Tuesday, June 8, 2010

अरे रामदास , भीमदास
बनने में ही भलाई है

आज से लगभग १५ साल पहले जब रिपब्लिकन पार्टी के युवा नेता रामदास आठवले को महाराष्ट्र सरकार में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया था तो लोग उन्हें देखने मंत्रालय में जाया करते थे. जब मै मंत्रालय जाता तो उनके केबिन के सामने भीड़ देखता, पूछता तो पता चलता कि लोग आठवले को मिनिस्टर की कुर्सी पर बैठे देखकर यह जानने को उत्सुक हैं कि एक गरीब परिवार का लड़का उस कुर्सी पर कैसा दिखता है . उस समय आठवले की छवि तेज तर्रार युवक की थी . दिग्गज मराठा नेता शरद पवार ने आठवले में छिपे उस जादू को पहचान लिया था, जिसका वे आज तक फायदा उठा रहे हैं. वो दौर ऐसा था कि दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा रामदास आठवले में अपनी भविष्य की राजनीति तलाशने लगा था , इस वर्ग को लगने लगा कि अगर वे रामदास आठवले के साथ चलते हैं तो उन्हें भी सत्ता में भागीदारी मिल सकती है , ऐसे ही जैसे रामदास आठवले को शरद पवार ने मंत्री बनाया था. उनकी नगरसेवक, विधायक , सांसद और मंत्री बनने की महत्वकांक्षाओं को पर लग रहे थे , और डॉक्टर बाबा साहेब आम्बेडकर का आंदोलन धीरे -धीरे कमजोर हो रहा था. क्योंकि उस समय दलित युवाओं को सहारे के आदत अर्थात बैसाखियों की आदत लगने लगी थी. यानि कि थोड़े से दलित वोट मिल जाएँ , बाकी शरद पवार से गठबंधन कर कुछ सीट हासिल हो ही जायंगी ,भले ही इन कुछ सीटों के बदले दलित समाज के पूरे प्रदेश के वोट शरद पवार को क्यों न दिलाने पड़ें. इस तरह राजनीतिक बैसाखियों का चलन शुरू हो गया.इससे दलितों को नुक्सान ये हुआ कि वे तो अपने वोटों से कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस को सत्ता की सीढ़ियों चढाते रहे मगर दलित नेता पूरी तरह से बंट गए. अलग-अलग पार्टियां बनने लगीं , क्योंकि सब दलित नेता एक साथ सत्ता का सुख भोगना चाहते थे और इसके लिए वे अपनी नई -नई राह तलाश रहे थे. रासु गवई अपना एक अलग गुट बनाकर कांग्रेस के वफादार सिपाही बन गए और इसका उन्हें फायदा भी मिला यानि कि राज्यपाल के पद का प्रसाद
चखने को मिल गया. आठवले शरद पवार से ही चिपके रहे .जोगेन्द्र कवाडे और खोब्रागडे अलग जमे रहे . बाबा साहेब आम्बेडकर के पोते प्रकाश आम्बेडकर अलग पार्टी चलाते रहे . इधर यूपी में जबरदस्त पैर जमाने के बाद बहुजन समाज पार्टी भी महाराष्ट्र से चुनाव लड़ने लगी.इससे वोट बंटने लगे और दलित समर्थक सभी पार्टियां चुनाव हारती रहीं. प्रकाश आम्बेडकर और रामदास आठवले भी हर गए . आठवले ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी ने ही मिलकर उन्हें हरा दिया . इसके बाद भी वे पवार से मिलने के जुगाड भिडाते रहे . जब वे सांसद थे तो मंत्री बनने के लिए मिन्नतें करने लगे और जब सांसद नहीं रहे तो राज्यसभा सांसद बनने के लिए गिडगिडाते रहे , मगर उनकी फ़रियाद किसी ने नहीं सुनी. यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अशोक च्वहान के यहाँ भी दरबारी की मगर कोई फायदा नहीं हुआ. आठवले जी शायद भूल गए हैं कि सत्ता भीख मांगने से नहीं मिला करती . अगर ऐसा होता तो सारे भिखारी नगरसेवक, विधायक, मंत्री , मुख्यमंत्री होते . इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है. अपने लोगों को संगठित करना पड़ता है , जैसे बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में किया है. आठवले जी के साथ सबसे बुरा वाकया उस समय पेश आया जब उन्होंने राज्यसभा का पर्चा भरना चाहा तो रिडालोस के विधायकों ने भी उनका साथ नहीं दिया. सुनने में तो यहाँ तक आया कि वे १० अनुमोदक और सूचक भी नहीं जुटा पाए जो कि विधायक होते हैं. रामदास आठवले को जिस रिडालोस का समर्थन नहीं मिल पाया , उसको जिताने के लिए उन्होंने दलित समाज के बहुत सारे वोट ट्रांसफर करा दिए , मगर उनके लिए वोट ट्रांसफर नहीं हो पाए , इसका परिणाम ये निकला कि रामदास आठवले का एक भी विधायक नहीं जीत पाया . रिडालोस से गठबंधन करते समय अठावले ये भूल गए कि उसमे समाजवादी पार्टी भी शामिल है , वही समाजवादी पार्टी जिसने यूपी में मायावती के बनवाए आम्बेडकर स्मारकों कोअय्याशी का अड्डा कहा था , और यह एलान कर रखा है कि उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो वे सब मूर्तियों को तुडवा देंगे . ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन करके उन्हें क्या मिला ? माया मिली न राम. अपनों के हुए और न परायों के बन पाए . अगर दलित आंदोलन को ज़िंदा रखना है और महाराष्ट्र में भी बाबा साहेब आम्बेडकर के विचारों की सरकार बनानी है तो रामदास आठवले को अब बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए. और बहुजन समाज पार्टी को चाहिए कि वह रामदास आठवले को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भेज दें. इस तरह रामदास आठवले अपनी खोई जमीन , मान -सम्मान वापस पा लेंगे और बहुजन समाज पार्टी महाराष्ट्र में मजबूत हो जायेगी . इस तरह अगर डॉक्टर आम्बेडकर के सपनो की सरकार बनानी है तो सभी दलित समर्थक पार्टियों को एक मंच पर आना होगा. समाज की भलाई के लिए सभी अहम त्यागकर सबको आगे आना चाहिए .











1 comment:

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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