगर किसी फिल्म में किसी विधवा को नेता के तौर पर दिखाया जाता है तो क्या वह प्रसंग सोनिया गांधी से ही जुडा होगा ? फिर कांग्रेस के छुटभैया नेता इस फिल्म पर बवाल क्यों मकाहा रहे थे ? कहीं उनके साथ भी तो किसी तरह की कोई 'राजनीतिक' डील तो नहीं की गयी थी?
फिल्म की शुरुआत वामपंथी नेता भास्कर सान्याल (नसीरुद्दीन शाह) से होती है। उसके इस अंदाज पर विपक्षी दल की नेता की बेटी भारती (निखिला त्रिखा) भी वामपंथ की धारा में शामिल हो जाती है। भास्कर और भारती में एक दिन संबंध बन जाते हैं, भास्कर इसे अपनी बड़ी भूल मानता है और वनवास पर निकल जाता है। भारती एक बेटे को जन्म देती है लेकिन उसका भाई ब्रज गोपाल (नाना पाटेकर) उसे मंदिर में छोड़ आता है। इस बीच भारती का विवाह जबरन एक राजनैतिक परिवार में कर दी जाती है। लेकिन इस परिवार में सत्ता का संघर्ष उस समय शुरु हो जाता है जब परिवार के मुखिया को लकवा मार जाता है और राष्ट्रवादी पार्टी की बागडोर भारती के पति को मिल जाती है लेकिन इस बात को उसका देवर वीरेंद्र प्रताप (मनोज वाजपेयी) पसंद नहीं करता है।
यहीं से राजनीति छल कपट का एक दौर शुरु होता है जिसमें एक तरफ वीरेंद्र और उसका दोस्त सूरज (अजय देवगन) होते है तो दूसरी तरफ भारती के पति और उसके दो बेटे पृथ्वी (अर्जुन रामपाल) और समर प्रताप (रणबीर कपूर) के बीच राजनीतिक शह और मात का खेल शुरु होता है। फिल्म में समर प्रताप (रणबीर कपूर) से (इंदू) कैटरीना एक तरफा प्यार करती है लेकिन उसका विवाह बाद में उसके भाई पृथ्वी(अर्जुन रामपाल)के साथ होता है। चुनावी मौसम में शह और मात के बीच वोटों की शतरंजी बिसात पर रक्तपात के साथ पिरोया गया है ।
उधर सूरज को एक दलित परिवार पालता है. उसे वीरेंद्र प्रताप अचानक पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और केन्द्रीय चुनाव समिति का सदस्य बना देता है, जो कभी संभव नहीं. जो प्राथमिक सदस्य भी न हो , उसे प्रकाश झा ही झटके में इतना बड़ा पद दिला सकते हैं. जब प्रथ्वी अपनी अलग पार्टी जनशक्ति पार्टी बना लेता है ( प्रकाश झा खुद भी बिहार से रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी से सांसद का चुनाव लड़कर हार चुके हैं, यह उसीसे मिलता-जुलता नाम है ) तब प्रथ्वी सेटिंग करके प्रथ्वी की पार्टी के १७ उम्मीदवारों के के पर्चे रद्द करवा देता है. और वीरेंद्र प्रताप कुछ नहीं करता , बस उम्मीदवारों को धक्के मारकर भगा देता है. जबकि यह वास्तविकता नहीं है. जब कोई भी पार्टी अपने उम्मीदवार की टिकट तय करती है तो उससे पहले उसके सारे कागजात जमा करवाती है . फार्म भरके कई बार विशेसज्ञों द्वारा उसे चेक करवाया जाता है. इसके बाद भी एक डमी कैंडीडेट का फ़ार्म भरवाया जाता है ताकि किसी कारणवश फ़ार्म रद्द हो गया तो दुसरा उम्मीदवार पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ सकता है. ए .बी फ़ार्म में यह सुविधा उपलब्ध रहती है. अगर दुर्भाग्यवश दूसरे उम्मीदवार का फ़ार्म भी रद्द हो गया या उसने नाम वापस ले भी लिया तो पार्टी उस सीट पर किसी ऐसे उम्मीदवार को सपोर्ट कर देती है , जो उनकी प्रतिद्वंदी पार्टी के उम्मीदवार को हराने की क्षमता रखता हो .ऐसे कई पॉइंट हैं जो इस फिल्म को वास्तविकता से दूर ही रखते हैं,कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा , भानुमती ने कुनबा जोड़ा . जैसा हिसाब -किताब है . मुख्य बात ये है कि दर्शकों को गुमराह नहीं करना चाहिए , उन्हें थोड़ा सा तो आभास हो कि वे समय और पैसा किसके लिए खर्च करने जा रहे हैं ?










प्रकाश झा की राजनीति
कहीं की ईंट , कहीं का रोड़ा
प्रकाश झा अच्छे फिल्म मेकर हैं , अब तक वे सार्थक फ़िल्में बनाते आये हैं, मगर इस बार उन्होंने दर्शकों के साथ ही राजनीति कर डाली है. घिसी -पिटी कहानी, प्रभावहीन संगीत और गाने के नाम पर टुकड़े-टुकड़े कुछ मुखड़े . बेचने का पूरा मसाला मौजूद . कई दीर्घ होठों के चुम्बन. सी ग्रेड टाइप बेड रूम द्रश्य, जिनकी प्रकाश झा से अपेक्षा नहीं की जा सकती , और सबसे बड़ी बात ये कि इस मसाले को बेचने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम का इस्तेमाल , इससे बस इतना ही फायदा मिला कि अखबार , टी.वी. में प्रचार हो गया. कुछ टी.वी. अखबारों में समीक्षा की सेटिंग करके फिल्म को तीन और कहीं ज्यादा स्टार दिलवा दिए , कुल मिलाकर फिल्म के अंदर राजनीति बहुत कम और बाहर बहुत ज्यादा की गयी.फिल्म देखने के बाद लोग खुद को ठगा सा महसूस करते हैं. अश्लील द्रश्य, हिंसा , साजिस और इसके अलावा कुछ नहीं . कहानी ऐसी घटिया कि लिखने वाले पर तरस आये , स्क्रीन प्ले ऐसा कि सर दुखने लगे. नामचीन कलाकारों के जमघट के सिवाय कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं. जब तक कोई फिल्म रिलीज नहीं हो पाति तब तक प्रोडक्शन टीम के अलावा किसीको भी यह जानकारे नहीं होती कि फिल्म के अंदर किस तरह के द्रश्य हैं, टीम के लोग भी बस अपना काम भर जानते हैं, साथ ही यह भी जानते हैं कि उन्होंने जितना काम किया है , उसमे से कितना रहेगा , कितना बचेगा यह सिर्फ एडिटर और डायरेक्टर जानता है , फिर कांग्रेस के छुटभैया नेताओं को कैसे पता चला कि 'राजनीति ' में कैटरीना कैफ का किरदार सोनिया गांधी से मिलता जुलता है . जबकि सच्चाई ये है कि बिलकुल है भी नहीं. जाहिर सी बात है कि इस विवाद को खुद प्रकाश झा ने खुद जन्म दिया , और इसे पाला पोसा भी , ताकि मुफ्त की पब्लिसिटी मिल सके और लोग भ्रमित होकर सोनिया गांधी की फिल्म देखने दौड़े चले आयें. सोनिया गांधी इटली की रहने वाली हैं. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी से विवाह किया और लिट्टे के आतंकियों के हमले में जब वे शहीद हो गए तो कालान्तर में सोनिया गांधी को कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. उन्होंने उस समय एक महान त्याग का परिचय दिया जब उन्होंने प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा दिया . जबकि प्रकाश झा की 'राजनीति' का चरित्र अर्थात कैटरीना कैफ अर्थात इंदु के पति की ह्त्या के बाद उन्हें क्षेत्रीय पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाता है. स्पष्ट बहुमत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बानाया जाता है. अगर किसी फिल्म में किसी विधवा को नेता के तौर पर दिखाया जाता है तो क्या वह प्रसंग सोनिया गांधी से ही जुडा होगा ? फिर कांग्रेस के छुटभैया नेता इस फिल्म पर बवाल क्यों मकाहा रहे थे ? कहीं उनके साथ भी तो किसी तरह की कोई 'राजनीतिक' डील तो नहीं की गयी थी?

Friday, June 4, 2010

क्या मतलब शरद पवार ?
गधा नहीं रेंगटा है ?
आई पी एल की पुणे फ्रेंचाइजी की नीलामी में बोली लगाने वालों में केन्द्रीय मंत्री शरद पवार की कंपनी का नाम भी सामने आ रहा है . आईपीएल में पुणे की टीम के लिए कंस्ट्रक्शन कंपनी सिटी कॉर्पोरेशन ने 1176 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। इस कंपनी के 2 करोड़ 7 लाख शेयर में से 16.22 फीसदी शेयर शरद पवार के पास है और सिटी कॉर्पोरेशन में लेप फाइनेंस एंड कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड और नम्रता फिल्म एंटरप्राइजेज लिमि. का शेयर है। इन दोनों कंपनियों के मालिक शरद पवार, उनकी पत्नी प्रतिभा और बेटी सुप्रिया सुले हैं। जब यह मामला उजागर हुआ तो बी सी सी आई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार साफ़ मुकर गए. और मजेदार या कह सकते हैं कि न हजम होने वालाबयान दे डाला. उनका कहना है कि कम्पनी के एमडी अनिरुद्ध कुमार देशपांडे ने अपनी निजी बोली लगाई थी. उन्हें व्यक्तिगत रूप से बोली लगाने के लिए अनुमति दी गयी थी. जबकि देशपांडे ने तो कमाल ही कर दिया . उन्होंने बयान दिया कि उनको मालूम ही नहीं कि इस कम्पनी में शरद पवार की भी भागीदारी है. एक अलग बयान में उन्होंने कहा कि उन्होंने शेयर होल्डर्स से व्यक्तिगत बोली लगाने का परमिशन लिया था. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाये तो ये दोनों ही झूठ बोल रहे हैं. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी सफ़ेद झूठ बोल रही हैं.क्योंकि जब बोली बाकायदा सिटी कर्पोरेशन ने लगाई थी और इस कंपनी में शरद पवार , उनकी बेटी और उनकी पत्नी के शेयर हैं, ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि देशपांडे को यह पता ही न हो कि जिस कंपनी के वे एमडी हैं , उसके शेयर होल्डर कौन हैं ? और जब उन्होंने शेयर होल्डर्स से अनुमति मांगी तब भी क्या उन्हें पता नहीं चला कि वे शेयर होल्डर्स आखिर हैं कौन?मतलब, गधा नहीं , रेगटा है. बात तो मगर वही हुई ना. इससे साफ़ जाहिर होता है कि दाल में कुछ काला जरूर है . शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे देश को गुमराह करें. अगर उनकी कंपनी नीलामी में बोली लगाने की प्रक्रिया में शामिल थी तो उन्हें स्वीकारने में हर्ज क्या है ?वे देश के सामने इतना बड़ा झूठ क्यों बोल रहे हैं, जिसे कोई भी पकड़ सकता है . भले ही उनकी कंपनी को पुणे फ्रेंचाइजी नहीं मिल पाई , मगर महत्वपूर्ण बात ये है कि कोई जिम्मेदार मंत्री ऐसा कैसे कर सकता है ? ऐसे लोगों से उच्च आदर्श प्रस्तुत करने की आशा की जाती है अगर वही लोग इस तरह का कार्य करेंगे तो देश का क्या होगा ? आईपीएल अब तक दो महतवपूर्ण लोगों की बलि ले चूका है. आर्थिक व्यवहार के विवाद के चलते ललित मोदी को कमिश्नर के पद से हाथ धोना पड़ा और शशि थरूर को केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री के पद से. अब बारी शरद पवार की है , मगर लगता नहीं कि कांग्रेस उनका कुछ भी कर पाएगी . कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शरद पवार कांग्रेस के साथ गठबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, उन्होंने पत्रकारों को नसीहत दी कि यदि कुछ पूछना है तो उन्हीसे पूछो. कांग्रेस के तेवर साफ़ बता रहे हैं कि सरकार चलाने की मजबूरी के चलते
वे पवार का कुछ नहीं बिगाड़ सकते , आखिर महाराष्ट्र में भी उनकी मिली -जुली सरकार चल रही है. केन्द्र में भी पवार की पावर का सहारा है. ऐसे में अगर वो कुछ करते हैं तो करते हैं, किसीको कोई फर्क नहीं पड़ता. कांग्रेस का वश शशि थरूर पर चलता था सो उन्हें हटा दिया . ये अलग बात है कि उनकी तो प्रत्यक्ष रूप से किसी ताम खरीदने वाली कंपनी में साझेदारी भी नहीं थी. अब कोई यह कहे कि कांग्रेस अलग-अलग मापदंड क्यों अपनाती है तो कहता रहे , कांग्रेस वही करेगी जिससे उसका फायदा हो. रही बात इमेज की . उसे कौन पूछता है . जब मतदान का समय आएगा तो मत खरीदकर उसकी पूर्ती कर दी जायेगी. उस क्ल्हेल में तो कांग्रेस माहिर है. अब भारतीय जनता पार्टी शरद पवार के इस्तीफे की मांग कर रही है . जो आदमी सैकड़ों किसानों कि आत्महत्या पर इस्तीफा नहीं दे सकता, उससे ऐसी उम्मीद करना भाजपा को शोभा नहीं देता.







क्या मतलब शरद पवार ?
गधा नहीं रेंगटा है ?
आई पी एल की पुणे फ्रेंचाइजी की नीलामी में बोली लगाने वालों में केन्द्रीय मंत्री शरद पवार की कंपनी का नाम भी सामने आ रहा है . आईपीएल में पुणे की टीम के लिए कंस्ट्रक्शन कंपनी सिटी कॉर्पोरेशन ने 1176 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। इस कंपनी के 2 करोड़ 7 लाख शेयर में से 16.22 फीसदी शेयर शरद पवार के पास है और सिटी कॉर्पोरेशन में लेप फाइनेंस एंड कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड और नम्रता फिल्म एंटरप्राइजेज लिमि. का शेयर है। इन दोनों कंपनियों के मालिक शरद पवार, उनकी पत्नी प्रतिभा और बेटी सुप्रिया सुले हैं। जब यह मामला उजागर हुआ तो बी सी सी आई के पूर्व अध्यक्ष शरद पवार साफ़ मुकर गए. और मजेदार या कह सकते हैं कि न हजम होने वालाबयान दे डाला. उनका कहना है कि कम्पनी के एमडी अनिरुद्ध कुमार देशपांडे ने अपनी निजी बोली लगाई थी. उन्हें व्यक्तिगत रूप से बोली लगाने के लिए अनुमति दी गयी थी. जबकि देशपांडे ने तो कमाल ही कर दिया . उन्होंने बयान दिया कि उनको मालूम ही नहीं कि इस कम्पनी में शरद पवार की भी भागीदारी है. एक अलग बयान में उन्होंने कहा कि उन्होंने शेयर होल्डर्स से व्यक्तिगत बोली




लगाने का परमिशन लिया था. लेकिन अगर ध्यान से देखा जाये तो ये दोनों ही झूठ बोल रहे हैं. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले भी सफ़ेद झूठ बोल रही हैं.क्योंकि जब बोली बाकायदा सिटी कर्पोरेशन ने लगाई थी और इस कंपनी में शरद पवार , उनकी बेटी और उनकी पत्नी के शेयर हैं, ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि देशपांडे को यह पता ही न हो कि जिस कंपनी के वे एमडी हैं , उसके शेयर होल्डर कौन हैं ? और जब उन्होंने शेयर होल्डर्स से अनुमति मांगी तब भी क्या उन्हें पता नहीं चला कि वे शेयर होल्डर्स आखिर हैं कौन? इससे साफ़ जाहिर होता है कि दाल में कुछ काला जरूर है . शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे देश को गुमराह करें. अगर उनकी कंपनी नीलामी में बोली लगाने की प्रक्रिया में शामिल थी तो उन्हें स्वीकारने में हर्ज क्या है ?वे देश के सामने इतना बड़ा झूठ क्यों बोल रहे हैं, जिसे कोई भी पकड़ सकता है . भले ही उनकी कंपनी को पुणे फ्रेंचाइजी नहीं मिल पाई , मगर महत्वपूर्ण बात ये है कि कोई जिम्मेदार मंत्री ऐसा कैसे कर सकता है ? ऐसे लोगों से उच्च आदर्श प्रस्तुत करने की आशा की जाती है अगर वही लोग इस तरह का कार्य करेंगे तो देश का क्या होगा ? आईपीएल अब तक दो महतवपूर्ण लोगों की बलि ले चूका है. आर्थिक व्यवहार के विवाद के चलते ललित मोदी को कमिश्नर के पद से हाथ धोना पड़ा और शशि थरूर को केन्द्रीय विदेश राज्य मंत्री के पद से. अब बारी शरद पवार की है , मगर लगता नहीं कि कांग्रेस उनका कुछ भी कर पाएगी . कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि शरद पवार कांग्रेस के साथ गठबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, उन्होंने पत्रकारों को नसीहत दी कि यदि कुछ पूछना है तो उन्हीसे पूछो. कांग्रेस के तेवर साफ़ बता रहे हैं कि सरकार चलाने की मजबूरी के चलते शरद पवार का कुछ नहीं किया जा सकता. आखिर महाराष्ट्र में भी पवार की पावर के सहारे ही कांग्रेस को सत्ता की मलाई चखने को मिल रही है. जब शशि थरूर को कांग्रेस ने मंत्री पद से हटाया तो उन पर भी यही आरोप लगाए गए थे